The Lallantop
Advertisement

नाइट्रोजन-डाइऑक्साइड क्या है, दिल्ली में जिसकी बढ़ोतरी ने पर्यावरण विशेषज्ञों की नींद उड़ा दी है?

दिल्ली के अलावा और कौन से शहर इससे बुरी तरह से प्रभावित हैं?

Advertisement
Img The Lallantop
दिल्ली में नाइट्रोजन-डाई-ऑक्साइड की 125 फीसद तक बढ़ोतरी देखी गई है.
pic
आदित्य
8 जुलाई 2021 (Updated: 8 जुलाई 2021, 20:22 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
ग्रीनपीस पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली एनजीओ है. 1971 में बना यह गैर-सरकारी संगठन 55 से अधिक देशों में पर्यावरण के क्षेत्र में काम कर रहा है. ग्रीनपीस की एक स्टडी रिपोर्ट आई है. भारत को लेकर. इसमें बताया गया है कि दिल्ली, चेन्नई, बेंगलुरु और हैदराबाद जैसे शहरों में नाइट्रोजन-डाइऑक्साइड (NO2) के प्रदूषण स्तर में 125 फीसद तक की बढ़ोतरी हुई है. ग्रीनपीस ने भारत के 8 बड़े शहरों की स्टडी कर यह रिपोर्ट बनाई है.
रिपोर्ट बताती है कि साल 2020 में कोरोना वायरस से हुए लॉकडाउन के कारण कई भारतीय शहरों में वायु प्रदूषण में कमी देखी गई. लेकिन साल भर बाद माने 2021 में भारत के 20 लाख से अधिक आबादी वाले 8 शहरों में नाइट्रोजन-डाइऑक्साइड में बढ़ोतरी देखी गई है.
नाइट्रोजन-डाइऑक्साइड होती है क्या?
नाइट्रोजन-डाइऑक्साइड खतरनाक वायु प्रदूषक है जो गाड़ियों, बिजली उत्पादन, इंडस्ट्री के कामों में फ्यूल के जलने से निकलता है. इसके संपर्क में आने से लोग सांस सहित कई और गंभीर बीमारियों से पीड़ित हो सकते हैं. इससे खून के प्रवाह में दिक्कत हो सकती है जिसके कारण हॉस्पिटल में भर्ती होना पड़ सकता है. (NO2) मृत्यु दर में बढ़ोतरी का कारण बन सकती है.
दिल्ली में कैसे बढ़ी नाइट्रोजन-डाइऑक्साइड?
ग्रीनपीस ने दिल्ली सहित 8 शहरों की स्टडी की है. अभी दिल्ली की बात करते है. यहां अप्रैल 2020 से अप्रैल 2021 के बीच नाइट्रोजन-डाइऑक्साइड की मात्रा स्टडी में शामिल अन्य शहरों की अपेक्षा सबसे अधिक बढ़ी है. 125 फीसद तक. सेटेलाइट सर्विलेंस से पता चला है कि यह बढ़ोतरी 146 फीसद तक हो सकती थी अगर मौसम 2020 के अप्रैल महीने की तरह होता. चिंताजनक बात यह भी है कि कोविड-19 महामारी के कारण लगे लॉकडाउन के बावजूद दिल्ली में इस साल (NO2) के उत्सर्जन में बढ़ोतरी हुई है.
वहीं, अन्य शहरों की बात करें तो चेन्नई में 94, बेंगलुरु में 90, हैदराबाद में 69, मुंबई में 52, जयपुर में 47, लखनऊ में 32 और कोलकाता में 11 फीसद नाइट्रोजन-डाइऑक्साइड की बढ़ोतरी हुई है.
दिल्ली केसाथ चेन्नई और बेंगलुरु जैसे शहरों में भी नाइट्रोजन-डाई-ऑक्साइड की बढ़ोतरी हुई है.
दिल्ली केसाथ चेन्नई और बेंगलुरु जैसे शहरों में भी नाइट्रोजन-डाई-ऑक्साइड की बढ़ोतरी हुई है.


रिपोर्ट बनाने वाले क्या कहते हैं?
ग्रीनपीस की स्टडी रिपोर्ट से जुड़े अविनाश कुमार चंचल न्यूज़ एजेंसी PTI को बताते हैं कि इन शहरों में हवा की गुणवत्ता का ख़राब स्तर चिंताजनक है. जीवाश्म ईंधन जलाने के कारण शहर और लोग पहले से ही एक बड़ी कीमत चुका रहे हैं. अविनाश ने कहा कि यह हमेशा की तरह जारी नहीं रह सकता है. उन्होंने कहा,
देशभर में लॉकडाउन के दौरान लोगों ने एकदम साफ़ आसमान देखा है और ताजी हवा में सांस ली है. हालांकि यह महामारी का परिणाम था.
अविनाश आगे बताते हैं भारतीय शहरों में जीवाश्म ईंधन की खपत पर आधारित गाड़ियां और इंडस्ट्री नाइट्रोजन-डाइऑक्साइड के पैदा होने के प्रमुख कारण हैं. उनका सुझाव है कि स्थानीय प्रशासन और सरकार को प्राइवेट गाड़ियों के बदले पब्लिक गाड़ियों के इस्तेमाल के लिए पहल करनी चाहिए जोकि क्लीन एनर्जी पर चले. इसके साथ ही मौजूदा वक्त में कोरोना वायरस प्रोटोकॉल का भी ध्यान रखना चाहिए.
कैसे कम होगी नाइट्रोजन-डाइऑक्साइड?
रिपोर्ट बताती है कि (NO2) से जुड़े वायु प्रदूषण को कम करने के लिए जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को खत्म करना बहुत ज़रूरी है. इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों को रिन्यूएबल एनर्जी के क्षेत्र में तेजी से काम करना चाहिए. पवन और सौर ऊर्जा के क्षेत्र में काम करना चाहिए. सरकारों और आम लोगों को सार्वजनिक परिवहन पर जोर देना चाहिए. इसके अलावा सरकारों को साइकिल और पैदल चलने वालों के अनुकूल रास्ते और ट्रैक्स बनाने चाहिए.

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement