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'ककककककक किरन.....' वो हकलाता था तो उसके प्यार से 'डर' लगता था

शाहरुख़ को हकला कहने वाले नहीं जानते कि वो उसकी अदाकारी के परफेक्शन के आगे नतमस्तक हो रहे हैं.

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मुबारक
24 दिसंबर 2020 (Updated: 24 दिसंबर 2020, 07:23 AM IST) कॉमेंट्स
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हीरो

एक होता है हीरो. हरदिलअज़ीज़. सबका चहेता. शरीफ भी, सुंदर भी, हंसमुख भी. मां का दुलारा भी और मोहल्ले का प्यारा भी. अच्छाई का प्रतीक भी और बुराई का विनाशक भी. सच की झंडाबरदारी भी करता है, झूठ से पहरेदारी भी. सारे अच्छे काम करता है. हीरोइन से प्यार करता है, बाप के ख़ून का/बहन की अस्मत का बदला लेता है, विलेन से लड़ता है और उसे हरा कर हैप्पी एंडिंग तक ले जाता है कारवां को.
हीरो जैसे ईश्वर का मानवीय संस्करण. उसके अंदर सब कुछ इतना अच्छा-अच्छा होता है कि समझ नहीं आता इसे भगवान घोषित क्यों नहीं किया जा रहा!
सर्वगुणसंपन्न बालक होता है हीरो.
सर्वगुणसंपन्न बालक होता है हीरो.

विलेन 

इससे ठीक उलट होता है अपना विलेन. क्रूर, कमीना, दुष्ट, झूठा, मक्कार, रेपिस्ट, ख़ूनी, शैतान का एजेंट एंड व्हाट नॉट! तमाम बुराइयों का चलता-फिरता कारख़ाना. हीरो के हाथों मरकर अपनी नियति को प्राप्त होने से पहले ऐसा कोई बुरा काम नहीं होता, जो वो नहीं करता. इन दो परस्परविरोधी पात्रों के कंधों पर ही चलता है हमारा हिंदी-सिनेमा संसार. या यूं कहिए चलता था कुछ सालों पहले तक.
फिल्म 'डुप्लीकेट' में शाहरुख़ ख़ान.
फिल्म 'डुप्लीकेट' में शाहरुख़ ख़ान.

फिर आया शाहरुख़ नाम का एक लड़का, जिसने अपने करियर के शुरुआत में ही जोख़िम उठाने का हौसला दिखाया. इंडस्ट्री के तमाम सेट पैटर्न्स को ध्वस्त कर के रख दिया. जिसने भारत में एंटी-हीरो को काबिले-क़बूल बनाया. जिसने लोगों को आदत डलवाई कि प्यार अदाकारी से किया जाना चाहिए, न कि किरदार के उजले या अंधेरेपन से. 'बाज़ीगर', 'अंजाम' और 'डर' में नेगेटिव शेड किरदार निभाकर उसने हीरो-विलेन के फ़ॉर्मूले को डिस्टर्ब कर के रख दिया.

'डर'

'डर',  जिसने शाहरुख़ की एक्टिंग का सिक्का कुछ इस तरह जमाया कि उसके बाद शाहरुख़ ने कभी मुड के नहीं देखा. वो स्टार, सुपरस्टार, ग्लोबल स्टार, किंग ख़ान वगैरह बनते चले गए. आज का दर्शक वर्ग इतना परिपक्व हो चुका है कि उन्हें सिर्फ अभिनय से मतलब है. लेकिन नाइंटीज में और उससे पहले किसी हीरो का सदाचारी ना होना किसी भी फिल्म के लिए घातक माना जाता था.
शाहरुख़ के करियर का मील का पत्थर है 'डर'.
शाहरुख़ के करियर का मील का पत्थर है 'डर'.

छोटे मोटे एक्टर तो प्रयोग कर लिया करते थे लेकिन मुख्यधारा के एक्टर अपनी छवि को लेकर बहुत सजग हुआ करते थे. थोड़ा बहुत 'ग्रे' होना शायद कोई कभी क़बूल भी कर लेता होगा, लेकिन एकदम ही बैड-बॉय प्ले करने की हिम्मत शायद ही किसी ने दिखाई. कभी-कभार किसी ने दिखाई भी तो तो मुंह की खाई. शाहरुख़ ने न सिर्फ ये हिम्मत दिखाई बल्कि लोगों से इस पर पसंदीदगी की मोहर भी लगवाई.
'डर' का रोल शाहरुख़ से पहले जिन्हें ऑफर हुआ था उनमें आमिर ख़ान, संजय दत्त, अजय देवगन और सुदेश बेरी शामिल थे. यहां तक कि सनी देओल को यश चोपड़ा ने चॉइस दी थी कि वो 'राहुल' और 'सुनील' में से कोई भी रोल चुन लें. सनी ने उस वक़्त के ट्रेंड के हिसाब से भले-मानस सुनील का रोल स्वीकार किया और 'राहुल' शाहरुख़ के हिस्से आया. ये नियति ही थी कि उन्हें 'राहुल' बनना था. आगे लगातार बनते रहना था.
डर कई मायनों में मील का पत्थर साबित हुई. एक एंटी-हीरो पर लोगों का कुर्बान हो जाना एक अभूतपूर्व घटना थी और इसने सही मायनों में बॉलीवुड की परिधियों का विस्तार किया.

खौफ़ पैदा करने वाली अदायगी

शाहरुख़ की अदायगी में जो एक मारक इफेक्ट था, उससे बचे रहना लोगों के लिए नामुमकिन हो गया. शाहरुख़ सबके दिलों पर छाता गया.
'वो मेरी है, वो मेरी नहीं है' कहता हुआ, गुलाब की एक-एक पंखुड़ी को हवा में उछालता, ऊंची इमारत की मुंडेर पर चलता जुनूनी शाहरुख़,
खंजर से अपने सीने पर 'किरण' लिखता हुआ वहशी शाहरुख़,
शहर की सड़कों पर सनी से बचने के लिए उसेन बोल्ट की रफ़्तार से भागता कायर शाहरुख़,
क्लाइमेक्स सीन में ख़ून में नहाया हुआ, जूही की आंखों में झांककर आई लव यू कहता दृढ-प्रतिज्ञ शाहरुख़.
हर एक अंदाज़ में उसने अदाकारी को नए आयाम बख्शें. डर लगता था उसकी क्रूर, विकृत हंसी को सुनकर. सिहरन पैदा होती थी.
और उस कालजयी फिकरे को कोई कैसे भुला सकता है? ककककककक किरण..... शाहरुख़ को हकला कहने वाले नहीं जानते कि वो उसकी अदाकारी के परफेक्शन के आगे नतमस्तक हो रहे हैं. हकलाने का उसका अभिनय इतना सहज-सुंदर था कि वो उसकी पहचान बन गया. किसी कलाकार को और क्या चाहिए! कला से कलाकार को जाना जाए, इससे बड़ा प्रशस्तिपत्र और कोई नहीं.
'रमन राघव' में नवाज़ुद्दीन का ग्रे नहीं ब्लैक किरदार था.
'रमन राघव' में नवाज़ुद्दीन का ग्रे नहीं ब्लैक किरदार था.

आज हम रमन-राघव में नवाज़ुद्दीन को एक सनकी सीरियल किलर के रूप में देखकर - उस किरदार के सियाह पहलू पर नाक चढ़ाए बगैर - उसकी एक्टिंग की तारीफ़ करते हैं. किरदार और अदाकारी में ये फ़र्क करना हमें 'डर' ने सिखाया. शाहरुख़ ने सिखाया.
'डर' में एक जगह शाहरुख़ का डायलॉग है,
'प्यार जब हद से गुज़र जाए तो पूजा बन जाता है, और पूजा बहक जाए तो जुनून'.
जुनून! हां जुनून ही तो! इस जुनून के ही सदके शाहरुख़ ने नई ज़मीन पर कदम रखने की हिमाकत की. नए आसमानों में उड़ान भरने का हौसला किया. कामयाबी की नई इबारत लिखी.
उस फीयरलेस शाहरुख़ को फिर से देखने की तमन्ना है, जिसपर शायद अब एक बिजनेसमैन हावी हो चुका है. दुआ है कि एक बार फिर उस वाले शाहरुख़ से एनकाउंटर ज़रूर हो.
'डर' के बेस्ट सीन यहां देख लीजिए:



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