23 अगस्त 2016 (Updated: 23 अगस्त 2016, 02:07 PM IST) कॉमेंट्स
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22 अगस्त 1991. टिम बर्नर्स-ली ने वर्ल्ड वाइड वेब को यूज़र्स के लिए खोल दिया. वर्ल्ड वाइड वेब यानी इंटरनेट. माने ये समझ लो कि घर पे इंटरनेट कनेक्शन लग गया. अब क्या? अब बस मैंगो पीपल इस्तेमाल करने लगे वर्ल्ड वाइड वेब.
ये हो गया जानकारी वाला पार्ट. चुप्पे में निपटा दिया हमने. आते हैं मुद्दे पे. हमको टिम बर्नर्स-ली से कहिना ये है कि भइय्या, काहे बना दिए ये इंटरनेट? इन्सानों को सन्नाटे में देख के चैन नहीं मिल रहा था क्या? माने आदमी उठता था, सूरज उगता भी देख लेता था, कुल्ला मंजन करता था, अखबार पढ़ता था, ऑफिस निकल लेता था, नहीं ऑफिस तो यार-दोस्त से मिल लेता था. आज देखो. उठ रहा है दस बजे-ग्यारह बजे. काहे से देर रात तक इन्टरनेट पे जुटा हुआ था.
सूरज देखने की तो बात जाने ही देओ. अखबार पढ़ना अब छूट चुका है. अखबार लुप्तप्राय हो चुके हैं. आदमी उठके पहिले फेसबुक के नोटिफिकेशन चेक कर रहा है. उसी पे खबर मिल रही है. उसी पे खबर बिक रही है. ऑफिस पहुंच के आदमी फिर इंटरनेट पे. और तो और, आज के टाइम में आधा मानुस घर बैठे ऑफिस का काम कर रहा है. बॉस को झूठ बोल रहा है. और यार दोस्तों से मिलने की बात तो दूर, सालों से शकल नहीं देखी है. दोस्ती अब ऑनलाइन हो चुकी है. नाम के आगे हरा गोला दिखा तो माने दोस्त से बात हो जाएगी, वरना रिक्वेस्ट पेंडिंग है.
आदमी चलते-चलते नाले में गिरा जा रहा है. गाड़ी चलाते-चलाते कभी अगली गाड़ी में ठोंके दे रहा है, तो कभी किसी पे चढ़ाए दे रहा है. पूछो कि क्या कर रहे थे तो मालूम चलता है फ़ोन में सिर दिए हुए थे. अब तो ससुर पोकेमॉन गो आ गया है. मनई एक दूसरे के घर में घुसा जा रहा है. आदमी की प्राइवेसी उतनी ही रह गयी है, जितना गोल्फ़ में मेरा इन्ट्रेस्ट.
फ़िल्म रिलीज़ हो रही है तो उसके पहिले ही इंटरनेट पे आ जा रही है. आदमी अलग परेशान है कि प्रमोशन करे कि यूआरएल ब्लॉक करवाए. गाना आ रहा है तो ऑनलाइन. सीरियल आ रहा है तो ऑनलाइन. और ये बुढ़ौती जमात कहती है कि किताबें पढ़ो. अबे किताब पढ़ें तो कैसे? एक यूट्यूब वीडियो देखने बैठो तो ढाई घंटे बाद ध्यान आता है कि गैस पे दूध चढ़ाए थे. किचन में जाके देखो तो भरे हुए धुएं के बीच जल चुका खोया मिलता है. यूट्यूब पे स्टीव जॉब्स की स्पीच देखने से शुरुआत करो तो चीन के स्टॉक मार्केट में आये भूचाल के बारे में बताते वीडियो पर जा पहुंचता हूं. अब बताओ, दोनों के बीच कोई कनेक्शन नहीं है, लेकिन सफ़र ऐसा कि टाइम का कोई अता-पता नहीं रहता.
हे टिम बर्नर्स, ये क्या बवासीर बना दिए हो?
एक ही साथ रहते हुए भी घरवालों से खाली बातें हो रही हैं, उनके चेहरे नहीं दिख रहे. दिखे कैसे? मेरी आंखें तो स्क्रीन में जड़ी रहती हैं. मैं लोगों से मिल तो रहा हूं लेकिन बिना घर से निकले. बात होती है लेकिन बोल नहीं फूटते. मुझे बाहर की हवा में सांस लिए अरसा हो गया है. मैं खेलता भी हूं, लेकिन कीबोर्ड के बटन दबा-दबा के. कसरत मात्र अंगुलियों की होती है. पीठ तो धनुष हुई जा रही है.
सर टिम बर्नर्स, ये इंटरनेट क्यूं बना दिया? अगर तुमने इंटरनेट न बनाया होता तो ये टाइम खराब करने वाली तमाम वेबसाइट न होतीं. न मेरा टाइम ख़राब होता न दुनिया का. न वेबसाइट होती न ये चिक-चिक. वेबसाइट न होती, तो ये लल्लनटॉप भी न होता. अरे! ये मैं क्या कहने लगा. लल्लनटॉप नहीं होता? सच में? नहीं. नहीं. एक मिनट, बैकस्पेस वाला बटन कहां है?