मनोज प्रभाकर: बनाना स्विंग का फनकार, जिसे सब बुरी चीजों के लिए याद करते हैं
दुनिया की फितरत ही ऐसी है कि एक ऐब के आगे हजार हुनर को दरकिनार कर देती है.
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कमाल की स्विंग फेंकते थे मनोज प्रभाकर.
क्रिकेट में स्विंग बोलिंग खेल का हिस्सा है, लेकिन कोई 'खेल' नहीं है. ये तो एक कला है. इसके लिए आपके अंदर हुनर होना चाहिए. इसी स्विंग बॉलिंग में एक और कैटेगरी होती है. बनाना स्विंग. बनाना यानी हिंदी में केला.
हाथ से छूटने के बाद बल्लेबाज की तरफ केले की शेप में पहुंचती गेंद. ये है बनाना स्विंग. इस बनाना स्विंग के लिए आपको खिलाड़ी नहीं, फ़नकार होना पड़ता है.
इंडिया में ऐसे ही एक फ़नकार का नाम था मनोज प्रभाकर. उनका नाम भले ही कुछ ग़लत कारणों से ज़ेहन में धंसा हुआ है. लेकिन स्विंग बॉलिंग करने वाले अहम इंडियन प्लेयर्स में इन्हें जरूर गिना जाता है. आता रहेगा भी. उन्हें वो गेंद फेंकने की कला आती थी, जिसे बैट्समैन ऑफ स्टम्प के बाहर देखकर छोड़ने का मन बना चुका होता था, लेकिन अगले ही पल अपने ऑफ-मिडल स्टम्प पर गेंद को पाता था. सेकेंड के कुछ हिस्से के अंदर. ज़रा सोचिये, राइट आर्म ओवर द विकेट से दाहिने हाथ से फेंकी गई गेंद, ऑफ स्टम्प के बाहर जाती दिख रही होती है. और जैसे ही आधी पिच पार करती है, बैट्समैन की तरफ़ आने लगती है. और उसका सफ़र खत्म होता है लकड़ी के एक टुकड़े पर. या तो स्टम्प, या बैट्समैन के बल्ले का किनारा. मनोज प्रभाकर के तरकश में रखा ये एक तीर था. https://www.youtube.com/watch?v=WaUEKnRQRpw मनोज प्रभाकर ने अपने एकदम शुरुआती दौर में चैंपियंस ट्रॉफी खेली थी. 1989-1990 सीज़न में. मैदान था शारजाह का. वो शारजाह जो मन आने पर गेंदबाजों की कब्र बन जाता था. सामने थी वेस्ट इंडीज़ की टीम. वो भी सीधे विव रिचर्ड्स. तपती दोपहर में प्रभाकर रिचर्ड्स को गेंद डालने के लिए दौड़ पड़े. बेहतरीन आउटस्विंग. लेकिन जितनी देर प्रभाकर ने अपने रन-अप में लगाई थी. उससे कम देर में गेंद रिचर्ड्स के बल्ले को छूकर बाउंड्री तक पहुंच गई. ये पहली गेंद थी. अगली गेंद इनस्विंग. रिचर्ड्स ने एक और चौका मारा. यहां से हर किसी को मालूम चल गया था कि प्रभाकर समेत सभी इंडियन बोलर्स का क्या हाल होने वाला था. प्रभाकर के लिए ये एक बड़ा सबक था. उन्हें इंटरनेशनल और डोमेस्टिक क्रिकेट के लेवल के बीच के अंतर के बारे में सब कुछ मालूम चल चुका था.
लेकिन मनोज प्रभाकर की एक फितरत थी. वो जिद्दी थे. हार न मानने वाले. उन्हें ये अहसास हो गया कि बड़े लेवल पर सिर्फ़ स्विंग ही नहीं लेट स्विंग की भी ज़रूरत है.
इसलिए वो जुट गए. अपनी शुरूआती स्विंग को काटने में. हमारे-आपके लिए ये एक सवाल है कि कैसे स्विंग के समय को भी घटाया-बढ़ाया जा सकता है? लेकिन प्रभाकर इसके जवाब को ईजाद कर रहे थे. अब गेंदें ज़्यादा सीधी फेंकी जाने लगीं. जिससे लेट मूवमेंट मिलने लगा. और पुनर्जन्म हुआ उसका जिसका आज जन्मदिन है. मनोज प्रभाकर. 15 अप्रैल 1963. गाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश की पैदाइश.

ये इंडियन क्रिकेट का सबसे काला दौर था. 2007 में बांग्लादेश से ग्रुप मैच में हारकर टूर्नामेंट से बाहर आने से भी काला दौर.
