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एक कैप्सूल ने कैसे एशिया से लेकर यूरोप तक नींद उड़ाई?

एक कैप्सूल पर पूरी दुनिया में हंगामा!

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एक कैप्सूल पर पूरी दुनिया में हंगामा!
एक कैप्सूल पर पूरी दुनिया में हंगामा!
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साजिद खान
28 जून 2023 (Updated: 28 जून 2023, 09:32 PM IST) कॉमेंट्स
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ध्यान केंद्रित करने और आलस दूर करने के लिए बना कैप्सूल एक तानाशाह, एक सिविल वॉर और एक अवैध कारोबार का ईंधन बन गया है.
ये कहानी केप्टागोन की है. 1961 में जर्मन कंपनी डिगुसा ने इसको बनाकर बेचना शुरू किया था. फ़ोकस रखने और नींद के बाद की थकावट खत्म करने के लिए. शुरुआती 25 बरसों तक इसका दवा के तौर पर दिया जाता रहा. उसके बाद सारा खेल बदल गया. 1980 के दशक में अरब देशों में इसकी खपत अचानक बढ़ने लगी. पता चला इस कैप्सूल का इस्तेमाल थोक के भाव में कर रहे हैं. वे इसको हाई रहने के लिए ले रहे थे. केप्टागोन नशे का साधन बन चुका था.

फिर आया 1986 का साल. अधिकतर देशों ने इस पर बैन लगा दिया. लीगली ये मार्केट में उपलब्ध नहीं था. लेकिन आदी हो चुके लोगों को किसी भी तरह चाहिए था. वे मुंहमांगी कीमत चुकाने के लिए तैयार थे. खाली मार्केट और बेशुमार पैसा देखकर हेज़बुल्लाह ने हाथ आजमाया. हेज़बुल्लाह लेबनान का चरमपंथी संगठन है. उसने केप्टागोन के मूल रूप में थोड़ा बदलाव कर बेचा. जल्दी ही मिडिल-ईस्ट के देश इसकी चपेट में आ चुके थे.

फिर 2011 में अरब स्प्रिंग शुरू हुआ. सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल-असद के ख़िलाफ़ क्रांति हुई. जल्दी ही ये सिविल वॉर में बदल गया. अराजकता फैली तो ड्रग स्मगलर्स को पैर पसारने का मौका मिला. मोर्चे पर तैनात सैनिकों में कैप्टागोन काफ़ी पॉपुलर था. वे कथित तौर पर डर भगाने के लिए इसको निगल रहे थे. जैसे-जैसे युद्ध आगे बढ़ा, असद सरकार और उनके करीबियों पर आर्थिक प्रतिबंध बढ़ने लगे. पैसे की किल्लत होने लगी. इस कमी को पूरा करने के लिए उन्होंने केप्टागोन पर ध्यान लगाया. उनके पास सारे संसाधन उपलब्ध थे. मसलन, ड्रग बनाने का सामान, एक्सपर्ट्स, फ़ैक्ट्रीज़, बंदरगाह और तस्करी का पुराना रूट. और सबसे अहम चीज़, उनके ऊपर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का दबाव नहीं था.

कुछ ही समय में सीरिया दुनियाभर में स्मगल हो रहे 80 प्रतिशत से अधिक केप्टागोन बना रहा था. दिसंबर 2021 की न्यू यॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, सिर्फ 2021 में अफ़्रीका, एशिया और यूरोप में केप्टागोन की 25 करोड़ से अधिक गोलियां बरामद हुईं. इनकी कीमत हज़ारों करोड़ रुपये में थी. ये वो आंकड़ा था, जिसमें नशीले कैप्सूल को ज़ब्त किया जा सका. इससे कई गुणा अधिक गोलियां बाज़ार में बिक चुकीं थी. शुरुआत से ही इस धंधे से राष्ट्रपति असद के सबसे करीबी लोगों का नाम जुड़ने लगा था. अब बीबीसी अरेबिक और इन्वेस्टिगेटिंग जर्नलिज्म करने वाली संस्था OCCRP ने इसकी पुष्टि कर दी है. उन्होंने वॉट्सऐप चैट्स और दस्तावेजों की स्टडी कर खुलासा किया है. इसमें सामने आया कि इस धंधे के तार बशर अल-असद के सगे भाई और सीरियन आर्मी के कई बड़े अधिकारियों से जुड़े हैं.

