चंद्रयान 3 की लैंडिंग के आखिरी 15 मिनट इतने अहम क्यों?
आखिर चांद के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान को क्यों उतारा जा रहा है?

तो हम भी चांद पर पहुंच गए हैं. अब से कुछ देर पहले, शाम 6 बजे. यही वो पल था जब भारत चांद पर पहुंचने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया. चंद्रयान-3 सफलता पूर्वक चांद पर पहुंच चुका है. हमसे पहले अमेरिका, रूस और चीन चांद पर पहुंचे थे. स्पेस रिसर्च में भारत के लिए आज बेहद ऐतिहासिक दिन है. जो बाधाएं मिशन चंद्रयान-2 में आईं थी, इस बार उनसे पार पाते हुए भारत का चंद्रयान-3 चांद पर पहुंच गया.
चंद्रयान-3 का काम चंद्रयान-2 के क्रैश होने के बाद से ही शुरू हो गया था. 14 जुलाई 2023 को दोपहर 2 बजकर 35 मिनट पर श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से चंद्रयान-3 मिशन लॉन्च कर दिया गया. चंद्रयान-2 मिशन लॉन्च होने के ठीक 3 साल 11 महीने और 23 दिन. और लॉन्च के 40 दिन बाद आज 6 बजकर 2 मिनट पर चंद्रयान-3 चांद पर उतर गया. इस मिशन का पूरा तियां-पांचा हम समझने की कोशिश करेंगे पर पहले तो चंद्रयान-3 मिशन की कुछ बुनियादी बातें जान लेते हैं. सबसे पहले तो यही जानिए कि चंद्रयान-3 मिशन का नाम है. किसी रॉकेट या स्पेसक्राफ्ट का नहीं. और मुख्य तौर पर इसके तीन हिस्से हैं -
1. उड़ाने वाला हिस्सा - प्रोपल्शन मॉड्यूल,
2. उतारने वाला हिस्सा - लैंडर मॉड्यूल,
3. घूमने-घुमाने और जानकारी जुटाने वाला हिस्सा - रोवर.
पिछले वाले मिशन - चंद्रयान 2 - में एक हिस्सा और था: ऑर्बिटर. वो इस बार नहीं है. क्यों? क्योंकि चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर पहले से ही चंद्रमा के चक्कर काट रहा है और चंद्रयान-3 उसी का इस्तेमाल करेगा. तकनीकी ज़ुबान में इन हिस्सों को कहेंगे, मॉड्यूल. लेकिन काम की बात ये कि तीनों हिस्से करते क्या हैं.
> सबसे पहले प्रोपल्शन मॉड्यूल: इसको आप एक पालकी की तरह समझें. यही हिस्सा, लैंडर और रोवर को चंद्रमा तक ले गया और सही जगह ले जा कर लैंडर से हो अलग हो गया. मगर जुदाई के बाद भी कुछ गुंजाइश तो रहती ही है. प्रोपल्शन मॉड्यूल, लैंडर और रोवर से कम्युनिकेशन बनाए रखने के लिए ऑर्बिटर की तरह ही चक्कर लगाता रहा. लैंडर और इसरो के बीच संपर्क के लिए यही चैनल था.
> दूसरा हिस्सा, लैंडर मॉड्यूल: ये एक स्पेसक्राफ़्ट है. जो किसी दूसरे ग्रह या चांद की सतह पर उतरता है. फिर वहीं रुका रहता है. पिरामिड जैसे आकार का होता है. हल्का, लेकिन मज़बूत. इसके अंदर ही रोवर को रखा जाता है. ये एक प्रोटेक्टिव शील्ड की तरह है, जो लैंडिंग के वक़्त रोवर को डैमेज से बचाता है.
> हमने बताया, लैंडर अपनी जगह पर जड़ रहता है. तो रिसर्च कैसे होगी? उसके लिए तो इधर-उधर जाना पड़ेगा. तब काम में आता है रोवर. रोवर एक पहिए वाली डिवाइस या वीकल है, जो सतह पर एक से दूसरी जगह जा सकती है. ये है हमारी 'डोरा द एक्सप्लोरर'. इसका काम ही होता है, इधर-उधर भटकना, जगह को एक्सप्लोर करना. रीसर्च करना. मतलब, पहले लैंडर लैंड किया. फिर उसमें से रोवर निकला और खोज के लिए चल पड़ा.
