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गोदरेज का बंटवारा: जिसके संस्थापक कभी 'मेड इन इंडिया' लिखवाने के लिए अंग्रेज़ों से भिड़ गए थे

गोदरेज समूह की पूरी कहानी, जो अब इन वजहों से बंटवारे की कगार पर खड़ा है.

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गोदरेज समूह के संस्थापक आर्देशिर गोदरेज. कंपनी के एक विज्ञापन में रवींद्रनाथ टैगौर.
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अनिरुद्ध
4 जुलाई 2019 (Updated: 25 अक्तूबर 2019, 12:10 PM IST) कॉमेंट्स
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साल 1894. बंबई के दो युवा वकील. एक ने साउथ अफ्रीका में खलबली मचाई. दूसरे ने ईस्ट अफ्रीका के जंजीबार में. दोनों की सोच और सिद्धांत एक. वकालत के पेशे में झूठ का इस्तेमाल नहीं करेंगे. साउथ अफ्रीका की सड़कों पर खलबली मचाई बैरिस्टर मोहनदास करमचंद गांधी ने. और ईस्ट अफ्रीका के जंजीबार में हलचल थी आर्देशिर गोदरेज की. मोहनदास करमचंद गांधी का किस्सा आपने सबने कई बार पढ़ा-सुना-देखा होगा. आज बात आर्देशिर गोदरेज की. जिनके बनाए गोदरेज समूह में इन दिनों खटपट की खबरें हैं.
कैसे शुरू हुआ गोदरेज का सफर? वचन के पक्के, सच के सिपाही- आर्देशिर गोदरेज. वकालत से जल्द ही दूर हो गए. अपनी सच बोलने की आदत की वजह से. आर्देशिर 1894 में ही बंबई लौट आए. यहां एक फार्मा कंपनी में केमिस्ट के असिस्टेंट की नौकरी मिल गई. मगर आर्देशिर भी पारसी समाज के दूसरे लोगों तरह कारोबार में हाथ आजमाना चाहते थे. केमिस्ट की नौकरी करते-करते एक बिजनेस आइडिया मिला. सर्जरी के ब्लेड और कैंची बनाने का. उस वक्त तक ये प्रोडक्ट ब्रिटिश कंपनियां बनाती थीं. आर्देशिर ने इस मौके को लपका. और पहुंच गए पारसी समाज की संभ्रांत शख्सियत मेरवानजी मुचेरजी कामा के पास. आर्देशिर ने उनसे 3 हजार रुपए का कर्ज लिया. और ऑपरेशन के औजार बनाने लगे. मगर जल्द ही वे इस काम में भी फेल हो गए. अपनी जिद और कुछ आग्रहों के चलते.
किस जिद की वजह से फेल हुए? आर्देशिर ने सर्जरी के औजार बनाने शुरू किए. एक ब्रिटिश कंपनी की खातिर. मतलब ये कि प्रोडक्ट आर्देशिर गोदरेज को बनाने थे. और उनको बेचने का जिम्मा ब्रिटिश कंपनी के पास था. मगर ये समझौता जल्द ही एक बात पर टूट गया. बात थी देश का नाम. आर्देशिर का कहना था कि वे अपने प्रोडक्ट्स पर 'मेड इन इंडिया' लिखेंगे. ब्रिटिश साझीदार इसके लिए तैयार नहीं था. उसका मानना था कि 'मेड इन इंडिया' लिख देने से प्रोडक्ट नहीं बिकेंगे. दोनों पक्ष अपनी- अपनी बात पर अड़े रहे. और नतीजा ये हुआ कि आर्देशिर गोदरेज को अपना पहला धंधा बंद करना पड़ा.
फिर कैसे पलटी आर्देशिर गोदरेज की किस्मत? पहला कारोबार फेल हो जाने के बाद आर्देशिर निराश थे. मगर तभी एक दिन उनकी नजर अखबार में छपी एक खबर पर पड़ी. अखबार में बंबई में चोरी की घटनाओं पर खबर छपी थी. और साथ में बंबई के पुलिस कमिश्नर का एक बयान भी था- 'सभी लोग अपने घर और दफ्तर की सुरक्षा और बेहतर करें.'
