आप बेवक़ूफ़ हैं, अगर आप फेसबुक पर ये सब करते हैं
सोशल मीडिया पर अक्सर दिखाई देती मूर्खताओं पर अमोल सरोज की फेसबुक पोस्ट
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फोटो - thelallantop
मैंने बेवकूफी पर कुछ महान लोगों के वक्तव्य फेसबुक पर डाले थे. उसपर कुछ जायज सवाल आए थे. मसलन बेवकूफ कौन होता है कैसे तय हो? किसी को बेवकूफ मानना क्या अपने को बुद्धिमान मानना है? इनमे से कुछ सवाल मनोविज्ञान से जुड़े हैं, कुछ भाषा विज्ञानं से. अब क्योंकि मैंने मनोविज्ञान से पीएचडी और भाषा विज्ञानं में पीएचडी के साथ नेट "नहीं" किया हुआ है. इसलिए इन सब सवालो का जवाब देने के लिए मैं अपनेआप को सबसे योग्य पाता हूं.
जब लोग बिना खेती किए, बिना खेती के बारे में पढ़े, अंग्रेजी भाषा में किसानों की सारी समस्याएं और उसका हल लिख देते हैं, तो मेरे साथ क्या दिक्कत है? नहीं-नहीं मैं उनकी लिखने की आज़ादी और लिखने की काबिलियत पर सवाल नहीं उठा रहा. इतनी मजाल मेरी! मैं तो उस मूर्ख किसान पर हंस रहा था, जिसे अंग्रेजी नहीं आती. कमजोर को मूर्ख कहना और उसपे हंसना सबसे सुभीते का काम है.खैर, मैंने बेवकूफी पर 'बेवकूफ कॉलेज ऑफ़ इंडियाना' से पीएचडी की हुई है. मेरी थीसिस को 'मोस्ट बेवकूफ थीसिस ऑफ़ दी इंडियाना' का अवॉर्ड भी मिला हुआ है. आज और आने वाले कुछ दिनों में आपके सामने मैं अपनी थीसिस के कुछ महत्वपूर्ण नतीजे रखूंगा. सभी बेवकूफों मतलब पाठकों से अर्ज है, दिल पर न लें.

हां तो बड़े लोग कह गए हैं, बेवकूफ से बात नहीं करनी चाहिए. भैंस के आगे बीन नहीं बजानी चाहिए. सूवर को गाना नहीं सिखाना चाहिए. बेवकूफी का कोई अंत नहीं है. अब क्योंकि मैंने पहले ही बताया मैंने भाषा-विज्ञान में पीएचडी और नेट दोनों नहीं किए है, इसलिए मैं बेवकूफी शब्द की उत्पति के बारे में नहीं बता सकता. मुझे बस इतना पता है कि बेवकूफी से बेवकूफ बना है, बेवकूफ से बेवकूफी नहीं बनी. बेवकूफी डिग्री की तरह कोई स्थायी भाव नहीं है कि एक बार ले ली तो ताउम्र आपके साथ चिपकी रहेगी. बेवकूफी अस्थाई होती है. आपके द्धारा किया गया हर काम या तो बेवकूफी का होगा या समझदारी का. अगर वो बेवकूफी है, तो आप उस वक़्त बेवकूफ हो.जैसे कड़ाके की सर्दी में एक लड़की शादी में गई है साडी पहन कर या निक्कर टाइप कुछ पहन के तो वो बेवकूफ है. सर्दी लगने पर उसने कोट पहन लिया तो वो समझदार हो गई. अपना कद बढ़ाने के लिए कोई लड़की हाई हील के सैंडिल पहनती है उस वक़्त वो बेवकूफ है. जब सिंपल जूते पहन लेती है तो समझदार हो जाती है. बाइक पर रात को दारु पीकर बिना हेलमेट के जो स्टड घूमते हैं, उस वक़्त वो बेवकूफ हैं. एक्सीडेंट होने पर, सर्दी लगने पर डॉक्टर के पास भागते हैं उस वक़्त वो समझदार हैं. दारु पी के फुटपाथ पर सो रहे लोगो पर गाडी चढ़ाना बेवकूफी है. पतंग उड़ाना, महंगे वकील करना, बीइंग ह्यूमन बनना समझदारी है.
बेवकूफी और समझदारी पल-पल का इम्तेहान है. फेसबुक पर मैंने ऐसा कोई तीसमारखां नहीं देखा जिसने बेवकूफी न की हो. मार्क ट्वेन के वक्तव्य डालने से दोस्त नाराज हो जाते हैं. मेरा मकसद उनको बेवकूफ कहना नहीं होता है. गोलमाल में अमोल पालेकर कहते हैं 'जैसे बुड्ढे को बुड्ढा नहीं कहना चाहिए, वैसे मूर्ख को मूर्ख भी नहीं कहना चाहिए'. मेरे कहने का ये आशय मत लीजिये कि आप बेवकूफ हो. आपने ये आशय ले लिया तो आप सच में बेवकूफ हो. बेवकूफी करना बेवकूफी है,उसे न मानना दूसरी बेवकूफी है. बेवकूफी को न्यायसंगत ठहराना उससे भी बड़ी बेवकूफी है. पीएचडी मैंने गणित में भी नहीं की है पर जिसने की हुई है उस दोस्त ने मुझे बताया था कि ज़ीरो से आप जिसको भी गुणा करोगे वो ज़ीरो हो जाएगा. इतनी ज्ञान की बात बिना पीएचडी किये नहीं पता लगती. उसने एक और बात बताई जीरो में आप जोड़ सकते हैं, पर गुणा करने की कोशिश की तो ज़ीरो ही हासिल होगा.

