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बाबा रामदेव के लिए एक बहुत बुरी खबर है

फिलहाल कोई आसन काम आता नहीं दिख रहा है.

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दिन परेशां है, रात भारी है.
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अनिरुद्ध
13 जून 2019 (Updated: 13 जून 2019, 10:55 AM IST) कॉमेंट्स
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बाबा रामदेव पतंजलि को 'सिंहासन' तक पहुंचने का 'आसन' लगाए बैठे रहे. मगर कंपनी को 'शिथिलासन' लग गया. रामदेव बड़े-बड़े दावे करते रहे. वे कहते ही रह गए- 'हम मल्टीनेशनल कंपनियों को कपालभाती कराएंगे.' उलटे, उनकी पतंजलि ही भांति-भांति के भवजाल में फंस गई है. रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक रामदेव के कमाई बढ़ाने के दांव बेअसर होते दिख रहे हैं. कंपनी की बिक्री में 10 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है.
साल 2014 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने. उसके बाद से पतंजलि स्वदेशी के सहारे अपने कारोबार को दिन दूनी- रात चौगुनी स्पीड से बढ़ा रही थी. उसके सस्ते प्रोडक्ट कंज्यूमर हाथों-हाथ ले रहे थे. मल्टीनेशनल कंपनियों के लिए पतंजलि के नारियल तेल और आयुर्वेदिक प्रोडक्ट चिंता का सबब बने हुए थे. मगर आज सब कुछ बदला हुआ नजर आ रहा है.
क्या से क्या हो गया? न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक साल 2017 में रामदेव ने दावा किया, 'उनकी कंपनी के टर्नओवर के आंकड़े मल्टीनेशनल कंपनियों को कपालभाती करने को मजबूर कर देंगे.' कपालभाती को एक मुश्किल योग माना जाता है. रामदेव का दावा था कि मार्च 2018 तक पतंजलि की बिक्री दोगुनी हो जाएगी. ये 20,000 करोड़ रुपए तक पहुंच जाएगी. पर हुआ उल्टा. कंपनी की सालाना फाइनेंशियल रिपोर्ट बाबा रामदेव के होश उड़ाने के लिए काफी है. रामदेव के दावों के उलट पतंजलि की बिक्री 10 फीसदी घट गई है. कंपनी की सेल 10,000 करोड़ रुपए के मनोवैज्ञानिक स्तर से भी नीचे 8,100 करोड़ रुपए रह गई है. साल 2016-17 में कंपनी का कारोबार 11,000 करोड़ रुपए तक पहुंच गया था.
पतंजलि के एक शोरूम में बाबा रामदेव. फोटोः रॉयटर्स
पतंजलि के एक शोरूम में बाबा रामदेव. फोटोः रॉयटर्स

