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विप्रो के चेयरमैन अजीम प्रेमजी के पिता जिन्ना के कहने पर पाकिस्तान के वित्तमंत्री क्यों न बने?

अजीम प्रेमजी का परिवार बर्मा से गुजरात आकर इतना अहम कैसे बन गया.

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अज़ीम प्रेमजी ने रिटायरमेंट का फैसला ले लिया है. फाइल फोटो.
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24 जुलाई 2019 (Updated: 23 जुलाई 2019, 03:16 IST)
Updated: 23 जुलाई 2019 03:16 IST
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विप्रो के चेयरमैन अजीम प्रेमजी 30 जुलाई, 2019 को विप्रो कंपनी से रिटायर हो जाएंगे. इसके बाद उनके बेटे रिशद प्रेमजी एक्जीक्यूटिव चेयरमैन बनेंगे. विप्रो (Wipro) इस वक्त देश की चार सबसे बड़ी आईटी कंपनियों में से एक है. अजीम प्रेमजी ने 53 साल तक इस कंपनी की कमान संभाली. आज वे देश के चौथे सबसे रईस शख्स हैं.
विप्रो की शुरुआत कैसे हुई? 1- विप्रो की शुरुआत देश की आजादी से करीब डेढ़ साल पहले 29 दिसंबर, 1945 को अजीम प्रेमजी के पिता मोहम्‍मद हाशिम प्रेमजी (MH Premji) ने मुंबई में की थी. 2- कंपनी का नाम वेस्‍टर्न इंडिया वेजिटेबल प्रोडक्‍ट्स लिमिटेड रखा गया, जिसे आज विप्रो के नाम जाना जाता है. 3- वेस्टर्न इंडिया वेजिटेबल प्रोडक्ट्स लिमिटेड की स्थापना अमलनेर, महाराष्ट्र में कुकिंग ऑयल कंपनी के तौर पर हुई. 4- जिस साल हाशिम प्रेमजी ने कंपनी का गठन किया, उसी साल 24 जुलाई को मुंबई में अजीम प्रेमजी का जन्म हुआ.
प्रेमजी का परिवार गुजरात में कहां से आया? 1- प्रेमजी का परिवार मूल तौर पर बर्मा यानी आज के म्यांमार से आया है. 2- प्रेमजी बर्मा के राइस किंग कहलाते थे. किन्हीं कारणों से परिवार भारत में गुजरात के कच्छ आ गया. कारपोरेट जगत में उनको राइस किंग ऑफ बर्मा के नाम से जाना जाता था. 3- गुजरात में भी उन्होंने चावल का कारोबार शुरू किया. कारोबार चल निकला. 1945 तक अजीम के पिता हाशिम भारत के प्रमुख चावल कारोबारी बन चुके थे. 4- अचानक अंग्रेजों ने कुछ ऐसी नीतियां लागू कर दीं कि हाशिम व्यापार बदलने को मजबूर हो गए. 5- इसके बाद हाशिम ने वनस्पति घी बनाने का फैसला किया. और 1945 में उन्होंने वेस्टर्न इंडिया वेजिटेबल प्रोडक्ट्स लिमिटेड का गठन किया. 6- साल 1946 में मुंबई से 400 किलोमीटर दूर अमलनेर गांव में हाशिम ने वनस्पति घी का कारखाना शुरू किया. दो साल में ये कंपनी पब्लिक लिमिटेड बन गई. 7- हाशिम बेहद ईमानदार कारोबारी थे. उन्होंने अपने कारखाने में स्थानीय किसानों को उपज के अच्छे दाम दिए. 8- हाशिम की कंपनी से यहां के कई छोटे व्यापारियों को भी फायदा हुआ. 9- प्रेमजी का इलाके में बेहद सम्मान हो गया. लोग उन्हें सम्मान से 'मोहम्मद सेठ' बुलाते थे.