सब चाहते हैं कि ऐसे शब्दों का चयन हो कि हम बेवकूफी करे भी और सामने वाला हमें बेवकूफ भी ना कहे. पर जैसे जैसे जंग आगे बढ़ती है समझदारी पीछे हटती जाती है. तीन घंटे की बहस में आप दस बार ये लिख चुके होते हैं 'इस संदर्भ में ये मेरा आखिरी कमेंट है'. इस लाइन तक समझदारी ज़ोर मार रही होती है. पर इसके बाद बेवकूफी एक पूरा निबंध लिखा जाती है.काश कोई बताने वाला हो कि कम से कम आखिरी कमेंट में सवाल तो नहीं पूछा जाता. आप सवाल पूछोगे, अगला ऐसा जवाब देगा जिसका जवाब देना आपके लिए जरुरी होगा. वरना अगला जीत जाएगा. और बेवकूफी में कोई दूसरा जीत जाए ये इंसान को कभी बर्दाश्त नहीं होता. होना भी नहीं चाहिए. मतलब हद है. बुद्धिमानी में कोई जीत जाए तो समझ आता है. वो तो हमारे पास है नहीं, पर बेवकूफी में भी अगला जीत जाए ये तो चीटिंग है. आइंस्टाइन ने कहा था मूर्खता का कोई अंत नहीं होता. मूर्खता का नहीं होता पर इंसान की अपनी मजबूरी है. शरीर-दिमाग जवाब दे जाता है.
एक वक्त के बाद बहस में आपको मूर्खता हैंड-ओवर करनी पड़ती है. आप अपने दोस्तों को बुलाते हो या आपके दोस्त खुद इतने बेवकूफ होते हैं कि आपको थका देख खुद हैंड-ओवर लेने पहुंच जाते हैं. आपके दोस्त बेवकूफ हैं तो समझदार तो अगले वाले के दोस्त भी नहीं ही होंगे. मतलब खिलाडी बदल जाते हैं, मूर्खता जारी रहती है. कई बार तो ऐसा होता है एक बहस हफ़्तों चलती है. जिस भाई ने बहस शुरू की पता चलता है हफ्ते के अंत तक आते-आते वो उसके खिलाफ हो जाता है. और जिसने विरोध किया था वो पक्ष में हो जाता है.

उसने दो मिनट सोचा. बेवकूफी दो मिनट से ज़्यादा सोचने नहीं देती. फिर बोला, 'तुम्हारी बात में दम नहीं है. भारत में 125 करोड़ ही तो लोग हैं. अगर एक दिन में मैंने एक को माफ़ किया तो 125 करोड़ दिन के बाद मैं क्या करूंगा?' तभी मुझे मार्क ट्वेन याद आ गए.खैर बेवकूफी पर बहुत कुछ लिखने को है. कुछ लोग लंबा लिखने को ही बेवकूफी मानते हैं. इसलिए ये सीरीज थोड़ी लंबी चलेगी. बहरहाल मेरे कहने का मकसद सिर्फ इतना है कि बेवकूफी सबसे आसान काम है. सबको करना चाहिए. बिना किए भी होती रहती है अक्सर. आख़िर में परसाई का लिखा छोड़ के जा रहा हूं. 'हर बेटा अपने बाप से आगे बढ़ना चाहता है. समझदारी में नहीं बढ़ पाता तो बेवकूफी में बढ़ जाता है'. ------- अमोल सरोज