अब क्या हाल है पतंजलि का? रॉयटर्स के मुताबिक पतंजलि के हालात अभी और खराब होंगे. कंपनी की बिक्री में भारी गिरावट के संकेत हैं. केयर रेटिंग्स नाम की एक रिसर्च फर्म के मुताबिक कंपनी की बिक्री के आंकड़े बेहद खराब हैं. मार्च 2018 से दिसंबर 2018 तक यानी कारोबारी साल के 9 महीने में पतंजलि की बिक्री सिर्फ 4,700 करोड़ रुपए तक ही पहुंच सकी है.
ये क्यों हुआ-कैसे हुआ? पतंजलि के साथ ऐसा हो क्यों रहा है? इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए रॉयटर्स ने कंपनी के कुछ मौजूदा और पूर्व कर्मचारियों से बातचीत की. न्यूज एजेंसी ने पतंजलि के सप्लायर्स, डिस्ट्रीब्यूटर्स, स्टोर मैनेजर्स और कंज्यूमर्स से भी बात की है. इस आधार रॉयटर्स ने चार अहम नतीजे निकाले.
पहला, पतंजलि के प्रोडक्ट की क्वालिटी को लेकर लगातार सवाल उठाए गए. पर कंपनी ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया. कंपनी लगातार अपने कारोबार के विस्तार में लगी रही. दूसरा, नवंबर 2016 में नोटबंदी और फिर जुलाई 2017 में जीएसटी ने भी दूसरी कंपनियों की तरह पतंजलि के कारोबार को तगड़ा झटका दिया. तीसरा, पतंजलि के एक पूर्व कर्मचारी ने बताया कि कंपनी के ट्रांसपोर्टर्स के साथ माल भेजने के लिए लंबी अवधि के समझौते नहीं हैं. इससे डिलीवरी की समस्या है. चौथा, पतंजलि के पास बिक्री पर नजर रखने के लिए एक अच्छे कंप्यूटर सॉफ्टवेयर की भी कमी है.
इनके अलावा कुछ और भी वजहें हैं, जिनकी वजह से पतंजलि का कारोबार प्रभावित हो रहा है.
1- बाहर से बने उत्पाद कंपनी अपने 2,500 से ज्यादा उत्पादों में से तमाम दूसरे उत्पादकों से बनवाती या खरीदती है. इनकी क्वालिटी को लेकर सवाल उठाए जाते हैं. रॉयटर्स ने एक पतंजलि स्टोर से 81 उत्पादों की समीक्षा की. इनमें से 27 प्रोडक्ट्स पतंजलि के लिए दूसरी कंपनियों ने बनाए थे. बालकृष्ण का कहना है कि चावल, दाल और गेहूं जैसे कुछ प्रोडक्ट ही बाहर से मंगवाए जाते हैं.
2- फैक्ट्रियों में उत्पादन में देरी पतंजलि की कुछ फैक्ट्रियों का निर्माण समय से पूरा नहीं होने से भी कंपनी के सामने समस्या आई है. रॉयटर्स के मुताबिक पतंजलि का फूड प्लांट महाराष्ट्र में अप्रैल 2017 तक चालू होना था. दिल्ली के पास साल 2016 तक एक आयुर्वेदिक और हर्बल फैक्ट्री बनाई जानी थी. अब ये प्रोजेक्ट साल 2020 तक पूरे होने के आसार हैं.
3- मल्टीनेशनल कंपनियों से कड़ा मुकाबला रिसर्च एजेंसी क्रेडिट सुइस की एक रिपोर्ट के मुताबिक पतंजलि का मल्टीनेशनल कंपनियों से कड़ा मुकाबला है. पतंजलि के ज्यादातर प्रोडक्ट हिंदुस्तान यूनिलीवर और डाबर के मुकाबले टिक नहीं पा रहे हैं. टूथपेस्ट दंत कांति और देसी घी को छोड़ दिया जाए, तो पतंजलि के दूसरे प्रोडक्ट फिसल रहे हैं. शहद, शैंपू और ऑयल में डाबर और हिंदुस्तान यूनिलीवर ने दोबारा पकड़ मजबूत कर ली है.
4-रामदेव का ही फॉर्मूला अपना लिया कंपनियों ने कोलगेट ने स्वर्ण वेदशक्ति और सिबाका वेदशक्ति नाम से हर्बल और आयुर्वेदिक टूथपेस्ट बाजार में उतार दिए हैं. इसी तरह हिंदुस्तान यूनिलीवर ने आयुष ब्रांड के आयुर्वेदिक तेल, शैंपू और साबुन के प्रचार पर खर्च बढ़ा दिया है. हिंदुस्तान यूनिलीवर ने क्रीम, हेयर ऑयल, टूथ पेस्ट, शैंपू वगैरह में जोर-शोर से 20 नए आयुर्वेदिक प्रोडक्ट लॉन्च कर दिए हैं. इससे पतंजलि को चुनौती मिल रही.
5- स्वदेशी ब्रैंड अब कमजोर पड़ने लगा है क्रेडिट सुइस के मुताबिक बाबा रामदेव का स्वदेशी, आयुर्वेदिक और शुद्ध का आइडिया अब पुराना पड़ने लगा है. डाबर, हिंदुस्तान यूनिलीवर और कोलगेट भी आयुर्वेदिक प्रोडक्ट लेकर बाजार में कूद पड़े हैं. इसलिए नयापन नहीं रह गया है. पतंजलि ने शुरुआत की आयुर्वेदिक दवाओं से. फिर हर्बल और केमिकल मुक्त प्रोडक्ट से होते हुए बिस्किट, नूडल, टूथ ब्रश, चॉकलेट सभी में उतर गई. अब फ्रोजन सब्जी और रेडीमेड कपड़े में भी उतरने जा रही है. इससे कंपनी की जो अनोखेपन की वैल्यू थी, वो कमजोर पड़ गई.
रामदेव और बालकृष्ण. फाइल फोटो.
रामदेव और बालकृष्ण. फाइल फोटो.

6-नेटवर्क की समस्या पतंजलि ने पहले अपना नेटवर्क बनाया. फिर बिग बाजार से टाइअप किया. फिर स्वदेशी स्टोर की फ्रेंचाइजी बांटी. इन सबके बावजूद पतंजलि हिंदुस्तान यूनिलीवर, कोलगेट और नेस्ले जैसा नेटवर्क नहीं विकसित कर पाई.
7. बाबा रामदेव पर ज्यादा निर्भरता पतंजलि के सबसे बड़े और एकमात्र ब्रांड अंबेस्डर हैं बाबा रामदेव. लेकिन दंतकांति से लेकर मकरध्वज वटी तक सभी में बाबा रामदेव को सामने लाने से प्रोडक्ट की खासियत छिप जाती है. और बाबा रामदेव की ब्रैंड वैल्यू पर असर पड़ता है. वो गुरु के तौर पर मशहूर हैं, इसलिए नेचुरल प्रोडक्ट पर उनका रुतबा चलता है. पर दूसरे कंज्यूमर प्रोडक्ट उनकी इमेज पर फिट नहीं बैठते.
रामदेव का कंपनी में क्या रोल है? पतंजलि के पास अभी करीब 3,500 डिस्ट्रीब्यूटर्स हैं. इनके जरिए देश भर के करीब 47,000 रिटेल काउंटर पर कंपनी के प्रोडक्ट मिलते हैं. ग्रामीण इलाकों में पतंजलि शॉप्स खुली हुई हैं. इनमें स्नैक्स, मैंगो कैंडी से लेकर जोड़ों के दर्द की आयुर्वेदिक दवाएं तक मिलती हैं. रामदेव खुद भी घर-घर पहचाने जाते हैं. टीवी पर आने वाले उनके योग शो को लाखों लोग देखते हैं. साल 2006 में जब से पतंजलि कंपनी का गठन हुआ है, तब से रामदेव ही इसके ब्रैंड अंबेस्डर हैं. कंपनी के हर बिलबोर्ड और होर्डिंग में भी रामदेव का मुस्कुराता हुआ चेहरा दिखाई देता है.
रामदेव का तकनीकी तौर पर इस कंपनी से बस इतना ही जुड़ाव है. कंपनी का सारा कामकाज उनके सहयोगी आचार्य बालकृष्ण देखते हैं. 46 साल के बालकृष्ण पतंजलि के सीईओ हैं. साल 2018 की रिटर्न फाइलिंग के आधार पर पतंजलि के 98.55 फीसदी शेयर आचार्य बालकृष्ण के पास थे. बालकृष्ण रामदेव को करीब 30 साल पहले एक संस्कृत स्कूल में मिले थे. अक्टूबर 2018 में आई फोर्ब्स मैग्जीन की भारत के करोड़पतियों की लिस्ट में बालकृष्ण 25वें नंबर पर थे. उनकी प्रॉपर्टी करीब 4.7 अरब डॉलर यानी करीब 34,000 करोड़ रुपए बताई गई थी. रॉयटर्स ने बालकृष्ण से कंपनी के सेल्स के आंकड़ें चाहे. पर उन्होंने जानकारी देने से इनकार कर दिया. पर इतना जरूर कहा कि भविष्य में बिक्री के आंकड़े बेहतर होंगे. बालकृष्ण का कहना है कि 'हमने अचानक से विस्तार किया. हमने 3-4 नई यूनिट शुरू कीं. ऐसे में समस्या तो सामने आनी ही थी. वैसे अब हमने नेटवर्क की समस्या का समधान कर लिया है.'


वीडियोः रामदेव के तीनों गुरु अब किस हालत में हैं?

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