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वो 'कालापानी' क्या है, जिसे लेकर भारत से नाराज़ हो गया है नेपाल?

2 नवंबर को भारत ने अपना नया मानचित्र जारी किया. नेपाल की आपत्ति इसी से जुड़ी हुई है.

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2 नवंबर को भारत सरकार ने भारत का नया नक्शा जारी किया था. इसके एक हिस्से को लेकर नेपाल ने आपत्ति जताई है. इस हिस्से पर भारत और नेपाल, दोनों अपना दावा जताते हैं (फोटो: PIB)
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आदित्य
8 नवंबर 2019 (Updated: 8 नवंबर 2019, 01:05 PM IST) कॉमेंट्स
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जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने के बाद भारत सरकार ने 2 नवंबर को देश का नया नक्शा जारी किया. इस मैप में 28 राज्य और 9 केंद्र शासित प्रदेश हैं. भारत के नए मानचित्र में पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर नए बने केंद्र-शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर का हिस्सा है. गिलगित-बाल्टिस्तान लद्दाख क्षेत्र में शामिल हैं. ये मैप देखने के लिए PIB का ट्वीट देखिए-
पाकिस्तान से कैसी प्रतिक्रिया आई? भारत के इस नए मानचित्र को पाकिस्तान ने गलत बताया. उसने इसक विरोध जताया. पाकिस्तान के बाद अब नेपाल ने भी भारत के नए नक्शे पर सवाल उठाए हैं. नेपाल को इस मानचित्र के उस हिस्से से आपत्ति है, जहां विवादित कालापानी क्षेत्र को भारतीय सीमा में रखा गया है. नेपाल का दावा है कि कालापानी क्षेत्र नेपाल के दार्चुला ज़िले का हिस्सा है. दार्चुला नेपाल के सुदुरपश्चिम प्रोविंस का एक जिला है.
नेपाल का कहना है कि कालापानी को लेकर भारत और नेपाल के बीच बातचीत जारी है. नेपाल का कहना है कि अभी तक मसला सुलझा नहीं है. नेपाल इस हिस्से पर अपना दावा करता है. 6 नवंबर को नेपाल के विदेश मंत्रालय ने 'कालापानी' को अपने देश का अभिन्न अंग बताया. नेपाल सरकार ने मीडिया को भी एक बयान जारी किया. इसमें कहा गया है कि दोनों देशों के बीच विदेश मंत्री स्तर की साझा आयोग की बैठक में सीमा विवाद का समाधान खोजने की जिम्मेदारी दोनों देशों के विदेश सचिवों को दी गई है.
Pradeep Gyawali
नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप ज्ञवाली (फोटो: ट्विटर)

नेपाल की न्यूज़ वेबसाइट काठमांडू पोस्ट
में छपी खबर के मुताबिक, नेपाल ने साफ किया कि बिना आपसी सहमति के भारत की ओर से लिया गया कोई भी फैसला उसे मंज़ूर नहीं है. नेपाल का कहना है कि सीमा से जुड़े मुद्दों को आपसी सहमति से सुलझाया जाना चाहिए. ये भी कहाकि किसी भी तरह के एकतरफा फैसले को नेपाल सरकार नहीं मान सकती.
Kalapani Nepal Protest
कालापानी को भारतीय मैप में शामिल करने के खिलाफ, ऑल नेपाल नेशनल फ़्री स्टूडेंट्स यूनियन के छात्रों ने 6 नवंबर को काठमांडू में प्रदर्शन किया है. (फोटो: काठमांडू पोस्ट)

इस पूरे मसले पर भारत ने क्या कहा है? 7 नवंबर को भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने मीडिया से बातचीत करते हुए 'कालापानी' पर कहा-
हमारे नक्शे में भारत के संप्रभु क्षेत्र को दर्शाया गया है. नए नक्शे में नेपाल के साथ हमारी सीमा में कोई बदलाव नहीं किया गया है. हम अपने करीबी और मैत्रीपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों के साथ बातचीत के माध्यम से समाधान खोजने के लिए अपनी कमिटमेंट को दोहराते हैं.
न्यूज़ एजेंसी ANI का ट्वीट देखिएविवाद है क्या? भारत और नेपाल दोनों 'कालापानी' को अपना अभिन्न अंग कहते हैं. भारत कहता रहा है कि 'कालापानी' उत्तराखंड के पिथौरागढ़ ज़िले का भाग है. उधर नेपाल दावा करता रहा है कि कालापानी उसके दार्चुला ज़िले का हिस्सा है. यह क्षेत्र 1962 से इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस के पास है.
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इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस (फोटो: ट्विटर| ITBP_official)