कुछ रोवर्स को इंसानों के चलाने के लिए डिज़ाइन किया जाता है. तब ये एस्ट्रोनॉट के लिए एक गाड़ी की तरह काम करता है. बाक़ी मौकों पर - जैसे इस मिशन में - ये रोबॉट की तरह ख़ुद ही इधर-उधर जाता है. चंद्रयान 3 में कोई इंसान नहीं जा रहा है, इसलिए रोवर पूरी तरह से रोबोटिक बनाया गया है.
आज क्या हुआ इस पर हम लौटेंगे लेकिन पहले ये जान लेते हैं कि 40 दिन तक चंद्रयान अंतरिक्ष में कर क्या रहा था. पृथ्वी से उड़ान भरने बाद आज चांद तक आखिर कैसे पहुंचा चंद्रयान-3. तो स्टेप-बाय-स्टेप समझिए.
- 14 जुलाई कोLVM-3 रॉकेट से चंद्रयान-3 स्पेसक्राफ्ट को लॉन्च किया गया.
- 16 मिनट बाद यानी 2 बजकर 51 मिनट पर चंद्रयान-3 जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट में शिफ्ट हो गया. माने पृथ्वी से बाहर निकलकर पृथ्वी के चारों ओर की उस कक्षा में आ गया है जिसकी पृथ्वी से दूरी हमेशा एकसमान रहती है. माने इस गोलाकार कक्षा में चंद्रयान ने पृथ्वी के चारों ओर घूमते वक़्त हर समय पृथ्वी से एक समान दूरी बनाए रखी.
- इसके बाद चंद्रयान ने अपने इलिप्टिकल पाथ का दायरा बढ़ाया. माने उसका हर चक्कर पहले से बड़ा होता चल गया.
- इसके बाद स्पेसक्राफ्ट ने ऑर्बिट ट्रांसफर किया और 6 दिन तक चंद्रमा की तरफ बढ़ता चला गया.
- और तब जाकर स्पेसक्राफ्ट पृथ्वी की कक्षा से निकलकर चंद्रमा की कक्षा में पहुंच गया.
- फिर 13 दिन तक स्पेसक्राफ्ट ने चंद्रमा के चक्कर लगाए.
- इसके बाद चंद्रमा की बाहरी सतह से 100 किलोमीटर ऊपर प्रोपल्शन मॉड्यूल से लैंडर अलग हो गया. प्रोपल्शन मॉड्यूल ही लैंडर को इस स्टेज तक लेकर आया था.
- और अंत में लैंडर ने चंद्रमा के ऊपर एक कक्षा में अपनी स्पीड कम करना शुरू किया. और आखिरकार आज चंद्रयान लैंडर और रोवर चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतर गए.
यहां एक बात जो काबिल-ए-गौर है. दक्षिणी ध्रुव. जब से चंद्रयान-3 लॉन्च हुआ है, चांद के साउथ पोल की खूब चर्चा हो रही है. कि आखिर दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान को क्यों उतारा जा रहा है?
दक्षिणी ध्रुव ही क्यों?असल में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के कई बड़े हिस्सों पर क्रेटर मौजूद है. सरल भाषा में समझें तो गड्ढे हैं. और यहां पर अरबों साल से सूर्य की रोशनी नहीं पड़ी है. और इसीलिए चांद के दक्षिणी ध्रुव पर का तापमान काफी कम है. तो उम्मीद ये जताई गई कि यहां के क्रेटर्स यानी गड्ढों में बर्फ मिल सकती है. इसीलिए सारे ताकतवर देशों ने अपने मून मिशन्स में चांद के दक्षिणी ध्रुव पर फोकस किया और वहां पहुंचने की कोशिश की.
लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि चांद के दक्षिणी ध्रुव के क्रेटर्स पर सौर्य मंडल के पैदा होने से जुड़े सुबूत मिल सकते हैं. इसकी वजह वहां की अनूठी रचना बताई जाती है. और इन्हीं विशेषताओं के चलते, वैज्ञानिक ऐसा भी मानते हैं कि चांद का ये इलाका मानव बस्ती बसाने की क्षमता रखता है. मतलब चांद के इस इलाके पर प्लॉटिंग हो सकती है. अमेरिका का नासा भी अपने आर्टेमिस III कार्यक्रम के ज़रिये चांद पर 2025 में जो मानव अभियान भेज रहा है, वो भी दक्षिणी ध्रुव पर ही जाएगा. दुनिया के दूसरे कई देशों की अंतरिक्ष एजेंसियां और निजी कंपनियां चंद्रमा के इस क्षेत्र का पता लगाने के लिए मिशन की योजना बना रही हैं. लेकिन भारत ने इतिहास लिख रचते हुए चंद्रमा के साउथ पोल पर चंद्रयान-3 लैंड करा दिया.
चंद्रयान-3 मिशन से क्या मिलेगा?अच्छा लाख टके का सवाल ये कि जिसके लिए हमने दुनिया जहान एक किए हुए हैं, उस चंद्रयान से मिलने क्या वाला है. तो एक बात समझिए. चंद्रयान-3 मिशन से सीधे तौर पर कोई नई चीज नहीं मिलने जा रही है. जैसे पहले के मिशन थे उनकी ही तरह ये भी एक खोजी अभियान है. यानी एक एक्सपेरिमेंट है. लेकिन इस मिशन से इसरो को मिलने वाला है डेटा. और ये डेटा भविष्य में चांद को लेकर बड़ी संभावनाओं के रास्ते खोल सकता है. आप पूछेंगे कैसे?
तो ऐसे समझिए कि चांद, पृथ्वी से करीब 3 लाख, 84 हजार किलोमीटर दूर है. फिर भी चांद पृथ्वी को प्रभावित करता है. क्योंकि पृथ्वी अपने ऐक्सिस पर झुकी हुई है. और इस झुकाव को नियंत्रित करने का काम चांद भी करता है. और इसी नियंत्रण से पृथ्वी की जलवायु प्रभावित होती है. आप जानते ही हैं समुद्र में ज्वार-भाटा आता है. जिसे हम हाई टाइड - लो टाइड भी कहते हैं. ये किसकी वजह से होता है? ये भी चांद की वजह से होता है. यानी समुद्री लहरों की गति और लहरें कैसी होंगी ये भी चांद नियंत्रित करता है. तो नतीजा ये कि अगर चांद की नई जानकारियां सामने आती हैं तो पृथ्वी पर चांद के प्रभाव को बेहतर तरीक से समझा जा सकेगा.
इसके अलावा चांद के दक्षिणी ध्रुव की मिट्टी और चट्टानों के केमिकल टेस्ट से उस इलाके की भौगोलिक विशेषताओं, वातावरण की जानकारी मिलेगी. इससे भविष्य में चांद पर इंसानों को भेजने के मिशन आसान होंगे. और एक महत्वपूर्ण बात ये भी कि स्पेस सेक्टर की प्राइवेट कंपनियों के लिए मून मिशन एक व्यवसाय की तरह उभर रहा है. और चंद्रयान-3 इसमें एक बड़ा मददगार साबित होने वाला है.
यहां एक और बात समझना जरूरी है. अभी हम चांद पर कॉलोनी काटने की बात कर रहे थे. लेकिन एक सच ये भी है कि चांद पर जीवन की संभावना ढूंढ रहे वैज्ञानिक मानते हैं कि चांद पर तापमान पृथ्वी की तरह जीवन के योग्य नहीं है. वहां तापमान बहुत तेजी से बदलता है. दिन में चांद 127 डिग्री सेल्सियस तक गर्म जबकि रात में माइनस 173 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा. लेकिन चांद के पास कई संसाधन ऐसे हैं जिनके लालच में दुनिया भर के देशों की स्पेस एजेंसियां चांद को और ज्यादा खोजने, टटोलने और समझने में जुटी हैं. और इनमें हम भी शामिल हैं.
मिशन के बारे में तो सबकुछ जान लिया. अब ये भी जान लेते हैं कि इसमें पैसा कित्ता खर्चा हुआ है. तो पहले आप कुछ आंकड़ों पर गौर करिेए-
- आउटलुक की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल केंद्र सरकार ने दिल्ली, मुंबई और अहमदाबाद के रेलवे स्टेशन के रिडेवलपमेंट के लिए अलॉट किए- 10 हजार करोड़.