आर्देशिर के दिमाग में फिर से बिजनेस का कीड़ा कुलबुलाया. उन्हें ताले बनाने का आइडिया सूझा. उस वक्त भारत में सभी ताले हाथ से बनते थे. ये बिलकुल भी सुरक्षित नहीं थे. आर्देशिर ने सुरक्षा के लिहाज से बेहतरीन ताले बनाने की ठानी. ऐसे ताले जिन्हें तोड़ना मुश्किल हो. ताले बनाने की प्लानिंग के साथ वे एक बार फिर उन्हीं मेरवानजी के पास पहुंचे, जिनसे पहले कारोबार के लिए 3 हजार रुपए उधार लिए थे. आर्देशिर ने पहले तो पुराना कर्ज न चुका पाने के लिए मेरवानजी से माफी मांगी. और फिर ताले बनाने की नई योजना उनके सामने रखी. मेरवानजी कामा खुद भी कारोबारी थे. उन्होंने बंबई की चोरी की घटनाओं के बारे में अखबारों में पढ़ रखा था.
थोड़ी देर की बातचीत के बाद मेरवानजी कामा एक बार फिर से आर्देशिर को पूंजी देने को तैयार हो गए. नीलेश परतानी ने अपनी किताब 'सक्सेस हाई-वे' में इस वाकये का जि़क्र कुछ यूं किया है. बातचीत के बाद जब आर्देशिर लौटने लगे तो मेरवानजी कामा ने उनसे पूछा-
'डिकरा (बेटा), अपनी जाति में ताले बनाने वाला कोई और है या तुम्हीं पहले हो?' इस पर आर्देशिर ने कहा, 'मैं पहला हूं या नहीं, ये तो पता नहीं. पर आप जैसे महान शख्स की मदद से मैं सबसे अच्छा बनकर जरूर दिखाऊंगा.'
किस एक वजह से चल निकला गोदरेज का कारोबार? आर्देशिर को मेरवानजी से एक बार फिर कर्ज मिला. तारीख- 7 मई, 1897. आर्देशिर ने प्लान पर अमल शुरू किया. बॉम्बे गैस वर्क्स के बगल में 215 वर्गफुट के गोदाम से. ताले बनाने का काम शुरू हुआ. गुजरात और मालाबार से 12 ट्रेंड कारीगर लाए गए. 'एंकर' ब्रैंड से ताले बाजार में आए. और इन तालों के साथ था एक गारंटी लेटर. ये गारंटी लेटर गोदरेज के लिए सेलिंग प्वाइंट बन गया. उस वक्त तक भारत में तालों पर ऐसी गारंटी कोई नहीं देता था. गोदरेज ने लिखा हर ताले और चाबी का सेट अनूठा है. कोई दूसरी चाबी ये ताला नहीं खोल सकती.
गोदरेज के इस भरोसे को भारत ने हाथों हाथ लिया. गोदरेज के ताले भरोसे का संबल बन गए. गोदरेज के ताले अटूट माने जाने लगे. और अटूट हो गया आर्देशिर गोदरेज का भारत और भारत के लोगों से रिश्ता. आर्देशिर का कारोबार चल निकला. अब उन्हें नए-नए बिजनेस आइडिया सूझने लगे.
गोदरेज ताला.
गोदरेज ताला.

ताले के बाद कौन सा कारोबार शुरू किया? देखते-देखते गोदरेज का ताले का कारोबार आसमान छूने लगा. अब आर्देशिर के दिमाग में ताले के साथ अलमारी बनाने का खयाल आया. बंबई उस वक्त भी अमीरों का शहर था. आज की तरह बैंक लॉकर जैसी सहूलियतें नहीं थीं. देश में नकदी और जेवरात घर में रखने का चलन था. आर्देशिर ने ऐसी अलमारी बनाने का प्लान बनाया, जिसे चोर आसानी से न तोड़ सकें. और इससे भी बढ़कर अलमारी पर आग का भी कोई असर न पड़े.