कालापानी क्षेत्र से होकर महाकाली नदी गुजरती है, जिसका स्रोत देशों के बीच विवाद के केंद्र में है. लेकिन इस क्षेत्र में सीमा के सीमांकन पर सहमति नहीं है. 2014 में PM नरेंद्र मोदी की पहली नेपाल यात्रा के दौरान कालापानी विवाद पर चर्चा हुई थी. सात साल बाद इस मुद्दे को उठाया गया था, लेकिन अब तक इसे सुलझाया नहीं जा सका है.
भारत का डर
कालापानी एक तरह से डोकलाम की तरह है, जहां तीन देशों के बॉर्डर हैं. डोकलाम में भारत, भूटान और चीन हैं. वहीं कालापानी में भारत, नेपाल और चीन. ऐसे में सैन्य नजरिये से यह ट्रायजंक्शन बहुत महत्वपूर्ण है. उस क्षेत्र में सबसे ऊंची जगह है ये. 1962 युद्ध के दौरान भारतीय सेना यहां पर थी. डिफेंस एक्सपर्ट बताते हैं कि इस क्षेत्र में चीन ने भी बहुत हमले नहीं किए थे क्योंकि भारतीय सेना यहां मजबूत स्थिति में थी. इस युद्ध के बाद जब भारत ने वहां अपनी पोस्ट बनाई, तो नेपाल का कोई विरोध नहीं था. ये अलग बात है कि उस वक्त भारत और नेपाल के संबंध भी अब जैसे तनावपूर्ण नहीं थे.
भारत का डर ये है कि अगर वो इस पोस्ट को छोड़ता है, तो हो सकता है चीन वहां धमक जाए और इस स्थिति में भारत को सिर्फ नुकसान हासिल होगा. इन्हीं बातों के मद्देनज़र भारत इस पोस्ट को छोड़ना नहीं चाहता है. नेपाल के रिसर्चर ज्ञानेंद्र पौडेल का मानना है कि कालापानी पर नेपाल हमेशा से दावा करता रहा है, लेकिन 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद से कालापानी में भारतीय सेना का कब्ज़ा है. कालापानी क्षेत्र में महाकाली नदी का रोल भी अहम है. यह पहाड़ी नदी बराबर अपना रास्ता बदलती रहती है. ऐसे में बॉर्डर में भी थोड़े-बहुत बदलाव आते रहते हैं.
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भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ नेपाल के पीएम केपी ओली. (फोटो: ट्विटर | PIB_India)

1998 में, नेपाल के लिए घरेलू राजनीतिक कारणों से इस पर विवाद खड़ा करना आसान हो गया. और इसके बाद जैसे-जैसे मधेश का मुद्दा बढ़ता गया नेपाल में ऐंटी-इंडिया भावनाएं बढ़ीं और नेपाल ने इस मसले को और जोर-शोर से उठाना शुरू कर दिया.
नेपाल का डर ये है कि अगर भारत इस हिस्से पर अपना दावा जताता है, तो नेपाल का क्या स्टैंड होगा? अगर भारत कहे कि नेपाल में राजशाही के दौरान यह हिस्स्सा भारत को दिया गया, तो? अगर इंडिया उस क्षेत्र को 'नो मेंस लैंड्स' जैसा बनाना चाहे, तो नेपाल क्या स्टैंड लेगा? अगर भारत इसे 100 साल के लिए लीज पर लेना चाहे, तो? अगर नेपाल किसी तीसरे देश को ये मसला सुलझाने के लिए कहे, तो? बेहतर तो यही होगा कि भारत और नेपाल कूटनीतिक स्तर आपसी बातचीत से ये मुद्दा सुलझाने की कोशिश करें.


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