The Lallantop
Advertisement

अगर ये न होते तो आज लोहड़ी भी न मनाई जा रही होती

दुल्ला भट्टी, जो अकबर के आंख की किरकिरी थे

Advertisement
Lohri
दुनिया के कई इलाकों में लोहड़ी का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है. (फोटो: PTI)
pic
आशीष मिश्रा
13 जनवरी 2021 (Updated: 13 जनवरी 2021, 08:47 AM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
दुल्ला भट्टी न होते तो लाहौर, लाहौर न होता. सलीम कभी जहांगीर न हो पाता. अकबर को भांड न बनना पड़ता. मिर्जा-साहिबा के किस्सों में संदल बार न आता. पंजाब वाले दुल्ले दी वार न गाते और जानो कि लोहड़ी भी न होती.
वाघा बॉर्डर से लगभग 200 किलोमीटर पार, पाकिस्तान के पंजाब में पिंडी भट्टियां है. वहीं लद्दी और फरीद खान के यहां 1547 में हुए राय अब्दुल्ला खान, जिन्हें दुनिया अब दुल्ला भट्टी बुलाती है. राजपूत मुसलमान थे वो. उनके पैदा होने से चार महीने पहले ही उनके दादा संदल भट्टी और बाप को हुमायूं ने मरवा दिया था. खाल में भूसा भरवा के गांव के बाहर लटकवा दिया था. वजह ये कि मुगलों को लगान देने से मना कर दिया था. आज  भी पंजाब वाले हुमायूं की बर्बरता के किस्से कहते हैं.
तेरा सांदल दादा मारया, दित्ता बोरे विच पा, मुगलां पुट्ठियां खालां ला के, भरया नाल हवा
संदल भट्टी वो जिनके नाम पर नाम पड़ा था, संदल बार. संदल बार जिसका जिक्र मिर्जा-साहिबा के किस्सों में आता है, पंजाब के  लोकगीतों में आता है.
सुलतान बलाया साहिबां ऐ की कीती कार, गरम रजाइयां छोड़ के तूं मिली संदल बार तूं आख जबानी साहिबां तैनू मारां कहरे तकरार
दुल्ला भट्टी उस जमाने के रॉबिनहुड थे. अकबर उन्हें डकैत मानता था. वो अमीरों से, अकबर के जमींदारों से, सिपाहियों से सामान लूटते. गरीबों में बांटते. अकबर की आंख की किरकिरी थे. इतना सताया कि अकबर को आगरे से राजधानी लाहौर शिफ्ट करनी पड़ी. लाहौर तब से पनपा है, तो आज तक बढ़ता गया. पर सच तो ये रहा कि हिंदुस्तान का शहंशाह दहलता था दुल्ला भट्टी से. जब कम उम्र के थे तब दुल्ला भट्टी को बाप-दादा का हश्र न पता था, कुछ बड़े हुए तो पता चला. पता न चलने की दो वजह बताई जाती हैं. पहली ये कि मां ने नहीं बताई. दूसरी ये कि अकबर का बेटा जब पैदा हुआ तो मरचुग्घा सा था. अकबर ने नजूमी बुलाए. उनसे कहा कि इसे ऐसी किसी राजपूत औरत का दूध पिलाया जाए, जिसका बेटा सलीम की पैदाइश के दिन पैदा हुआ हो. वो राजपूत औरत थी लद्दी. सलीम की परवरिश लद्दी करती. सलीम और दुल्ला साथ ही रहते, इसलिए तब नहीं बताया. जब वापस लौटी, तब बताया. दूसरी बात हमें कहानी ज्यादा लगती है, क्योंकि दुल्ला भट्टी पैदा हुए थे 1547 में और सलीम 1569 में. कहानी की चली तो दुल्ला और सलीम की एक कहानी ये भी है. एक