The Lallantop
Advertisement

अरावली पर्वत श्रृंखला: अफ़सोस कि देश की सबसे बड़ी इमरजेंसी कभी खबर नहीं बन पाई

बोनस में पढ़िए उस कथित हनुमान की कहानी, जो दिल्ली सहित पूरे नॉर्थ इंडिया के लिए खतरा बन गया है!

Advertisement
Img The Lallantop
सभी तस्वीरें इसी लेख की तस्वीरों का कोलाज हैं.
pic
दर्पण
25 अक्तूबर 2018 (Updated: 16 मार्च 2019, 12:19 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

अरावली के आखिरी दिन ऐसा जरूर होगा एक अवतारी पुरुष आएंगे एक नबी पुकारेगा लेकिन बात ऐसी है कि वे दोनों आई फोन पर व्यस्त होंगे उन्हें न धनिए, न हरी मिर्च, न मेथी, न आलू, न टमाटर, न जीरे और न हरे चने की जरूरत होगी क्योंकि उनके बैग मेंमैक'डी के बर्गर, मैकपफ और सालसा रैप होंगे.

अरावली का इसके अलावा यहां और क्या अंत होगा?




त्रिभुवन की कविता ‘अरावली के आखिरी दिन’ का ये आखिरी हिस्सा है. इसे सुप्रीम-कोर्ट के द्वारा दिए गए एक निर्णय, एक तंज़, एक फटकार और एक हिदायत के साथ जोड़ के देखने की ज़रूरत है. यकीन कीजिए ये एक इमरजेंसी है और बाकी किसी भी राजनैतिक या आर्थिक इमरजेंसी से बड़ी है... बहुत बड़ी!
इसके बारे में बात करेंगे लेकिन चलिए पहले आपको एक बहुत पुरानी कहानी सुनाते हैं. कितनी पुरानी? साठ करोड़ साल पुरानी. अरावली की कहानी.
पढ़ें: एक नन्हा खरगोश लू की बौछार में हांफते-हांफते थक जाएगा



# अरावली की पहाड़ियां –

अरावली. ये नाम कैसे पड़ा? इसके बारे में जितने मुंह उतनी बातें और जितनी कलम उतनी किताबें. जैसे कोई कहता है कि ये संस्कृत के दो शब्दों की संधि से मिलकर बना है. वो दो शब्द हैं – अरा और वली. अरा मने रेखा और वली मने पर्वत या ऊंचाई. यूं अरावली मतलब ऊंचइयो से बनी हुई एक लाइन या रेखा.
लेकिन कुछ रेफरेंस
कहते हैं कि अरावली दरअसल आडावली का अपभ्रंश है. और आडावली इसलिए क्यूंकि ट्रेवल करते वक्त ये पहाड़ियां यात्रियों के आड़े आती थीं.
एक और अकाउंट कहता है कि चूंकि इसका आकार आरी की तरह है इसलिए इसे आरीवली कह दिया गया और ये आरीवली धीरे-धीरे अरावली हो गया. एक ही दिन में इसलिए नहीं क्यूंकि योगी आदित्यनाथ नाम का कोई कैटलिसीस अनुपस्थित था.
महेन्दरो मलयः सह्यः शुक्तिमान् ऋक्षपर्वतः विन्ध्यश्च पारियात्रश्च सप्तैते कुलः पर्वताः
ये भारत के 7 पुराने पर्वतों को गिनाती एक बहुत पुरानी सूक्ति है. इसलिए ही संस्कृत में है. इसमें हिमालय का नाम नहीं है. लेकिन पारियात्र का नाम है. कल का पारियात्र ही आज का अरावली है. ये पारियात्र दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है. कितना पुराना है ये? आप इसे ऐसे समझें कि यदि हिमालय की उम्र 12-13 साल है तो इसकी 90-95. तभी तो अरावली-हिमालय को दादा-पोते की जोड़ी भी कहा जाता है.

ये एक वलित पर्वत श्रृंखला है. अब आप पूछेंगे कि वलित मने? देखिए पहाड़ों को खोदकर ख़त्म करने में तो कुछ सालों और मानव की बेलगाम महत्वाकांक्षाओं के अलावा ज़्यादा कुछ नहीं लगता लेकिन इनके बनने का हिसाब-किताब माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होए सरीखा है.
तो पृथ्वी के अंदर की उथल-पुथल के चलते जब धरातल की चट्टानें मुड़कर पर्वत बनाती हैं तो वे वलित पर्वत (Fold mountain) कहलाते हैं.
आप टेक्टॉनिक प्लेट्स के बारे में तो सुनते रहते होंगे. जिनके चलते गाहे-बगाहे भूकंप आते रहते हैं. बस उन्हीं प्लेटों के चलते अरावली पर्वत श्रृंखला बनी. इसलिए ये एक वलित पर्वत श्रृंखला की श्रेणी में आती है.


#अरावली से जुड़े कुछ और फैक्ट्स –

# 692 किलोमीटर लंबी अरावली पर्वत श्रृंखला भारत के 4 राज्यों (हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, गुजरात) में फैली है लेकिन इसका लगभग 80% भाग राजस्थान में है. राजस्थान में अरावली को आडावाळा डूंगर कहा जाता है. ये रेंज स्पेसिफिकली गुजरात के खेड़ ब्रह्मा से शुरू होकर अजमेर, जयपुर होती हुई हरियाणा के दक्षिणी भाग में प्रवेश करके दिल्ली के दक्षिणी भाग तक जाती है. दिल्ली पहुंचते-पहुंचते इसकी ऊंचाई कम होते-होते मैदान में बदल जाती है.
# मेनली तीन भागों में बंटी है अरावली रेंज - जरगा रेंज, हर्षनाद रेंज, दिल्ली रेंज.
स्क्रीन शॉट - गूगल अर्थ. स्क्रीन शॉट - गूगल अर्थ.

# अरावली में ज़्यादातर जंगल इसके दक्षिण के पहाड़ों में पाए जाते हैं. उत्तर की पहाड़ियां पथरीली हैं.
# सिरोही से शुरू होकर खेतड़ी तक अरावली अबाध्य है और आगे उत्तर में छोटी-छोटी श्रृंखलाओं के रुप में दिल्ली तक फैली हुई है.
अरावली की पहाड़ियां अरावली की पहाड़ियां - गूगल मैप्स

# इसकी सबसे ऊंची चोटी गुरुशिखर (1722 मीटर) है. और ये माउंट आबू में है.
# अरावली पर्वत का पश्चिमी भाग मारवाड़ एवं पूर्वी भाग मेवाड़ कहलाता है. यहीं से तो क्रमशः मारवाड़ी और मेवाड़ी आते हैं.
गुरुशिखर (तस्वीर - http://www.traveldglobe.com) गुरुशिखर (तस्वीर - http://www.traveldglobe.com)

# अरावली प्री-क्रैम्बियन काल में बनी पहाड़ी है. प्री-क्रैम्बियन काल मतलब ऐसा लगा लीजिए कि जब कहीं पे कुछ नहीं भी नहीं था, यही था यही था.
# अरावली पर्वत श्रृंखला के आर-पार जाने के लिए मुख्यतः पांच प्रमुख दर्रे हैं जो इसकी नाल कहलाते हैं. दो पहाड़ों के बीच से जो आसान रस्ता बनता है और जिसके लिए पहाड़ चढ़ने की ज़रूरत नहीं होती वे रास्ते दर्रे कहलाते हैं.
# जोधपुर का मेहरानगढ़, अजमेर का तारागढ़ और दिल्ली का राष्ट्रपति भवन इसी अरावली पर्वत श्रृंखला के अलग-अलग पहाड़ों के ऊपर बना हुआ है.
# दिल्ली के पास के इसके सिरे को धीरज कहा जाता है, जो दरअसल दी रिज (The Ridge) का बिगड़ा हुआ रूप है.