पाकिस्तान के वित्तमंत्री क्यों नहीं बने? फिर आया देश के बंटवारे का वक्त. सन 47 में भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हो गया. पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने हाशिम प्रेमजी से पाकिस्तान आने को कहा. जिन्ना ने उनके सामने पाकिस्तान का फाइनेंस मिनिस्टर बनने का प्रस्ताव रखा. इससे पहले 1944 में मुस्लिम लीग कांग्रेस की तर्ज पर एक नेशनल प्‍लानिंग कमेटी बनाना चाहती थी. जिन्‍ना को इसके लिए पढ़े-लिखे और प्रतिष्ठित मुसलमानों की जरूरत थी. जिन्ना ने हाशिम के सामने इस कमेटी में शामिल होने का प्रस्ताव दिया. मगर हाशिम प्रेमजी का भरोसा एक धर्मनिरपेक्ष भारत में था. उन्‍हें भारत में ही अपना भविष्‍य सुरक्षित लगता था. लिहाजा उन्‍होंने जिन्‍ना के इस ऑफर को बड़े ही साहस के साथ नकार दिया. हाशिम का फैसला सही साबित हुआ. गठन के बाद ही पाकिस्तान भारत के साथ एक लंबे युद्ध में फंस गया. बांग्‍लादेश के निर्माण के साथ ही जिन्ना का द्विराष्‍ट्र के सिद्धांत का सपना भी चूर हो गया.
अजीम प्रेमजी. फाइल फोटो.
अजीम प्रेमजी. फाइल फोटो.


अजीम प्रेमजी कारोबार में कैसे आए?
ये 11 अगस्त, 1966 का दिन था. 21 साल के अजीम प्रेमजी अमेरिका के कैलिफोर्निया की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रहे थे. युवा अजीम प्रेमजी को बिलकुल भी एहसास नहीं था कि आज से उनकी जिंदगी इतना बड़ा मोड़ ले लेगी. अजीम के पास एक टेलीफोन कॉल भारत से आई. वो ट्रंक कॉल्स का जमाना था. फोन पर दूसरी और उनकी मां गुलबानो थीं. गुलबानों ने अजीम को बताया कि उनके पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं. अजीम और परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. अजीम मुंबई आए. और कुछ वक्त बाद उन्हें कंपनी की कमान संभालनी पड़ी. अजीम के पिता हाशिम भी यही चाहते थे.
अजीम ने कंपनी को कैसे आगे बढ़ाया?1- उस वक्त 21 साल के युवा अजीम को कारोबार का कोई अनुभव नहीं था. 2- वक्त के साथ अजीम ने खुद को साबित किया. उनहोंने कंपनी को एक मल्टीनेशनल कंपनी में बदल दिया. 3- अजीम प्रेमजी ने जब कारोबार संभाला, उससे साल भर पहले तक कंपनी की वैल्यू करीब 7 करोड़ रुपए की थी. उस वक्त के लिहाज से भी कंपनी बड़ी थी. 4- अजीम प्रेमजी ने कंपनी की पॉलिसी, तकनीक और प्रोडक्ट को शानदार बनाया. इससे कंपनी तेजी से आगे बढ़ी. 5- अजीम ने 1980 में आईटी बिजनेस में कदम रखा. कंपनी का नाम बदलकर विप्रो किया गया. 6- आईबीएम के भारत से बाहर जाने के बाद कंपनी पर्सनल कंप्यूटर बनाने लगी. साथ ही सॉफ्टवेयर सर्विसेज की बिक्री भी शुरू की. 7- साल 1989 में उन्होंने अमेरिकी कंपनी GE यानी जनरल इलेक्ट्रिक्लस के साथ मिलकर मेडिकल इंस्ट्रूमेंट्स बनाने के लिए ज्वाइंट वेंचर बनाया. 8- पहले ये कंपनी वेजिटेबल और रिफाइंड ऑयल, बेकरी, हेयर केयर शॉप, बेबी टॉयलेटरी और लाइटिंग वगैरह के प्रो़डक्ट बनाती थी. 9- पिता की कंपनी को अजीम प्रेमजी ने आज 1.8 लाख करोड़ रुपए की ग्लोबल आईटी कंपनी में बदल दिया है. 10-उन्हें भारतीय आईटी इंडस्ट्री का सम्राट कहा जाता है. टाइम मैगजीन ने उन्हें 2004 और 2011 में 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल किया था.
विप्रो का कारोबार तेजी से बढ़ाया अजीम प्रेमजी ने. फाइल फोटो.
विप्रो का कारोबार तेजी से बढ़ाया अजीम प्रेमजी ने. फाइल फोटो.