प्रभाकर ने वन डे मैचों में 2 और टेस्ट मैचों में 1 सेंचुरी मारी. आखिरी वन डे सेंचुरी की शायद ही इन्हें कोई खुशी हो. इस सेंचुरी के बाद इन्हें टीम से ड्रॉप कर दिया गया था. टीम वेस्ट इंडीज़ के खिलाफ़ खेल रही थी. 9 ओवर में 63 रन चाहिए थे. नयन मोंगिया और प्रभाकर क्रीज़ पर थे. प्रभाकर ने कुल 102 रन बनाये. इंडिया मैच हार गई. आखिरी 9 ओवरों में मात्र 16 रन आए. 54 गेंदों में 16 रन. मोंगिया ने 21 गेंदों में 4 रन बनाये. मैच खतम होने के बाद उनसे पूछा गया कि ऐसी परफॉर्मेंस की वजह क्या थी तो उल्टा उन्होंने ही सवाल पूछ लिया. कहने लगे - क्या आज से पहले कभी इंडिया ने 9 ओवरों में 63 रन बनाये हैं? https://www.youtube.com/watch?v=5N9dWRuQbUg 1996 के वर्ल्ड कप में सनथ जयसूर्या ने प्रभाकर को बेदर्दी से मारा था. ऐसा लग रहा था मानो उस दिन जयसूर्या मन बना के आए थे कि आज मनोज को ही मारना है. 4 ओवरों में 47 रन दिए. इस मैच के बाद मनोज ने रिटायरमेंट ले लिया. https://www.youtube.com/watch?v=4Dv_K_m1Irw 2000 में प्रभाकर ने एक बम फोड़ा. कहने लगे कपिल देव ने उन्हें 25 लाख रुपये ऑफर किये थे. बीसीसीआई के पूर्व प्रेसिडेंट इन्दरजीत सिंह बिंद्रा ने सीएनएन के एक प्रोग्राम में ये कहा भी कि मनोज ने उन्हें कपिल देव के पैसे ऑफर करने के बारे में चेताया भी था. मनोज से सबूत मांगे गए तो फ़ास्ट बॉलर प्रशांत वैद्य का नाम आया. प्रशांत उस कमरे के बगल में था जिसमें कपिल देव ने मनोज को पैसे देने की बात कही थी. दोनों कमरों के बीच एक दरवाजा था जो उन्हें जोड़ता था. लेकिन प्रशांत केस में बहुत इंट्रेस्टेड नहीं थे, सो मुकर गए. प्रभाकर अपनी आदत से मजबूर थे. ज़िद की आदत. अपनी देह पर ख़ुफ़िया कैमरे चिपका कर खुद ही सबूत इकठ्ठा करने निकल पड़े. तहलका के साथ मिलकर उन्होंने इस स्टिंग ऑपरेशन को अंजाम दिया. वीडियो टेप्स को पब्लिक कर दिया गया. अदालत को दिए गए. एक किताब आई. नाम था - Fallen Heroes. इस किताब में इस पूरे वाकये का इत्मिनान से बखान है. देश को सन्न करने वाला वाकया. वीडियो टेप्स में वो सब कुछ था जो ये बता सकता था कि कुछ तो ऐसा था जो इंडियन क्रिकेट में गड़बड़ चल रहा था. उस दिन से ही नहीं, सालों से चलता आ रहा था. लोगों की तरफ इशारे किए जा रहे थे. लोगों के नाम लिए जा रहे थे. लेकिन कुछ भी ऐसा नहीं था जिससे कुछ ठोस सबूत मिल सके. कुछ भी ऐसा नहीं था जिससे किसी नतीजे पर पहुंचा जा सके. इसी दौरान बीबीसी के एक इंटरव्यू के दौरान कपिल देव इसी बारे में बात करने पर फफक के रो पड़े.
कहते हैं कि इंडिया को पहला वर्ल्ड कप दिलाने वाले के आंसुओं ने उसी दिन खुद को क्लीन चिट दिलवा दी थी. कई ये भी कहते हैं कि ये सब कुछ एक स्टंट था. कपिल की साख बचाने के लिए.
सारा खेल यहीं से उलट गया. दिनोंदिन प्रभाकर के अकाउंट, उनकी संपत्ति खंगाली जाने लगी. Fallen Heroes के लिए एक नए हीरो के गिरने की तैयारी होने लगी. कोर्ट के फाइनल डिसीज़न में कपिल देव बरी हुए. मोहम्मद अजहरुद्दीन, नयन मोंगिया, अजय जडेजा, अजय शर्मा और मनोज प्रभाकर नापे गए. अली ईरानी, टीम इंडिया का फिज़ियो भी.

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