बार सलीम थोड़े से सैनिकों के साथ भटक रहा था. दुल्ला भट्टी ने पकड़ लिया. पर कुछ किया नहीं, यूं ही छोड़ दिया. ये कहकर कि दुश्मनी बाप से है, बेटे से नहीं. पाकिस्तान के पंजाब में  कहानियां चलती हैं कि पकड़ा तो दुल्ला ने अकबर को भी था. जब पकड़ा गया तो अकबर ने कहा, 'भइया मैं तो शहंशाह हूं ही नहीं, मैं तो भांड हूं जी भांड.' दुल्ला भट्टी ने उसे भी छोड़ दिया, ये कहकर कि भांड को क्या मारूं, और अगर अकबर होकर खुद को भांड बता रहा है, तो मारने का क्या फायदा? लोहड़ी तो मनाई जाती है क्योंकि भगवान कृष्ण ने लोहिता राक्षसी को मारा, जब वो गोकुल आई थी. फिर दुल्ला भट्टी लोहड़ी से कैसे जुड़ गए? इसका भी इक किस्सा है. सुंदरदास किसान था, उस दौर में जब संदल बार में मुगल सरदारों का आतंक था. उसकी दो बेटियां थीं सुंदरी और मुंदरी. गांव के नंबरदार की नीयत लड़कियों पर ठीक नहीं थी. वो सुंदरदास को धमकाता बेटियों की शादी खुद से कराने को. सुंदरदास ने दुल्ला भट्टी से बात कही. दुल्ला भट्टी नंबरदार के गांव जा पहुंचा. उसके खेत जला दिए. लड़कियों की शादी वहां की, जहां सुंदरदास चाहता था. शगुन में शक्कर दी. वो दिन है और आज का दिन, लोहड़ी की रात को आग जलाकर लोहड़ी मनाई जाती है. जब फसल कटकर घर आती है. गेंहू की बालियां आग में डालते हैं. गाते हैं.
सुन्दर मुंदरिए तेरा कौन विचारादुल्ला भट्टीवालादुल्ले दी धी व्याहीसेर शक्कर पायीकुड़ी दा लाल पताकाकुड़ी दा सालू पाटा सालू कौन समेटेमामे चूरी कुट्टीजिमींदारां लुट्टीजमींदार सुधाए गिन गिन पोले लाएइक पोला घट गयाज़मींदार वोहटी ले के नस गयाइक पोला होर आयाज़मींदार वोहटी ले के दौड़ आयासिपाही फेर के ले गयासिपाही नूं मारी इट्टभावें रो ते भावें पिट्टसाहनूं दे लोहड़ी तेरी जीवे जोड़ीसाहनूं दे दाणे तेरे जीण न्याणे
अकबर दुल्ला भट्टी को नीचा दिखाना चाहता था, मारना चाहता था. एक बार दरबार में बुलाया. ये कहकर कि बातें करेंगे. पर साजिश ये थी कि दुल्ला भट्टी का सिर अकबर के सामने झुकवा सकें. दुल्ला के आने का रास्ता ऐसा बनाया कि सिर झुकाकर आना पड़े. पर दुल्ला भट्टी सिर काहे को झुकाएं? जहां सिर घुसाना था, वहां पहले पैर डाल दिए. अकबर की जगहंसाई हुई अलग. कहते हैं अकबर की 12 हजार की सेना दुल्ला भट्टी को न पकड़ पाई थी, तो सन 1599 में धोखे से पकड़वाया. लाहौर में दरबार बैठा. आनन-फानन फांसी दे दी गई. कोतवाली में पूरे शहर के सामने. कुछ कहते हैं वो लड़ाई में पकड़े गए, फांसी दिल्ली में हुई थी, मौत का सच जो हो, मौत के बाद का सच ये है कि मियानी साहिब कब्रगाह में अब भी उनकी कब्र है. Source - Wikipedia पर दुल्ला भट्टी मरे कहां? वो तो अब भी जिंदा हैं.

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement