The Lallantop
Advertisement

कोरोना के सबसे भरोसेमंद टेस्ट RT-PCR के रेट घटाने के पीछे कोई खेल तो नहीं हो रहा?

क्या 'घटिया' टेस्ट किट से जांच की जा रही है?

Advertisement
दिल्ली सरकार ने RT-PCR test की कीमत तय कर दी है. प्राइवेट हॉस्पिटल तय कीमत से ज्यादा चार्ज नहीं कर पाएंगे.  (सांकेतिक फोटो-पीटीआई)
RT-PCR टेस्ट को कोरोना का पता लगाने का सबसे विश्वसनीय तरीका माना जाता है. कई राज्यों ने अब इसके रेट काफी कम कर दिए हैं. (सांकेतिक फोटो-पीटीआई)
pic
सिद्धांत मोहन
3 दिसंबर 2020 (Updated: 3 दिसंबर 2020, 05:44 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
Covid-19 और लॉकडाउन ने जिस समय दस्तक दी थी, उस समय देश के सामने एक और समस्या थी. समस्या ये कि इतने बिरले और नए रोग की जांच कैसे की जाए? जहां-जहां कोरोना फैल चुका था, वहां पर एक ही नाम गिनाया गया. RT-PCR. कहा गया कि कोरोना की पक्की जांच करनी है, तो यही टेस्ट करना होगा. सरकारी अस्पतालो में ये फ्री है. लेकिन प्राइवेट लैबों में शुरु में इस जांच में 4600-4800 रुपए तक देने पड़ रहे थे. आज देश में कुछ जगहों पर महज 400 रुपए तक में ये जांच कराई जा सकती है. यानी दाम में 90 पर्सेंट से भी ज़्यादा की कटौती. ऐसा क्या हुआ कि इस टेस्ट के दाम 4800 रूपये से 400 रूपये तक आ गए. आइए जानते हैं. RT-PCR नाम के इस टेस्ट का पूरा नाम है, रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज़ पॉलीमरेज़ चेन रिएक्शन. इसे कोरोना की जांच का सबसे भरोसेमंद टेस्ट बताया जाता है. हाल ही में गुजरात, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश के बाद दिल्ली में भी इसके रेट काफी घटाए गए हैं. ओडिशा में तो 400 रूपये में RT-PCR टेस्ट का नियम बना दिया गया है. ये टेस्ट पहले इतना महंगा क्यों था?  RT-PCR टेस्ट देश में बड़े पैमाने पर शुरू हुए तो चीन समेत कई देशों ने भारत को टेस्ट किट सप्लाई कीं. जानकार और ख़बरें दोनों बताते हैं कि टेस्ट किट चूंकि इम्पोर्ट होकर आ रही थीं, तो उनके दाम अधिक थे. कुछ प्राइवेट लैब तो मौके का फायदा उठाने में लग गई थीं. मनमाने दाम वसूले जा रहे थे. हालात को देखते हुए 17 मार्च 2020 को ICMR को ऐलान करना पड़ा कि RT-PCR टेस्ट के लिए देश में कहीं भी 4500 रुपये से ज़्यादा नहीं लिए जा सकेंगे. ICMR के डायरेक्टर जनरल डॉ. बलराम भार्गव ने इस बारे में मीडिया में कहा,
“कोविड-19 महामारी शुरू होने के दौरान दुनिया भर में टेस्टिंग किट और इसमें इस्तेमाल होने वाले केमिकलों की कमी थी, और भारत इम्पोर्ट किए गए सामानों पर निर्भर था. मार्च के मध्य तक पूरे देश में कोई ऐसा पैमाना नहीं था, जिसके आधार पर कोरोना वायरस की जांच के लिए RT-PCR टेस्ट के दाम तय किए जा सकें. 
ICMR ने दी पहली छूट RT-PCR टेस्ट के दाम रेगुलेट करने के लगभग दो महीने बाद 27 मई को ICMR ने नया ऐलान किया. कहा कि हम 4500 रुपए का कैप हटा रहे हैं. ICMR ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को छूट दे दी कि टेस्टिंग एजेंसियों से बात करके वे इस टेस्ट का दाम खुद निर्धारित कर सकते हैं.  Economic Times में छपी ख़बर के मुताबिक़, इस मौक़े पर बलराम भार्गव ने कहा था,
“अब इस टेस्टिंग के लिए ज़रूरी सामान आने लगे हैं. लोकल मार्केट में भी टेस्टिंग किट मिलने लगी हैं. जांच के कई ऑप्शन भी आ गए हैं. अब भारत में ही टेस्ट किट बनने लगी हैं तो इसके दाम भी कम होने लगे हैं.”
जब देश में कोरोना की टेस्टिंग पर काम शुरू हुआ तो पुणे की कम्पनी माईलैब्स ने सबसे पहले RT-PCR किट बनाने की ओर कदम बढ़ाया. हमसे बातचीत में माईलैब्स के प्रवक्ता सौरभ गुप्ता ने कहा,
“ कोरोना के देश में फैलने के वक्त, शुरुआत में भारत में टेस्टिंग किट या केमिकल या किट के हिस्से बनने शुरू नहीं हुए थे. बाद में बनने लगे. इससे पहले तो इम्पोर्ट की लागत कम हुई. बहुत सी मल्टीनेशनल कम्पनियों ने भारत में ही ये किट बनानी शुरू कर दीं. फिर माईलैब ने भी रोज़ाना 2 हज़ार टेस्ट किट से काम शुरू किया, फिर 2 लाख टेस्ट किट रोज़ाना बनाई जाने लगीं. मार्केट में कंप्टीशन शुरू हो गया. कंप्टीशन के समय कोई महंगा सामान नहीं बेचना चाहेगा. इस वजह से टेस्ट के दाम घटने लगे.”
फिर राज्यों ने रेट निर्धारित किए जब मार्केट में टेस्ट किट की बाढ़ आने लगी, तो राज्यों ने RT-PCR टेस्ट के दाम कम करने शुरू कर दिए. उदाहरण के लिए दिल्ली में 2400, केरल में 2100, पश्चिम बंगाल में 1500, असम में 2200, गुजरात में 1500 और राजस्थान में 2200 रुपए चुकाकर कोरोना की RT-PCR टेस्टिंग करायी जा सकती थी. ऐसा लम्बे समय तक चलता रहा. राज्यों ने हाल फ़िलहाल फिर से दामों में कटौती की है. मसलन दिल्ली में अब 800 रूपये, यूपी में 700 और ओडिशा में तो 400 रुपए में RT-PCR टेस्ट कराया जा सकता है. लेकिन कहानी में ट्विस्ट है हमने टेस्ट किट बनाने वाली एक कम्पनी के अधिकारी से बात की. अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कुछ जानकारी दी. बताया,
“ऐसा नहीं है कि बस मार्केटिंग, कंप्टीशन और घरेलू उत्पादन के चलते टेस्ट के दाम कम हो रहे हैं. टेस्ट की क्वालिटी में भी अंतर है.”
क्या अंतर है? इस सवाल पर अधिकारी ने कहा,
“अगर किसी राज्य में 800 रुपए में टेस्ट हो रहे हैं, तो संभव है कि वहां ज़्यादा अच्छी कम्पनियों के टेस्ट किट उपयोग में लाए जा रहे हों. जिस राज्य में 400 रुपए में टेस्ट हो रहे हैं, संभव है कि बड़ी कंपनियां उस दाम पर अपनी टेस्ट किट देने से इंकार कर दें क्योंकि ये मार्केट की बात है. कोई सब्सिडी तो मिल नहीं रही है.”
तो बड़ी कम्पनी की टेस्ट किट में ऐसा क्या है? एक नाम याद कर लीजिए. हाउसकीपिंग जीन. अब कहानी सुनिए. कुछ अधिकारियों और वैज्ञानिकों ने हमें बताया कि RT-PCR टेस्ट किट के जो अग्रणी और बड़े उत्पादक हैं, उनकी टेस्ट किट में एक ख़ास क्षमता होती है. क्षमता ये पता करने की कि टेस्ट सही से हुआ है या नहीं. और ऐसे में टेस्ट किट में मदद करता है हाउसकीपिंग जीन. WHO की वेबसाइट पर कोरोना टेस्टिंग की जो गाइडलाइंस दी हुई हैं, उसमें भी इंटरनल कंट्रोल के लिए हाउसकीपिंग जीन को शामिल करने की बात लिखी गयी है. हाउसकीपिंग जीन शरीर में मौजूद ऐसे जीन होते हैं, जो शरीर के सही से काम करते रहने के लिए कारगर होते हैं. ये शरीर की हर कोशिका यानी सेल, जो शरीर का सबसे छोटा हिस्सा होते हैं, उनमें भी मौजूद होते हैं.  कोरोना के टेस्ट में हाउसकीपिंग जीन का क्या उपयोग? उसके लिए जानिए कि कोरोना की जांच कैसे होती है. आपकी नाक और गले में प्लास्टिक का बना एक प्रोब डाला जाता है. प्रोब पर आपकी लार या नाक के अंदर का तरल लग जाता है. फिर इस सैम्पल को केमिकल से रीऐक्शन कराने के बाद कोरोना वायरस की टेस्टिंग की जाती है. जब टेस्ट किट पर इस सैम्पल को डाला जाता है तो ये पता चलता है कि वायरस है या नहीं.  लेकिन मान लीजिए, टेस्ट के दौरान आपकी नाक और गले में प्रोब डाला जाए, आपको गुदगुदी हो (जो अमूमन होती ही है) और प्रोब पर सैम्पल न लिया जा सके या कम लिया जा सके तो? उसके बाद भी सैम्पल लेने वाला ग़लती से आपका सैम्पल जांच के लिए भेज दे. ऐसे में टेस्ट के लिए आपका जो सैम्पल डाला जाएगा, उसका रिज़ल्ट क्या आएगा? निगेटिव. क्योंकि सैम्पल है ही नहीं, तो सैम्पल में कोरोना मिला नहीं. अब यहां हाउसकीपिंग जीन का काम क्या है? अगर टेस्ट किट में कोरोना वायरस की पहचान करने वाले तत्त्वों के साथ हाउसकीपिंग जीन को भी डाल दिया जाए, तो क्या होगा? होगा ये कि अगर गुदगुदी वग़ैरह जैसी गतिविधि की वजह से आपका सैम्पल नहीं लिया जा सका हो तो हाउसकीपिंग जीन निगेटिव नहीं बताएगा. टेस्ट को ही ग़लत बताएगा. ऐसे में ग़लत सैम्पल के निगेटिव आने के चांस घट जाते हैं. अधिकारी बताते हैं,
“इसी हाउसकीपिंग जीन की वजह से किट का दाम ज़्यादा होता है. भारत में बनने वाली अधिकतर टेस्ट किट में ये हाउसकीपिंग जीन नहीं होते हैं. इससे सैम्पल न होने की स्थिति में भी टेस्ट निगेटिव आता है. बड़ी कम्पनियों के टेस्ट किट में ये हाउसकीपिंग जीन मौजूद होते हैं. इसी वजह से वो कम दाम में टेस्ट नहीं करवा सकते. जहां सस्ते टेस्ट हो रहे हैं, बहुत आशंका है कि वहां टेस्ट किट में हाउसकीपिंग जीन न हो.”
जानकार लोग आगे बताते हैं कि मुद्दा ये है कि ये आप डिसाइड नहीं कर सकते कि आपकी जांच किस किट से की जाए. क्योंकि आपके सामने केवल सैम्पल लेने वाला प्रोब और कुछ शुरुआती केमिकल ही होते हैं. बाक़ी चीज़ें तो लैब में होती हैं. तो टेस्टिंग किट की गुणवत्ता के साथ ही मार्केट पर भी बहुत हद तक ये निर्भर करता है कि कोरोना की RT-PCR की जांच कितने में होगी. 

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement