JNU का वो छात्र नेता, जिसने इंदिरा गांधी के मुंह पर इस्तीफा मांग लिया
सीताराम येचुरी के जन्मदिन पर विशेष.
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PTI
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मद्रास में एक तेलुगू ब्राह्मण परिवार में जन्म लिए येचुरी. 12 अगस्त 1952 को. पिताजी इंजीनियर और माता जी सरकारी नौकरी में. हैदराबाद से दसवीं की. फिर दिल्ली आये. बारहवीं में CBSE से देश में नंबर 1 रैंक लाये. सेंट स्टीफेंस से BA किया इकोनॉमिक्स में. MA किया JNU से. दोनों जगह टॉप किया था. इमरजेंसी का दौर आ गया. PhD नहीं हो पाई. क्योंकि ये भी गिरफ्तार हो गए थे. JNU छात्रसंघ के चुनाव में इन्होंने आनंद कुमार को हराया था, जो बाद में आम आदमी पार्टी के बागी नेता बने.
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येचुरी जब 11 साल के थे, तभी से अपने 'विचार व्यक्त' करने लगे थे. उस वक़्त इनको गांव ले जाया गया था. पंडित पूजा करा रहे थे. मंत्र पढ़ रहे थे. ये भड़क गए. बोले ये सब मेरे स्कूल में नहीं होता. वहां हिन्दू, मुस्लिम, क्रिश्चियन सब साथ पढ़ते हैं.
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येचुरी उस दौर में बड़े हुए थे, जब JNU का पढ़ा हर स्टूडेंट माओवादी बनना चाहता था. येचुरी कहते हैं कि ये एक भावुकता थी. कुछ दिन में दिल से निकल जाती थी. उस समय ज्यादातर का वही सपना था. IAS बनो या किसी बड़ी कंपनी में साबुन बेचो. मेरे लिए ये चेतावनी जैसी थी. मैंने पता नहीं कैसे अपना रास्ता चुन लिया.
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इमरजेंसी के दौर में ये फुल नेतागिरी में थे. JNU में क्लास बंद करवा रहे थे. एक लड़की अड़ गयी कि क्लास तो मैं करूंगी. पर इन्होंने करने नहीं दिया. वो लड़की थीं मेनका. जो बाद में संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी के नाम से जानी गईं.
इमरजेंसी के बाद इंदिरा गांधी JNU आईं. 1977 में. उस वक़्त वो प्रधानमंत्री तो नहीं थीं, पर JNU के चांसलर का पद नहीं छोड़ा था. सबके सामने सीताराम येचुरी ने इमरजेंसी की कहानी सुनने शुरू की. फिर छात्रों की डिमांड पढ़नी शुरू की. मांग करते-करते सीधा बोल दिया कि इंदिरा जी, अब आप अपने पद से इस्तीफ़ा दे दीजिये. पहले इंदिरा गांधी मुस्कुरा रही थीं. पर इस बात के बाद उनके चेहरे का रंग बदल गया था. उन्होंने पूरी बात नहीं सुनी और चली गईं वहां से. बाद में इस्तीफ़ा दे दिया.

JNU में इंदिरा गांधी से उनका इस्तीफ़ा मांगते छात्र नेता सीताराम येचुरी
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सीताराम येचुरी ने कम्युनिस्ट पार्टी के लिए कभी जिला स्तर पर भी काम नहीं किया था. फिर भी 32 की उम्र में सेंट्रल कमिटी में आ गए. और 40 में पोलितब्यूरो में. इनको कम्युनिस्ट पार्टी का इंजन कहा जाने लगा.
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सीताराम येचुरी को कई भाषाएं आती हैं. एक बार ये कम्युनिस्ट पार्टी के बड्डे नेता हरकिशन सिंह सुरजीत, ज्योति बसु, राममूर्ति, बसाबपुनईया के साथ चीन गए थे. वहां पर ये ब्रेकफास्ट टेबल पर चारों के साथ चारों की मातृभाषा हिंदी, बंगाली, तमिल और तेलुगू में बात कर रहे थे. ज्योति बसु ने येचुरी को कहा: ये आदमी खतरनाक है. चार भाषाओं में बात कर रहा है. किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा. कई भाषाएं जानने वाले नरसिम्हा राव ने सीताराम येचुरी को अपने कैबिनेट में आने की सलाह दी थी. पर पार्टी आइडियोलॉजी भी कोई चीज होती है. येचुरी नहीं गए.
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2008 में अमेरिका के साथ न्यूक्लिअर डील पर कम्युनिस्ट पार्टी का रुख उसे डुबा ले गया. पर कहने वाले कहते हैं कि अगर सीताराम येचुरी का बस चलता तो वो इस डील के पक्ष में थे. मतलब जरूरत समझते हैं देश की. पर पार्टी-पॉलिटिक्स भी कोई चीज होती है.
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जब बराक ओबामा इंडिया आये 2010 में तो उनके स्वागत-समारोह में येचुरी भी पहुंचे. अब अमेरिका के लिए कम्युनिस्ट भूत और जिन्न की तरह हैं. वहां कम्युनिस्ट राजनीति नहीं होती. उनके सामने खुद का परिचय देते हुए येचुरी ने कहा: इंडिया में कम्युनिस्ट राजनीति में हैं. और इसीलिए मैं यहां भी हूं.
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दिल्ली के वसंतकुंज में रहते थे सीताराम येचुरी. वहां पानी की दिक्कत हो जाती थी. लोग देखते कि अपने हाथ में बाल्टी लेकर टैंकर के सामने लाइन में लगे हैं येचुरी. इनके पास दिल्ली मेट्रो कार्ड भी था. क्योंकि इनकी मम्मी इनकी गाड़ी लेकर चली जाती थीं. तो इनको मेट्रो से जाना पड़ता.
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कम्युनिस्ट पार्टी में दो गुट हैं. एक प्रकाश करात का. दूसरा सीताराम येचुरी का. येचुरी उन पर मजे लेना नहीं भूलते. एक बार उन्होंने प्रकाश करात, वृंदा करात और पिल्लई को 'साहिब, बीवी और गुलाम' कह दिया था. पत्रकारों से भी मजाक करते हैं येचुरी.
अभी देश में क्लास और कास्ट दोनों की जंग हो रही है. कम्युनिस्ट पार्टी अपना जनाधार खो रही है. कांग्रेस भी लुट गई है. लोग आक्रामक नेता खोज रहे हैं. ऐसे में सीताराम येचुरी के ऊपर काफी जिम्मेदारी है. देखना होगा कि अपनी पार्टी को कैसे उभारते हैं. हमारी तरफ से हैप्पी बड्डे!