क्या राज्य की सहमति के बिना IPS-IAS अफसरों को डेप्युटेशन पर बुला सकती है केंद्र सरकार?
क्या कहते हैं नियम?
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इस मामले में केंद्र और राज्य सरकार आमने सामने दिख रहे हैं. फोटो- ट्विटर
इस घटना के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उन तीन IPS अधिकारियों को डेप्युटेशन पर बुलाया जिन पर नड्डा की सुरक्षा की जिम्मेदारी थी. अब इसी को लेकर बवाल हो गया है. इस पर पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार और केंद्र सरकार आमने सामने हैं.
ममता बनर्जी ने तीनों अधिकारियों को रिलीज़ करने से मना कर दिया है. वहीं TMC ने कहा कि ये बदले की भावना से की गई कार्रवाई है.
हमले के बाद क्या-क्या हुआ?
नड्डा के काफिले पर हमले के बाद गृह मंत्रालय ने पश्चिम बंगाल के राज्यपाल से राज्य के लॉ एंड ऑर्डर के संबंध में रिपोर्ट मांगी. अगले दिन राज्यपाल ने रिपोर्ट सौंपी. वहीं, इसी दिन केंद्र ने राज्य के मुख्य सचिव आलापन बनर्जी और पुलिस महानिदेशक (DGP) को समन भेजा. दोनों को 14 तारीख को दिल्ली बुलाया गया. राज्य सरकार ने दोनों अधिकारियों को भेजने से इनकार कर दिया. निर्देश की तामील न होते देख 12 दिसंबर को गृह मंत्रालय ने और कदम उठाया. तीन IPS अधिकारियों को डेपुटेशन पर दिल्ली बुला लिया. लेकिन राज्य सरकार ने इन्हें रिलीज़ करने से इनकार कर दिया.
किन अफसरों को बुलाया गया है
- भोलानाथ पांडे. डायमंड हार्बर के SP हैं. 2011 बैच के IPS अधिकारी हैं. डायमंड हार्बर वही जिला है जहां नड्डा के काफिले पर अटैक हुआ.
- प्रवीण कुमार त्रिपाठी. DIG प्रेसिडेंसी रेंज. 2004 बैच के IPS अधिकारी हैं. डायमंड हार्बर जिला प्रेसीडेंसी रेंज में आता है.
- राजीव मिश्रा. ADG साउथ बंगाल. 1996 बैच के IPS अधिकारी हैं.

इन तीन अधिकारियों को केंद्र ने बुलाया है.
अब इस ट्वीट को देखिए. ट्वीट किया है बीजेपी नेता कैलाश विजयवर्गीय ने. ट्वीट है अगस्त 2019 का. साफ दिख रहा है कि एडीजी राजीव मिश्रा ममता बनर्जी के पैर छू रहे हैं.
https://twitter.com/KailashOnline/status/1166616353710714882
अब आते हैं उस सवाल पर, जिसके जवाब के लिए हमने आपको ऊपर ये सारी बात बताई है.
क्या राज्य की परमिशन के बिना केंद्र किसी IPS को डेप्युटेशन पर बुला सकता है?
इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमने बात की आईपीएस अमिताभ ठाकुर से. उन्होंने कहा,
"मेरी जानकारी के हिसाब से IAS, IPS और IFS.. हर साल इनसे पूछा जाता है कि क्या आप केंद्रीय डेपुटेशन पर जाना चाहते हैं? उनकी चॉइस मांगी जाती है और उनके विषय में राज्य सरकार से सहमति मांगी जाती है. राज्य सरकार अपनी ओर से नाम रिकमेंड करती है. विजिलेंस क्लीरेंस होता है. उन पर डिपार्टमेंटल इन्क्वायरी है कि नहीं ये देखा जाता है. ये सारा इनपुट केंद्र के पास जाता है. फिर वो अपने लेवल पर एनालाइज करके, अधिकारियों को क्लियरेंस देते हैं. लेकिन कैडर रूल्स के हिसाब से अधिकारियों को डेप्युटेशन पर भेजना है या नहीं, इसका आखिरी अधिकार स्टेट गवर्मेंट का होता है. अगर सेंट्रल गवर्मेंट डेप्युटेशन के लिए क्लियर भी कर देती है लेकिन स्टेट गवर्मेंट कहती है कि हम अभी नहीं छोड़ेंगे तो स्टेट गवर्मेंट की बात ऊपर हो जाती है."
वहीं IIT कानपुर से पढ़े, सिविल सर्विसेज़ की तैयारी कराने वाले एक संस्थान के अधिकारी अतुल जैन कहते हैं कि इस मामले में इन तीनों अधिकारियों को केंद्र की बात माननी होगी.
केंद्र सरकार देती है कैडर
केंद्र सरकार ही सिविल सर्विसेज़ के अधिकारियों को कैडर का आवंटन करती है. गृह मंत्रालय के अधीन आईपीएस कैडर, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधीन आईएफएस कैडर और कार्मिक व प्रशिक्षण विभाग के अधीन आईएएस कैडर आते हैं.
नियम ये कहता है कि राज्य सरकार के अधीन तैनात सिविल सेवा अधिकारियों के खिलाफ केंद्र कोई कार्रवाई नहीं कर सकता है. अखिल भारतीय सेवा (अनुशासन और अपील) नियम, 1969 के सेक्शन 7 में बताया गया है कि यदि अधिकारी राज्य मामलों में सेवा कर रहा है तो दंड का अधिकार राज्य का होगा.
अखिल भारतीय सेवाओं के किसी अधिकारी पर कार्रवाई के लिए राज्य और केंद्र की आपसी सहमति जरूरी है. भारतीय पुलिस सेवा (कैडर) नियम, 1954 के नियम 6 (1) में बताया गया है कि किसी भी असहमति के मामले में केंद्र सरकार द्वारा निर्णय लिया जाएगा और उसे राज्य लागू करेंगे.