देश की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति बनी द्रौपदी मुर्मू
तीन दिन बाद लेंगी शपथ

तीन दिन बचे हैं, और भारत के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ने वाला है. देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू शपथ लेने वाली हैं. आज का दिन मतों की गिनती का था. अंतिम नतीजों की राह हम सब देर शाम तक देखते रहे. लेकिन ये तो पहले ही साफ हो चुका था कि चुनावी मुकाबला महज़ औपचारिकता है. आज पहले राउंड की गिनती में ये बात साफ भी हो गई.
कई पल ऐसे होते हैं, जिनके आने में कई दशक, कई सदियां लग जाती हैं. ये वही पल हैं. राष्ट्रपति चुनाव में वोटों के गिनती के बाद अब ये तय हो गया है कि एक आदिवासी महिला हमारे देश की राष्ट्रपति बनने जा रही हैं. आदिवासी शब्द दो शब्दों 'आदि' और 'वासी' से मिल कर बना है. जिसका अर्थ मूल निवासी होता है. भारत की जनसंख्या का करीब 9 फीसदी जो 10 करोड़ से ज्यादा होते हैं, वो आदिवासियों का है.
आप कभी घूमते फिरते झारखंड जाइए, छत्तीसगढ़, बंगाल, महाराष्ट्र, नॉर्थ ईस्ट या ओडिशा के कुछ इलाके. आदिवासियों के बीच जाकर कभी देखना हुआ तो देखिएगा कि कैसे उनकी जिंदगी चलती है. उनके प्रकृति प्रेम को समझिएगा, अभाव में उनके संघर्षों और जीवन यापन के तौर-तरीकों जानिएगा. द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना आपको यकीनन एक बड़ी और बदलावकारी घटना लगने लगेगी. एक अतिसामान्य सी पृष्ठभूमि से उठकर देश के सर्वोच्च पद पहुंचने की कहानी अपने-आप में किसी रोमांच से कम नहीं है.
सुबह संसद में वोटों की गिनती शुरू हुई. द्रौपदी मुर्मू की पैतृक जगह ओडिशा के रायरंगपुर से जश्न की तस्वीरें सामने आने लगी. फूस और खपड़ैले मकान. आदिवासियों के पारंपरिक वाद्य यंत्र और उसके सामने आदिवासियी महिलाओं का नृत्य. तस्वीर के आगे हिस्से में स्कूली बच्चे भी डांस करते नजर आए. इस दौरान हमारी नजर स्कूल के अहाते में बनी तीन मूर्तियों पर पड़ी. मन में जिज्ञासा हुई कि ये मूर्तियां किसकी हैं और इस जश्न में स्कूल के बच्चे भी क्यों शामिल हैं? थोड़ी जानकारी जुटाई तो पता लगा ये तीन मूर्तियां द्रौपदी मुर्मू के परिवार के लोगों की है.
सबसे पहली मूर्ति श्यामचरण मुर्मू की है, जो भावी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के पति थे. दूसरी मूर्ति उनके बेटे लक्ष्मण मुर्मू और तीसरी मूर्ति उनके छोटे बेटे सिपुन मुर्मू की है. ये तीन वो लोग थे जो द्रौपदी मुर्मू की जिंदगी का वो हिस्सा थे, जो एक अधूरापन हमेशा के लिए छोड़कर चले गए. बचपन से स्वभाव में विद्रोह था. शादी अपनी पसंद से की थी. मगर साल 2014 में पति श्यामचरण मुर्मू की मृत्यु हो गई, 2013 में बेटे लक्ष्मण मूर्मू और उससे पहले छोटे बेटे सिपुर मुर्मू की मौत हो गई थी. जिस जगह ये मूर्तियां लगी हैं, वो स्कूल का प्रांगण है. ये जमीन पहले द्रौपदी मुर्मू के परिवार की थी, बाद में जमीन को दान कर यहां गरीब बच्चों के लिए स्कूल बनवा दिया गया. 60 से ज्यादा बच्चे स्कूल के हॉस्टल में रहते हैं और पढ़ाई करते हैं.