कैसे-कैसे बढ़ी विप्रो?1- वक्त के साथ कंपनी का सॉफ्टवेयर बिजनेस हार्डवेयर से बहुत आगे निकल गया. 2- विप्रो को दूसरे देशों से भी काम मिलने लगा. अजीम प्रेमजी एक बेहद सफल कारोबारी बन गए. 3- साल 1995 में अजीम प्रेमजी ने दोबारा पढ़ाई शुरू की. करेस्पोंडेंस क्लासेज के जरिए उन्होंने स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की. 4- साल 2000 में विप्रो का विस्तार अमेरिका तक हो गया कंपनी न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड हो गई. बीपीओ बिजनेस शुरू हो गया. समाजसेवा के लिए अजीम प्रेमजी फाउंडेशन बनाया गया. 5- 1997 से 2002 के बीच विप्रो सबसे तेज पूंजी कमाने वाली कंपनी बन गई. 2004 में कंपनी का राजस्व 1 अरब डॉलर तक पहुंच गया. 6- साल 2005 में अजीम प्रेमजी ने कंपनी के सीईओ का पद भी संभाला लिया. 7- दो साल बाद उनके बेटे रिशद प्रेमजी ने भी विप्रो को ज्वाइन कर लिया. उन्होंने फाइनेंशियल सर्विसेज डिविजन से अपने सफर की शुरुआत की. 2015 में उन्हें विप्रो बोर्ड में शामिल किया गया. 8- विप्रो में प्रेमजी परिवार की 74 फीसदी हिस्सेदारी है. 9- आज विप्रो का आईटी बिजनेस 110 देशों में है. कंपनी में 1.63 लाख कर्मचारी हैं.
रिटायरमेंट के बाद क्या करेंगे अजीम प्रेमजी? अजीम प्रेमजी अब सारा कारोबार अपने बेटे रिशद प्रेमजी को सौंप देंगे. माना जा रहा है कि रिटायरमेंट लेकर अजीम प्रेमजी धर्मार्थ कार्यों में लगना चाहते हैं. मार्च में उन्होंने 52,750 करोड़ रुपए के अपने शेयर अजीम प्रेमजी फाउंडेशन को दान कर दिए थे. इस तरह वे इस फाउंडेशन को अब तक करीब 1.45 लाख करोड़ रुपए दान कर चुके हैं. ये पैसा गरीबों के कल्याण और धार्मिक कार्यों पर खर्च होगा. फाउंडेशन ने साल 2010 में अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की बिना लाभ वाले उपक्रम के तौर पर शुरू किया था. अजीम प्रेमजी अब तक विप्रो Wipro के कुल 67 फीसदी शेयर अजीम प्रेमजी फाउंडेशन को दान कर चुके हैं. अजीम प्रेमजी देश के सबसे बड़े दानदाताओं में से एक हैं. ये फाउंडेशन कर्नाटक, उत्तराखंड, राजस्थान, छत्तीसगढ़, पुडुचेरी, तेलंगाना, मध्यप्रदेश और उत्तर-पूर्वी राज्यों में सक्रिय है. बीते पांच साल में वंचित तबकों के लिए काम कर रहे करीब 150 एनजीओ को अजीम प्रेमजी फाउंडेशन से फंड मिला है. रिटायरमेंट से ठीक पहले वे 74 साल के होने जा रहे हैं. वैसे, जुलाई 2024 तक आजीम प्रेमजी कंपनी के गैर-कार्यकारी निदेशक बने रहेंगे. वे कंपनी के संस्थापक चेयरमैन भी रहेंगे.
प्रेमजी ने कर्मचारियों को भेजे संदेश में कहा कि
'हमने एक लंबा और संतोषजनक सफर तय किया. भविष्य में मैं अपने परोपकार के कामों पर ध्यान देना चाहता हूं. विप्रो नई ऊंचाइयों को छूने के लिए अपने आप में बदलाव करती रहेगी. दुनिया बदल रही है, लेकिन कंपनी अपने मूल्यों पर पूरी तरह से प्रतिबद्ध है. मुझे विश्वास है. विप्रो का भविष्य पहले से ज्यादा शानदार होगा. रिशद ने सोच और अनुभव के नए तरीके पेश किए हैं. वे विप्रो को बहुत ऊंचाइयों तक लेकर जाएंगे.'
रिशद प्रेमजी.
रिशद प्रेमजी. फाइल फोटो. इंडिया टुडे. 


बेटे के हाथ कमान विप्रो में अब रिशद की बारी है. करीब एक दशक पहले ही ये तय हो गया था कि विप्रो के चेयरमैन अजीम प्रेमजी के बेटे रिशद प्रेमजी ही कंपनी की कमान संभालेंगे. रिशद ने हावर्ड बिजनेस स्कूल से बिजनेस की डिग्री हासिल की है. उन्होंने विप्रो में कई फैसले लिए हैं. रिशद विप्रो में अब तक इनवेस्टर रिलेशंस एंड कॉर्पोरेट अफेयर्स के मुखिया और चीफ स्ट्रैटिजी ऑफिसर (CSO) के तौर पर काम कर रहे थे. उन्होंने 100 मिलियन डॉलर वाले विप्रो वेंचर्स को भी स्थापित किया. रिशद नैसकॉम के चेयरमैन भी थे. रिशद के अलावा विप्रो बोर्ड ने मौजूदा CEO आबिदाली जेड नीमचवाला को CEO के साथ-साथ मैनेजिंग डायरेक्टर यानी MD की भी जिम्मेदारी देने का फैसला किया है. ये बदलाव शेयरधारकों की मंजूरी मिलने के बाद 31 जुलाई 2019 से प्रभावी होंगे. इस मौके पर रिशद ने कहा कि
'विप्रो का भविष्य चमकदार है. इसकी सबसे बड़ी ताकत उसके लोग हैं. बीते 53 सालों से प्रेमजी ने विप्रो को एक छोटे से कारोबार से बढ़ाकर इस मुकाम तक पहुंचाया. और इसकी अगुवाई की. उनका योगदान और उपलब्धि विप्रो की सफलता से परे है. वे आईटी इंडस्ट्री के ग्लोबल लेवल पर प्रमुख लोगों मे से एक हैं.'
अजीम प्रेमजी के जीवन के 4 रोचक किस्से
1- बेहद साधारण जीवनः कहते हैं कि अजीम प्रेमजी ऑटो से ही एयरपोर्ट चले जाते हैं. वे दूसरे कर्मचारियों जैसी सुविधाएं ही लेते हैं. एक बार विप्रो के एक कर्मचारी ने कार अपनी कार उस जगह खड़ी कर दी जहां अजीम अपनी कार खड़ी करते थे. इस पर कंपनी के कुछ अधिकारियों ने आदेश जारी कर दिया कि भविष्य में कोई उस जगह पर गाड़ी खड़ी न करे. इस पर अजीम प्रेमजी इस आदेश का विरोध किया और कहा कि कोई भी खाली जगह पर गाड़ी खड़ी कर सकता है. अगर मुझे वही जगह चाहिए तो मुझे दूसरों से पहले ऑफिस आना होगा. 2- कंपनी के गेस्ट हाउस में ठहरना: अजीम प्रेमजी जब भी कहीं बाहर जाते हैं वे कंपनी के गेस्ट हाउस में ही रुकते हैं. वे प्लेन के इकॉनमी क्लास में सफर करते हैं. घर से ऑफिस या एयरपोर्ट से घर जाते समय अगर टैक्सी न मिले तो ऑटो से जाने में भी नहीं हिचकते हैं. 3- ईमानदारी नहीं छोड़ते: साल 1987 में विप्रो ने अपने कर्नाटक के तुमकूर कारखाने के लिए बिजली के कनेक्शन का आवेदन किया. बिजली कर्मचारी ने इसके लिए एक लाख रुपए की रिश्वत मांगी. प्रेमजी ने रिश्वत देने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा नियम से सप्लाई नहीं मिलेगी तो हम अपनी बिजली बना लेंगे. विप्रो ने जेनरेटर से काम चलाया. इस पर करीब 1.5 करोड़ रुपए खर्च हुए. 4- खुद ऑफिस खोला: विप्रो में WEP सोल्यूशन्स के MD राम नारायण अग्रवाल 1977 में विप्रो से जुड़े थे. तब वे सुबह 7 बजे इंटरव्यू के लिए पहुंच गए थे. तभी एक युवक आया और ऑफिस खोलने लगा. उन्हें लगा कि ये ऑफिस एडमिनिस्ट्रेशन का व्यक्ति है. युवक उन्हें रिसेप्शन पर बैठाकर अंदर चला गया. थोड़ी देर बाद अग्रवाल को इंटरव्यू के लिए बुलाया गया. तब उसी युवक ने अपना परिचय दिया, मैं प्रेमजी हूं.


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