आर्देशिर ने इसके लिए कागज पर ढेरों डिजाइंस बनाईं. इंजीनियर और अपने कारीगरों के साथ महीनों माथापच्ची की. आखिर में नतीजा सामने आया. तय हुआ कि लोहे की चादर को बिना काटे अलमारी बनेगी. नीलेश परतानी की किताब 'सक्सेस हाई-वे' के मुताबिक
'एक स्टील शीट को 16 बार बैंड करके यानी मोड़कर अलमारी बनाई गई. दरवाजे डबल प्लेटेड किए गए. अलमारी का वजन था पौने दो टन. गोदरेज ने इसके लिए तीन पेटेंट कराए.'
साल 1902 में अलमारी बाजार में आई. आर्देशिर की मेहनत एक बार फिर रंग लाई. देखते-देखते अलमारी बेहद लोकप्रिय हो गई. और धड़ाधड़ बिकने लगी. और ऐसी बिकी कि आज भी भारत में अलमारी और गोदरेज एक दूसरे के पर्याय हैं.
गोदरेज अलमारी.
गोदरेज अलमारी.

अलमारी बनाने के बाद क्या किया गोदरेज ने? तालों और अलमारी ने गोदरेज को ब्रैंड बना दिया. और इसी के साथ आर्देशिर भी ब्रैंड बन गए. युवा कारोबारी आर्देशिर इतने भर से खुश नहीं थे. वे कुछ और करना चाह रहे थे. कुछ ऐसा जो उन्हें देश की जनता के और करीब ले जाए. आर्देशिर तब तक बाल गंगाधर तिलक के संपर्क में आ चुके थे. साल 1906 में उन्होंने तिलक के कहने पर स्वदेशी का सिद्धांत अपनाने की कसम खाई. अब तक आर्देशिर के कारोबार में उनके छोटे भाई फिरोजशा भी जुड़ चुके थे. दोनों भाइयों का ताले और अलमारी का कारोबार फल फूल रहा था. भारत में ब्रिटिश राज के दिन थे. अंग्रेज हिंदुस्तानियों पर तरह- तरह के टैक्स थोप रहे थे. आर्देशिर इन सबसे बेहद विचलित थे.
इन सबके बीच 1910 में उनके जीवन में एक और अहम मोड़ आया. जिन मेरवानजी से कर्ज लेकर आर्देशिर ने कारोबार शुरू किया था. उनके एक भतीजे थे. नाम था बॉयस. मेरवानजी कामा के कहने पर आर्देशिर ने बॉयस को अपना पार्टनर बना लिया. और फिर कंपनी बनी- 'गोदरेज एंड बॉयस मैन्युफैक्चरिंग' कंपनी. हालांकि कुछ दिन बाद बॉयस ने कंपनी छोड़ दी. मगर आर्देशिर ने कंपनी का नाम फिर कभी नहीं बदला. कंपनी का नाम 'गोदरेज एंड बॉयस' आज भी कायम है. इसी कंपनी के पास मुंबई में 3400 एकड़ से ज्यादा जमीन का मालिकाना हक है. अब ये जमीन ही गोदरेज परिवार में कलह की वजह है.
साबुन के कारोबार में कैसे आई कंपनी? आर्देशिर अब देश के लोगों के साथ सीधे जुड़ना चाह रहे थे. इसके लिए उन्हें साबुन से बेहतर प्रोडक्ट नहीं मिल सकता था. भारत में उन दिनों जितने भी नहाने के साबुन बनते थे, उनमें जानवरों की चर्बी इस्तेमाल की जाती थी. इससे हिंदू आहत होते थे. आर्देशिर ने इसमें कारोबारी मौका देखा. अब आर्देशिर एक ऐसा साबुन बनाने में जुट गए, जिसमें जानवरों की चर्बी न मिली हो. रिसर्च के बाद तय हुआ कि चर्बी की जगह वनस्पति तेल इस्तेमाल किया जा सकता है. इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक 'आखिर गोदरेज ने साल 1918 में बिना चर्बी वाला साबुन लॉन्च कर दिया. नाम दिया- 'छवि'. साल भर बाद कंपनी ने गोदरेज नंबर-2 साबुन पेश किया. नंबर-2 नाम देने के पीछे आर्देशिर का तर्क था कि जब लोग नंबर-2 को अच्छा पाएंगे, तो नंबर-1 को उससे भी बेहतर मानेंगे. नंबर-1 साबुन 1922 में बाजार में आया.'
आर्देशिर की सोच एकदम सटीक थी. नंबर-1 साबुन इतना सफल हुआ कि ये आज भी बाजार में आ रहा है. गोदरेज का साबुन का कारोबार बेहद तेजी से फैला. इतनी तेजी से कि आर्देशिर ने ताले और अलमारी का बिजनेस भाई फिरोजशा को सौंप दिया. और खुद पूरी तरह साबुन के कारोबार में रम गए. ये आर्देशिर की ही सोच थी कि उन्होंने रवींद्रनाथ टैगोर को गोदरेज साबुन का ब्रैंड अंबेस्डर बना दिया. आर्देशिर स्वदेशी के लिए समर्पित कारोबारी थे. उनकी इस बात के गांधी जी भी मुरीद थे. निलेश परतानी की किताब में एक किस्सा है. एक बार महात्मा गांधी ने उनके एक बिजनेस कंपटीटर को चिट्ठी लिखी. तो लिखा कि 'मैं अपने भाई गोदरेज का इतना सम्मान करता हूं कि अगर आपका उद्यम इन्हें किसी भी तरीके से नुकसान पहुंचाएगा तो मुझे खेद है कि मैं आपको अपना आशीर्वाद नहीं दे सकूंगा.'
नवल, जमशेद और आदि गोदरेज. फाइल फोटो.
नवल, जमशेद और आदि गोदरेज. फाइल फोटो.

आर्देशिर ने सब कुछ भाई को सौंप दिया आर्देशिर बेहद सज्जन कारोबारी माने जाते थे. वे गांधी जी के करीबी थे. साल 1928 में एक दिन अचानक उन्होंने अपने सारे कारोबार भाई फिरोजशा को सौंप दिए. भाई को कारोबार सौंपकर आर्देशिर नासिक चले आए. साल 1936 में उन्होंने देह त्याग दी. आर्देशिर की पत्नी का देहांत पहले ही हो चुका था. उन्हें कोई संतान नहीं थी. संतान थीं भाई फिरोजशा को. और चार-चार. फिरोजशा के चार बेटे थे. अब उनके उत्तराधिकारियों के बीच ही मतभेद की खबरें चल रही हैं.
फिरोजशा के उत्तराधिकारियों में क्या फसाद है? जैसा कि पहले बताया फिरोजशा के चार बेटे हुए- 1- सोहराब. 2- दोसा. 3- बुरजोर और 4- नवल. सोहराब के कोई औलाद नहीं थी. दूसरे नंबर के बेटे दोसा का एक बेटा था-रिशद. पर रिशद की भी कोई संतान नहीं. आज गोदरेज परिवार में बुरजोर और नवल की ही संतानें हैं.
बुरजोर के दो बेटे हुए- आदि और नादिर. नवल की दो संतानें हैं- जमशेद और स्मिता. आदि गोदरेज इस वक्त गोदरेज समूह के अध्यक्ष हैं. आदि और नादिर गोदरेज प्रॉपर्टीज, गोदरेज इंडस्ट्रीज, गोदरेज कंज्यूमर प्रोडक्ट्स और गोदरेज ऐग्रोवेट का कामकाज देखते हैं. जमशेद उस पैरेंट कंपनी गोदरेज एंड बॉयस कंपनी के चेयरमैन हैं, जिसकी शुरुआत आर्देशिर गोदरेज और फिरोजशा ने की थी.
विवाद किस-किस के बीच है? आदि-नादिर और जमशेद के बीच. आदि और नादिर, जमशेद के चचेरे भाई हैं.
विवाद क्यों है? इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक विवाद की दो वजहें हैं. 1- भविष्य में कारोबार की रणनीति क्या हो, इसको लेकर परिवार में मतभेद हैं. 2- गोदरेज परिवार की मुख्य कंपनी गोदरेज एंड बॉयस के पास मुंबई के विखरोली में 3400 एकड़ से ज्यादा जमीन है. गोदरेज प्रॉ़पर्टीज यहां बड़े रियल एस्टेट प्रोजेक्ट लॉन्च कर रही है. आदि और उनके भाई नादिर गोदरेज यहां ज्यादा से ज्यादा जमीन डेवलप करना चाहते हैं. मगर उनके चचेरे भाई जमशेद गोदरेज ज्यादा जमीन बेचने के पक्ष में नहीं हैं. इसी बात को लेकर दोनों परिवारों में मतभेद की खबरें मीडिया में तैर रही हैं. और बात बंटवारे तक पहुंच रही है.
इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक परिवार ने फैमिली बिजनेस में बदलाव के लिए सिरिल श्रॉफ, जिया मोदी और जेएम फाइनेंशियल सर्विसेज के चेयरमैन निमेश कंपानी से मदद मांगी है. कोटक महिंद्रा बैंक के एमडी उदय कोटक से भी मदद करने को कहा गया है.
कितना बड़ा है गोदरेज समूह? गोदरेज समूह आज करीब 20 तरह के कारोबार कर रहा है. समूह हेयर डाई, फ्रिज, वॉशिंग मशीन, साबुन, फर्नीचर और ताले तक बनाता है. गोदरेज समूह चंद्रयान 1 के लिए लॉन्च व्हीकल भी बना चुका है. गोदरेज के प्रोडक्ट्स दुनिया के 50 से ज्यादा देशों में बिक रहे हैं. ग्रुप की पांच कंपनियां शेयर बाजार में लिस्टेड हैं. इनमें गोदरेज इंडस्ट्रीज, गोदरेज कंज्यूमर, गोदरेज एग्रोवेट, गोदरेज प्रॉपर्टीज और एस्टेक लाइफ साइंसेज शामिल हैं. इनका साझा मार्केट कैपिटलाइजेशन करीब 1.2 लाख करोड़ रुपए का है.
कैसा रहा गोदरेज समूह का सफर?
1897  -  आर्देशिर ने ताला बनाने की कंपनी बनाई 1918   - दुनिया का पहला वनस्पति तेल वाला साबुन बनाया 1923  - अलमारी के साथ फर्नीचर बिजनेस शुरू किया 1951  - पहले लोकसभा चुनाव के लिए 17 लाख बैलेट बॉक्स बनाए 1952  - स्वतंत्रता दिवस पर सिंथॉल साबुन लॉन्च किया 1958  - रेफ्रिजरेटर बनाने वाली पहली भारतीय कंपनी बनी 1974  - लिक्विड हेयर कलर प्रोडक्ट्स लॉन्च किए 1990  - रियल एस्टेट बिजनेस में कदम रखा 1991  - खेती के कारोबार में कदम रखा 1994  - गुड नाइट ब्रैंड बनाने वाली कंपनी ट्रांस्लेक्टा खरीदी 2008  - चंद्रयान-1 के लिए लॉन्च व्हीकल और ल्यूनर ऑर्बिटर बनाए
तो ये थी देश के पचास करोड़ घरों तक अपनी पहुंच बनाने वाले गोदरेज समूह की कहानी. बंटवारे के केस में जो भी अपडेट आएगा, हम आपसे साझा करेंगे.


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