मुर्मू, ओडिशा के मयूरभंज जिले की रहने वाली हैं. गांव का नाम है बैडापोसी. 7वीं तक की पढ़ाई गांव के ही सरकारी स्कूल में की. पंचायती राज व्यवस्था में पिता और दादा गांव के सरपंच रह चुके थे. सो राजनीति का एक हिस्सा विरासत में मिला. संथाल आदिवासी समाज से आने वाली मुर्मू ने बीए की पढ़ाई के बाद ओडिशा सरकार के सिंचाई और बिजली विभाग में बतौर जूनियर असिस्टेंट काम किया. फिर 3 साल तक अध्यापन का काम किया. फिर राजनीति की तरफ मुड़ गईं. वो भाजपा से जुड़ीं और 1997 में उन्होंने मयूरभंज के रायरंगपुर से पार्षदी का चुनाव जीत लिया. राजनीति की गाड़ी चल पड़ी.
2000 के साल में विधायक बन गईं, बीजेडी और बीजेपी की गठबंधन सरकार में मंत्री भी. 2009 में बीडेजी ने बीजेपी से नाता तोड़ा तो अगले चुनाव में मुर्मू को हार भी मिली. राष्ट्रीय स्तर पर द्रौपदी मुर्मू का नाम तब चर्चा में आया जब नरेंद्र मोदी सरकार ने उन्हें 2015 में झारखंड का राज्यपाल बनाया. झारखंड के लिए वो जीके का सवाल भी बन गईं क्योंकि झारखंड के राजभवन में पहली बार किसी आदिवासी महिला को नियुक्त किया गया था. और अब वो, राष्ट्रपति बनने से महज 3 दिन दूर हैं. 24 जुलाई को नए राष्ट्रपति को शपथ दिलाई जाएगी.
द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने की सूचना मिलनी की कहानी दिलचस्प है. बीते दिनों आज तक से बात करते हुए द्रौपदी मुर्मू के छोटे भाई ने बताया कि उनके घर में मोबाइल का नेटवर्क नहीं आता. PMO से किसी पड़ोसी के पास फोन आया, उसे ज्यादा कुछ समझ नहीं आया. द्रौपदी मुर्मू से फोन पर बात कराने के लिए कहा गया, इससे पहले कोई सूचना नहीं थी. पड़ोसी फोन घर पर ले जाकर बात करता है तब द्रौपदी मुर्मू को पता लगता है कि उन्हें NDA का उम्मीदवार बनाया गया. भाई से बात करते हुए कहा किसी से बताइएगा नहीं, थोड़ी देर में खुद टीवी पर आने लगेगा. फिर टीवी पर ब्रेकिंग न्यूज के सिलसिले और घर पर देर रात तक बधाई देने वालों का तांता लगा रहा.
मुर्मू के जीवन के बारे में दी लल्लनटॉप आपको नियमित रूप से बताता रहा है. अब आ जाते हैं वोटों की गिनती पर. राष्ट्रपति चुनाव में कुल वोटों की गिनती है 4 हज़ार 796 है. माने देश के सांसदों और विधायकों की कुल संख्या. ध्यान दीजिए, मतों का मूल्य अलग विषय है. 18 जुलाई को हुए चुनाव में कुल वोट पड़े 4 हज़ार 754. 13 सांसद और 34 विधायक वोट नहीं कर पाए थे. गिनती के दौरान 15 सांसदों का वोट खारिज हो गया. जैसा कि हम पहले के लल्लनटॉप शो में बता चुके हैं कि राष्ट्रपति चुनाव बैलेट पेपर के माध्यम से होता है. अगर इंक इधर-उधर हो जाए या फिर पेपर को ठीक तरीके से ना मोड़ा जाए तो वोट इनवैलिड हो जाता है.
पहले राउंड की गिनती के बाद पता चला कि NDA की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के समर्थन में कुल 540 सांसदों ने वोट दिया, जबकि विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को लोकसभा और राज्यसभा दोनों मिलकर कर सिर्फ 208 वोट ही हासिल हुए. काउंटिंग के वक्त सबसे पहले वोटों की छंटाई हुई, माने रिटर्निंग ऑफ़िसर ने मतों की जांच की सांसदों के मत पत्र में प्राथमिकता हरे रंग के पेन से और विधायकों के मत पत्र में गुलाबी रंग के पेन से लिखी होती है. जिससे सांसद और विधायक का फर्क भी पता चलता है. फिर दो ट्रे लगाई गई. एक द्रौपदी मुर्मू के वोटों की, दूसरी यशवंत सिन्हा के वोटों की. सबसे पहले विधायकों के मत पत्रों की छंटनी हुई, फिर सांसदों की.
मुर्मू को प्राथमिकता वाला मत पत्र उनके नाम वाली ट्रे में और सिन्हा को प्राथमिकता वाला मत पत्र उनके नाम वाली ट्रे में रखा गया. संसद भवन के कमरा नंबर 63 के बाहर मीडिया स्टैंड बनाया गया, जहां थोड़ी-थोड़ी देर में रुझान बताए जाते रहे. रायसीना हिल की दौड़ के लिए पहले राउंड की काउंटिंग में ही द्रौपदी मुर्मू ने विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को काफी पीछे छोड़ दिया. पहले राउंड में मुर्मू को 748 में से 540 वोट मिले. जबकि यशवंत सिन्हा को 208 मत मिले.
यशवंत सिन्हा ने सांसदों और विधायकों से अंतरात्मा की आवाज सुनकर वोट देने के लिए कहा था. लेकिन सब जानते हैं कि नेता अपनी अंतरात्मा की आवाज कब और कैसे सुनते हैं. आखिरी बार चौथे राष्ट्रपति के चुनाव के दौरान सांसदों और विधायकों ने अंतरात्मा की आवाज सुनकर वोट दिया था. तब निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर वीवी गिरी देश के राष्ट्रपति बने थे. मगर तब अंतरात्मा की आवाज सुनने की अपील किसी उम्मीदवार ने नहीं बल्कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने की थी. पॉलिटिकल किस्सों की सीरीज में हमने आपको बताया था कि कैसे तब कांग्रेस दो फाड़ हुई थी और कैसे कांग्रेस के प्रत्याशी नीलम संजीव रेड्डी के खिलाफ इंदिरा गांधी ने वीवी गिरी को अपने उम्मीदवार के तौर पर उतार दिया था. ओल्ड गार्ड्स और युवा तुर्क की लड़ाई में तब जीत अंतरात्मा की हुई थी. अंतरात्मा बहुत ही जटिल और अदृश्य वस्तु है. जिसकी खोज मौके और नजाकत के हिसाब से होती है. मगर इस बार के चुनाव में ऐसा कोई चांस दूर-दूर तक नहीं था. सो नतीजे द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में रहे.
बाकी दलों से समर्थन मिलने के बाद बीजेपी को कुल 523 सांसदों का समर्थन था. जबकि उनके प्रत्याशी को 540 सांसदों का वोट मिला. भाजपा का दावा है कि विपक्ष के 17 सांसदों ने क्रास वोटिंग की है. इसमें कितनी सच्चाई है, ये तो नहीं मालूम लेकिन, जिस तरह सिन्हा को कम वोट मिले हैं. उससे यह दावा कुछ हद तक सही भी प्रतीत होता है. और अगर जिन 15 सांसदों का वोट खारिज हुआ, उसमें NDA या उसके समर्थक सांसदों के वोट शामिल नहीं है तो क्रॉस वोटिंग का ये आंकड़ा और भी बढ़ सकता है. हालांकि ये पता नहीं चल पाया कि विपक्ष के किन सांसदों ने क्रॉस वोटिंग की. क्योंकि मतदान को गुप्त रखा जाता है.
नतीजों के ऐलान से पहले जश्न की तस्वीरें आने लगी. जगह-जगह पर बीजेपी कार्यकर्ता रंग गुलाल उड़ाते नजर आए. खासकर ओडिशा में. 24 जुलाई को अब देश 15वें राष्ट्रपति की शपथ होगी. दूसरी महिला और पहली आदिवासी राष्ट्रपति. आदिवासी पर अतिरिक्त जोर इसलिए क्योंकि इसे वंचित वर्ग के सम्मान के तौर पर देखा जा रहा है. एक सवाल यहां से और जन्मा है. वो ये कि क्या किसी व्यक्ति के ऊंचे पद पर पहुंच जाने से उसके समाज का विकास होता है? इस सवाल को लेकर हमारी ऑडनारी की टीम ने आदिवासी लड़कियों से बात की. जो दिल्ली में दूर-दराज इलाकों से पढ़ने आई हैं.
आदिवासी छात्राओं के मन में उम्मीद है कि शायद उनके समाज के लिए द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के बाद कुछ हो. पहले के उदाहरणों को देखते हुए थोड़ी नाउम्मीदी भी है. मगर हम फिर भी उम्मीद करते हैं, नई राष्ट्रपति के कार्यकाल में नए कीर्तिमान गढ़े जाएंगे. प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को दिए गए डिनर के साथ ही उनकी विदाई की औपचारिक शुरुआत हो गई है.