The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • Lallankhas
  • Baltimore Plot, plot of unsuccessful assassination of President-elect Abraham Lincoln: Tarikh E58

अब्राहम लिंकन को मारने का वो प्रयास, जिस पर उल्टा लिंकन का ही मज़ाक उड़ गया

अगर ये हत्या की साज़िश सफल हो जाती, तो अमेरिका के दो टुकड़े हो जाते.

Advertisement
Img The Lallantop
लेफ़्ट में अब्राहम लिंकन का वॉशिंगटन डीसी आगमन. राईट में ‘पैसेज थ्रू बाल्टीमोर’ नाम का उनका एक कार्टून.
pic
दर्पण
23 फ़रवरी 2021 (Updated: 23 फ़रवरी 2021, 10:05 AM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
तारीख़. इसमें आपको सुनाते हैं उस तारीख से जुड़े इंटरनेशनल किस्से. आज 23 फरवरी है. और इस तारीख़ का ताल्लुक़ है, अमेरिका के सबसे मक़बूल राष्ट्रपतियों में से एक अब्राहम लिंकन की हत्या के असफल षड्यंत्र से. षड्यंत्र जिसके तार अश्वेत आंदोलन से लेकर अमेरिका के दो टुकड़े होने और सिविल वॉर से जुड़े हैं.
स्टोरी शुरू करने से पहले रेफ़रेंस के लिए बता दें कि अमेरिका में काफ़ी समय से दो ही बड़ी पार्टियां हैं. रिपब्लिकन, ट्रम्प वाली. और डेमोक्रेट्स, जो बाइडन वाली. इन दोनों पार्टियों के प्रभुत्व को ऐसे समझिए कि 1852 के राष्ट्रपति चुनावों से आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ, जब किसी तीसरी पार्टी का उम्मीदवार, अमेरिका का राष्ट्रपति बना हो.
अगर रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स को नहीं चिन्हते तो जान लीजिए, रिपब्लिकन मतलब डॉनल्ड ट्रंप वाली पार्टी और डेमोक्रेट्स मतलब जो बाइडन वाली पार्टी. अगर रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स को नहीं चिन्हते तो जान लीजिए, रिपब्लिकन मतलब डॉनल्ड ट्रंप वाली पार्टी और डेमोक्रेट्स मतलब जो बाइडन वाली पार्टी.


इसी क्रम में 6 नवंबर, 1860 को अमेरिका को देश का पहला रिपब्लिकन प्रेज़िडेंट मिला. ‘अब्राहम लिंकन’ के रूप में.
अमेरिका में उन दिनों दास-प्रथा अपने चरम पर थी. देश दो हिस्सों में बंटा हुआ था. एक वो लोग जो दास-प्रथा के ख़िलाफ़ थे और दूसरे वो जो इसके समर्थन में थे. अगर भौगोलिक आधार पर भी बात करें तो अमेरिका के उत्तरी राज्य दास प्रथा मुक्त थे, क्यूंकि वहां टेक्नॉलोजी थी. वो इंडस्ट्रीयल एरिया था. जबकि दक्षिणी राज्य कृषि प्रधान और गरीब थे, वहां के लोगों के अनुसार उनका दासों के बिना काम नहीं चलना था. रिपब्लिकन पार्टी का उदय दास-प्रथा के विरोध में ही हुआ. ख़ुद लिंकन कहते थे-
मैं प्राकृतिक रूप से ही दास प्रथा विरोधी हूं. अगर दास-प्रथा ग़लत नहीं है, तो कुछ भी ग़लत नहीं है.
उनके चुने जाने के बाद से ही उन्हें धमकी भरे ख़तों की बौछार होने लगी. उनके स्प्रिंगफ़ील्ड वाले एड्रेस पर इस तरह के इतने ख़त आते कि बाद में उनके पर्सनल सेकेट्री जॉन निकलाई ने बताया-
लिंकन को आने वाली मेल्स में क्रूर और अशिष्ट बातें बहुतायत में पाई जाती थीं. उनके ईर्ष्यालु या घबराए दोस्तों से सभी तरह की चेतावनियां आती थीं. लेकिन उन्होंने अपने दुश्मनों के प्रति भी खुद को इतना समझदार बना लिया था कि, उनके लिए ये विश्वास करना मुश्किल था कि राजनीतिक द्वेष के चलते भी हत्या को अंजाम दिया जा सकता है.
दास प्रथा के दो विभत्स रूप. लेफ़्ट में वो दुकान जहां ग़ुलाम बिकते थे. राईट में कोड़ों की मार से चोटिल एक दास. दास प्रथा के दो विभत्स रूप. लेफ़्ट में वो दुकान जहां ग़ुलाम बिकते थे. राईट में कोड़ों की मार से चोटिल एक दास.


