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बिप्लब देब ने क्यों कहा, रैली में जनता से पूछूंगा- त्रिपुरा का CM रहूं या नहीं?

25 विधायक, एक पूर्व कांग्रेसी और पूरा बवाल.

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त्रिपुरा के सीएम बिप्लब देब ने कहा कि हम लोगों की सरकार है. कोर्ट की नहीं.
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सिद्धांत मोहन
9 दिसंबर 2020 (Updated: 9 दिसंबर 2020, 05:30 PM IST) कॉमेंट्स
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अक्टूबर 2020. बिहार चुनाव जोरों पर था. बीजेपी व्यस्त थी. पार्टी प्रमुख जेपी नड्डा प्रचार में लगे थे. कुछ बीजेपी विधायक उत्तर-पूर्व के राज्य त्रिपुरा से चलकर दिल्ली पहुंचे हुए थे. जेपी नड्डा से मिलने की माँग की. नड्डा से तो मुलाक़ात नहीं हुई. लेकिन इन विधायकों से मिलने आए बीजेपी के जनरल सेक्रेटरी बीएल संतोष. 
विधायकों ने बीएल संतोष से शिकायत की कि त्रिपुरा में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. विधायकों ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री बिप्लब देब मनमाने तरीक़े से काम कर रहे हैं. मंत्रियों और विधायकों की बातों का जवाब नहीं देते हैं. ऐसा ही चलता रहा तो त्रिपुरा में फिर से वामपंथी पार्टियों की सत्ता लौट आएगी, जैसा 2018 के पहले हुआ करता था. ग़ौरतलब है कि 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने लेफ़्ट को हराया था, जो 25 सालों से राज्य की सत्ता में थी. 
बात बीत गयी. फिर आयी तारीख़ 8 दिसंबर. बीजेपी के त्रिपुरा ऑब्ज़र्वर विनोद कुमार सोनकर त्रिपुरा पहुंचे. मकसद था कि विधायकों की बात सुनी जाए, और राज्य में संगठन का कामधाम देखा जाए. सरकारी गेस्ट हाउस में विधायक भी थे, बिप्लब देब भी थे. जितने भी नाराज़ विधायक थे, उन्होंने बिप्लब की मौजूदगी में नारा लगाना शुरू कर दिया, ‘बिप्लब हटाओ. बीजेपी बचाओ’.
बिप्लब को ये नागवार गुज़रा. लेकिन वो करते भी तो क्या? तो उन्होंने कहा,
“मेरे खिलाफ़ जो नारे लगाए गए, मुझे उनका दुःख है. शायद मेरी ग़लती है कि मैं यहाँ की जनता के लिए काम करने और विकास कार्यों के लिए कटिबद्ध हूं.”
इसके बाद बिप्लब ने कहा कि 13 दिसंबर को वह जनमत संग्रह करेंगे. खुल्लमखुल्ला. विवेकानंद मैदान में दोपहर 2 बजे. उन्होंने त्रिपुरा की जनता से आग्रह किया कि वो उस दिन विवेकानंद मैदान में आयें और उन्हें बतायें कि उन्हें सीएम बने रहना चाहिए या नहीं. 
यानी पार्टी के पूरे हंगामे के बीच बिप्लब जनता से राय मांगेंगे. लेकिन इधर ख़बरों की मानें तो जेपी नड्डा और विनोद कुमार सोनकर में बातचीत के बाद ये तय हो गया कि बिप्लब सीएम बने रहेंगे.
लेकिन ऐसा क्यों हुआ कि बीजेपी के विधायकों को अपने ही मुख्यमंत्री से इतनी भयानक शिकायत होने लगी?
इसके पीछे एक नाम है. सुदीप रॉय बर्मन. त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता समीर रंजन बर्मन के बेटे. लम्बे समय तक कांग्रेस में रहे. फिर साल 2016 में तृणमूल कांग्रेस में आ गए. एक साल बाद ही यानी 2017 में बीजेपी में शामिल हो गए. 2018 में अगरतला विधानसभा का टिकट मिल गया. जीत गए.
Sudeep Roy Burman सुदीप रॉय बर्मन

60 सदस्यों की त्रिपुरा विधानसभा में भाजपा के पास 36 विधायक हैं, और भाजपा की समर्थक इंडिजेनस पीपल्स फ़्रंट ऑफ़ त्रिपुरा के पास 8 विधायक. इंडिया टुडे में छपी ख़बर की मानें तो बिप्लब के खिलाफ़ शिकायत करने वाले गुट में कुल 25 भाजपा विधायक हैं, जिन्हें सुदीप रॉय बर्मन लीड कर रहे हैं. 
विधानसभा चुनाव जीतने के बाद बिप्लब की कैबिनेट में सुदीप को एक ठीकठाक पोर्टफोलियो दिया गया. स्वास्थ्य मंत्री का. लेकिन साल 2019 में सुदीप से ये पदभार छीन लिया गया. ख़बरों की मानें तो सुदीप पर पार्टी विरोधी गतिविधियां करने का आरोप लगा था. कहा जा रहा है कि तब से ही सुदीप खार खाए हुए थे.
बात ये भी है कि सुदीप की रवानगी के बाद राज्य में स्वास्थ्य मंत्री के पद पर किसी और की नियुक्ति नहीं हुई, ख़बरें बताती हैं कि 2020 में जब देश भर में कोरोना फैला, तब भी त्रिपुरा के स्वास्थ्य मंत्री की कुर्सी पर कोई नहीं बैठा था. प्रभाष दत्ता की इंडिया टुडे में छपी रिपोर्ट बताती है कि बीजेपी के जनरल सेक्रेटरी इंचार्ज का पद भी ख़ाली है. लम्बे समय तक राम माधव उत्तर-पूर्वी राज्यों का काम देखते थे. सितम्बर में जेपी नड्डा द्वारा किए गए फेरबदल के बाद राम माधव इस पद से चले गए, और तब से ये पद ख़ाली है. 
कोरोना के समय हेल्थ मिनिस्टर का पद ख़ाली होना और पार्टी का एक ज़रूरी पद रिक्त होना भी इस पूरे झमेले को हवा देने की वजह के तौर पर देखा जा रहा है. लेकिन 25 बाग़ी विधायकों के बारे में एक बात और है. ये सभी कांग्रेस और तृणमूल के पुरनिये हुआ करते थे. 2018 चुनाव के समय बीजेपी से जुड़े. और इस समय बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव सुनील देवधर के साथ कई ख़बरों और बातों में इनकी क़रीबी के चर्चे होते हैं. 
आखिर में बता दें कि बिप्लब शब्द का अर्थ होता है क्रांति या विद्रोह. बिप्लब देब हैं कि सामना कर रहे हैं. जनमत संग्रह कराने की बात कर रहे हैं.

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