जाने क्यों वो मंटो का नाम सुनकर जाते-जाते रुक गई
एक कहानी रोज़ में आज पढ़िए आदित्य नवोदित की कहानी 'दूसरे मंटो की प्रेमिका'
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फोटो - thelallantop
हैलो.! अच्छा बाबा सॉरी. तुम गुस्सा तो नहीं हुए न.नहीं. बिलकुल नहीं. तुम्हारी किसी बात पर भला मै गुस्सा करता हूं क्या?जाओ..जाओ किसी और से कहना ये बात जो तुम्हे जानता न हो. बड़े आए गुस्सा नहीं करता. हुन्ह.हम्म... हमको हर उस आदमी से प्यार हो जाता है. जो हमको जानता और समझता है. और तुम पहली लड़की हो जिसे ये बात पता है.अच्छा..पर अभी तो तुमने कहा कि तुम्हे आदमी से प्यार होता है.हंसी फिर से फैल गई. मै एक बार फिर न चाहते हुए भी हंसी के रुकने का इंतजार करने लगा. हंसी थक गई. हंसी रुक गई. अच्छा बाबा फिर से सॉरी. और हां मुझे मालूम है कि तुम्हे गुस्सा नहीं आया. कल मिलते हैं. कल हम कॉलेज आएंगे. तुम वहीं आ जाना. हम आखिरी का एक लेक्चर छोड़ देंगे. ओके. ठीक है. पर तुम्हारे कॉलेज में तो आजकल बाहर के लड़कों को घुसने नहीं देते है. हां. पर तुम चिंता न करो. गेट पर पहुंचकर फोन कर लेना. हम अंदर से हाथ दिखा देंगे. तो तुम्हे अंदर आने देंगे. उन्हें लगेगा मेरे भाई हो तुम. हंसी खिलखिला उठी. हई सब्बाश..बहुत इंटेलीजेंट हो गई हो बे तुम तो. हां तो. आजकल रहते किसके साथ हैं. हंसी फिर खिलखिला उठी. उसको हंसते हुए देखना जिंदगी के खुशनुमा पलों में से एक था. हालांकि दुनिया के हर प्रेमी के लिए ऐसा ही होता है. या लगभग प्रेम में धंसा हुआ हर आदमी उपमा के तौर पर यही कहता है. शायद मेरे पास भी इसके अलावा और कोई उपमा नहीं है. अगले दिन तयशुदा कार्यक्रम के तहत ही सब हुआ. प्रेम में प्लानिंग बहुत करनी पड़ती है. छोटे शहरों के मामले में ये बात और भी पुख्ता हो जाती है. मैं हमेशा से शहर के छोटेपन से खुन्नस खाता रहा हूं. छोटे शहरों में लोग खुलकर प्रेम नहीं कर पाते. छोटे शहरों में लोग फुरसत भी रहते हैं. मुझे फुरसतिहापन से भी बहुत खुन्नस है. बड़े शहरों में लोग बिजी रहते हैं. पता नहीं किस काम में. पर बिजी रहते हैं. मैं भी ऐसे ही किसी काम में बिजी होना चाहता हूं. जिसके बारे में किसी को पता न लगे. पर उसके लिए मुझे शहर बदलना पड़ेगा. मैं शहर बदलने से डरता हूं. मुझे अपने शहर से प्यार है. मुझे उससे प्यार है. ओह् तब तो मैं शहर बदलने से नहीं उससे प्यार न कर पाने से डरता हूं. शहर बदलकर शायद मै उससे प्यार न कर पाऊं. ऐसा मुझे लगता है. हम कॉलेज के पिछले हिस्से में बैठे हुए है. हमारी तरह कुछ और भी लोग बैठे हुए है. नहीं..हमारी तरह नहीं. वो आपस में प्रेम कर रहे है. हम प्रेम नहीं कर रहे है. हम सिर्फ उन्हें देख रहे है. किसी को ऐसे नहीं देखना चाहिए. अचानक से मुझे ये बात ध्यान आ गई. मैंने मुंह फेर लिया. मुझे देखकर उसने भी मुंह फेर लिया.