तो आइए जानते हैं,

- बीबीसी अरेबिक और OCCRP की रिपोर्ट में और क्या पता चला है?
- और, निरंकुश सरकारों के शासन में ड्रग्स का बिजनेस इतना फलता-फूलता कैसे है?

पहले केप्टागोन के बारे में जान लीजिए.

ये फ़ेनिथीलिन का ब्रांड नेम है. यानी, दवा की दुकानों पर ये केप्टागोन के नाम से मिलता था. इसको बनाने में अलग-अलग केमिकल्स का इस्तेमाल होता है. 1961 में वेस्ट जर्मनी में इसका ईजाद हुआ. डॉक्टर्स इससे डिप्रेशन और ख़राब नींद के शिकार लोगों का इलाज करते थे. फिर 1986 में इस पर बैन लगा. अरब देशों में इसकी मांग थी. इसलिए, बैन के समय बचे स्टॉक को बुल्गारिया के रास्ते मिडिल-ईस्ट भेज दिया गया. वहां इसे हाथोंहाथ लिया गया. नशे के तौर पर. डिमांड बढ़ती चली गई. कुछ समय के लिए बुल्गारिया ने डिमांड पूरी की. फिर सरकार की कार्रवाई हुई. केप्टागोन का प्रोडक्शन रुक गया.

केप्टागोन की गोलियां 

इसी बीच सीरिया में सिविल वॉर चालू हुआ. सिविल वॉर में इसकी खपत और बढ़ी. जो केप्टागोन अवैध तरीके से बन रहा है, उसका फ़ॉर्म्यूला असली दवा से काफ़ी बदल चुका है. अब इसमें नशा तेज़ करने वाले केमिकल्स का अनुपात ज़्यादा होता है. जितना ज़्यादा नशा, उतनी अधिक कीमत. न्यू यॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, ब्लैक मार्केट में केप्टागोन की एक गोली 80 से लेकर 11 सौ रुपये तक की मिलती है. कम कीमत और आसान उपलब्धता के चलते इसे ‘ग़रीबों का कोकीन’ भी कहा जाता है.

केप्टागोन से शरीर में क्या होता है?

सऊदी अरब की राजधानी रियाध के कफ़ा रिहैबलिटेशन सेंटर में मेडिकल डायरेक्टर ग़सन अस्फ़ोर ने अरब न्यूज़ को बताया,

- ये नर्वस सिस्टम को तेज़ी से काम करने के लिए मजबूर करता है.
- ब्लड प्रेशर और हार्टबीट बढ़ जाती हैं.
- कैप्सूल का प्रभाव रहने तक दिमाग तेज़ी से काम करता है. इंसान को मतिभ्रम हो जाता है. उस समय आप अच्छा-बुरा सोचने के काबिल नहीं रह जाते.
- लॉन्ग टर्म में इसके इस्तेमाल से याद्दाश्त जा सकती है, दौरा पड़ सकता है और नर्वस सिस्टम भी ख़राब हो सकता है.
- लिवर और किडनी के फ़ेल होने का ख़तरा भी बढ़ जाता है.

केप्टागोन लेने वाले कौन लोग हैं?

