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दाऊदी बोहरा समाज पर हाईकोर्ट में क्या सुनवाई हुई?

बोहरा शब्द गुजराती भाषा वोहरु से बना है जिसका अर्थ होता है व्यापार करना. दाउदी बोहरा खुद को पैगंबर मोहम्मद के वंशज फातिमी इमाम के खानदान का बताते हैं.

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pm modi greeting dawoodi bohra community
दाऊदी बोहरा समाज के साथ पीएम मोदी (फोटो-दाऊदी बोहरा वेबसाइट)
23 अप्रैल 2024
Updated: 23 अप्रैल 2024 21:58 IST
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फरवरी 2023. पीएम मोदी की कुछ तस्वीरें मीडिया के सामने आईं. इसमें वो मुस्लिम समुदाय के कुछ धर्मगुरुओं के साथ दिखाई दे रहे थे. ये तस्वीरें दाऊदी बोहरा समुदाय के कार्यक्रम से थीं. जहां पीएम मोदी आमंत्रित थे. अपने सम्बोधन में पीएम ने कहा कि दाऊदी बोहरा समुदाय उनके परिवार जैसा है. हाल में जिस वजह से ये समुदाय चर्चा में आया, वो है एक मुकदमा.  मुकदमा कैसा? उत्तराधिकार का. दरअसल अदालत में इस बात को लेकर केस चल रहा है कि समुदाय का नेता कौन बनेगा? क्या है पूरा मामला, समझते हैं विस्तार से.

साल 2014.  दाऊदी बोहरा समुदाय के 52वें धार्मिक नेता सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन की मृत्यु हुई. जिसके बाद उनके बेटे मुफद्दल सैफुद्दीन समुदाय के 53वें धार्मिक गुरू,  बन गए. अब इसी बीच एक और उत्तराधिकारी सामने आया.  बुरहानुद्दीन के सौतेले भाई खुजैमा कुत्बुद्दीन ने दावा किया कि उत्तराधिकारी वे हैं. उनके अनुसार 1965 में एक गुप्त नास के जरिए बुरहानुद्दीन ने उन्हें उत्तराधिकारी बनाया था. जबकि मुफद्दल सैफुद्दीन का दावा था कि उत्तराधिकारी वे हैं. मामला कोर्ट पहुंचा. कोर्ट में क्या कुछ हुआ. उससे पहले कुछ चीजों को जानते हैं. मसलन दाउदी वोहरा समुदाय में धार्मिक नेता कौन होते हैं. उत्तराधिकार कैसे तय होता है. और ये नास की परंपरा क्या है.          

दाऊदी बोहरा समुदाय 
मुस्लिम समाज मुख्य तौर पर दो हिस्सों में बंटा हुआ है. शिया और सुन्नी. बोहरा शिया समुदाय में गिने जाते हैं. बोहरा शब्द गुजराती भाषा वोहरु से बना है जिसका अर्थ होता है व्यापार करना. दाउदी बोहरा खुद को पैगंबर मोहम्मद के वंशज फातिमी इमाम के खानदान का बताते हैं. इस समुदाय के लोग इस्लाम के फातिमी तैय्यबी विचारधारा को मानते हैं.इस समुदाय से ताल्लुक रखने वाले पुरुष सफेद कपड़े और सुनहरी टोपी पहनते हैं. दाउदी बोहरा के धार्मिक गुरू दाई अल मुतलक कहलाते हैं. जिनका गढ़ पहले यमन था.  साल 1539 के बाद दाऊदी बोहरा समुदाय की भारत में संख्या बढ़ने लगी. इसके बाद समुदाय ने  संप्रदाय की गद्दी को यमन से गुजरात के पाटन जिले के सिद्धपुर में स्थापित कर लिया. 
पूरी दुनिया में इस समुदाय को मानने वालों की संख्या 10 लाख के करीब है. और इनमें से करीब 5 लाख भारत में ही रहते हैं. दाऊदी बोहरा समाज की आधिकारिक वेबसाइट पर लिखा है कि दाऊदी बोहरा एक मुस्लिम समुदाय है जो दुनिया के 40 से अधिक देशों में रहता है. साइट के अनुसार दाउदी बोहरा समुदाय के मौजूदा धार्मिक गुरू यानी 53वें  दाई अल मुतलक डॉक्टर सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन हैं. अपने पिता और 52वें दाई अल मुतलक डॉक्टर सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन के गुजरने के बाद जनवरी 2014 में उन्होंने ये जिम्मेदारी संभाली थी.बोहरा समुदाय के लोग आज की तारीख में शिक्षित, बड़े सफल कारोबारी और विभिन्न क्षेत्रों में योग्य पेशेवर के तौर पर मौजूद हैं.