आज के दौर में भी अमेरिकी राष्ट्रपति चुने तो नवंबर में ही जाते हैं, 1860 की तरह. लेकिन जहां अब इनका शपथ ग्रहण समारोह (या अमेरिका में जिसे इनोग्रेशन सेरेमनी कहते हैं) जनवरी में होता है, तब मार्च में हुआ करती थी. अब्राहम लिंकन की इनोग्रेशन सेरेमनी भी 4 मार्च, 1861 को हुई थी. यूं 23 फ़रवरी, 1861 की जिस घटना की बात हम करने जा रहे हैं वो अब्राहम लिंकन के प्रेज़िडेंट चुने जाने और प्रेज़िडेंट बन चुकने के बीच की है. इस काल में उन्हें या अमेरिका के किसी भी 'होने वाले प्रेज़िडेंट’ को ‘प्रेज़िडेंट-इलेक्ट’ कहा जाता है. मतलब ‘चुने गए प्रेज़िडेंट’.
8 फ़रवरी, 1861 को लिंकन के राष्ट्रपति चुने जाने के दौरान और उनके ‘प्रेज़िडेंट-इलेक्ट’ रहते-रहते कुछ ‘दास-राज्यों’ ने मिलकर CSA (कॉन्फ़ेडरेट स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका) का निर्माण कर लिया. बाद में CSA में ‘दास-राज्य’ जुड़ते रहे और इनकी कुल संख्या 11 तक पहुंच गई. यही CSA, अब्राहम लिंकन के कार्यकाल के दौरान, अमेरिका के सबसे बड़े सिविल वॉर का कारण बना. इन्हीं CSA के सदस्यों और दास प्रथा के समर्थकों से अब्राहम लिंकन को भी जान का खतरा था.
4 मार्च, 1961 को लिंकन के इनोग्रेशन के दौरान उमड़ी भीड़. 4 मार्च, 1861 को लिंकन के इनोग्रेशन के दौरान उमड़ी भीड़.


