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ब्रिगेडियर उस्मान की कहानी, जिनकी बदहाल कब्र की फोटो से सोशल मीडिया पट गया है

ब्रिगेडियर उस्मान को नौशेरा का शेर कहा जाता है

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दिल्ली में जामिया मिल्लिया इस्लामिया के पास ब्रिगेडियर उस्मान की कब्र का हाल बदहाल है.
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गौरव
29 दिसंबर 2020 (Updated: 30 दिसंबर 2020, 07:54 PM IST) कॉमेंट्स
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उनकी नियुक्ति 5/10 बलूच रेजिमेंट में थी. जहां उन्होंने देश की आजादी तक सेवाएं दीं. बंटवारे के दौरान उन्हें पाकिस्तानी आर्मी के चीफ के रूप में जॉइन करने का ऑफर दिया गया. लेकिन एक सच्चे देशभक्त की तरह उन्होंने ये ऑफर ठुकरा दिया, और उसी मिट्टी की सेवा में रहने का फैसला लिया जहां उन्होंने जन्म लिया था. ब्रिगेडियर उस्मान ने दिसंबर 1947 में नौशेरा, जम्मू-कश्मीर में 50 (I) पैरा ब्रिगेड की कमान संभाली. ब्रिगेड ने कई बाधाओं के बावजूद नौशेरा में आगे बढ़ते पाकिस्तानी कबायलियों को रोक दिया. इसके बाद उन्होंने झांगर पर दोबारा कब्जा करने के लिए ब्रिगेड का नेतृत्व किया, जिससे हमलावरों पर शिकंजा कस गया. 
ये लाइनें उस कब्र पर लिखी हैं, जहां 'नौशेरा का शेर' कहे जाने वाले ब्रिगेडियर उस्मान आराम फरमा रहे हैं. उसी कब्र पर जहां भारतीय सेना के इस ब्रिगेडियर को अंतिम विदाई देने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू खुद आए थे. ब्रिगेडियर उस्मान 1948 की लड़ाई में शहीद होने वाले सेना के सर्वोच्च अधिकारी थे. मरणोपरांत उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया. ब्रिगेडियर उस्मान की नई दिल्ली स्थित कब्र की जो मौजूदा स्थिति है, वो तो आपने सोशल मीडिया पर देख ही ली होंगी. आरोप है कि ब्रिगेडियर उस्मान की कब्र पर शरारती तत्वों ने तोड़-फोड़ की है. इसकी तस्वीरें-वीडियोज़ इस समय सोशल मीडिया पर खूब वायरल हैं. साथ में सवाल भी हैं कि राजनेताओं की याद में लाखों-करोड़ों के स्मारक खड़ा कर देने वाला ये देश क्या अपने राष्ट्रीय नायकों की अंतिम धरोहरों तक का कायदे से रखरखाव नहीं कर सकता?
कौन थे ब्रिगेडियर उस्मान?
मोहम्मद उस्मान अविभाजित भारत में मऊ जिले के बीबीपुर गांव में 15 जुलाई 1912 को पैदा हुए थे. पिता मोहम्मद फारूक पुलिस अफसर थे. पिता चाहते थे कि उनका बेटा सिविल सर्विस में जाए, लेकिन उस्मान ने सेना को तरजीह दी. उस्मान ने रॉयल मिलिट्री अकादमी सैंडहर्स्ट के लिए अप्लाई किया, और 1932 में इंग्लैड गए. 1 फरवरी 1934 को उस्मान सैंडहर्स्ट से पास हुए. वे इस कोर्स के लिए चुने गए 10 भारतीयों में से एक थे. मोहम्मद मूसा और सैम मानेकशॉ उनके बैचमैट थे, जो आगे चलकर भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के चीफ बने.
1935 में मोहम्मद उस्मान भारत वापस आए तो उनकी नियुक्ति बलूच रेजिमेंट की 5वीं बटालियन में हुई. 30 अप्रैल 1936 को उन्हें लेफ्टिनेंट की रैंक पर प्रमोशन मिला. 1941 में कैप्टन बने. 1944 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने ब्रिटिश फौज की ओर से बर्मा में सेवाएं दीं.
बंटवारा तय हो जाने के बाद ब्रिटिश इंडिया की सैन्य टुकड़ियों को भी भारत और पाकिस्तान के बीच बांटा जा रहा था. इसी सिलसिले में नंबर आया बलूच रेजिमेंट का. बलूच रेजिमेंट के ज्यादातर अफसर मुस्लिम थे, और वे पाकिस्तान में शामिल हो रहे थे. चूंकि देश का बंटवारा ही धर्म के आधार पर हुआ था इसलिए ये स्वभाविक भी था. लेकिन ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान तो किसी और ही मिट्टी के बने थे. ब्रिगेडियर उस्मान ने अपनी मातृभूमि भारत में ही रहने का फैसला किया.
Brigadier Mohammad Usman
बंटवारे के बाद ब्रिगेडियर उस्मान ने भारत में ही रहने का फैसला किया.