# क्यूं अरावली के बारे में बातें होनी चाहिए –

# नीचे गूगल मैप का एक स्क्रीन शॉट देखिए. थार का रेगिस्तान दिल्ली या भारत के पूर्व तक नहीं पहुंचा थैंक्स टू अरावली.
Aravalli - 1
# इसकी बनावट इतनी परफेक्ट है कि एक तरफ तो थार का रेगिस्तान फैलने नहीं देती वहीं मानसून की दिशा के समानांतर होने के चलते उसपर कोई असर नहीं करती और उसे अबाध्य चलने देती है.
# इकोसिस्टम को बनाए रखने और तरह-तरह के जीव जन्तुओं और पेड़ पौधों के लिए, आम तौर पर पूरी रेंज और खास तौर पर इसमें मौज़ूद बायोडाईवर्सीफाई पार्क जैसे कितने ही स्पॉट्स लाइफलाइन सरीखे हैं. कई ऐसी प्रजातियां जो अन्यथा नहीं पाई जातीं या लुप्त होने की कगार पर हैं, यहां मिल जाएंगी.
अरावली जैवविविधता उद्यान अरावली जैवविविधता उद्यान

# भील जैसी कितनी ही आदिवासी प्रजातियां इसमें रहती आई हैं. उनका एक सेल्फ-सस्टेंड समाज है थैंक्स टू अरावली. (सेल्फ-सस्टेंड मने ऐसा समाज जिसे न बाहरी सहायता की ज़रूरत है, न वो लेते हैं.)
# माउंट आबू और उदयपुर जैसे पर्यटक स्थल और आय के स्रोत के लिए थैंक्स टू अरावली. आबू का विशाल नखी तालाब थैंक्स टू अरावली.
माउंट आबू (तस्वीर - आरटीडीसी) माउंट आबू (तस्वीर - आरटीडीसी)

# ढेरों खनिजों (सीसा, तांबा, जस्ता आदि) से लेकर आपके घर के पत्थरों और टाइल्स, मार्बल्स के लिए भी थैंक्स टू अरावली.
# केन, बेतवा, धसान, सिंध, पार्वती, काली सिन्धु, बनास और सबसे अधिक पुरानी और अधिक महत्व की चर्मण्वती नदियों के लिए थैंक्स टू अरावली.
# और हां राष्ट्रपति भवन के लिए भी थैंक्स टू अरावली. उसी के ऊपर तो बना है ये. आप कहते हैं न रायशेला पहाड़ी. दरअसल रायशेला अरावली पर्वत श्रृंखला का सबसे उत्तरी छोर कहा जा सकता है.
लुटियांस दिल्ली में स्थित राष्ट्रपति भवन (तस्वीर - रॉयटर्स) लुटियांस दिल्ली में स्थित राष्ट्रपति भवन (तस्वीर - रॉयटर्स)

# दिल्ली एनसीआर में केवल अरावली ही है जहां से ग्राउंड वाटर रिचार्ज होता है. मने जो बोरिंग का पानी आपके घर में आता है वो नीचे यही से जाता है. इसलिए ही तो CGWA की रिपोर्ट में इस पूरे क्षेत्र को क्रिटिकल ग्राउंड वॉटर रिचार्ज जोन कहा गया है.


# कुछ खतरे, चेतावनियां और उम्मीदें –

# अरावली पर्वत श्रृंखला नॉर्थ में हिमालय और साउथ में नीलगिरी के बीच सैंडविच बनी हुई है. और इस पूरे सैंडविच के चलते ही रेत और थार का रेगिस्तान भारत के अंदर तक नहीं पहुंच पाता. जैसे ही ये सैंडविच टूटा हम सब अपने को ‘सैंड’ विच
पाएंगे. यानी रेत के बीचों-बीच पाएंगे और ऐसा होना शुरू हो गया है.
यही वजह है कि पिछले कुछ सालों से दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में धूलभरी आंधियों की आवृति पहले के मुकाबले में कुछ ज़्यादा ही बढ़ गई है. ऐसा नहीं है कि ये सिलसिला अभी कुछ सालों से है. बचपन में भी हमने इन आंधियों को झेला है. विशेषत गर्मी के मौसम में. हमारे पेरेंट्स तब इसे भूत बताकर इससे दूर रहने की हिदायत दिया करते थे. अब ये आधियां उन नेताओं की तरह फ्रीक्वेंट हो गई हैं जो पांच सालों के दौरान तो केवल किसी कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में या किसी प्रोजेक्ट के शिलान्यास के वक्त में दिखाई दे रहे थे, लेकिन अब चुनावों के वक्त उनके दौरे अचानक कुछ ज़्यादा ही ‘हवाई’ हो गए हों.
भारत की कुछ प्रमुख पर्वत श्रृंखलाएं (स्क्रीनशॉट - गूगल अर्थ) भारत की कुछ प्रमुख पर्वत श्रृंखलाएं (स्क्रीनशॉट - गूगल अर्थ)

बचपन का भूत आज और ज़्यादा डरावना लग रहा है. सेटेलाईट से अरावली श्रृंखला की ली गई तस्वीरों का यदि मुआयना किया जाए तो साफ नज़र आता है कि अरावली अब बुरी तरह से कमज़ोर होने लगा है. अत्याधिक वैध और उससे भी कहीं ज़्यादा अवैध खनन की वजह से इसका आकार खंडित होने लगा है जिस वजह से अरावली के पश्चिमी में पसरा रेगिस्तान अब इन पहाड़ियों में दाखिल हो अपना विस्तार दक्षिण की ओर करने लगा है.
धूल भरी आंधी (तस्वरी - रॉयटर्स) धूल भरी आंधी (तस्वरी - रॉयटर्स)

# मौसम के नज़रिए से भी अगर देखा जाए तो साफ़ नज़र आता है कि अरावली का ग्रीन एरिया अब लगातार सूखे से ग्रस्त होने लगा है. राजस्थान में बहने वाली आधिकतर नदियां सूख गई हैं और मौसमी नदियां बन कर रह गई है. जबकि एक वक्त था कि इन नदियों में वर्ष भर पानी रहता था.
# झीलों के शहर उदयपुर में भी झीलों की जगह अब सूखे मैदान
पाए जाते हैं और इन सब की वजह सिर्फ यही है कि हमारा अरावली अब इस हालत में नहीं है कि मजबूती से खड़ा होकर इको इको-सिस्टम को सस्टेन रख सके.
# दरअसल अरावली के अत्याधिक दोहन का आय के अन्य विकल्पों का न होना और बढ़ती जनसंख्या है. अब यही लगा लीजिए कि थार पूरी दुनिया का सबसे घनी आबादी वाला रेगिस्तान है. यह क्षेत्र न तो पूर्णत: कृषि प्रधान क्षेत्र है और न ही यहां अन्य कोई फैक्ट्री या उद्योग ही पाए जाते है.
पिछोला लेक सूखने लगी है. (तस्वीर - udaipurtimes.com) पिछोला लेक सूखने लगी है. (तस्वीर - udaipurtimes.com)

प्रशासनिक सेवाओं के अतिरिक्त यहां रोज़गार का एकमात्र विकल्प मार्बलस और खनिजों का व्यापार ही है. अरावली की गोद में पनपी जनजातियां खनन मजदूर बन के रह गई हैं. और ये सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार ही है कि कुछ व्यापरियों के फायदे के लिए ही अवैध खनन की तरफ से आंखे फेर ली जाती हैं. इसी अंधाधुंध दोहन से न केवल अरावली के स्वरूप को बदल दिया बल्कि इस दोहन एवं इनके प्रोसेसिंग यूनिट से निकले अपशिष्ट ने वर्तमान में मौजूद प्राकृतिक जल तंत्र को भी दूषित कर दिया है.
# वन की कमी, भूमि कटाव, रसायनों से जल तंत्र का नष्ट होना ये सभी स्थितियां इशारे करने लगी हैं कि अब दोहन अपनी सभी चरम सीमाओं को पार कर चुका है और इसका असर कल में नहीं बल्कि आज में ही होना शुरू हो चुका है.
# आपके घर के संगमरमर, फर्श या टाइल्स में अगर धूल बैठी हुई है तो वो ‘आयरॉनिकली’ उसी संगमरमर के चलते ही है. वो दरअसल अरावली खोद के निकला गया है.
# अरावली का उत्तरी क्षेत्र एनसीआर में होने के कारण रोज़-रोज़ रियल स्टेट की आहुति चढ़ रहा है. इसी बारे में इंडिया स्पेंड हिंदी को दिए एक इंटरव्यू
में प्रकृतिवादी और लेखक प्रदीप कृष्णा बताते हैं -
अरावली के प्रति उपेक्षा की सबसे बड़ी वजह शहरी महानगरीय क्षेत्रों का पड़ोसी ग्रामीण इलाकों के प्रति असंवेदनशील होना है. और यह भारत में सार्वभौमिक मुद्दा है. भारत में प्राकृतिक क्षेत्रों की रक्षा या सुरक्षा उस तरह से नहीं की जाती जिस प्रकार न्यूयार्क जैसे मेगा-शहरों मे की जाती है. बल्कि शहरी क्षेत्रों के पड़ोस में स्थित वन्य या अर्द्ध-जंगली या कृषि क्षेत्रों को शहर के विस्तार होने के लिए खाली माना जाता है.
उन्होंने बताया कि शहरीकरण का प्रसार ही अरावली के लिए सबसे बड़ा खतरा है. भारत में अब भी शहरों की योजना बनाने में पुराने तरीकों का उपयोग करते हैं. हम जल संरक्षण, वायु गुणवत्ता, जीवन की गुणवत्ता, और अन्य परिणामों की एक पूरी श्रृंखला जैसे संसाधनों को देखने की बजाय केवल भूमि उपयोग योजना के माध्यम से जिंदगी जी रहे हैं. जबकि शहरी निवास के नज़दीक के अरावली क्षेत्र को चिन्हित कर संरक्षित कर दिया जाना चाहिए.
उन्होंने हैरत और ख़ुशी ज़ाहिर की कि दिल्ली में सेंट्रल रिज अभी भी बरकरार है (900 हेक्टेयर). उनका दावा है कि अगर यह एक संरक्षित क्षेत्र के रूप में बना रहता है तो संभवत: एक दिन दुनिया के किसी भी राजधानी शहर के सबसे अद्भुत जंगलों में से एक बन सकता है.