11 फ़रवरी, 1861 को अब्राहम लिंकन अपनी पत्नी और तीन बेटों के साथ देश के ‘विसल-स्टॉप-टूर’ पर निकले. मतलब जैसे आजकल चुनाव प्रचार होते हैं न, हवाई दौरे या फ़ौरी दौरे टाइप, वैसा ही अतीत में ‘विसल-स्टॉप-टूर’ का कॉन्सेप्ट होता था. तब हवाई दौरे संभव नहीं थे तो ट्रेन की यात्रा की जाती. और ट्रेन की सीटी की आवाज़ पर इन दौरों का नाम ‘विसल-स्टॉप-टूर’ रखा गया. तब चुनाव प्रचार के वास्ते ऐसे टूर आयोजित होते थे. लेकिन लिंकन का ये ‘विसल-स्टॉप-टूर’ राष्ट्रपति चुने जाने के बाद का था. एक प्रकार से देश की जनता को धन्यवाद देने के लिए. लिंकन ने इस दौरे में स्प्रिंगफ़ील्ड, इलेनॉय से लेकर वॉशिंग्टन डीसी की रेल-यात्रा करनी थी.
यात्रा में जाने से पहले लिंकन ने साफ़ कर दिया था कि उन्हें कोई सुरक्षा नहीं चाहिए और उन्हें ‘दिखावटी प्रदर्शन और तमाशों से नफ़रत है.’
लेकिन फिर भी एलन पिंकर्टन नाम के एक जासूस को अब्राहम लिंकन की संभावित हत्या के प्लॉट पर नज़र रखने के लिए नियुक्त कर दिया गया. इसी दौरान फिलाडेल्फिया और बाल्टीमोर रेलरोड के प्रेज़िडेंट सैम्युअल मोर्स फ़ेल्टन ने एलन पिंकर्टन को लिखे एक गुप्त पत्र में आशंका जताई कि मेरीलेंड राज्य के बाल्टीमोर शहर में लिंकन की हत्या के प्रयास हो सकते हैं. मैरीलैंड राज्य भी बाद में CSA में शामिल हुआ था.
कुछ ऐसा होता था विसल-स्टॉप-टूर. कुछ ऐसा होता था विसल-स्टॉप-टूर. (सांकेतिक तस्वीर)


दिक्कत ये थी कि लिंकन कोई भी रास्ता लेते, वो इस ‘दास-प्रथा समर्थक’ राज्य के बाल्टीमोर शहर से जाता ही जाता. वॉशिंग्टन डीसी के अलावा सिर्फ़ बाल्टीमोर ही ऐसा दास प्रथा समर्थक शहर था, जो प्रेज़िडेंट-इलेक्ट के ‘विसल-स्टॉप-टूर’ के रास्ते में आता था.
किसी भी आशंका से निपटने के लिए पिंकर्टन फ़रवरी की शुरुआत में ही जासूसी करने बाल्टीमोर पहुंच गए और वहां जॉन एच. हचिन्सॉन नाम से अंडर कवर हो गए.
उधर स्प्रिंगफ़ील्ड में इस दौरान लिंकन ने अपनी यात्रा की आइटनरी सार्वजनिक कर दी थी. लिंकन ने घोषणा की कि वो ‘खुले और सार्वजनिक’ तरीक़े से यात्रा करेंगे.
जो चीज़ पिंकर्टन के लिए सबसे ज़्यादा चिंता का विषय थी वो ये कि लिंकन शनिवार 23 फरवरी, की दोपहर 12:30 बजे बाल्टीमोर के कलवर्ट स्ट्रीट स्टेशन पर पहुंचेंगे, और 3 बजे कैमडेन स्ट्रीट स्टेशन से आगे के लिए प्रस्थान करेंगे. कलवर्ट स्ट्रीट स्टेशन से कैमडेन स्ट्रीट स्टेशन की दूरी एक मील से ज़्यादा की थी.
लिंकन के ‘विसल-स्टॉप-टूर’ का रूट. लिंकन के ‘विसल-स्टॉप-टूर’ का रूट.


अपनी खोजबीन के दौरान 17 फ़रवरी तक पिंकर्टन को पता चला था कि कलवर्ट स्ट्रीट में भारी भीड़ इकट्ठा होगी. उसी दौरान एक भगदड़ प्लान की जाएगी. जब ज़्यादातर पुलिस-बल इस भगदड़ को संभालने के लिए दौड़ेगी तब तक एक आदमी आएगा और लिंकन को गोली मार देगा. और अपने साथियों की मदद से भागने में भी सफल हो जाएगा.
पिंकर्टन ने सोचा कि अगर होने वाले प्रेज़िडेंट को किसी तरह 23 फ़रवरी से पहले ही बाल्टीमोर से निकाल लिया जाए, तो प्लॉट असफल हो सकता है. लेकिन डर ये भी था कि अगर इस बदलाव की बात लीक हो गई, तो स्थितियां कहीं अधिक ख़तरनाक हो जाएंगी. दोस्तों और संरक्षकों के साथ जाना फिर भी सेफ़ था. इस स्थिति में तो वो अपेक्षाकृत ज़्यादा अकेले और एक्सपोज़्ड रहेंगे. तो प्लान की गोपनीयता जहां पिंकर्टन के लिए पहली दिक्कत थी वहीं दूसरी दिक्कत, लिंकन को इस प्लान के लिए कनविंस करना थी.
इसके लिए उन्होंने पहले प्रेज़िडेंट इलेक्ट के साथ यात्रा कर रहे नॉर्मन जूड से संपर्क करने की कोशिश की. इलेनॉय के पूर्व सीनेटर नॉर्मन जूड, लिंकन के क़रीबियों में से एक तो थे ही साथ ही पिंकर्टन को भी अच्छे से जानते थे.
लेफ़्ट में एलन पिंकर्टन, राईट में नॉर्मन जूड. लेफ़्ट में एलन पिंकर्टन, राईट में नॉर्मन जूड.