- अच्छा 2016 में मध्यप्रदेश में सिंहस्थ कुंभ मेला लगा. शिवराज सरकार का बजट था 5000 हजार करोड़. और 2019 में प्रयागराज में कुंभ मेला लगा. उसके योगी सरकार ने बजट दिया था 4 हजार 236 करोड़ रुपये.
- एक और तस्वीर देखिए. पिछले तीन साल में केजरीवाल सरकार अपने कामकाज के प्रचार-प्रसार में जितना रुपया खर्च किया उसको जोड़ दिया जाए तो बनता है- एक हजार 73 करोड़ रुपये.
- अभी एक फिल्म आई थी आदिपुरुष. उसके डायलॉग्स पर खूब बवाल हुआ था. कहा जाता है कि फिल्म का बजट था- 700 करोड़.
- चंद्रयान-2 मिशन जो चांद पर पहुंचते-पहुंचते चूक गया. उसका बजट था- 978 करोड़ रुपये.
- लेकिन चंद्रयान-3 का बजट था- 620 करोड़ रुपये.
CNBC TV18 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दिसंबर 2019 में, इसरो ने चंद्रयान-3 की शुरुआती फंडिंग के लिए 75 करोड़ रुपये मांगे थे. जिसमें से 60 करोड़ रुपये का इस्तेमाल मशीनरी, उपकरण और दूसरे कैपिटल इन्वेस्टमेंट में किया जाना था.
2020 में इसरो के पूर्व प्रमुख के. सिवन ने कहा था कि चंद्रयान-3 की लागत करीब 615 करोड़ रुपये रहेगी. लैंडर, रोवर और प्रोपल्शन मॉड्यूल की लागत 250 करोड़ रुपये और लॉन्चिंग की लागत लगभग 365 करोड़ रुपये.
हाल ही में आपने सुना होगा कि रूस का मून मिशन फेल हो गया. LUNA-25 उसका नाम था. वो भी चांद के साउथ पोल पर जा रहा था. उसका अनुमानित बजट था- 1,659 करोड़ रुपये. हमारा जो मिशन सफल रहा. उससे ढाई गुणा ज्यादा पैसे खर्च करने के बाद भी रूस का मिशन सफल नहीं हो पाया.
हमने चंद्रयान-3 का बेसिक मेकैनिज़्म और टाइमलाइन जान ली. मिशन के फायदे-नुकसान जान लिए. खर्चा भी जान लिया. अब एक नज़र India's tryst with Moon पर. देखिए, चांद केवल गीत-नज़्मों का हिस्सा नहीं रहा है. "आई ऐम अ मून-पर्सन" का कॉन्सेप्ट भी नया-नया है. चांद की खोज और सभ्यताओं में चांद के मायने बहुत पुराने हैं. रिकॉर्डेड हिस्ट्री में साफ़-साफ़ इसकी छाप मिलती है और उससे पहले भी झलकियां. प्राचीन मिस्र वाले मानते थे कि चंद्रमा एक दिव्य शक्ति है. जो मौसम, लहरों और यहां तक कि मानव व्यवहार को प्रभावित करता है. प्राचीन मीसो-अमेरिकनों ने चंद्रमा को उर्वरता और कृषि से जोड़ा. बाहर क्यों, हमारे यहां भी. हमारे शास्त्रों में चंद्रमा का बहुत महत्व है. सृजन, जीवन, भावनाओं और मन के कई पहलुओं के साथ इसे जोड़ा गया है. संस्कृत टेक्सट्स में आपको चंद्र या सोम नाम से मिलेगा. मान्यताओं में चंद्र देवता नवग्रह और दिक्पाल में से एक हैं. अब 10-15 सदी फ़ास्ट-फ़ॉरवर्ड कीजिए. और विज्ञान की तरफ लौटिए.