# आज क्यूं बात कर रहे हैं –

वैसे तो ये भी सही है कि अगर आज बात नहीं करेंगे तो हमारे पास वो कल ही नहीं होगा जिसमें हम बात कर सकें. लेकिन आज इस वजह से बात कर रहे हैं कि सुप्रीमकोर्ट की अरावली को लेकर बहुत बड़ी टिप्पणी आई है. उसने राजस्थान सरकार से पूछा है कि क्या अरावली को पहाड़ियों को लोग हनुमान बनाकर उठा ले गए? ऐसा उसने इसलिए कहा क्यूंकि राजस्थान से अरावली को 31 पहाड़ियां गायब हो गई हैं. 48 घंटे के भीतर अवैध खनन को बंद करने के आदेश दे दिए.
न्यायमूर्ति मदन बी. लोकूर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा कि राजस्थान सरकार अपनी कमाई के चक्कर में दिल्ली के लाखों लोगों का जीवन खतरे में नहीं डाल सकता. राजस्थान सरकार ने इस मामले को बहुत ही हल्के में लिया है.
सुनवाई की सबसे अच्छी बात कोर्ट का पहाड़ियों को आस्था से जोड़ने का काम रहा. उसने कहा - इश्वर ने कुछ सोचकर ही यहां पर इनका निर्माण किया होगा.
सुप्रीमकोर्ट (तस्वीर - रॉयटर्स) सुप्रीमकोर्ट (तस्वीर - रॉयटर्स)

अव्वल तो वाकई में ये पहाड़ियां ऐसी जगह पर हैं कि जिसके चलते दिल्ली. दिल्ली बना हुआ है. और दूसरा आस्था के साथ किसी चीज़ को जोड़कर उसके संरक्षण की बात करना भी सुप्रीमकोर्ट का मास्टर स्ट्रोक कहलाएगा.
जब राजस्थान सरकार के वकील ने कहा कि वे अवैध खनन रोकने का काम कर रहे हैं तो फटकारते हुए कोर्ट बोली – कैसा काम? दिल्ली को तो जो नुकसान होना था वो पहले ही हो गया है. 5 हजार करोड़ के राजस्व से दिल्ली के लोगों का स्वास्थ्य वापस नहीं लाया जा सकता.


राजस्थान में चुनाव की गहमागहमी शुरू हो चुकी है लेकिन जो मुद्दा पूरे देश में सबसे बड़ा मुद्दा होना चाहिए था, वो राजस्थान के चुनावों तक में भुला दिया जा चुका है. कोई सिरफिरा ही होगा जो अरावली बचाने के नाम पर वोट मांगेगा और कोई सिरफरा ही होगा जो इस मुद्दे के चलते वोट देगा. लेकिन क्या हमें ऐसे ही सरफिरों की तलाश नहीं है?
हरियाणा की खट्टर सरकार और उससे पहले कांग्रेस सरकार भी अरावली को लेकर चिंतित है. दुखद रूप से उसकी चिंता है कैसे इसे ‘वन क्षेत्र’ के दायरे से बाहर लाया जाए. ये स्थिति उस हरियाणा की है जहां ‘वन क्षेत्र’ का प्रतिशत सिर्फ 3.59% है. यानी पूरे भारत में नीचे से दूसरे नंबर पर है. और इस 3.59% का भी 60% भाग अरावली है.
सेव अरावली
नाम की संस्था के अनुसार -
# अरावली क्षेत्र को सन 1900 में पंजाब भू संरक्षण अधिनियम की धारा 4 और 5 के तहत संरक्षित किया गया है. जिसके मुताबिक इस इलाके में किसी भी प्रकार का गैर वानिकी(वन से संबंधित) काम करना कानूनी जुर्म है.
# सुप्रीम कोर्ट ने भी एक केस की सुनवाई के दौरान इस पूरे इलाके को 2009 से ही स्टेट्स क्यूओ (जस की तस स्थिति) में रखा है. मने अगली सुनवाई तक यहां काम करना वर्जित है. लेकिन हरियाणा सरकार ने कोर्ट की अनदेखी करते हुए हाल फिलहाल में भारती सहित कई अमीर ग्रुपों को यहां का जंगल साफ़ करके होटल, बिल्डिंग आदि बनाने की परमिशन दे दी है.
# दिल्ली एनसीआर के एकमात्र बचे जंगल – अरावली क्षेत्र को आज ज्यादातर नेता और सरकारी अफसर एकजुट होकर बेचने और इसे ‘जंगल ना होने’ का तमगा देने में लगे हैं. 
अभी कुछ दिनों पहले ही एनसीआर प्लानिंग बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक पूरी अरावली पहाड़ियां और उनकी प्राकृतिक संपदा वन क्षेत्र में ही आते हैं. मने अरावली में स्थित ‘गैर मुमकिन’ पहाड़ हो, भूड़ एरिया या चाही वन क्षेत्र यह सभी जंगल हैं.
अब आप पूछेंगे कि ये गैर मुमकिन पहाड़ क्या होते हैं? मुगल काल में अरावली का दिल्ली की तरफ का एरिया गैर-मुमकिन पहाड़ कहा जाता था क्यूंकि इसमें खेतीबाड़ी करना गैर मुमकिन था. इसी के चलते इसके ऊपर जामा मस्ज़िद बनाई गई.
अरावली के ऊपर बना दिल्ली जा जमा मस्ज़िद (तस्वीर - पीटीआई) अरावली के ऊपर बना दिल्ली जा जमा मस्ज़िद (तस्वीर - पीटीआई)

यूं सुप्रीम कोर्ट के फैसले और एनसीआर प्लानिंग बोर्ड की रिपोर्ट लागू होने पर अरावली में 1992 के बाद जो भी निर्माण हुए हैं, उन्हें अब गिराया जा सकता है.
कहना ग़लत नहीं होगा कि जिनके हाथों में अरावली के संरक्षण की ज़िम्मेदारी है दरअसल वही लोग सिर्फ क्षणिक फायदे के लिए न केवल अरावली के भविष्य को बल्कि अपने ही बच्चों (मानव सभ्यता) के भविष्य को भी खत्म करने पर तुले हुए है.

अरावली के आखिरी दिन एक मधुमक्खी परागकणों के साथ उड़ते-उड़ते थक जाएगी. सभी बहेलिए जाल को देखकर उलझन में पड़ जाएंगे.

एक नन्हा खरगोश लू की बौछार में हांफते-हांफते थक जाएगा. चेतना आकुलित बघेरे कहीं नहीं दिखेंगे इस निरीह-निर्वसन धरती पर.

‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌




वीडियो देखें -

अमृतसर रेल हादसा: रेलवे ट्रैक ऊंचा था इसलिए चढ़कर रावण दहन देखने लगे थे लोग -

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement