ED कब बना? कैसे जांच करता है? और नौकरी कैसे मिलती हैं? सब सवालों के जवाब यहां मिलेंगे
ED के बारे में सबकुछ बता दिया है, पढ़ लो

प्रवर्तन निदेशालय यानी ED राहुल गांधी पूछताछ हुई. मामला जुड़ा है नेशनल हेराल्ड केस से. ये सब तो आप जानते हैं और नहीं जानते ये वाला लल्लनटॉप शो देख लीजिए :
लेकिन इस बहाने हम आपको बताएंगे ED का इतिहास और कामकाज. नौकरी कैसे मिलती है? सरकारों ने कैसे ED को धार दी?
ED की शुरुआत और इतिहास-साल 1956. देश में नेहरू की सरकार थी. और ज़रूरत थी विदेशों में चल रहे एक्सचेंज में जो लोग लेनदेन कर रहे थे, उनकी जांच की. क्या वो सही दिशा में जा रहे थे? क्या कुछ गड़बड़ियां की जा रही थीं? इस जांच के लिए जो ज़रूरी क़ानून था, वो देश की आज़ादी के समय से ही मौजूद था. क़ानून था FERA. यानी फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन एक्ट, 1947. ऐसे में आर्थिक मामलों के विभाग ने एक यूनिट के प्रस्ताव पर काम करना शुरू किया. इस प्रस्ताव का नाम था एन्फ़ॉर्स्मेंट यूनिट. एक साल बीता. 1957. इस यूनिट की शुरुआत हो गई. ऑफ़िस दिल्ली में. कर्ता धर्ता बस एक लीगल सर्विस अफ़सर, जो इस यूनिट का डायरेक्टर था. फिर लाया गया RBI से एक अधिकारी, जो इस डायरेक्टर का असिस्टेंट हुआ. फिर आए 3 इंस्पेक्टर रैंक के पुलिस अफ़सर. और फिर उन तीन शहरों में भी ब्रांच खुले, जहां मार्केट का कारोबार होता था. बॉम्बे, मद्रास और कलकत्ता. तीनों जगह स्टॉक एक्सचेंज हुआ करते थे. नाम बदला गया. यूनिट की जगह लिखा गया डायरेक्टोरेट. ED की गाड़ी चल निकली.
साल आया 1960. इसका प्रशासनिक नियंत्रण आर्थिक मामलों के विभाग से खींच लिया गया. दे दिया गया राजस्व विभाग को. माने अब इस पर राजस्व मंत्रालय का नियंत्रण हो गया. कुछ वक़्त बाद साल 1947 का ‘फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन एक्ट’ निरस्त कर दिया गया और इसकी जगह 1973 में आए नए फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन एक्ट ने ले ली. माने FERA 1947 की जगह FERA 1973 आ गया. और इसी के तहत ED काम करने लगा. साल 1973 से साल 1977 तक ED पर डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनेल एंड एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स का प्रशासनिक नियंत्रण रहा.
फिर सबकुछ ऐसे ही धीरे-धीरे कुछ सालों तक चला और आया साल 1999. FERA 1973 की जगह नया क़ानून आया. 1999 का फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट यानी FEMA. प्रभाव में आया 1 जून सन 2000 से. ये एक सिविल लॉ था जिसने ED को ताकत दी.
साल 2002. अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार थी. PMLA अधिनियम संसद में पेश किया गया. 2004 में सरकार बदल गई और UPA का पहला शासन काल आया. वित्त मंत्री बने पी. चिदम्बरम. साल 2005 में UPA सरकार ने अटल सरकार के समय बने क़ानून को 1 जुलाई की तारीख़ से लागू कर दिया. इसके बाद जब विदेशों में शरण लेने वाले आर्थिक मामलों के अपराधियों की संख्या बढ़ी तो साल 2018 में सरकार ने ‘भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम’ (FEOA) पास कर दिया. और ये ज़िम्मेदारी भी ED के पास आ गई.
