प्रधानमंत्री मोदी को 'भाई' कहने वाली बलोच महिला की हत्या किसने की?
टोरंटो में करीमा बलोच की लाश मिली है.
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करीमा बलोच रविवार, 20 दिसंबर से लापता थीं. एक दिन बाद उनकी लाश मिली.
आज पढ़िए एक बलोच महिला की कहानी. जिन्होंने चार बरस पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राखी का एक पैगाम भेजा था. भाई कहकर उनसे मदद मांगी थी. उस महिला की हत्या हो गई है. वो पाकिस्तान से बचने के लिए विदेश भागी थीं, मगर वहां भी बच नहीं पाईं. उन्हें एक झील में डुबोकर मार डाला गया है. ये क्या मामला है? विस्तार से बताते हैं.इस एपिसोड की शुरुआत करते हैं कुछ आपबीतियों से. एक जनाब हैं, मलिक सिराज अकबर. वतन, बलोचिस्तान. पेशे से पत्रकार. बलोचिस्तान की पहली ऑनलाइन न्यूज़ एजेंसी 'बलोच हाल' के फाउंडर. पिछले कई साल से सिराज पाकिस्तान से भागकर अमेरिका में रह रहे हैं.

CPJ में आर्टिकल लिखकर उन्होंने पाकिस्तान छोड़ने की वजह बताई थी.
नवंबर 2011 में इन्होंने CPJ, यानी 'कमिटी टू प्रॉटेक्ट जर्नलिस्ट्स' के लिए एक लेख लिखा. CPJ पत्रकारों की सुरक्षा के लिए काम करने वाला एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है. इसमें छपे सिराज के लेख का शीर्षक था- वाई आई फ़्लैड पाकिस्तान. माने, मैं पाकिस्तान से क्यों भागा? इसमें मलिक सिराज ने अपनी जो आपबीती बताई है, उसका एक छोटा अंश है-
बलोचिस्तान की राजधानी है क्वेटा. 2009 में मैंने क्वेटा में तालिबान की मौजूदगी पर रिपोर्ट्स लिखीं. मैंने बताया कि बलोच मूवमेंट को ख़त्म करने के लिए पाकिस्तानी सेना किस तरह तालिबान को सपोर्ट कर रही है. इसके बाद मुझे जान से मारने की कई धमकियां मिलीं. जनवरी 2010 में मुझे एक कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेने दिल्ली जाना था. इसके लिए भी मुझे धमकियां दी गईं. फिर भी मैं दिल्ली आया. वहां से लाहौर लौटा, तो पाकिस्तानी सीक्रेट सर्विस ने मुझे अगवा कर लिया. मेरे एक दोस्त ने बहुत पहुंच लगाकर मुझे रिहा करवाया.सिराज के बाद अब सुनिए फतेह जान की आपबीती
मैं रिहा तो हो गया, मगर मेरी ज़िंदगी बदल गई. मुझे ग़ुमनाम फोन आने लगा. 24 घंटे मुझपर नज़र रखी जाने लगी. दिन-रात धमकियां मिलने लगीं. मैं जानता था कि अब बलोचिस्तान में रहा, तो मारा जाऊंगा. इसीलिए मैं अमेरिका भाग आया. मेरे साथ जो हुआ, वो बलोचिस्तान में आम बात है. वहां पत्रकार दिन-रात सेना और जासूसों के साथ लुकाछिपी खेलते हैं. जान दांव पर लगाकर काम करते हैं. उन्हें मारकर कहीं किसी वीराने में फेंक दिया जाता है.
फतेह बलोचिस्तान में पत्रकार थे. करियर अच्छा चल रहा था उनका, मगर उन्हें सब छोड़कर विदेश भागना पड़ा. 2017 में 'दी डिप्लोमैट' से बात करते हुए उन्होंने पाकिस्तान से भागने की वजह कुछ यूं बताई-
मैंने अपने तीन सहकर्मियों को मारे जाते हुए देखा है. उन्हें BMDT नाम के एक आतंकी संगठन ने मारा. ये बलोच नैशनलिस्ट मूवमेंट को दबाने के लिए खड़ा किया गया एक ऑर्गनाइज़ेशन है. पाकिस्तान में मेरा करियर अच्छा चल रहा था. मगर कोई भी करियर इतना बड़ा नहीं कि उसके लिए जान दी जाए. सो मैं पाकिस्तान से भाग आया. अब मैं जर्मनी के एक रिफ़्यूजी कैंप में रह रहा हूं, मगर इतना सुकून है कि सुरक्षित हूं.सिराज और फतेह, दोनों जान बचाने के लिए विदेश भाग आए. लेकिन क्या पाकिस्तान से भाग जाने पर जान का ख़तरा मिट जाता है? जवाब है, नहीं. इसकी मिसाल हैं, साजिद हुसैन. वो बलोचिस्तान में पत्रकार थे. वहां पाकिस्तानी सेना और ISI के हाथों होने वाली बलोचों की किडनैपिंग और मर्डर पर रिपोर्ट करते थे. इस ईमानदार रिपोर्टिंग के कारण साजिद को धमकियां मिलने लगीं. 2012 में उन्हें अपनी पत्नी और दो बच्चों को छोड़कर विदेश भागना पड़ा. विदेश आकर भी साजिद ने पत्रकारिता नहीं छोड़ी. वो बलोचिस्तान में हो रहे पाकिस्तान प्रायोजित नरसंहार के बारे में लगातार लिखते-बोलते रहे. साजिद को स्वीडन में असाइलम मिल गया. मार्च 2020 में एक रोज़ यहीं से साजिद लापता हो गए. फिर मई 2020 में एक नदी के किनारे उनकी लाश मिली.

मई 2020 में स्वीडन में साजिद हुसैन की लाश मिली.
किसने मारा था साजिद को? इसके जवाब में आपको RSF, यानी रिपोर्टर्स विदआउट बॉडर्स के एक बयान का हिस्सा सुनाता हूं. ये बयान RSF ने साजिद के लापता होने के बाद जारी किया था. इसमें स्वीडिश पुलिस से अपील की गई थी कि वो साजिद की तलाश करते हुए ये आशंका ध्यान में रखें कि शायद उन्हें किडनैप किया गया है. और ये किडनैपिंग करवाई है पाकिस्तानी खुफ़िया एजेंसी ISI ने. इस बयान में RSF ने लिखा था-
हमने एक कॉन्फ़िडेंशल जानकारी हासिल की है. इसके मुताबिक, पाकिस्तान से भागकर विदेश आए ऐसे लोग जो वहां की सरकार और सिस्टम की आलोचना करते हैं, उनकी एक लिस्ट तैयार की गई है. ये लिस्ट ISI के भीतर सर्कुलेट हो रही है.शायद इसी हिटलिस्ट में थीं करीमा बलोच. जिनके मारे जाने की ख़बर अब कनाडा से आई है.
कौन थीं करीमा?
बलोचिस्तान की आज़ादी से जुड़ा एक छात्र संगठन है, BSO. पूरा नाम, बलोच स्टूडेंट्स ऑर्गनाइज़ेशन. पाकिस्तानी हुकूमत इसे आतंकवादी संगठन बताती है. मगर BSO ख़ुद को स्वतंत्रता सेनानियों का गुट कहता है. इसी BSO की सदस्य थीं करीमा. 2014 में BSO के लीडर ज़ाहिद बलोच को एकाएक गायब कर दिया गया. इसके बाद 29 साल की करीमा BSO की अध्यक्ष बनीं. जल्द ही उनका नाम बलोचिस्तान की सबसे प्रभावी ऐक्टिविस्ट्स में लिया जाने लगा. वो बलोचिस्तान की आज़ादी के लिए मुहिम चलातीं. वहां हो रहे नरसंहार के लिए पाकिस्तानी सरकार और सेना पर उंगली उठातीं. महिलाओं की बराबरी, उनके अधिकारों के लिए संघर्ष करतीं.

2016 में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी.
बलोचिस्तान में इस तरह का काम करने वालों का मुकद्दर तय है. वो या तो हमेशा के लिए गायब कर दिए जाते हैं. या कहीं किसी सड़क या दरिया किनारे उनकी लाश बरामद होती है. या वो किसी बम धमाके या टारगेटेड किलिंग का शिकार होते हैं. या फिर उन्हें मनमाने इल्ज़ाम लगाकर जेल भेज दिया जाता है. करीमा के आगे भी ये ही ख़तरे थे. उन्हें जान से मारने की कोशिश भी हुई, मगर वो बच गईं. इसके बाद करीमा करीब एक साल तक अंडरग्राउंड रहीं. फिर नवंबर 2015 में कुछ दोस्तों और ऐक्टिविस्ट्स की मदद से वो पाकिस्तान से भागकर कनाडा पहुंचीं.
2016 में यहीं कनाडा से उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राखी पर एक पैगाम भेजा. इसमें करीमा ने मोदी को भाई का दर्जा देते हुए अपील की थी-
हमारे अनगिनत भाई लापता हैं. बलोचिस्तान की बहनें अपने भाइयों के लौटने का इंतज़ार कर रही हैं. डर है कि ये इंतज़ार कभी ख़त्म नहीं होगा. हमारे ग़ुमशुदा लोग कभी लौटकर नहीं आएंगे. बलोचिस्तान की आवाम आपसे अपील करती है. एक भाई के नाते आप अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हमारे यहां हो रहे नरसंहार और युद्धअपराध का मुद्दा उठाइए. हम अपने लिए ख़ुद लड़ लेंगे. बस हम इतना चाहते हैं कि आप हमारे संघर्ष की आवाज़ बनिए.करीमा की इस अपील के पीछे वजह थी, नरेंद्र मोदी का एक भाषण. 15 अगस्त, 2016 को लाल किले से दिए अपने इस भाषण में मोदी ने बलोचिस्तान का मसला उठाया था. इसके बाद ही करीमा ने मोदी से गुहार लगाई थी.
BBC की लिस्ट में नाम
2016 में ही BBC ने करीमा को दुनिया की 100 सबसे प्रभावी महिलाओं की लिस्ट में रखा था. तब करीमा ने कहा था कि वो इस सम्मान को बलोचिस्तान के फ्रीडम स्ट्रगल में शामिल तमाम महिलाओं के साथ साझा करना चाहती हैं.

BBC की लिस्ट में करीमा बलोच.
कनाडा में रहकर भी करीमा ने फ्री बलोच मूवमेंट के लिए आवाज़ उठाना बंद नहीं किया. बल्कि यहां रहकर इंटरनैशनल प्लेटफॉर्म्स पर बलोच मूवमेंट का मसला उठाना उनके लिए और ज़्यादा आसान हो गया. इसी मुखरता के चलते 2018 में उन्हें UN मानवाधिकार काउंसिल के सम्मेलन में बुलाया गया. यहां करीमा ने पाकिस्तान की लैंगिक असामनता पर जो भाषण दिया, उसका एक हिस्सा पढ़िए-
अगर परिवार की इज़्ज़त के नाम पर कोई महिला अपने भाई के हाथों मारी जाती है, तो इस्लामिक क़ानून उस अपराधी को परिवार के साथ मिलकर मामला रफ़ा-दफ़ा करने की इज़ाज़त देता है. ज़्यादातर मामलों में परिवार उस हत्यारे को माफ़ कर देता है. एक पुरुष के बयान को दो महिलाओं की गवाही के बराबर माना जाता है. ऐसे में बलात्कार के ज़्यादातर केस भी विक्टिम के साथ न्याय नहीं करते. इस्लामिक क़ानून की इन बुनियादी ख़ामियों के अलावा पाकिस्तान के कट्टर धार्मिक संगठनों ने पूरे पाकिस्तान की महिलाओं का दमन किया हुआ है. बलोचिस्तान में तो हालात और भी ख़राब हैं.ये भाषण सुनकर आप समझ गए होंगे कि करीमा किस तरह इंटरनैशनल प्लेटफॉर्म्स पर पाकिस्तान को शर्मसार करती थीं. शायद इसी वजह से वो कइयों की आंखों में चुभ रही होंगी. और शायद इसीलिए करीमा की हत्या कर दी गई.
जानकारी के मुताबिक, 20 दिसंबर को दोपहर करीब 3 बजे के बाद से ही करीमा लापता थीं. टोरंटो पुलिस स्थानीय लोगों की मदद से उन्हें तलाशने में लगी थी. फिर ख़बर आई कि एक झील के किनारे उनकी लाश मिली है. ठीक उसी तरह जैसे मई 2020 में बलोच पत्रकार साजिद हुसैन की लाश मिली थी.
दूसरों के लिए आवाज़ उठाती थीं करीमा
क्या अजीब नियति है. अगस्त 2020 में कराची यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाला एक लड़का हयात बलोच मारा गया. कनाडा में बैठीं करीमा ने उसकी तस्वीर साझा करते हुए ट्वीट किया. लिखा कि हयात की तस्वीर पाकिस्तानी फोर्सेज़ के हाथों मारे जा रहे हर एक बलोच की कहानी है. इस ट्वीट के चार महीने बाद आज ख़ुद करीमा की तस्वीरें ट्वीट हो रही हैं. सोशल मीडिया पर उन्हें श्रद्धांजलि दी जा रही है.

करीमा बलोच बलोचिस्तान के लिए काफी मुखर थीं.
बलोचिस्तान अपने क्षेत्रफल में पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है. क़ुदरत ने इस जगह को बड़ी दौलतमंद बनाया. नैचुरल गैस, सोना, यूरेनियम, तांबा, ख़ूब सारे संसाधन दिए. बलोचों की शिकायत है कि उनकी ज़मीन में मौजूद संसाधनों से पाकिस्तान कमाता है. मगर इस कमाई में बलोचों को हिस्सा नहीं मिलता. सरकार उन्हें गरीब बनाए रखने पर अड़ी हुई है. उनकी सांस्कृतिक पहचान को ख़त्म करने में जुटी है. बलोच इस शोषण का विरोध करते हैं. आज़ादी मांगते हैं. इसे दबाने के लिए पाकिस्तानी सेना 'किल ऐंड डंप' का फॉर्म्यूला अपनाती है. माने, लोगों को अगवा कर लेना और उनकी लाश कहीं फेंक जाना. न केवल बलोचिस्तान में, बल्कि विदेशों में भी बलोच मारे जा रहे हैं. ये सब खुलेआम हो रहा है, मगर इंटरनैशनल कम्यूनिटी चुप है.