तुम हमेशा ऐसे फॉर्मल कपड़े ही क्यों पहनते हो?तुम अक्सर ये बड़े नीले फूलों वाली कुर्ती ही क्यों पहनती हो?अक्सर नहीं. जब तुमसे मिलती हूं सिर्फ तब. क्यों तुम्हे अच्छी नहीं लगती?नहीं ऐसी बात नहीं है. बल्कि मैंने अपनी एक कविता में भी इसका जिक्र किया है.हम्म... और मैंने वो कविता पढ़ी है.मैं हंस दिया. मैं अक्सर किसी बात में फंस जाने पर हंस दिया करता था. वो ये बात भी समझती थी. वो अक्सर ऐसे मौकों पर बात बदल दिया करती थी. उसे मेरा किसी बात पर फंसना अच्छा नहीं लगता था. आज भी उसने ऐसा ही किया. तुम कल फोन पर कह रहे थे. कुछ बातों का जानना जरुरी होता है. और कुछ बातों का न जानना भी. ऐसी कौन-सी बात है जो तुम नहीं जानते? क्यों? तुम्हें क्या लगता है. मैं सबकुछ जानता हूं? हां... मेरा____सबकुछ जानता है. नाम के साथ 'मेरा' लगाकर पुकारना उसके प्यार जताने का तरीका था. आप जिससे प्यार करते है उस पर अधिकार जमाने लगते है. शायद उसे भी यह बात पता थी. ऐसे मौकों पर अक्सर वो अपना सर मेरे कंधे पर रख दिया करती थी. बशर्ते उस दौरान उसे देखने वाला सिर्फ मैं बस होऊं. आज उसने ऐसा नहीं किया. क्योकि वहां सिर्फ मैं बस नहीं था. ये तुम्हारी गलतफहमी है. मैं सबकुछ नहीं जानता हूं. और जानने की इच्छा भी नहीं है. कुछ बातों को न जानना भी अच्छा होता है.
अच्छा जैसे.??मुझे नहीं पता.तुम अक्सर सीरियस क्यों हो जाते हो?पता नहीं.पता है. जब तुम 'पता नहीं' बोलते हो. तो एकदम बुद्धू लगते हो.हंसी खिलाखिला पड़ी थी. सच कहूं तो मैं काफी देर से इसी के इंतजार में था. पर ये भी सच है कि मैंने 'पता नहीं' इसके लिए नहीं बोला था. फिर तो तुम्हें सबकुछ पता है. हां. वो इसलिए कि मैं तुम्हें जानती हूं. और मुझे लगता है. तुम्हे सबकुछ पता है. वो कभी-कभी मेरी तरह ही बातें करने लगती थी. जो मुझे समझ में नहीं आया करती थी. जैसे कई बार उसको मेरी बातें समझ में नहीं आती थी. पर वो अक्सर ये बात कह दिया करती थी. जबकि मैं नहीं कह पाता था. आज भी नहीं कह पाया.
अच्छा बताओ न. तुम क्या-क्या जानते हो?अरे! अभी तो तुम कह रही थी. मै क्या नहीं जानता हूं ये बताऊं तुम्हे. अब अचानक. तुम्हारा भी कुछ पता नहीं चलता.तुम्हारी बातें न मेरी समझ में नहीं आती.जैसे?जैसे तुम मुस्कुराते हो पर हंसते नहीं हो. तुम्हें टी-शर्ट्स पसंद हैं पर पहनते फॉर्मल कपड़े हो. तुम्हें कहानियां पसंद हैं पर लिखते तुम कविताएं हो. तुम सब जानते हो पर फिर भी कहते हो तुम कुछ नहीं जानते. ऐसा क्यों?वो जब भी किसी बात का अंत 'ऐसा क्यों' से किया करती थी. उसके बाद अक्सर उसकी आंख में कचरा चला जाया करता था. वो आंखें मिचमिचाने लगती थी और मुझसे आंख में फूंक मारने को कहा करती थी. जैसे मेरी फूंक में कोई जादू हो. वो ये बात कहा भी करती थी. ये उसका रोने से बचने का अपना तरीका था. उसे मैंने कभी रोते हुए भी नहीं देखा. अरे हां मै ये बात भी तो नहीं जानता. वो रोती कब थी? रोती भी थी या नहीं? मैंने उससे ये बात क्यों नहीं बताई? वो अपना बैग टटोल रही थी. वो अक्सर ऐसा जाने के पहले किया करती थी. ये उसकी ओर से अपना इशारा हुआ करता था.
अब इतनी जल्दी चल दोगी क्या?जल्दी कहां.. काफी देर हो गई. अब चलना चाहिए.उसे रोकने का एक ही बहाना था कि मैं कोई बात छेड़ दूं.मैं मंटो को जानता हूं.ये सुनकर वो ठिठक गई. उसने मेरे चेहरे को बड़े गौर से देखा. जैसे उसे उम्मीद ही न रही हो कि मैं मंटो को जानता हूं. हालांकि मैंने मंटो को हाल ही में पढ़ना शुरू किया था. और अभी तक मंटो की लिखी दो-चार कहानियां ही पढ़ी थी.
कैसे? तुम मंटो को कैसे जानने लगे.जैसे सब जानते हैं वैसे ही.पता नहीं क्यों वो इस बात से इतना हैरान क्यों थी कि मैं मंटो को जानता हूं. मेरे हिसाब से तो मंटो को जानना इतना मुश्किल काम नहीं है. और न ही इसमें कोई चौंकने वाली बात है. मंटो भी भला कोई पहुंचा हुआ आदमी था. बस कहानियां अच्छी लिख लेता था. अभी तक में तो फिलहाल मुझे इतना ही लगा. फिर ऐसी क्या बात है.
मंटो के बारे में पहली बार कहां सुना तुमने?मेरे दोस्त ने बताया था. और एक दिन सुभाष चौक की एक दुकान पर भी नजर पड़ गई थी.अच्छा. फिर ठीक है. अब हमें चलना चाहिए. तुम घर तक तो चलोगे न?हां चलूंगा. पर सिर्फ चौराहे तक.नहीं... आज तुम घर के दरवाजे तक चलना. प्लीज.अच्छा... ठीक है. चल दूंगा. पर प्लीज तुम भी मेरे गली के मोड़ में पहुंचने तक दरवाजे पर ही रहना.हां. ठीक है रहूंगी. अब चलो भी. लेट हो रहे हैं.मैंने ऑटो रुकवाई. सारे रास्ते वो चुप ही रही. मै बस बोलता गया था. वो मेरी ओर देख बस रही थी. मुझे लगा वो मुझे सुन रही है. मुझे सुनने वाले लोगो पर प्यार आ जाता है. जैसे अभी उस पर आ रहा था. ऐसा लग रहा था जैसे वो अभी मेरे कंधे पर सिर रख लेगी. और मैं कहते-कहते चुप हो जाऊंगा. मै अक्सर चुप हो जाता था. जब वो मेरे कंधे से अपना सिर टिका लेती थी. शायद मुझे चुप कराने का वो उसका अपना तरीका था. मैं ये सब सोच ही रहा था कि उसने अपना सिर मेरे कंधे पर टिका दिया. मैं अचानक से चुप हो गया. तभी मेरे मुंह से निकल आया. अरे! मैं तो बुद्ध हो गया. वो मेरी ओर देखके मुस्कुराने लगी. मुझे लगा था वो इस बात पर खिलखिला उठेगी. अमूमन वो हर जगह या अनजान लोगों के सामने खिलखिलाने से बचा करती थी. घर आ गया था. वादे के मुताबिक़ मै उसे दरवाजे तक छोड़कर आ गया. उसने भी मेरे गली के मोड़ तक पहुंचने का इंतजार किया था. फिर दरवाजे से भीतर गई थी. मैंने ऑटो रुकवाई और वापस आ गया. शाम के सात बज चुके थे. मोबाइल पर नजर डाली तो व्हाट्सएप पर पांच और आठ मिनट के अंतराल पर उसके तीन मैसेज पड़े थे.
1- तुम बुद्ध नहीं बुद्धू ही हो. और हमेशा ऐसे ही रहना. देखना ऐसे ही एक रोज तुम बुद्धू से बुद्ध हो जाओगे. :) 😘6:42 PM
2- तुमने मंटो के बारे में देर से जाना. हालांकि मैं तुम्हें मंटो के बारे में बताने ही वाली थी. पर मेरे बताने से पहले तुम्हे दोस्तों से पता चल गया. खैर तुम मंटो को जानने लगे हो. ये बुरा नहीं है.6:47 PM
3- तुम जिस मंटो की बात कर रहे थे मैं उसे नहीं जानती हूं. और मैं जिस मंटो की बात कर रही हूं शायद तुम उसे नहीं जानते हो. आखिर कौन है ये मंटो? अब तभी मुलाक़ात होगी जब हम एक-दूसरे के मंटो को जानने लगेगे.6:55 PM
वो हमारी आखिरी मुलाक़ात थी. उस रोज उसका व्हाट्सएप स्टेटस था. 'दूसरे मंटो की प्रेमिका' उस रोज मैंने भी अपना व्हाट्सऐप स्टेटस बदला था. 'मैं बुद्धू नहीं बुद्ध ही हूं'मेरे ही कई एमएमएस मेरे ही मोबाइल में ब्लिंक हो रहे थे