लगभग हर धड़े से आते हैं. इनमें स्टूडेंट्स से लेकर पार्टी जाने वाले और ट्रक ड्राइवर्स तक शामिल हैं. मोर्चे पर तैनात सैनिक भी बाहरी दुनिया से ख़ुद को अलग रखने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं. ट्रक ड्राइवर्स देर तक जगे रहने के लिए लेते हैं. पार्टी करने वाले मज़े के लिए खाते हैं.
नशे का ये कारोबार उन इलाकों में अधिक फल-फूल रहा है, जहां पर कानून-व्यवस्था लचर है या लोगों को इसके दुष्प्रभाव के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है. जैसे, रेफ़्यूजी कैंप्स और झुग्गी-झोपड़ियों वाली बस्तियां. इसके अलावा, आतंकी संगठन इसके ज़रिए लोगों को बरगलाते हैं. वे अपनी बात मनवाने के लिए लोगों को इसका आदी बनाते हैं. ISIS के चंगुल से भागे कुछ आतंकियों ने मीडिया को बताया था कि आत्मघाती हमलावरों को हमले से पहले केप्टागोन खिलाया जाता है. ताकि उनके मन में पीछे हटने का ख़याल ना आए.

ये बिजनेस कितना बड़ा है?

अलग-अलग दावों में सीरिया के केप्टागोन कारोबार की कीमत 50 हज़ार करोड़ से 05 लाख करोड़ रुपये के बीच आंकी गई है.
मिडिल-ईस्ट इंस्टिट्यूट की रिपोर्ट के मुताबिक, 2021 में लगभग 60 हज़ार करोड़ रुपये के सीरियाई केप्टागोन ज़ब्त किए गए थे. ये ज़ब्ती मिडिल-ईस्ट से लेकर सूडान, मलेशिया, इटली और नाइजीरिया जैसे देशों में भी हुई थी. दावा किया जाता है कि ये कुल कारोबार का 5-10 प्रतिशत ही था.
यूके सरकार अपनी रिपोर्ट में इस बिजनेस की कीमत 05 लाख करोड़ रुपये बताती है. ये सीरिया के कुल बजट से कई गुणा ज़्यादा है.
कई रिपोर्ट्स में ये भी दावा किया गया है कि सीरिया में 90 प्रतिशत विदेशी मुद्रा केप्टागोन से आती है.

ये बिजनेस इतना फल-फूल कैसे रहा है?

ग़ौर से देखने पर इसकी दो बड़ी वजहें नज़र आती हैं.

- नंबर एक. बनाने में आसानी.

केप्टागोन बनाना और बेचना आसान है. ड्रग तस्करों का कहना है कि इसको पुरानी वॉशिंग मशीन और ओवेन से भी बनाया जा सकता है. इसके लिए लंबी-चौड़ी फ़ैक्ट्रियां खड़ी करने की ज़रूरत नहीं होती. सीरिया में बनने वाला केप्टागोन मुख्यतौर पर अरब देशों में बेचा जाता है. अधिकतर अरब देश आर्थिक संकट या आंतरिक विद्रोह से जूझ रहे हैं. वहां खरीदार भी आसानी से मिल जाते हैं और इसकी ठीक से निगरानी भी नहीं होती.

- नंबर दो. सरकार का सपोर्ट.

सीरिया सरकार के लिए केप्टागोन पैसा कमाने के साथ-साथ डिप्लोमैटिक लाभ लेने का ज़रिया बन चुका है. बैकडोर से सरकार इस कारोबार को सपोर्ट करती है. सीरियन आर्मी की फ़ोर्थ डिविजन को इसका सूत्रधार बताया जाता है. इस डिविजन की कमान बशर अल-असद के छोटे भाई मेहर अल-असद के पास है. आरोप ये भी हैं कि हेज़बुल्लाह सप्लाई का काम देखती है. हेज़बुल्लाह सीरिया के सिविल वॉर में असद सरकार की मदद कर रही है.

सीरिया सरकार को इससे क्या फायदा है?

एक तो उन्हें आसानी से पैसा मिल रहा है. दूसरा, ड्रग्स की तस्करी रोकने के नाम पर उन्हें अटेंशन भी मिल रहा है. हाल ही में सीरिया को अरब लीग में वापस लिया गया. कई देश सीरिया से संबंध जोड़ने की कवायद भी बढ़ा रहे हैं. इन गतिविधियों की जड़ में केप्टागोन भी है. सीरिया के पड़ोसी देश इस पर लगाम कसने की मांग कर रहे हैं. इसने असद सरकार को अपनी अहमियत साबित करने का मौका दिया है. उन्होंने कोशिश भी की है. अरब लीग में शामिल होने के अगले ही दिन सीरिया के सबसे बड़े ड्रग तस्करों में से एक मरई अल-रमदान मारा गया. वॉर मॉनिटर की रिपोर्ट के मुताबिक, उसे जॉर्डन ने मारा. रमदान जॉर्डन में केप्टागोन भेजने में सबसे आगे था.

अब सबसे ज़रूरी सवाल. हम आज सीरिया के ड्रग्स बिजनेस की कहानी क्यों सुना रहे हैं?

जैसा कि हमने शुरुआत में बताया, बीबीसी अरेबिक और ऑर्गेनाइज़्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट (OCCRP) ने सीरिया के केप्टागोन कारोबार से जुड़े कुछ राज़ खोले हैं. उन्होंने एक साल तक दस्तावेज और वॉट्सऐप चैट्स खंगाले, अधिकारियों के साथ छापेमारी पर गए और क़रीब से पूरा बिजनेस देखा.
उनकी रिपोर्ट में पुष्टि हुई है कि सीरिया के राष्ट्रपति का भाई, सीरियाई सेना के बड़े अधिकारी और हेज़बुल्लाह केप्टागोन के बिजनेस में लिप्त हैं. और, ये बिजनेस अब एशिया के अलावा यूरोप और अफ़्रीका में भी फैल रहा है.

और क्या-क्या पता चला है? 05 पॉइंट्स में समझिए.

- नंबर एक. कई सीरियाई सैनिक कम सैलरी की वजह से इस धंधे में उतरे और फिर उसका हिस्सा बनकर रह गए.

- नंबर दो. हेज़बुल्लाह लंबे समय से इस ड्रग ट्रैफ़िकिंग में लिप्त है. लेकिन वो ख़ुद को फ़्रंट में नहीं रखती.

- नंबर तीन. केप्टागोन बिजनेस को सीरियन आर्मी की फ़ोर्थ डिविजन चलाती है. ये सेना की एलीट फ़ोर्स है. इसे पूरे मुल्क में किसी भी चेकपॉइंट पर बिना चेकिंग के निकलने का अधिकार मिला है. 2018 से इसकी कमान राष्ट्रपति के छोटे भाई मेहर अल-असद के पास है. पश्चिमी देशों ने उसके ऊपर कई प्रतिबंध लगा रखे हैं. वो आम लोगों पर केमिकल हमले कराने का भी आरोपी है.

- नंबर चार. इस बिजनेस के तार लेबनान से भी जुड़े हैं. 2021 में मलेशिया में लगभग 10 करोड़ केप्टागोन की गोलियां बरामद हुईं थी. इनकी कीमत लगभग 15 हज़ार करोड़ रुपये बताई गई. इन्हें मलेशिया के रास्ते सऊदी अरब भेजा जा रहा था. इस मामले में लेबनान पुलिस ने हसन डक़ाऊ को गिरफ़्तार किया था. हसन के पास सीरिया और लेबनान, दोनों देशों की नागरिकता थी. और, वो इस बिजनेस में इतना बड़ा बन चुका था कि उसे ‘केप्टागोन का राजा’ कहा जाता था. अदालत की कार्यवाही में उसने कबूला कि वो सीरियाई सेना के फ़ोर्थ डिविजन के साथ डील कर रहा था. अदालत ने उसे दोषी करार दिया. हालांकि, सीरिया की संलिप्तता पर कोई टिप्पणी नहीं की. बीबीसी ने कोर्ट के डॉक्यूमेंट्स की पड़ताल की. पता चला कि कारोबार के दौरान हसन ने सीरिया में ‘बॉस’ को कई वॉट्सऐप मेसेजेज़ भेजे थे. ये नंबर मेजर जनरल घसन बिलाल का बताया जा रहा है. वो फ़ोर्थ डिविजन में मेहर अल-असद का नंबर टू है.

- नंबर पांच. बीबीसी की रिपोर्ट में जानकारों ने दावा किया है कि सीरिया की अर्थव्यवस्था केप्टागोन के कारोबार पर टिकी है. अगर उस कड़ी को दबा दिया गया तो असद सरकार ताश के पत्तों की तरह ढह जाएगी.

आपने सीरिया की कहानी सुनी. लेकिन पूरी कहानी यहीं तक सीमित नहीं है. इस गेम में लगभग सभी देश शामिल रहे हैं. 20वीं सदी में अमेरिका ने ड्रग्स के बिजनेस का इस्तेमाल कई देशों में अपने पसंद की सरकार बिठाने के लिए किया. तानाशाही शासन वाले देशों में ड्रग्स सरकार की कमाई का साधन बना. सिविल वॉर से ग्रस्त देशों में आतंकी संगठनों ने इससे फायदा उठाया. जहां कहीं भी ड्रग्स का कारोबार फला-फूला, वहां लोकतंत्र ख़तरे में पड़ा या ग़ायब कर दिया गया है. कुछ उदाहरणों से समझते हैं.

- एक कहानी मैनुएल नोरिएगा की है. वो पनामा में पैदा हुआ था. पनामा सेंट्रल और साउथ अमेरिका को जोड़ता है. पनामा नहर से दुनिया के कुल कारोबार का 05 प्रतिशत हिस्सा गुज़रता है. इसलिए, लंबे समय तक अमेरिका ने सैन्य अड्डों के ज़रिए इस पर नियंत्रण रखा. फिर आया 1960 का दशक. कोल्ड वॉर चरम पर था. अमेरिका के पड़ोस में कम्युनिज्म फैलने का ख़तरा बढ़ रहा था. तब उसने एक तरकीब निकाली. अमेरिका ने साउथ अमेरिकी देशों से कुछ नौजवान चुने. उन्हें अपने यहां ट्रेनिंग दी. ये आगे चलकर अपने-अपने देशों में सेना और सरकार में बड़े पदों पर गए. कुछ लड़के कुख्यात तानाशाह भी बने. उनमें से एक नोरिएगा भी था.

1968 में वो पनामा की मिलिटरी इंटेलीजेंस का चीफ़ बना. दूसरी तरफ़ वो अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA का खबरी भी था. नोरिएगा ने जल्दी ही सेना और सरकार पर कंट्रोल कर लिया. फिर वो ड्रग तस्करी का लॉन्चपैड चलाने लगा. इसके बदले में वो तस्करों से पैसे लेता था. इस बारे में CIA को पूरा पता था. 1976 में वो CIA के मुखिया जॉर्ज बुश सीनियर से मिलने भी गया था. 1983 में नोरिएगा पनााम का सुप्रीम लीडर बन गया. उस समय भी अमेरिका ने आंख मूंदे रखा. फिर 1989 में जॉर्ज बुश सीनियर अमेरिका के राष्ट्रपति बन गए. पहले ही भाषण में बोले, हम ड्रग्स के ख़िलाफ़ जंग शुरू कर रहे हैं.

उस समय तक कोल्ड वॉर खात्मे की तरफ़ बढ़ गया था. अमेरिका को नोरिएगा की उतनी ज़रूरत नहीं थी. वो उनके लिए बोझ बनता जा रहा था.
इससे पहले वो 1976 में नोरिएगा से मीटिंग की बात से भी इनकार कर चुके थे. दिसंबर 1989 में उनके आदेश पर यूएस आर्मी ने पनामा में ऑपरेशन चलाया. नोरिएगा को पकड़ कर लाए. उसे 40 बरसों की जेल हुई. बीच में ही उसे फ़्रांस भेजा गया. फिर कुछ समय के लिए पनामा की जेल में रखा गया. 2017 में जेल में ही उसकी मौत हो गई.

- अगला उदाहरण नॉर्थ कोरिया का है. बीबीसी को दिए इंटरव्यू में नॉर्थ कोरिया के एक पूर्व सीक्रेट अधिकारी किम कुक-सोंग ने अंदर की एक कहानी बताई थी. कुक-सोंग 90 के दशक में ऑपरेशंस डिपार्टमेंट में काम कर रहे थे. एक दिन उनके पास आदेश आया. चिट्ठी की शक्ल में. आदेश था कि सुप्रीम लीडर के लिए ‘रेवॉल्युशनरी फ़ंड’ बढ़ाओ. इसके बाद कुक-सोंग विदेश गए. वहां से वे तीन लोगों को साथ लेकर आए. ये लोग क्रिस्टल मेथ नामक ड्रग बनाने में माहिर थे. फिर वर्कर्स पार्टी के एक दफ़्तर में मेथ की फ़ैक्ट्री डाली गई. ड्रग्स बनाकर बाहर के देशों में बेचा गया और फिर उससे मिले पैसे सुप्रीम लीडर के हवाले कर दिए गए. नॉर्थ कोरिया की कमाई का एक बड़ा हिस्सा ड्रग्स और हथियारों की तस्करी से आता है.

- एक उदाहरण तालिबान का भी है. 1994 में अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की स्थापना हुई. इसकी स्थापना के मूल में ड्रग्स की खेती भी थी. जब तालिबान को सत्ता से बाहर किया गया, तब अफ़ीम की खेती अचानक से बढ़ गई थी. गठबंधन सेनाओं को कई बड़े ऑपरेशन चलाने पड़े थे. हालांकि, वे कभी पूरी तरह से इसे खत्म नहीं कर पाए. दावा किया जाता है कि इसी पैसे से तालिबान ने अपना वर्चस्व वापस हासिल किया.

- एक आख़िरी उदाहरण देख लीजिए. 26 जून को म्यांमार में सरकार ने लगभग चार हज़ार करोड़ रुपये की कीमत के ड्रग्स जला दिए. हालांकि, ये कुल प्रोडक्शन का एक हिस्सा भर था. कहा जा रहा है कि ये दिखावे के लिए किया गया. यूएन की रिपोर्ट के अनुसार, मौजूदा समय में म्यांमार की 99 हज़ार एकड़ ज़मीन पर अफ़ीम की खेती होती है. फ़रवरी 2021 में तख़्तापलट के बाद इसमें भारी बढ़ोत्तरी हुई है.
मानवाधिकार संगठनों की रिपोर्ट के मुताबिक, इसे मिलिटरी हुंटा का समर्थन मिला हुआ है. तस्करों को ये पता है कि उन्हें कोई नहीं टोकेगा.
वहीं, मिलिटरी हुंटा का कहना है कि ड्रग्स के बिजनेस में विद्रोही गुट शामिल हैं. वे शांति नहीं चाहते.

ये तो कुछ उदाहरण भर हैं. कोलोम्बिया, मेक्सिको, होंडुरास समेत कई देशों में ड्रग्स पैसे और पॉवर का सबसे बड़ा सोर्स बन गया है. ये लोकतंत्र, शांति और स्थिरता के लिए चुनौती बन चुका है. अगर ज़िम्मेदार संस्थाओं और सरकारों ने इस पर ध्यान नहीं दिया तो ये पूरी दुनिया के लिए परेशानी का सबब बन सकता है.

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