नौशेरा का शेर
ब्रिगेडियर उस्मान ने 10वीं बलूच रेजिमेंट की 14वीं बटालियन की कमान अप्रैल 1945 से अप्रैल 1946 तक संभाली. बंटवारे के बाद जब बलूच रेजिमेंट पाकिस्तान में चली गई तो मोहम्मद उस्मान का ट्रांसफर डोगरा रेजिमेंट में कर दिया गया. बंटवारे के ठीक बाद पाकिस्तानी कबायली घुसपैठियों ने कश्मीर रियासत पर हमला कर दिया. पाकिस्तान चाहता था जम्मू-कश्मीर पर कब्जा किया जाए, और पाकिस्तान में उसका विलय किया जाए. मोहम्मद उस्मान उस वक्त 50 पैरा ब्रिगेड के कमांडर थे. जनवरी-फरवरी 1948 में ब्रिगेडियर उस्मान की तैनाती नौशेरा में थी. पाकिस्तान लगातार कबायली घुसपैठियों को जम्मू-कश्मीर भेज रहा था. देश को आजाद हुए अभी 5 महीने ही हुए थे. युद्ध की तैयारी नहीं थी, सैन्य-साजो सामान बिखरे हुए थे. संसाधनों की कमी थी. लेकिन ब्रिगेडियर उस्मान और उनके सैनिकों के हौसले बुलंद थे.
24 दिसंबर 1947 को कबायलियों ने अचानक हमला कर झांगर पर कब्जा कर लिया. उनका अगला लक्ष्य नौशेरा था. जनवरी के पहले हफ्ते में नौशेरा पर कबायलियों ने तीन बार हमला किया, जिसे ब्रिगेडियर उस्मान के सैनिकों ने नाकाम कर दिया. 6 फरवरी 1948 को कबायलियों ने नौशेरा पर फिर से हमला किया. इस लड़ाई में दुश्मन बड़ी तादाद में थे जबकि भारतीय सैनिक उनके मुकाबले कम थे. बावजूद इसके दुश्मन को काफी नुकसान हुआ. नौशेरा पर हमला एक बार फिर नाकाम हो गया था. इस दिलेरी भरे नेतृत्व की वजह से ब्रिगेडियर उस्मान को नौशेरा का शेर कहा जाने लगा.
झांगर की लड़ाई
अगला लक्ष्य झांगर था. भारतीय सेना सैलाब बनकर टूट पड़ी. भयंकर लड़ाई हुई. ये आखिरी लड़ाई थी. ब्रिगेडियर उस्मान खुद जंग का नेतृत्व कर रहे थे. 3 जुलाई 1948 को तोप का एक गोला ब्रिगेडियर उस्मान के पास आकर गिरा और वे इसकी चपेट में आ गए. अपने 36वें जन्मदिन से 12 दिन पहले ब्रिगेडियर उस्मान युद्धभूमि में वीरगति को प्राप्त हुए. लेकिन तब तक भारत झांगर पर कब्जा कर चुका था. ब्रिगेडियर उस्मान को उनके जोशीले नेतृत्व और साहस के लिए मरणोपरांत 'महावीर चक्र' से सम्मानित किया गया.
ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान की शवयात्रा में खुद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू शामिल हुए. उनका अंतिम संस्कार दिल्ली के जामिया मिल्लिया में किया गया. जामिया मिल्लिया इस्लामिया के पास ही वो कब्र है, जिसकी फोटो सोशल मीडिया पर वायरल है. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक भारतीय सेना ने कब्र को हुई क्षति का संज्ञान लिया है. आर्मी के पीआरओ कर्नल अमन आनंद का कहना है कि सेना जल्द ही कब्र के रखरखाव को लेकर निर्णय करेगी.

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