नोबेल लाए डिलन, पर मोक्ष चाहे उनका मन
गर्लफ्रेंड से प्रभावित होकर बदला था धर्म

करीब 50 साल पहले 'ज़माने बदल रहे हैं' (द टाइम्स दे आर चेंजिंग) गाने के साथ बॉब डिलन ने न्यूयॉर्क के कारनेगी हॉल में पहली बार धमाका किया था. और सच्ची में ज़माने बदल रहे हैं. नोबेल के 115 सालों के इतिहास में पहला मौका है जब किसी गायक, बल्कि ये कहिए कि लोक गायक को साहित्य का पुरस्कार दिया गया है. गायक डिलन की आवाज़ में कोई ऐसा जादू नहीं कहा जाता, जादू है उनके गीत के बोलों में. शब्द सीधे-सादे और अर्थ में गहरे. जो गाया वो ठेठ देहाती. उनके पहले रिकॉर्ड के 6 गीतों में से 4 गीत पुराने लोकगीत थे और सिर्फ 2 गाने नए थे.

1964 में बॉब डिलन- यूट्यूब
शुरू-शुरू में देहाती गानों के साथ जब डिलन ने गिटार पकड़ा तो लोकगायकी में इस मिलावट पर कई लोगों ने नाराज़गी ज़ाहिर की. पर जीनियस अपने कानून खुद बनाता है. इस मिलावट ने लोक गीतों को मुख्यधारा से जोड़ दिया. अमेरिका में 50 और 60 के दशक में एक सामाजिक क्रांति सी ला दी.
1941 में परंपरागत यहूदी परिवार में जन्मे रॉबर्ट ज़िम्मरमैन ने कॉफी हाउसों में गाने से शुरूआत की. और इसी दौरान अपना नाम बॉब डिलन रख लिया. ये बात 60 के दशक की है. इसी दौरान बॉब डिलन ने बाइबल के गानों को नए ढंग से लिखकर गाना शुरू कर दिया. गाने थे तो बाइबल के लेकिन नज़रिए में किसी एक धर्म की छाप नहीं थी और शायद इसी वजह से वो गाने सुपरहिट रहे. जैसे कि 'गोट्टा सर्व समबडी' का ये टुकड़ा देखिए:
राजदूत होंगे आप इंग्लैंड और फ्रांस में चाहे खेलते हों ताश या करते हों डांस चाहे दुनिया के चैंपियन हों ज़ोरदार या सोशलाइट हों, जिसके गले में है मोतियों का हार किसी न किसी की सेवा करनी पड़ेगी, सेवा करनी पड़ेगी !
बॉब डिलन के पिता ने कभी भी शो-बिज़ को स्वीकृति नहीं दी. दोनों में संबंध भी मधुर नहीं रहे. शादी के 12 साल बाद बॉब का तलाक भी हो गया. नई गर्लफ्रेंड ईसाई थी और कहा जाता है कि बॉब ने अपनी गर्लफ्रेंड से प्रभावित होकर ईसाईयत अपना ली. हालांकि 'आप किस धर्म को मानते हैं' के प्रश्न पर बॉब डिलन ने कभी कहा कि 'मैं किसी धर्म को नहीं मानता' तो कभी कहा 'मोक्ष' की तलाश है. बॉब के गानों में बंगाल के बाउल गानों का जोग दिखता. 'ब्लोविन् इन द विंड' गाने का ये टुकड़ा:
एक इंसान को कितनी राहों पर चलना होगा इससे पहले कि वो इंसान कहला सके? एक परिंदे को कितने समंदर पार करने होंगे इससे पहले कि वो जमीं पर सुस्ता सके कितनी बार तोप के गोले छोड़े जाएं जिसके बाद उन्हें हमेशा के लिए रोका जा सके जवाब हवाओं में बह रहा है, दोस्त हवाओं में बह रहा है.
लेकिन बॉब डिलन को धार्मिक संगीतकार नहीं बल्कि लोकगीतकार ही माना जाता है. जो कला लोगों से पैदा हुई हो वो ताकतवर भी होती है और लंबे समय तक प्रासंगिक भी बनी रहती है. वो शास्त्रों में सिमट कर नहीं रहती. वो शास्त्रों से लोगों की ओर बहती है. हमारे कबीर और बुल्ले शाह कभी भी शास्त्रों में महदूद होकर नहीं रहे. पूरी दुनिया के एहसास एक जैसे हैं. खुद बुल्ले शाह के शब्दों में 'ना किते भी कोई फर्क सी'.
युद्धप्रेमी राष्ट्र कहे जाने वाले अमेरिका में उन लोगों के लिए जिन्हें जंग की चुल्ल लगी रहती है बॉब ने 'मास्टर्स ऑफ वार' गाया. इस गाने का मुखड़ा कुछ इस तरह से है:
आओ जंग के बादशाहों तुम जिसने बनाई बंदूकें और मौत की जहाज़ें तुम जिसने बनाए बम और छिपे हो दीवारों के पीछे तुम जो छिपे हो टेबलों के नीचे मैं तुम्हें सिर्फ ये बतलाना चाहता हूं कि मैं तुम्हें मुखौटों के पीछे से भी देख पाता हूं
80 के दशक तक बॉब डिलन को मिली-जुली कामयाबी मिलती रही और 1988 में 'नेवर एंडिंग टूर' शुरू किया. और जैसे ही लग रहा था कि अब बॉब का ज़माना गया तभी 1997 में उन्हें 3 ग्रैमी पुरस्कार मिल गए. बॉब डिलन ने किताबें और अपनी आत्मकथा भी लिखी है. लेकिन नोबेल उनको गीत के लिए दिया गया है. नोबेल समिति के शब्दों में 'महान अमेरिकी गीत परंपरा में काव्य की नई शैली लाने के लिए'. कुछ लोगों का मत है नोबेल देने वाले अमेरिका वालों का पक्षपात करते हैं. हमारे गुलज़ार साहब, नोबेल देने वालों की नज़र में, ग़लत देश में और ग़लत भाषा में लिख रहे हैं. और दूसरा ये कि इंटरनेट आने के बाद दुनिया भर में किताबों की दुनिया मुश्किल दौर से गुज़र रही है. बॉब डिलन महान हैं, उनके लिए और पुरस्कार हैं. नोबेल ग़रीब लेखकों के लिए होना चाहिए ताकि लोग किताबों की ओर लौटें, उनकी स्थिति बेहतर हो. ये सब तर्क अपनी जगह सही हैं. लेकिन नोबेल की घोषणा होने के बाद हमें इस नज़रिए से देखना चाहिए कि बॉब डिलन के ज़रिए नोबेल समिति ने लोकगायकों और लोकसाहित्य को अचानक से विश्व पटल पर ला दिया है.
ये स्टोरी हेमंत ने की है.
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