क्या FCRA 2020 के कारण लोगों की मदद नहीं कर पा रहे हैं NGO?
जानिए आखिर ये मामला क्या है?
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कहीं खाना तो कहीं ऑक्सीजन कंसनट्रेटर बांट रहे हैं NGO. फोटो- IndiaToday
कोविड-19 ने पब्लिक हेल्थकेयर सिस्टम को हिला दिया है. ऐसे में काफी NGO जनता की मदद के लिए आगे आए हैं और ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में मरीजों की अपनी-अपनी स्तर पर मदद कर रहे हैं. इनमें से अधिकतर NGO पैसे की तंगी से जूझ रहे हैं और केंद्र सरकार से फॉरेन करेंसी रेग्यूलेशन एक्ट यानी FCRA को अस्थाई रूप से निलंबित करने की मांग कर रहे हैं. NGOs की गृह मंत्रालय से मांग है कि 6 से 7 महीनों के लिए इस एक्ट से उन्हें छूट दी जाए. हालांकि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अभी तक इस पर कोई घोषणा नहीं की है.
नए ऐलान में क्या कुछ है?
18 मई को सरकार ने NGOs को राहत देने के लिए एक पब्लिक नोटिस जारी किया है जिसमें कहा गया है कि जो रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट सितंबर 2020 से सितंबर 2021 के बीच खत्म होने वाले थे, वो अब सितंबर 2021 तक मान्य होंगे. साथ ही मौजूदा FCRA खाता धारकों को 30 जून तक SBI की नई दिल्ली मुख्य शाखा में खाता खोलना होगा. अगर वे ऐसा नहीं कर पाए तो वे विदेशी चंदा प्राप्त करने के पात्र नहीं होंगे.
जनहित याचिका खारिज इस मामले को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर की गई है, जिस पर 18 मई को सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने कहा कि छूट देना या नहीं देना, सरकार का नीतिगत निर्णय है. इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने कर्मोदय चैरिटेबल ट्रस्ट की ओर दायर इस जनहित याचिका को भी खारिज कर दिया. भारतीय स्टेट बैंक का बयान दरअसल किसी भी संस्था या संगठन को विदेशी धन लेने के लिए FCRA खाता खोलना होता है. सोमवार 17 मई को भारतीय स्टेट बैंक ने अपने एक बयान में कहा था कि उसकी नई दिल्ली मुख्य शाखा में FCRA के तहत 13,729 खाते खोले गए हैं. फिलहाल देश में FCRA के तहत 22,598 NGO रजिस्टर्ड हैं, जिनमें से 17,611 संस्थाओं ने FCRA खाता खोलने की इच्छा जताई थी. अक्टूबर 2020 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने SBI की नई दिल्ली मुख्य शाखा को FCRA खाते खोलने के लिए नामित किया था. NGO संचालक क्या कहते हैं? बुंदेलखंड के एक इलाके में NGO संचालन कर रहे एक शख्स ने परिचय छुपाने की शर्त पर कहा कि,
"हमें FCRA सर्टिफिकेट अप्लाई करने के लिए पहले FCRA अकाउंट खोलना होगा. ये अकाउंट SBI की नई दिल्ली ब्रांच में खुलेगा. हमें अप्लाई किए 4 महीने हो गए. अकाउंट अभी तक नहीं खुल पाया, जबकि ये मुश्किल से एक दिन का काम है. अकाउंट खुल जाएगा तभी हम FCRA अप्लाई कर सकेंगे, उससे पहले नहीं. इसके बाद एक अधिकारी हमारी संस्था की जांच पड़ताल करने के लिए हमारे पास आएगा, हमारा काम देखेगा. फिर वह अपनी रिपोर्ट शासन को सब्मिट करेगा. तब जाकर शायद हमें एलिजिबिल माना जाए. और यदि रिपोर्ट हमारे अगेंस्ट रही तो सारी मेहनत बेकार."वे कहते हैं कि अगर एक बड़ी NGO, छोटी NGO को पैसा नहीं दे पाएगी तो काम कैसे होगा? हर किसी का गांव में नेटवर्क तो नहीं होता. और ना ही नेटवर्क चंद दिनों में तैयार होता है. इसमें तो सालों का प्रयत्न लगता है. अगर आज ये नियम नहीं होता और कोई बड़ी NGO हमें पैसा दे रही होती, तो हम अपने इलाके में कुछ और बेहतर कर सकते थे. FCRA आखिर है क्या? खबर पढ़ते हुए आप सोच रहे होंगे कि आखिर ये FCRA क्या है, जिसको अस्थाई रूप से निलंबित करने की मांग की जा रही है. दरअसल भारत सरकार ने NGO की विदेशी फंडिंग को लेकर नियमों में सितंबर 2020 में बदलाव किया था. इस बदलाव के तहत संसद में विदेशी अंशदान (विनियमन) संशोधन अधिनियम (FCRA) 2020 को पारित किया गया था.
इस बदलाव के मुताबिक विदेशी अंशदान लेने वाले सभी गैर सरकारी संगठनों को भारतीय स्टेट बैंक की नई दिल्ली मुख्य शाखा में FCRA खाता खोलना होगा और सारा विदेशी अंशदान यहीं लेना होगा. नियमों में स्पष्ट किया गया है कि किसी भी विदेशी शख्स या स्रोत, या फिर भारतीय रुपये में मिले विदेशी दान को भी विदेशी अंशदान माना जाएगा.

क्यों जरूरत पड़ी FCRA की? साल 2010 से साल 2019 के बीच विदेशों से आने वाले पैसे की मात्रा काफी बढ़ गई थी, लेकिन जांच के दौरान पाया गया कि जिस लिए पैसा लिया जा रहा है, वह उस काम में नहीं लगाया जा रहा है. इसी जांच के बाद, 'राष्ट्रीय और आर्थिक हितों' के लिए FCRA 2020 लाया गया. सरकार ने कथित तौर पर धर्म परिवर्तन कराने वाले 6 NGO का लाइसेंस भी निलंबित कर दिया था. इन NGOs पर आरोप था कि इन्होंने धर्म परिवर्तन कराने के लिए विदेशी अंशदान का उपयोग किया था.
- 1976 में इंदिरा गांधी सबसे पहले विदेशी फंडिंग को रोकने के लिए कानून लाई थीं. - साल 2010 में मनमोहन सिंह सरकार ने भी कुछ संस्थाओं की फंडिंग पर रोक लगाई थी. - साल 2016 में मोदी सरकार ने 20 हजार NGOs की विदेशी फंडिंग पर रोक लगा दी थी. FCRA की खास बातें - NGOs के सभी प्रमुख लोगों के पास आधार कार्ड होना जरूरी है. - सरकार द्वारा बताए बैंक की शाखा में ही विदेशी अंशदान लिया जा सकेगा. - NGOs, 20 प्रतिशत से अधिक पैसा खुद पर खर्च नहीं कर सकते. - विदेशी अंशदान लेने के बाद इसे किसी और को ट्रांसफर नहीं किया जा सकेगा. FCRA से होगा क्या? नए कानून के विरोधियों का तर्क है कि छोटे NGOs अभी तक बड़े NGOs से ग्रांट लेते थे, जो इस कानून से बंद हो गया. अभी तक ऐसा देखा गया है कि बड़े NGOs के ऑफिस महानगरों में रहे हैं और वह इन छोटे NGOs की मदद से पैसे को गांव-देहात तक पहुंचाते थे. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा, बड़े NGOs को नौकरी पर लोग रखने होंगे, लेकिन छोटे NGOs खत्म हो जाएंगे और उनके लोग बड़े NGOs के सहयोगी नहीं बल्कि कर्मचारी बन जाएंगे.
वहीं इस पूरे मामले पर मेरठ के एक पत्रकार ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि, "पिछले साल NGO और संपन्न लोग, गरीबों की मदद कर रहे थे, लेकिन इस बार सब गायब हैं. बात विदेशी पैसे की नहीं है. यहां पैसा कम है क्या? बात है सामाजिक दायित्व की. अमीर लोग, बड़ी कंपनियां इस बात को समझें और गरीब लोगों तक स्वास्थ्य सुविधाएं, खाना आदि पहुंचाने में मदद करें."