20 जुलाई 1969. नील आर्मस्ट्रॉन्ग स्पेस हिस्ट्री और जीके की किताबों में अमर हो गए. चांद पर अपना पहला और दूसरा क़दम रख दिया. इसके मात्र 6 सालों बाद - 1975 में - भारत ने भी स्पेस में अपना पहला सैटलाइट भेज दिया: आर्यभट्ट. इसके बाद और मिशन्स को अंजाम दिया गया. स्पेस रेस में हम आ गए थे, चांद की रेस में हम दाख़िल हुए नई सदी के पहले दशक में.
चांद को जानने समझने के लिए जो पहला यान हमने भेजा, वो था चंद्रयान-1. जीके के सवालों की तरह इसकी मुख्य बातें जान लीजिए.
> लॉन्च किया गया था: 22 अक्टूबर 2008 को.
> कुल 312 दिनों तक चंद्रमा की परिक्रमा की थी.
मिशन का मक़सद क्या था? मकसद था चंद्रमा की सतह की mapping या कहें, मानचित्रण करना, वहां के खनिज का अध्ययन करना और चांद पर पानी की खोज. पहले यान में भेजा गया था एक टेरेन मैपिंग कैमरा, एक हाइपर स्पेक्ट्रल इमेजर, एक लूनर लेजर रेंजिंग इंस्ट्रूमेंट, और एक एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर. तीन उपकरण थे. तीन मकसद थे.
- कैमरे का काम था सतह का विस्तार से मानचित्रण. इसकी वजह से वैज्ञानिकों को सतह के भूविज्ञान को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिली.
- इमेजर से हाई-रिज़ॉल्यूशन तस्वीरें निकलती थीं. जो खनिज विज्ञान के विस्तृत अध्ययन करने में काम आती हैं.
- लेज़र इंस्ट्रूमेंट के ज़रिए चंद्रमा और पृथ्वी के बीच की दूरी मापी गई. इससे वैज्ञानिकों को चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र को क़ायदे से समझने में मदद मिली.
> इन तीन अति-संवेदशनील उपकरणों के अलावा चंद्रयान 1 में एक मून-इम्पैक्ट प्रोब भी था. इसका इस्तेमाल चंद्रमा की सतह की संरचना को समझने और किसी यान के सतह से टकराने के वक़्त झटका कितना लगता है, ये समझने के लिए किया गया था.
> इस मिशन का कुल खर्च आया. मात्र 386 करोड़ रुपये.
> 22 जुलाई, 2019 को लॉन्च किया गया था.
> इसमें एक ऑर्बिटर, विक्रम नाम का एक लैंडर और प्रज्ञान नाम का एक रोबॉटिक लूनर रोवर शामिल था.
> मिशन का मक़सद था- सतह की संरचना में भिन्नताएं रिकॉर्ड करना और चांद पर पर्याप्त पानी कहां है, इसका पता लगाना.
- चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर चांद के चक्कर काट रहा है. उसके ज़रिए चांद की सतह, गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र और उसके वायुमंडल का अध्ययन किया जा रहा है.
- विक्रम लैंडर को मून के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करना था. इसके सात तीन उपकरण थे: सतह की कंपन मापने को सेस्मोमीटर, मैग्नेटिक फ़ील्ड मापने को मैग्नेटोमीटर और गर्मी मापने को थर्मल मैपर. लैंडर को ही प्रज्ञान रोवर को बाहर का रास्ता दिखाना था, जिससे वो कुछ दिन चांद पर टहले और सतह की कमेकिल ऐनालिसिस करे.
- लेकिन 7 सितंबर, 2019 को विक्रम लैंडर अपने अंतिम चरण में दुर्घटनाग्रस्त हो गया. चंद्रयान-2 मिशन बेहद जटिल और चुनौतीपूर्ण था. ISRO ने अपनी जो ऐनालिसिस रिपोर्ट सौंपी थी, उसके मुताबिक़ एक सॉफ़्टवेयर ग्लिच की वजह से लैंडर अपने तय रास्ते से झिटक गया था. वैज्ञानिकों ने इस चूक की वजहें पता लगाईं और चंद्रयान-3 में इनसे पार पा लिया है.
चूंकि पिछले मिशन से हमने सबक़ लिए हैं, तो ये भी समझ लेना चाहिए कि अबकी क्या सुधार हुए हैं?
