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राहुल गांधी को कौन सा वादा याद दिलाने 30 गांवों के लोग 300 किमी की पैदल यात्रा पर निकल पड़े हैं?

छत्तीसगढ़ में ये लोग अडानी से क्यों नाराज हैं?

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अपनी मांगों को लेकर 30 गांवों के 350 आदिवासी पैदल यात्रा करके रायपुर जा रहे हैं.
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डेविड
13 अक्तूबर 2021 (Updated: 13 अक्तूबर 2021, 12:38 PM IST) कॉमेंट्स
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छत्तीसगढ़. कांग्रेस शासित राज्य. यहां का सरगुजा और कोरबा जिला. इन दो जिलों के 30 गांवों के लगभग 350 लोग पिछले 9 दिनों से राज्य की राजधानी रायपुर के लिए पैदल यात्रा पर निकले हैं. 300 किलोमीटर का सफर तय कर वो रायपुर पहुंचेंगे. राज्यपाल अनुसुइया उइके और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मुलाकात करेंगे. लेकिन इन आदिवासियों को 11 दिन में 300 किलोमीटर की पैदल यात्रा क्यों करनी पड़ रही है? इनकी मांगें क्या हैं? मुद्दा क्या है?
'अगर हम आज नहीं चले तो हमारे बच्चों के रहने के लिए कुछ नहीं बचेगा'.
ये कहना है मदनपुर से रायपुर की ओर पैदल मार्च कर रहे प्रदर्शनकारियों में से एक शकुंतला एक्का का. इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में शकुंतला ने ये बात कही. इस यात्रा को नाम दिया गया है, हसदेव बचाओ यात्रा. इस यात्रा में 85 साल के सोनाई राम भी शामिल हैं. वह पैकरा ग्राम गिड़मूड़ी कोरबा से हैं. उन्होंने कहा कि,
हमें बहुत दुख है. पंचायती राज लागू करके सरकार ने कहा कि तुम्हीं राजा तुम्हीं प्रजा. अब हमारे ऊपर अडानी को बिठा दिया है. हमारा सब कुछ छीना जा रहा है.
हसदेव बचाओ यात्रा सरगुजा जिले के अंबिकापुर में फतेहपुर से 3 अक्टूबर को शुरू हुई.  13 अक्टूबर को रायपुर पहुंच रही है. इन क्षेत्रों के आदिवासी हसदेव अरण्य क्षेत्र में चल रही और प्रस्तावित कोयला खनन परियोजनाओं का विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि इससे राज्य के वन पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा है. आदिवासियों का घर उजड़ जाएगा. यह क्षेत्र जैव विविधता से समृद्ध है. हसदेव और मांड नदियों के लिए जलग्रहण क्षेत्र है. राज्य के उत्तरी और मध्य मैदानी इलाकों की सिंचाई इसी से होती है. हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के अनुसार, दो जिलों के प्रदर्शनकारियों का एक संयुक्त मंच है. इनके विरोध के बावजूद इस क्षेत्र में छह कोल ब्लॉक आवंटित किए गए हैं. इनमें से दो में खनन चालू हो गया है. परसा पूर्व और केटे बसन ब्लॉक और चोटिया के ब्लॉक 1-2. इसके साथ ही परसा के दूसरे कोल ब्लॉक को पर्यावरण मंत्रालय से क्लियरेंस मिल गया है. ग्रामीणों का आरोप है कि जमीन अधिग्रहण का काम बिना ग्राम सभा की अनुमति के किया गया है. अब भी भूमि अधिग्रहण का काम जारी है. आंदोलन से जुड़े लोगों का क्या कहना है? हमने इस मुद्दे को समझने के लिए छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के कन्वीनर आलोक शुक्ला से बात की. उनका कहना है,
हसदेव अरण्य वन क्षेत्र एक महत्वपूर्ण इलाका है, जो 1878 स्वायर किलोमीटर में फैला है. संविधान का 5वीं अनुसूची वाला इलाका है. यहां की ग्राम सभाएं कोयला खनन परियोजना के खिलाफ आंदोलन कर रही हैं. वो नहीं चाहतीं कि यहां माइनिंग हो. 2010 में इस पूरे इलाके को खनन के लिए 'नो जोन' इलाका घोषित किया गया था. फिर 2012 में तीन खदानों को मंजूरी दी गई. लेकिन NGT ने 2014 में इसे रद्द कर दिया. फिर 2015 में यहां 7 कोल ब्लॉक आवंटन कर दिए गए. इन इलाकों में बिना ग्रामसभा की अनुमति के आप भूमि अधिग्रहण नहीं कर सकते. ग्राम सभाएं शुरू से इसका विरोध कर रही हैं. लेकिन यहां आवंटन कर दिया गया. अडानी और बाकी को माइनिंग के लिए खदानें दे दी गईं, लेकिन ग्रामसभाओं की अनुमति नहीं ली गई. नियमों का पालन नहीं किया गया.
आलोक शुक्ला ने कहा कि 2019 में इन्हीं मांगों को लेकर लोगों ने 75 दिनों तक धरना दिया था. मांग थी उन प्रस्तावों की जांच की जाए, लेकिन कोई संज्ञान नहीं लिया गया. 2015 में राहुल गांधी इस इलाके में गए थे. सभा की थी. कहा था जल जंगल जमीन की लड़ाई में हम आपके साथ हैं. यहां कोई खनन नहीं होगा. लेकिन वही हो रहा है. आप देखेंगे कि 5 कोल खदानों की वजह से 7 गांव विस्थापित होने हैं. 70 हजार एकड़ जंगल कट रहा है. ये आदिवासियों के अधिकारों का हनन है, इसे कुचलकर आप आगे नहीं बढ़ सकते. आलोक कहते हैं,
हमारी बात केंद्र और राज्य दोनों सरकारों ने नहीं सुनी तो हमने राजधानी जाने का रास्ता चुना. राज्यपाल से समय मिला है, लेकिन सीएम से नहीं मिला है. हम पहले धरना देंगे. उसके बाद गवर्नर से मिलेंगे. उम्मीद है कि सीएम समय देंगे. यह कांग्रेस का पॉलिटिकल कमिटमेंट हैं. लेकिन कॉर्पोरेट दबाव में वह अब पीछे हट रही है. हमारा सवाल है कि इतने संवेदनशील इलाके को क्यों उजाड़ रहे हैं?
आंदोलन कर रहे लोगों की मांग है कि हसदेव अरण्य क्षेत्र में सभी कोयला खनन परियोजनाओं को तत्काल रद्द किया जाए. कोल बियरिंग एरिया एक्ट 1957 के तहत ग्राम सभा की पूर्व सहमति बिना की गई सभी भूमि अधिग्रहण कार्यवाही तुरंत वापस ली जाए. परसा कोयला ब्लॉक के ईसी/एफसी को रद्द किया जाए. ग्राम सभा की फर्जी सहमति दिखाने के लिए कंपनी और अधिकारियों के खिलाफ केस और कार्रवाई हो. अनुसूची 5 वाले क्षेत्रों में भूमि अधिग्रहण या किसी भी खनन या अन्य परियोजनाओं के आवंटन से पहले ग्राम सभाओं से free prior informed consent का नियम लागू किया जाए. पेसा अधिनियम 1996 (PESA Act 1996) के सभी प्रावधानों को लागू किया जाए. केंद्रीय कोयला मंत्री ने क्या कहा था? इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, केंद्र सरकार की तरफ से 24 दिसंबर, 2020 को Coal Bearing Areas (Acquisition and Development) Act, 1957 की धारा 7 के तहत एक अधिसूचना जारी की गई थी. इसमें क्षेत्र के हजारों ग्रामीणों को अधिकारों पर आपत्तियां, यदि कोई हो, प्रस्तुत करने के लिए 30 दिन का समय दिया गया था. 8 फरवरी को केंद्रीय कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा था कि मंत्रालय को 470 से अधिक आपत्ति पत्र मिले हैं, जिनमें राज्य सरकार के पत्र भी शामिल हैं. उन्होंने कहा था कि भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास में पारदर्शिता होगी. पुनर्वास अधिनियम, 2013 और छत्तीसगढ़ आदर्श पुनर्वास नीति 2007 के नियमों के तहत वैध मुआवजे का भुगतान किया जाएगा. लेकिन उन्होंने ये भी कहा कि 1947 के कानून के मुताबिक, ग्रामसभा से सहमति लेने के बारे में कोई प्रावधान नहीं है. हालांकि विरोध कर रहे ग्रामीणों का कहना है कि मुआवजा पर्याप्त नहीं है. पैसा और हमारी जमीन समान नहीं है. कोई भी राशि अंततः खत्म हो जाती है, लेकिन हमारे घर यहां वर्षों से हैं. मध्य भारत के सबसे बड़े और घने वन क्षेत्रों में से एक हसदेव अरण्य वन को छत्तीसगढ़ के फेफड़े के रूप में जाना जाता है. यह मध्य भारत के सबसे बड़े घने और वन क्षेत्रों में से एक है. करीब 1,70,000 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है. यहां जंगल हाथी, तेंदुआ, भालू (sloth bear) जैसे विलुप्त हो रहे जानवर रहते हैं. यह तमाम दुर्लभ वनस्पतियों और जीवों की 450 से अधिक प्रजातियों का घर है. यहां 15 से 20 हजार आदिवासियों के घर हैं. अपनी जमीन बचाने के लिए जूझ रहे लोगों का ये आंदोलन ऐसे समय हो रहा है, जब कई राज्य कोयले की कमी से बिजली आपूर्ति पर संकट का दावा कर रहे हैं. देखना ये है कि 30 गांवों के लोगों का ये संघर्ष क्या रुख लेता है.

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