ED किन कानूनों के तहत काम करता है?ED ख़ास तौर पर FEMA और PMLA कानूनों के तहत काम करता है. FEMA एक सिविल लॉ है. इस क़ानून को Quasi Judicial Powers यानी अर्धन्यायिक शक्तियां होती हैं. जो इस क़ानून को एक्सचेंज कंट्रोल कानूनों के उल्लंघन के मामलों की जांच करने और दोषियों पर पेनाल्टी लगाने में सक्षम बनाती हैं. जबकि PMLA एक क्रिमिनल लॉ है. जिसके तहत अधिकारियों को मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपियों की संपत्तियों की जांच करने, उनसे पूछताछ करने, दोषी पाए जाने पर संपत्ति जब्त करने और अपराधियों को गिरफ्तार करने के अधिकार हैं.
इन दोनों क़ानूनों के तहत काम करने के अलावा ED के कुछ और फंक्शन्स भी हैं. जैसे भगोड़े आर्थिक अपराधियों के केस देखना, फॉरेन एक्सचेंज और स्मगलिंग एक्टिविटीज़ एक्ट (1974) के तहत कार्रवाई करना आदि. PMLA के सेक्शन 4 के तहत दंडनीय अपराधों के मामले स्पेशल कोर्ट्स में सुने जाते हैं. केंद्र सरकार ने एक से ज्यादा ऐसी कोर्ट बनाई हुई हैं. इन्हें PMLA कोर्ट कहा जाता है. हालांकि इन PMLA कोर्ट के किसी ऑर्डर के खिलाफ़ उस न्यायिक क्षेत्र के हाईकोर्ट में भी अपील की जा सकती है.
ED में नौकरी कैसे मिलती है?आज ED में नियुक्ति दो तरीके से होती है. एक तो सीधी भर्ती से अधिकारी लिए जाते हैं, और दूसरा कई जांच एजेंसीज़ जैसे कस्टम और सेंट्रल एक्साइज, इनकम टैक्स और पुलिस विभाग वगैरह से भी ऑफिसर्स का डेप्युटेशन होता है.
मामला ED के हाथ में कब जाता है?जब किसी पुलिस थाने में 1 करोड़ या उससे ज्यादा की कमाई गलत तरीके से कमाने का मामला दर्ज हुआ हो तो ये सूचना पुलिस ED को फॉरवर्ड करती है. दूसरा तरीका ये है कि अगर ऐसा कोई मामला ED के संज्ञान में आए तो वो खुद थाने से FIR या चार्जशीट की कॉपी मांग सकता है. इसके बाद ED देखता है कि ये मनी लॉन्ड्रिंग का मामला तो नहीं है.
ED काम कैसे करता है?PMLA के सेक्शन 16 और 17 के तहत मनी लॉन्ड्रिंग कन्फर्म हो जाने पर प्रवर्तन निदेशालय प्रॉपर्टी की खोजबीन और उसे जब्त करने की प्रक्रिया कर सकता है. साथ ही सेक्शन 19 के तहत गिरफ्तारी भी की जा सकती है.PMLA के सेक्शन 50 के तहत बिना पूछताछ के लिए बुलाए भी ED आरोपी की संपत्ति जब्त कर सकता है. यह जरूरी नहीं है कि ED पहले किसी व्यक्ति को बुलाए और फिर प्रॉपर्टी पर कार्रवाई करे. व्यक्ति की गिरफ्तारी के बाद ED को चार्जशीट फाइल करने के लिए 60 दिन का समय मिलता है. PMLA के सेक्शन 3 के मुताबिक़, मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल किसी व्यक्ति का साथ देने पर भी PMLA के तहत कार्रवाई हो सकती है.
ED इतना ताकतवर कैसे है?साल 1957 में ED एक छोटी प्रवर्तन एजेंसी थी. इसकी जद में कॉर्पोरेट वर्ल्ड और सिविल ऑफेंस के मामले आते थे. लेकिन साल 1973 में FERA के एमेंडमेंट के साथ ED मजबूत हो गया. इसके बाद से अगले तीन दशकों में ED ने कई बड़े हाईप्रोफाइल लोगों से जुड़े मामले हैंडल किए. मसलन, महारानी गायत्री देवी, जयललिता, TTV धिनाकरण, हेमा मालिनी, फिरोज खान, विजय माल्या, रिलायंस के प्रतिद्वंद्वी ऑर्के ग्रुप, वेस्टन टीवी और BCCL के चेयरमैन अशोक जैन वगैरह के FERA उल्लंघन के मामलों में ED ने जांच की.