हमने आपको बताया ही कि चंद्रयान-2 का लैंडर रास्ते से भटक गया था. अब उसको थोड़ा खोल कर बताते हैं. लैंडर ऑल्टिट्यूड होल्ड फेज़ और फाइन ब्रेकिंग फेज़ के बीच था. ये 'टर्मिनल डीसेंट फेज़' में पहुंच पाता इससे तीन मिनट पहले ही नियंत्रण से बाहर हो गया और चांद की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया. गड़बड़ी हुई दिशा बदलने के दौरान. इसे 55 डिग्री घूमना था लेकिन ये 410 डिग्री से ज्यादा घूम गया. मिशन के फेल होने की वजहों पर स्टडी करके इसरो ने चंद्रयान-3 में सुधार किए.
लेकिन जितनी हम बातें कर रहे हैं सबकुछ उतना आसान नहीं था. मिशन के आखिरी 2 घंटे बेहद अहम थे. और इन दो घंटों में भी आखिरी 15 मिनट और भी क्रिटिकल. दरअसल मिशन के आख़िरी 15 मिनट में लैंडर की स्पीड बहुत ज्यादा हो गई. इस दौरान लैंडर होरिजोंटल (क्षैतिज) माने चांद की सतह के समानांतर उड़ान भरी. इन्हीं 15 मिनट के दौरान लैंडर विक्रम ने अपनी दिशा, 90 डिग्री में बदली. अब चांद की सतह पर वर्टिकल (सीधा ऊपर से नीचे) उतरना था. नीचे आते-आते लैंडर को लगातार अपनी गति कम करनी थी और फिर हौले से चांद की सतह पर उतरना था. ये काम और पेचीदा इसीलिए था, क्योंकि इस वक्त ISRO का लैंडर पर सीधा कंट्रोल नहीं था. सारा दारोमदार उस प्रोग्रामिंग पर था, जो ISRO ने हफ्तों पहले लैंडर के सिस्टम में फीड की थी. माने लैंडर को एक लिस्ट पकड़ा दी गई थी, कि यहां से दाएं जाओ, वहां से बाएं जाओ और फिर फलाने मोड़ से यू टर्न ले लो. अब लैंडर को ये सारा काम अपने बूते करके दिखाना था. चंद्रयान-2 के प्रोजेक्ट इंचार्ज और तत्कालीन इसरो चीफ के सिवान ने इन्हीं 15 मिनटों को '15 minutes of terror' कहा था.
आकंड़ों में समझें तो अभी 30 किमी की ऊंचाई पर लैंडर की होरिजोंटल विलॉसिटी (चांद की सतह के समांतर दिशा में गति) 1.68 किमी प्रति सेकंड थी. माने 6,000 किमी/घंटा से भी ज्यादा. इसी स्पीड को कम करते-करते जीरो तक लाया गया. इसके लिए थ्रस्टर इंजन को रेट्रो-फायर किया गया. रेट्रो फायर के दौरान इंजन ने उलटी दिशा में लैंडर को धकिया. माने एक तरह से लैंडर ब्रेक मार रहा था.और तब जाकर लैंडर (तकरीबन) जीरो की रफ्तार से पर आज शाम 6 बजे चांद के 70 डिग्री साउथ लैटीट्यूड (दक्षिण अक्षांश) पर उतर गया.
चांद पर हम पहुंच गए. सालों साल की मेहनत सफल हुई. लेकिन ये मेहनत सार्थक तब ही होगी, जब वैज्ञानिक चेतना का प्रसार हो. समाज में विज्ञान को प्रधानता मिले. चाहे जितना पूजा-पाठ कर लें, हवन-भोज कर लिया जाए. ये आपके और हमारे मन के विश्वास हो सकते हैं, श्रद्धा हो सकती है. मगर सब कुछ तर्क पर आधारित है और प्रयोगसिद्ध है. माने हर क़दम की क़ीमत है, नतीजे हैं. सक्सेस या फ़ेलयर, विज्ञान का नियम है. इसमें नाकाम होना भी सफलता है. बताता है कि कैसे अमुक चीज़ को न करें. इसीलिए चंद्रयान की सफलता तब है, जब हम इसमें जेनुइन रुचि लें. विज्ञान के क्षेत्र में और क्या नए प्रयोग हो रहे हैं, उसका जायज़ा लें.