अब चलते हैं केस की तरफ. तो जैसा शुरू में बताया है कि उत्तराधिकार के चलते मामला 2014 में कोर्ट पहुंचा था. बुरहानुद्दीन के सौतेले भाई खुजैमा कुत्बुद्दीन दावा कर रहे थे कि उत्तराधिकारी उन्हें होना चाहिए. इसी बीच दो साल बाद 2016 में खुजैमा कुतुबुद्दीन की अमेरिका में मृत्यु हो गई. फिर कोर्ट ने उनके बेटे सैयदना ताहेर फखरुद्दीन को वादी बनाने की इजाजत दे दी.  सैयदना ताहेर फखरुद्दीन ने याचिका में कहा था कि सैफुद्दीन ने छल से खुद को धार्मिक गुरू घोषित कर दिया. उन्हें समुदाय का नेता बने रहने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. पिता तो नहीं रहे, इसलिए उनके बाद मुझे 54वां धार्मिक गुरू माना जाए.

फखरुद्दीन पक्ष की दलील 
उनके अनुसार बुरहानुद्दीन 1965 में दाई अल मुतलक बने थे. उन्होंने 10 दिसंबर 1965 सबके सामने खुजैमा कुत्बुद्दीन को माजून यानी (सेकंड इन कमांड) घोषित किया. और एक गुप्त नास के जरिए अपना उत्तराधिकारी भी बना दिया. फखरुद्दीन पक्ष के अनुसार बुरहानुद्दीन ने ये बात गुप्त रखने को कही थी. फखरुद्दीन पक्ष ने ये भी कहा था कि बुरहानुद्दीन की मृत्यु के बाद उन्होंने मुफद्दल सैफुद्दीन को बुलावा भी भेजा. मगर सैफुद्दीन ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और खुद को समुदाय के 53वें दाई अल मुतलक के रूप में नियुक्त कर लिया. बस यहीं से एक लंबी कानूनी लड़ाई की शुरुआत हुई. इस पूरे केस में आपने ध्यान दिया होगा. दो शब्दों का बार बार जिक्र आया है. नास और दाई अल मुतलक. दाई अल मुतलक को तैयबी इस्लाम में सर्वोच्च धर्मगुरु माना जाता है. वहीं नास एक ऐसी परंपरा है जिसके तहत दाई अल मुतलक अपने  उत्तराधिकार के अधिकार को किसी को सौंपते हैं. और इस केस में भी इसी की वजह से ये मामला एक दशक तक चला.

अब देखते हैं सुनवाई के दौरान दूसरे पक्ष यानी सैफुद्दीन पक्ष ने क्या कहा.  सैफुद्दीन पक्ष के वकीलों ने कहा, दाऊदी बोहरा आस्था के स्थापित सिद्धांतों के अनुसार, "नास" को बदला जा सकता है. उन्होंने तर्क दिया कि 1965 की नास, जैसा कि कुत्बुद्दीन ने दावा किया था, गवाहों के बिना थी और इसलिए इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता था.
इस मामले में आख़िरी सुनवाई अप्रैल 2023 में हुई थी. जिसके बाद बॉम्बे हाई कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था. आज 23 अप्रैल को कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुनाया है. न्यायमूर्ति गौतम पटेल ने कहा क‍ि
 

“ मैं कोई उथल-पुथल नहीं चाहता. मैंने फैसले को यथासंभव तटस्थ रखा है. मैंने केवल सबूत के मुद्दे पर फैसला किया है, आस्था के मुद्दे पर नहीं. विवाद मुंबई में शिया मुस्लिम समुदाय के नेतृत्व पर केंद्रित है, जिसमें दो दावेदार आध्यात्मिक प्रमुख दाई अल-मुतलक के पद के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं.”

जैसा आपने सुना, कोर्ट ने अपना फैसला दे दिया है. इस मामले पर दाऊदी बोहरा समाज की ओर से एक प्रेस रिलीज भी जारी किया गया है. आधिकारिक बयान के मुताबिक 
 

“सैयदना सैफुद्दीन की नियुक्ति को दी गई चुनौती दुर्भाग्यपूर्ण थी. उक्त फैसले में निर्णायक रूप से सभी गलत दावों को  निपटाया गया है और मूल वादी खुजेमा कुतुबुद्दीन और उनके बेटे ताहेर कुतुबुद्दीन, के दावों को व्यापक रूप से खारिज कर दिया गया है. फैसले में दाऊदी बोहरा आस्था के तथ्यों और धार्मिक सिद्धांतों की वादी पक्ष द्वारा की गई गलत व्याख्या और भ्रामक चित्रण से भी निपटा गया और खारिज कर दिया गया है.”

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