लेकिन जूड, लिंकन को कनविंस नहीं कर पाए. फिर पिंकर्टन ख़ुद लिंकन से मिले. ये 21 फ़रवरी की बात थी. रात के क़रीब सवा दस बजे थे. शहर था फिलाडेल्फिया. जहां से बाल्टीमोर के लिए 4 घंटे का रास्ता था. पिंकर्टन के प्लान के मुताबिक़ लिंकन हो कुछ ही घंटों में बाल्टीमोर के लिए निकलना था. और हैरिसबर्ग का दौरा रद्द करना था. मगर लिंकन ने पिंकर्टन को दो टूक जवाब दे दिया-
मैं आज की रात नहीं निकल सकता. मैंने कल सुबह इंडिपेंडेंस हॉल के ऊपर झंडा फहराने और दोपहर में हैरिसबर्ग में लेजिस्लेचर का दौरा करने का वादा किया है. हालांकि इसके अलावा मेरा कोई और ख़ास काम नहीं है. अगर तुम्हारा कोई भी प्लान मेरे इन वादों के बीच में नहीं आता है तो मुझे कोई दिक्कत नहीं. तुम मुझे कल तक बता देना कि तुम्हारा दूसरा प्लान क्या है.
22 की सुबह 8 बजे जूड और पिंकर्टन फिर मिले और नया प्लान डिस्कस हुआ. और फिर जो हुआ वही प्लान में तय किया गया था. शाम के क़रीब पांच बजे ‘जॉन हाउस’ नाम के होटल में लिंकन का पेंसिलवेनिया के प्रमुख लोगों के साथ डिनर शेड्यूल था.
22 के डिनर की ताकीद करता ‘जॉन हाउस’ के बाहर लगा ये बोर्ड. 22 के डिनर की ताकीद करता ‘जॉन हाउस’ के बाहर लगा ये बोर्ड.