ED में 30 साल तक कार्यरत रहे एक ऑफिसर इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहते हैं,
‘साल 1973 का FERA एक बड़ा ताकतवर क़ानून था. इस क़ानून के तहत किसी एन्फोर्समेंट अफ़सर को बिना वारंट किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने या उसके ऑफिस में घुसने का अधिकार था. उस वक़्त ED पर थर्ड डिग्री टार्चर के आरोप भी लगे. लेकिन 90 के दशक तक ED का ज्यादा खौफ उद्योगपतियों के बीच ही रहा.’
साल 2000 में FERA को निरस्त कर दिया गया. वजह इसे बहुत सख्त माना जा रहा था. इसकी जगह पर फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट आया. जिसके तहत विदेशी मुद्रा से जुड़े अपराधों को सिविल ऑफेंस में बदल दिया गया. इस क़ानून के चलते अब ED लोगों को न गिरफ्तार कर सकता था और न ही हिरासत में ले सकता था. कुल मिलाकर ED अब कमजोर हो गया था. हालांकि आतंकी गतिविधियां और कई दूसरी चीजों के चलते जल्दी ही एक सख्त क़ानून की जरूरत महसूस हुई. 2005 में PMLA आने से ED की मज़बूती बढ़ी.
साल 2009 और साल 2013 में PMLA क़ानून में कुछ संशोधन हुए जिनसे PMLAका दायरा बढ़ा, साथ ही इसने ED को CBI से भी ज्यादा शक्तियां दे दीं. बता दें कि TADA और POTA जैसे क़ानूनों के ख़त्म होने के बाद PMLA भारत का अकेला ऐसा क़ानून है जिसमें जांच करने वाले ऑफिसर को दिया गया बयान कोर्ट में बतौर सबूत मान्य है. इसके अलावा साल 2017 PMLA में ये प्रोवीज़न भी था कि किसी आरोपी को सिर्फ तब जमानत दी जा सकती है जब कोर्ट इस बात से संतुष्ट हो कि आरोपी वास्तव में दोषी नहीं है. इस लिहाज से भी PMLA एक बेहद सख्त क़ानून रहा है. क्योंकि ज्यादातर आरोपियों को लंबे वक़्त तक जमानत ही नहीं मिल पाई. इसके अलावा इस क़ानून के तहत ED को आरोपी की प्रॉपर्टीज़ को जब्त करने का अधिकार भी है.
ED का क्या राजनीतिक उपयोग होता रहा है?ऐसे कई सारे आरोप ED पर लगते रहे हैं. ख़ासकर तब जब पार्टियाँ विपक्ष में होती हैं और उनके किसी नेता पर ED का मुक़दमा दर्ज हो जाता है. ऐसा हाल के ही दिनों में राहुल गांधी के केस में देखने को मिला था. लेकिन जानकार ये भी कहते हैं कि ED समेत अधिकांश सरकारी एजेंसियों का सरकारों और पार्टियों ने अपने हिसाब से इस्तेमाल किया. हाल में DK शिवकुमार, पी चिदंबरम-कार्ति चिदंबरम के केस हों, या यूपीए की सरकार में हुए मधु कोड़ा केस, 2-G स्कैम, एयरसेल -मैक्सिस केस, CWG, सहारा, YS जगन मोहन रेड्डी और बाबा रामदेव के केस. ये सब उसी दौर के केस हैं. मधु कोड़ा केस पहला मामला था जिसमें ED ने आरोप साबित किया. CWG और सहारा के मामले अभी भी चल रहे हैं.
इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए ED के एक ऑफिसर कहते हैं,
'सिर्फ विपक्ष के नेताओं के वो बयान सुनिए जब वो सरकार पर एजेंसीज़ के दुरुपयोग का आरोप लगाते हैं. पहले सरकार CBI, IT और ED को अपने विपक्षियों के खिलाफ़ इस्तेमाल करती थी. लेकिन अब ये क्रम बदल कर ED, CBI और IT हो गया है.”
इस बयान की मानें तो सबसे पहले ED का इस्तेमाल होता है.
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