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मुसलमानों और हिंदुओं के बीच के इस फर्क ने ही मुसलमानों की छवि इतनी खराब की है

बात जब अपने धर्म के हत्यारों की आती है, तो दोनों मज़हब अलग-अलग स्टैंड लेते हैं.

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1 जुलाई 2017 (Updated: 1 जुलाई 2017, 08:04 AM IST) कॉमेंट्स
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(ये आर्टिकल ताबिश सिद्दीकी ने लिखा है)

मुसलमान भाईयों. क्या आपने ग़ौर किया कि 'गौ हत्या' के मामले में भीड़ का कितना भी साथ देने वाले लोग सामने आ जाएं, मगर उनमें से भी बहुत कम लोग ऐसे मिलेंगे, जो ये कहते मिलें आपको कि 'ये जो मार रहे हैं भीड़ बनकर. ये हिंदू नहीं हैं'. कितनी तेज़ी से इस समाज ने स्वीकारा है कि ये 'उन्ही' के लोग हैं, जो 'धार्मिक उन्माद और नफरत' से ग्रस्त हैं. बहुत हैं जो इन्हें बचाने में लगे हैं. मगर उसके बावजूद वो ये नहीं कह रहे हैं कि ये 'हमारा धर्म मानने वाले लोग नहीं हैं'.
इन लोगों ने समस्या पहचान ली है फ़ौरन. भले मोदी जी की कथनी-करनी पर लाख सवाल उठाएं, हम मगर उन्होंने ये तो स्वीकारा है कि ये लोग गौ-रक्षक ही हैं, जो हिंसक हो गए हैं. उन्होंने ये नहीं कहा कि जनाब ये नेपाल की चाल है और ये तो हमारे धर्म के लोग ही नहीं हैं.
मुसलमान भाईयों, आपने कभी ग़ौर किया कि आपके आलिमों और उलेमाओं का रटा रटाया जुमला क्या होता है आतंकवादियों के बारे में? वो कहेंगे ये मुस्लिम हैं ही नहीं. वो कहेंगे ये यहूदी हैं. वो कहेंगे ये अमेरिका की चाल है. आपके आलिम और आप कभी ये ना स्वीकारेंगे कि ये हैं तो मुसलमान ही मगर हां ये हिंसक हो चुके हैं.
समस्या को पहचान लेना समस्या को हल करने की दिशा में पहला और कारगर क़दम होता है. मुस्लिम समाज समस्या तो जानता है, मगर मुंह फेर लेता है. क्या वजह है कि आज तक आतंकवाद ख़त्म न हो सका? यही सबसे बड़ी वजह है. क्यूंकि जब आप स्वीकारेंगे ही नहीं कि आतंकवादी मुस्लिम हैं, तो फिर इसे हल कौन करेगा आख़िर? जब ISIS यहूदी संगठन है, फिर तो अब मुसलमानो की कोई ज़िम्मेदारी ही न बनी उस पर. जब इस तरह मुह फेरा जाएगा, तो फिर समस्या की 'जड़' कहां है, उस तक भला कैसे कोई जाएगा?
प्रतीकात्मक इमेज.
प्रतीकात्मक इमेज.

हिंदू समाज ने कितनी तेज़ी से इस समस्या को पहचाना है. कैसे दुत्कार रहे हैं ये लोग अपने ही लोगों को. आपके समाज से कोई रवीश जैसा इस तरह से अपने ही समाज के ख़िलाफ़ खड़ा हो जाए और कहे कि समस्या हमारा धार्मिक उन्माद ही है, तो क्या आप उसका साथ देंगे? आप उसे तारेक फ़तेह बना देते हैं और उसकी बेटी कितने लोगों के साथ सोती है, या तारेक फ़तेह दारू पीता है, ये कहकर आप उसे दुत्कार देते हैं.
ये बात बहुत ज़रूरी था कहना. क्यूंकि ये जो लोग आपके साथ हाथों में काली पट्टी बांध कर आये हैं, ये आपके धर्म के लोग नहीं हैं. इनके अपने और इनके समाज के सैकड़ों लोग आपके ही धार्मिक आतंकवाद का शिकार हो चुके हैं. मगर आपके यहां सिर्फ कुछ मासूम मारे गए और ये लोग तुरंत भारी संख्या में आपके साथ खड़े हो गए. आपके विरोध को सफ़ल बनाया. ये किस तरह की शिक्षा है इनकी, जो आपकी शिक्षा से एकदम अलग है! ये क्या है इनके मूल में जो इंसाफ़ के हक़ में बोलने, अपने समाज और सरकार से टक्कर लेने पर इन्हें मजबूर कर देता है?
ये क्या है इनके भीतर जो हिंदू राष्ट्र का सब्ज़बाग़ दिखाने के बाद भी कोई इन्हें भ्रमित नहीं कर पाता है. और ये उनके ख़िलाफ़ खड़े हो जाते हैं. जबकि 'शरीया' के ख़्वाब देखने वालों के प्रति आप मौन रहते हैं और मूक समर्थन दे देते हैं? क्या है ये? ये सैकड़ों और लाखों लोग जो न नमाज़ पढ़ें और न रोज़ा रखें, उन्हें आपके यहां मारे जा रहे मासूमों की फ़िक़्र आपके मदरसों के पांच वक़्त नमाज़ी आलिमों से भी ज़्यादा है.
ये किस तरह की शिक्षा है इनकी! ये किस सोच के लोग हैं, जो समस्या तुरंत पहचान गए और लड़ने को खड़े हो गए! ये किस तरह के लोग हैं जो बिना शांति के धर्म को अपनाए, इतनी शांति और इंसाफ की बात करते हैं? ये क्या पढ़ते हैं अपने घरों में, जो आप इनके अगल-बगल रहने के बावजूद आज तक नहीं पढ़ पाए?
सोचिये थोड़ा इस पर और आपको समझ आए तो मुझे भी समझाइये. क्यूंकि अब समस्या आपको भी पहचाननी है. वक़्त आ चुका है.


tabish

ताबिश सिद्दीकी. ताबिश एक लिबरल मुसलमान हैं. अपनी लॉजिकल सोच की वजह से फेसबुक पर फेमस हैं. इसी वजह से आसपास के कट्टर धार्मिक विचारधारा वाले लोगों के निशाने पर रहते हैं. ताबिश का मानना है कि सबसे पहले खुद के घर से शुरुआत करनी चाहिए. इसीलिए अपने ही मज़हब की कुरीतियों पर खुल कर लिखते हैं. फेसबुक पर फॉलोअर्स और विरोधक समान मात्रा में हैं इनके. अक्सर दोनों तरफ  के कट्टरपंथियों के निशाने पर रहते हैं.


 
 
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