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खतरे में तितलियों का वजूद, अगर हमें जिंदा रहना है तो इन्हें मरने से बचाना होगा

पिछले साल अगस्त के महीने से साइंटिस्ट की टीम ‘कुयाबेनो वाइल्डलाइफ रिजर्व’ में रिसर्च कर रही थी. लेकिन तितलियों को ही क्यों पकड़ा जा रहा था? इसका एक बड़ा कारण है. तितलियां बायोइंडिकेटर कही जाती हैं. बायोइंडिकेटर माने ये किसी जगह पर पर्यावरण की स्थिति के बारे में बता सकती हैं.

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butterfly and humas
जीव वैज्ञानिकों ने जंगल में कुल 32 जाल बिछाए. (Image: Kanika Thapliyal, Wikimedia Commons)
13 मई 2024
Updated: 13 मई 2024 23:09 IST
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''अगर मधुमक्खियां धरती से गायब हो जाएं, तो इंसानों के पास जिंदा रहने के लिए चार साल ही होंगे.'' 

पहली नजर में लग सकता है कि अल्बर्ट आइंस्टाइन ने ये बात मधुमक्खियों के लिए कही थी. लेकिन मधुमक्खियों के साथ-साथ उन्होंने ये बात पॉलिनेशन या परागण को लेकर भी कही थी. यानी इन छोटे-छोटे जीवों का हम इंसानों की जिंदगी से भी बड़ा नाता है. पर्यावरण में इनकी स्थिति हम इंसानों पर भी असर डाल सकती है. छोटे और जरूरी जीवों की बात चली है तो हाल ही में तितलियों पर एक रिसर्च आया था. इसे लेकर कहा गया कि तितलियां अगर खत्म हुईं, तो इंसानों का बचना भी मुश्किल है!

Human Butterfly Relation) क्या है?

दक्षिण अमेरिका के देश इक्वाडोर में अमेजन के जंगलों में जीव वैज्ञानिक सांस रोके बदबूदार चारा डाल रहे थे. ये चारा था तितलियों को लुभाने के लिए. तितलियां जो परागण में अहम भूमिका निभाती हैं. परागण में ये फूल के नर हिस्से से पराग कणों को फूल के मादा हिस्से तक पहुंचाने में मदद करते हैं. जिसकी वजह से फूलों में निषेचन हो पाता है. और इनसे बीज बन पाते हैं. जो नए पौधे बनाने में मदद करते हैं. इसके बारे में आगे बात करते हैं.

वापस अमेजन के जंगलों की तरफ चलते हैं. जीव वैज्ञानिकों ने जंगल में कुल 32 जाल बिछाए. इनमें सड़ी मछली और गले हुए केले चारे के तौर पर इस्तेमाल किए गए थे. जो हरे रंग की जाली में ऐसे रखे गए थे, ताकि वो पेड़ों के बीच छिप सकें. लेकिन उनकी भयंकर बदबू किसी से नहीं छिपने वाली थी.

पिछले साल अगस्त के महीने से साइंटिस्ट की टीम ‘कुयाबेनो वाइल्डलाइफ रिजर्व’ में ये काम कर रही थी. क्यों? तितलियों को ही क्यों पकड़ा जा रहा था? इसका एक बड़ा कारण है कि तितलियां बायोइंडिकेटर कही जाती हैं. बायोइंडिकेटर माने ये किसी जगह पर पर्यावरण की स्थिति के बारे में बता सकती हैं.

शोध के तहत तितलियों को पकड़ने के बाद ज्यादातर पर निशान लगाकर उन्हें वापस छोड़ दिया गया. बस जिन प्रजातियों की तितलियों को पहले नहीं देखा गया था, उन्हें आगे के रिसर्च के लिए रख लिया गया. बाद में आए इसके नतीजे चिंताजनक थे.

रिसर्च से जुड़ीं शोधकर्ता मारिया फर्नैंडेज चेका ने इस बारे में समाचार एजेंसी AFP को बताया,

“हालांकि तितलियों की प्रजातियों में 10% की गिरावट देखी गई है. लेकिन तितलियों की पूरी जनसंख्या में 40-50% गिरावट हो सकती है. और ये बहुत चिंताजनक बात है.”

तितलियों के खत्म होने से इंसानों को क्या खतरा?

तितली जैसे जीवों का हम इंसानों से गहरा नाता है. ये परागण में मदद करती हैं. जिसकी वजह से पौधे बीज बनाते हैं. और नए पौधे बन पाते हैं. तितली, मधुमक्खी जैसे जीव इस काम में खासी मदद करते हैं. और बात सिर्फ तितलियों की नहीं है. दरअसल इन जीवों के जरिए बाकी के पर्यावरण की हालत को समझा जा सकता है. जैसे एक चावल के दाने से चावल के पकने का अंदाजा लगाया जाता है. वैसे ही ये एक तरह की बायोइंडिकेटर कही जाती हैं.

चेका बताती हैं कि तितलियां काफी संवेदनशील होती हैं. पर्यावरण में थोड़ा भी बदलाव उनके अंडे से तितली बनने के छोटे से जीवन में गहरा असर डाल सकता है. मतलब अगर किसी जगह अचानक से काफी तितलियां आ जाएं तो माना जा सकता है कि वहां पर्यावरण ठीक हुआ है. नए पौधे उगे हैं. वहीं इसके उलट अगर किसी जगह, जैसे अमेजन में तितलियों की संख्या कम हुई है, तो ये संकेत है कि वहां बाकी प्रजातियों पर भी बुरा असर पड़ सकता है. इनमें इंसान भी शामिल हैं.

UN (United Nations) ने भी इस बारे में चिंता जताई थी कि मधुमक्खी और तितली जैसे पॉलीनेशन करने वाले जीवों की करीब 40% प्रजातियां खतरे में हैं. जिसकी वजह से हम इंसानों को भी खतरा हो सकता है.

एक्सपर्ट्स का मानना है कि दुनिया भर में 87 बड़ी फसलें परागण के लिए ऐसे जीवों पर निर्भर करती हैं. ये भी बताया जाता है कि ये कुल फसलों का 35% हिस्सा हैं. मतलब ये कहना गलत न होगा कि हर तीन में से एक फसल में जीवों की वजह से परागण हो पाता है. ये भी कहा जाता है कि परागण करने वाले जीवों की जनसंख्या कम होने से खाद्य सुरक्षा पर भी असर पड़ सकता है.  

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ये समस्या सिर्फ इक्वाडोर की नहीं है. दुनियाभर में पोलिनेटर्स जीवों के हाल चिंताजनक हैं. यूरोपियन एनवायरनमेंट एजेंसी ने इस बारे में एक रिसर्च किया था. 17 देशों में घास के मैदानों की 17 प्रजातियों की तितलियों पर शोध हुआ. पाया गया कि 1991 से लेकर अब तक इनकी जनसंख्या में करीब 25% गिरावट आई है.  

संख्या कम होने के पीछे वजह क्या?

एक्सपर्ट्स का कहना है कि ऐसी जगहों के ट्रॉपिकल पौधे बदलते तापमान के लिए काफी संवेदनशील होते हैं और जल्दी बदलाव नहीं कर पाते. और ये मौसम के हिसाब से जल्दी नहीं बदले, तो इनके विलुप्त होने का खतरा है. अगर ये पौधे खत्म हुए तो इन पर पलने वाली तितलियों के लारवा भी खत्म हो सकते हैं.

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