पौने छह बजे के क़रीब जूड के इशारे पर वो बीच डिनर में ही थकान का बहाना बनाकर उठ लिए. ऊपर अपने कमरे में अपना रूप बदला. जिसके बारे में उन्होंने बाद में बताया भी-
न्यू यॉर्क में एक दोस्त ने मुझे एक नई ‘बीवर हेट’ दी थी. उसके भीतर एक नरम ऊन की टोपी भी थी. इसे मैंने पहले कभी नहीं पहना था. इसके अलावा मैंने एक पुराने ओवरकोट को अपने साथ रखा, और इस ऊनी टोपी को अपनी जेब में डाल दिया. मैं बिना किसी को शक कराए पीछे के दरवाजे से बाहर निकल गया. फिर मैंने ‘ऊनी टोपी’ पहनी और अपने दोस्तों के साथ जा मिला. मुझे अजनबी नहीं पहचान पाए, क्योंकि मैं वही पुराना आदमी नहीं रह गया था.
संभावित साजिशकर्ताओं के बीच बातचीत न होने पाए इसके चलते पिंकर्टन के इशारे पर बाल्टीमोर की टेलीग्राफ लाइनों को काट दिया गया था. इस बीच, लिंकन एक विशेष ट्रेन से हैरिसबर्ग से निकल गए और मध्य रात्रि के दौरान गुप्त रूप से बाल्टीमोर पहुंच गए. बाल्टीमोर शहर के एक क़ानून के मुताबिक़ शहरी क्षेत्र में रात में ट्रेन नहीं चल सकती थी. इसलिए राष्ट्रपति और उनके साथियों को घोड़ों के माध्यम से शहर पार करवाकर दूसरी ट्रेन में बिठाया गया.
एक बार जब लिंकन बाल्टीमोर से सुरक्षित गुज़र गए तो पिंकर्टन ने फिलाडेल्फिया, विलमिंग्टन और बाल्टीमोर रेलमार्ग के अध्यक्षों को एक-एक तार भेजा. जिसमें लिखा था-
बेर ने गुठली को सुरक्षित रूप से पहुंचा दिया है.
इसके तुरंत बाद वॉशिंग्टन डी. सी. तक पहुंचने के लिए लिंकन के प्रयास, व्यंग्य का कारण बन गए. 23 फरवरी, 1861 को ‘द न्यू यॉर्क टाइम्स’ के आर्टिकल में ये बात छपना और प्रेज़िडेंट-इलेक्ट का उड़ाया जाना और भी ज़्यादा बुरा था. क्यूंकि ये नकारात्मक रिपोर्ट एक ऐसे अख़बार में छपी थी, जिसे तब ‘रिपब्लिकन अखबार’ कहा जाता था.
लिंकन की मज़ाक़ उड़ाने में मीडिया सबसे आगे था. लिंकन का मज़ाक़ उड़ाने में मीडिया सबसे आगे था.


इससे जुड़ा, कार्टूनिस्ट एडाल्बर्ट जे. वॉल्क का कार्टून ‘पैसेज थ्रू बाल्टीमोर’ काफ़ी प्रसिद्ध हुआ. ‘बाल्टीमोर सन’ नाम के लोकल न्यूज़पेपर में तो यहां तक लिख दिया गया कि-
यदि हमारे मन में लिंकन के लिए कोई आधिकारिक या व्यक्तिगत सम्मान होता तो इस घटना से वो भी ध्वस्त हो जाता.
वैसे अगर उस दिन यानी लिंकन के प्रेज़िडेंट बनने से पहले ही अगर उन्हें कुछ हो जाता तो अमेरिका का इतिहास बिलकुल अलहदा होता. ख़ास तौर पर दास प्रथा को लेकर उन्होंने बाद में जो क़ानून बनाए, जिस समझदारी और सूझबूझ के साथ सिविल वॉर ख़त्म की, वो सब या तो देखने को नहीं मिलता, या फिर इतिहास में उस तरह से क़तई दर्ज नहीं होता, जैसे आज दर्ज है.
1861 में जब वो अपने बीस वर्षों से अधिक के निवास स्थान स्प्रिंगफ़ील्ड से ‘विसल-स्टॉप-टूर’ के लिए निकले थे तो उन्होंने बहुत ही भावुक भाषण दिया था. गोया वो जानते थे कि उनकी हत्या होना अवश्यंभावी है.
लिंकन द्वारा 1961 में स्प्रिंगफ़ील्ड में दिया गया विदाई भाषण. लिंकन द्वारा 1861 में स्प्रिंगफ़ील्ड में दिया गया विदाई भाषण.


उन्होंने कहा-
इस विदाई के दौरान मेरे दुख को, मेरी मनोस्थिति को कोई नहीं समझ सकता. इस जगह, और इन लोगों की दयालुता पर मेरा सब कुछ क़ुर्बान है. अब जबकि मैं इस जगह को छोड़ रहा हूं तो मैं नहीं जानता कि कब और क्या मैं यहां वापस आऊंगा?
1865 में उनकी हत्या कर दी गई थी.

Advertisement