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उत्तर प्रदेश में EVM से छेड़खानी का सच ये है!

अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश चुनाव में EVM धांधली के जो आरोप लगाए उनमें कितना दम है?

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अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश चुनाव में EVM धांधली के जो आरोप लगाए उनमें कितना दम है? (फोटो - इंडिया टुडे)
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निखिल
9 मार्च 2022 (Updated: 9 मार्च 2022, 06:05 PM IST) कॉमेंट्स
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पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के नतीजे कुछ घंटों में आने ही वाले हैं. जीत के आलिंगन और हार स्वीकारने का दौर दहलीज़ पर है. लेकिन उससे पहले नेता और उनकी पार्टियां एक राउंड और खेल लेना चाहती हैं. और इस राउंड का नाम है ''इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन EVM पर सवाल उठाओ राउंड.'' आप लगातार वो तस्वीरें देख रहे हैं, जिनमें EVM किसी ट्रक में रखी हुई हैं. जैसे लावारिस हों. साथ में नेताओं के इल्ज़ाम - कि ईवीएम में धांधली की कोशिश हो रही है. तो कहीं नेताओं ने ये मांग ही रख दी कि अगर डीएम का तबादला नहीं हुआ, तो मतगणना नहीं होने दी जाएगी. नतीजों से पहले चुनाव के माध्यम पर सवाल उठना एक गंभीर मसला है. आज समझेंगे कि EVM की विश्वसनीयता पर उठाए गए सवालों में कितना दम है. ईवीएम पर आरोप नई बात नहीं हैं. इस बार वाले बतंगड़ का मंच है उत्तर प्रदेश. सबसे ज़्यादा सीटों वाला राज्य. जहां के नतीजों का सीधा असर लोकसभा चुनाव 2024 पर पड़ सकता है. समाजवादी पार्टी ने इल्ज़ाम लगाया कि वाराणसी में गिनती से 48 घंटे पहले गैरकानूनी रूप से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने की कोशिश हुई. अखिलेश यादव ने ये भी कहा कि 2017 में तकरीबन 50 सीटों पर भाजपा प्रत्याशी की विनिंग मार्जिन 5 हज़ार वोट से कम थी. गैरकानूनी रूप से ईवीएम लाना-ले जाना और कम विनिंग मार्जिन का ज़िक्र साथ में करके समाजवादी पार्टी ने इशारों इशारों में कह दिया कि कड़े मुकाबले वाली सीटों पर ईवीएम में धांधली से भाजपा चुनाव जीतना चाहती है. वाराणसी मामले को लेकर ही सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर को भी शिकायत है. राजभर पहले एनडीए गठबंधन का हिस्सा थे. लेकिन इस बार उन्होंने अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी से गठबंधन किया है. दरअसल हुआ ये था कि वाराणसी के पहाड़िया मंडी स्थित खाद गोदाम से EVM मशीनें एक गाड़ी में भरकर ले जाई जा रही थीं. इसी गाड़ी को सपा कार्यकर्ताओं ने देखा और फिर ये खबर चल गई कि ईवीएम में हेराफेरी शुरू हो गई. इसके बाद वाराणसी में मतगणना स्थल के पास सपा कार्यकर्ताओं ने हंगामा भी किया. चूंकि वाराणसी, प्रधानमंत्री मोदी का संसदीय क्षेत्र है, यहां किसी गड़बड़ का आरोप प्रशासन अपने ऊपर लगने नहीं देना चाहता था. ज़िला प्रशासन की तरफ से ज़िला मैजिस्ट्रेट कौशल राज शर्मा ने कहा,
''खाद गोदाम में बने स्टोर से ये ईवीएम यूपी कॉलेज ले जाई जा रही थीं. कुछ राजनैतिक लोगों ने इस गाड़ी को रोका और इन्हें चुनाव में प्रयुक्त ईवीएम कहकर अफवाह फैलाई. 9 मार्च को मतगणना में लगे कर्मचारियों की द्वितीय ट्रेनिंग है. ये हैंड्स ऑन ट्रेनिंग होगी. और ऐसा हमेशा होता है.''
लेकिन राजभर इस बात से संतुष्ट नहीं हुए. वो आयोग के प्रोटोकॉल वाली बात पर टिके रहे मामला हाई प्रोफाइल था, तो खुद वाराणसी मंडल के आयुक्त दीपक अग्रवाल ने प्रेस से बात की. उन्होंने कहा कि जिन ईवीएम को लेकर बवाल हुआ है उनका इस्तेमाल चुनाव के लिए नहीं हुआ है. उनके बयां वाले क्लिप को समाजवादी पार्टी ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट कर दिया है. ये रेखांकित किया, कि आयुक्त ने प्रोटोकॉल में चूक की बात स्वीकार कर ली. साथ में सवाल उठा दिया कि अलग-अलग ज़िलों में हेरा-फेरी के जो आरोप लग रहे हैं, ये किनके इशारे पर हो रहा है. आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने भी बहती गंगा में हाथ धोए. बवाल सिर उठाता गया तो चुनाव आयोग ने भी एक पत्र जारी करके अपना पक्ष रखा. आयोग ने कहा कि मशीनें ट्रेनिंग के लिए थीं. मतदान में इस्तेमाल हुई मशीनों को लेकर आयोग ने कहा कि इन्हें स्ट्रॉन्ग रूप के अदर सील बंद करके रखा गया है. स्ट्रॉन्ग रूप में सीसीटीवी निगरानी की जा रही है. सीसीटीवी फुटेज को राजनैतिक दलों के प्रत्याशियों के प्रतिनिधी भी देख रहे हैं. फिर इस स्ट्रॉन्ग रूम के बाहर केंद्रीय अर्धसैनिक बल तीन घेरों में पहरा दे रहे हैं. वाराणसी के अलावा 8 मार्च को ही बरेली में भी लगभग इसी तरह का बवाल हुआ था. सपा कार्यकर्ताओं ने दावा किया कि नगर पालिका की कचरा गाड़ी में लोहे के बक्से के अंदर से निर्वाचन सामग्री और कोरे बैलेट पेपर मिले हैं. यहां भी डीएम और एसपी पहुंचे और प्रदर्शनकारी सपा कार्यकर्ताओं के साथ एक बैठक की. तब जाकर विवाद थमा. ज़िला प्रशासन ने सपा कार्यकर्ताओं को स्ट्रॉन्ग रूम की सीसीटीवी फुटेज भी दिखाई. डीएम शशिकांत द्विवेदी ने भरोसा दिलाया कि इस मामले की जांच की जाएगी. ये मामला कमोबेश 8 मार्च की रात तक शांत हो गया था. आज तक खिंचा वाराणसी का मामला. आज दोपहर सूत्रों ने ये दावा किया कि केंद्रीय चुनाव आयोग ने वाराणसी मामले में कार्रवाई के आदेश दिए हैं. उत्तर प्रदेश के मुख्य चुनाव अधिकारी को आदेश दिया गया है कि वाराणसी के अतिरिक्त ज़िला मैजिस्ट्रेट एनके सिंह के खिलाफ एक्शन लिया जाए. आयोग की सफाई और एक्शन की बात सामने आने के बाद एक तरफ वाराणसी वाला प्रकरण शांत होने लगा, दूसरी तरफ संत कबीर नगर में फिर एक बवाल हो गया. सपा कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि रिटर्रनिंग अफसर के दस्तखत वाले बैलेट पेपर लेकर एक कर्मचारी स्ट्रॉन्ग रूम की तरफ जा रहा था. तभी कार्यकर्ताओं ने कर्मचारी को पकड़ लिया. ये बैलेट पेपर वो थे, जो ईवीएम पर लगाए जाते हैं. मामले की जानकारी लगने के बाद संत कबीर नगर की ज़िला मैजिस्ट्रेट (ज़िला निर्वाचन अधिकारी) दिव्या मित्तल मौके पर पहुंचीं. और SDM को जमकर फटकार लगाई. यहां ज़िला मैजिस्ट्रेट ने तत्परता दिखाते हुए तुरंत एफआईआर का आदेश दे दिया. इस बुलेटिन की तैयारी तक इस मामले में अपडेट्स आते जा रहे थे. शाम तक समाजवादी पार्टी ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर मुरादाबाद से भी एक वीडियो डाल दिया. पार्टी ने दावा किया कि मुरादाबाद की बिलारी विधानसभा से सपा प्रत्याशी ने हज़ारों की संख्या में खाली बैलेट पेपर बरामद किए हैं. सोशल मीडिया ऐसे कई और वीडियो और दावों से अटा पड़ा है. वाराणसी, बरेली, मुरादाबा और संत कबीर नगर वो अकेले मामले नहीं हैं जब समाजवादी पार्टी ने धांधली का आरोप लगाया. आज से एक हफ्ते पहले कानपुर की बिलहौर सीट पर सपा प्रत्याशी रचना सिंह ने आरोप लगाया था कि स्ट्रॉन्ग रूम से छेड़छाड़ हुई है. रचना सिंह ने दावा किया कि सीसीटीवी फुटेज में एक व्यक्ति बार बार स्ट्रॉन्ग रूम में आता-जाता नज़र आ रहा है. अपनी शिकायत में उन्होंने ये भी कहा कि जब ज़िला मैजिस्ट्रेट भी स्ट्रॉन्ग रूम में दाखिल नहीं हो सकते, तब ये कैसे हुआ. इस मामले में आयोग एक्शन ले. इस मामले का संज्ञान लेते हुए कानपुर ज़िला मैजिस्ट्रेट ने मुख्य चुनाव अधिकारी की हैसियत से एक स्पष्टीकरण जारी किया. उन्होंने कहा,
1 मार्च को दो लोगों ने बिल्हौर विधानसभा के स्ट्रॉन्ग रूम की बाहरी दीवार को लांघने की कोशिश की. इन्हें केंद्रीय रिज़र्व पुलिस फोर्स के जवानों ने पकड़ लिया और पूछताछ के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस के सुपुर्द कर दिया. इसके बाद स्ट्रॉन्ग रूम के सुरक्षा अधिकारी ने सीसीटीवी फुटेज की जांच का फैसला लिया. इसी के लिए ऑपरेटर सीआरपीएफ के जवानों के साथ मौजूद था. इसी घटना की क्लिप से एक स्क्रीनशॉट वायरल हुआ. स्ट्रॉन्ग रूम में कोई नहीं घुसा और सपा कैंडिडेट की शिकायत निराधार है.''
ये सारे मामले राष्ट्रीय सुर्खियों का हिस्सा बन गए, तो समाजवादी पार्टी के यूपी अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल ने चुनाव आयोग को एक खत लिख दिया. उन्होंने खत में मांग की कि मतगणना स्थल के पास मोबाइल जैमर लगाए जाएं. ताकि फोन का दुरुपयोग न हो और हैकिंग की आशंका का निदान हो. समाजवादी पार्टी ने अब मतगणना की वेबकास्टिंग की मांग भी कर दी है. माने मतगणना को लाइव इंटरनेट पर दिखाया जाए. और इसके लिंक राजनैतिक पार्टियों को दिए जाएं. तो जैसे जैसे चुनाव नतीजे पास आते जा रहे हैं, समाजवादी पार्टी चुनाव प्रक्रिया को लेकर सवालों का अंबार लगाती जा रही है. कहीं सवाल बैलेट पेपर का है, कहीं ईवीएम तो कहीं स्ट्रॉन्ग रूम की सुरक्षा का. प्रशासन ने हर मामले में यही दावा किया है कि मतदान में इस्तेमाल हुई ईवीएम स्ट्रॉन्ग रूम में हैं. और वो पूरी तरह सुरक्षित हैं. इसीलिए धांधली का सवाल नहीं उठता. इस सब पर चुटकी लेते हुए केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने कह दिया है कि अखिलेश 10 मार्च को कहेंगे - EVM बेवफा है. इस बुलेटिन की तैयारी के लिए अध्ययन करते हुए एक बात हमारे सामने आई. समाजवादी पार्टी लाख आरोप लगाए, अभी तक ईवीएम से छेड़छाड़ का पुख्त सबूत पार्टी पेश नहीं कर पाई है. प्रशासन से इधर-उधर छोटी मोटी चूक ज़रूर हुई हैं, जिन्होंने आरोपों को बल दिया. लेकिन क्या वाकई मताधिकार की चोरी चल रही है, इसके प्रमाण अभी तक सार्वजनिक नहीं हुए हैं. वैसे अखिलेश एक बात में शांति ढूंढ सकते हैं. ईवीएम पर आरोप लगाने वाले न वो अकेले हैं, और न पहले. ईवीएम पर आरोप लगाने वालों में सबसे चर्चित नाम है भाजपा के वयोवृद्ध नेता लालकृष्ण आडवाणी का. लेकिन उनके आरोप पर आने से पहले ईवीएम की यात्रा समझ लेते हैं. EVM को सबसे पहले केरल विधानसभा चुनाव के दौरान परूर विधानसभा में बतौर पायलट प्रोजेक्ट इस्तेमाल किया गया था. साल था 1982. 10 साल बाद 1992 में संसद ने रिप्रेज़ेंटेशन ऑफ पीपल एक्ट और कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल्स में बदलाव करके EVM के इस्तेमाल को कानूनी मान्यता दी. 1998 के बाद से लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए EVM का इस्तेमाल शुरू हो गया. 2004 में पोस्टल बैलेट को पूरी तरह खत्म कर दिया गया. आज जो आधुनिक ईवीएम इस्तेमाल होती है, उनमें Voter Verified Paper Audit Trail (VVPAT)लगा होता है. इसमें मतदान के बाद एक पर्ची निकलती है, जो कुछ देर वोटर को नज़र आती है. इसके बाद एक बक्से में जमा हो जाती है. अगर गड़बड़ की आशंका हो, तो पर्ची और मशीन के मतों को मिलाकर देखा जा सकता है. लौटते हैं EVM पर उठाए गए सवालों पर. 2009 में भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले मांग की कि चुनाव पुरानी पद्दति से कराए जाएं. माने बैलेट पेपर से. 2009 वो साल था, जब भाजपा लगातार दूसरी बार लोकसभा चुनाव हारी थी. EVM को लेकर पार्टी की असहजता बढ़ती गई. इसके अगले साल भाजपा ने एक पूरी किताब ही लॉन्च कर दी. इस किताब का नाम था Democracy At Risk! Can We Trust Our Electronic Voting Machines?. हिंदी में नाम हुआ - लोकतंत्र खतरे में. क्या हम EVM पर भरोसा कर सकते हैं. इस किताब को लिखा था भाजपा नेता जीवीएल नरसिम्हा राव ने. और लॉन्च किया था तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने. तो आप समझ सकते हैं भाजपा को EVM से कितनी दिक्कत रही है. लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में में पार्टी की प्रचंड जीत के बाद पार्टी EVM पर सवाल नहीं उठाती. तो अब सवाल कौन उठाते हैं? 2017 के उत्तर प्रदेश चुनाव में हार के बाद मायावती ने EVM पर सवाल उठाए थे. इसी साल पंजाब विधानसभा में हार के बाद आम आदमी पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ने भी EVM पर सवाल उठाए थे. तब केजरीवाल ने चुनाव आयोग पर सवाल उठाते हुए लालकृष्ण आडवाणी को ही याद किया था. उन्हीं दिनों आम आदमी पार्टी विधायक सौरभ भारद्वाज ने भी दिल्ली विधानसभा में एक डेमो किया. सौरभ ने डेमो के बाद दावा किया कि ईवीएम टेंपरिंग हो सकती है. वैसे इस डेमो में चुनाव आयोग की ईवीएम को शामिल नहीं किया गया था. इस पूरे हंगामे के बाद 2017 के जून में केंद्रीय चुनाव आयोग ने सभी राजनैतिक दलों को खुला न्योता दिया. कहा, कि चाहें तो हमारे पास आकर बताएं कि ईवीएम में छेड़छाड़ कैसे होती है. अगस्त सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में चुनाव आयोग ने कहा कि हमने हैकिंग के डेमो के लिए न्योता दिया था. लेकिन कोई दल आया ही नहीं.  NCP और CPM के प्रतिनिधि आए तो थे, लेकिन उन्होंने ऐन वक्त पर कहा कि वो सिर्फ मशीन के काम करने का तरीका समझना चाहते हैं. इसीलिए अब राजनैतिक दलों को EVM पर सवाल नहीं उठाना चाहिए. इसके बाद जनवरी 2019 में सैयद शुजा नाम के एक साईबर एक्सपर्ट ने दावा किया कि 2014 के लोकसभा चुनाव में धांधली हुई. और इसके लिए EVM का इस्तेमाल हुआ. लंदन में बैठकर शुजा ने दावा किया कि वो EVM निर्माण से जुड़े हुए थे. 2014 में उनके कुछ साथियों की हत्या हुई. तब उन्हें देश छोड़ना पड़ा. वो अमेरिका में राजनैतिक शरण मांग रहे हैं. शुजा ने तब इस पूरे प्रकरण में रिलायंस जियो का नाम लिया था. वैसे जियो की सेवाएं भारत में सितंबर 2016 में शुरू हुई थीं, न कि 2014 में. शुजा के आरोपों को चुनाव आयोग ने पूरी तरह खारिज कर दिया था. EVM पर देश के अलग अलग उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में कई याचिकाएं अलग अलग समयों पर लगी हैं. उन सबके बारे में विस्तार से बात करने के लिए अलग से एक दी लल्लनटॉप शो करना होगा. एक चर्चित मामला था 2017 का, जिसमें बसपा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी. इसमें कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने भी पैरवी के लिए वकील भेजे थे. ऐसी किसी याचिका की सुनवाई के दौरान अदालत में ये कभी साबित नहीं हो पाया कि ईवीएम से छेड़छाड़ हो सकती है. इसी साल जनवरी में रिप्रेज़ेंटेशन ऑफ पीपल एक्ट के उस प्रवधान को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी, जिसके तहत EVM को कानूनी मान्यता दी गई थी. ऐसी अनेक याचिकाएं खारिज हो चुकी हैं. कई अब भी लंबित हैं. वैसे EVM की बात चली है, तो आपको ये भी बता दें सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले की नज़ीर बार बार ज़रूर दी जाती है. 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि निष्पक्ष चुनाव के लिए पेपर ट्रेल होना अत्यावश्यक है. पेपर ट्रेल से इशारा VVPAT की तरफ था. इसीलिए समय समय पर मांग की जाती रही है कि VVPAT से मिलान को बढ़ाया जाए. इसे लेकर एक याचिका 8 मार्च 2022 को भी सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पहुंची. इसमें मांग की गई थी कि वीवीपैट को पांच बूथ प्रति विधानसभा की जगह 25 बूथ प्रति विधानसभा में मिलाकर देखा जाए. साथ ही ये काम गणना शुरू होने से पहले किया जाए. इस याचिका को खारिज करते हुए चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना की बेंच ने कहा कि अंतिम क्षण में हम कुछ नहीं कर सकते. साथ ही अदालत ने चुनाव आयोग की उस दलील को भी वज़न दिया जिसके मुताबिक आयोग सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक ही VVPAT मिलान कर रहा था. तो इस पूरी बातचीत से हम चार निष्कर्ष निकाल सकते हैं. >>EVM में हेरफेर के आरोप प्रशासन की किसी चूक के चलते सामने आते हैं. >>EVM पर आरोप अमूमन वो पक्ष लगाता है, जो हार चुका होता है, या हारने वाला होता है. >>EVM पर आरोप लगाने वाला पक्ष जब चुनाव जीत जाता है, तो वो EVM पर आरोप नहीं लगाता है. >>ये कहना कि EVM में हेरफेर असंभव है, अतिरेक होगा. लेकिन EVM में हेरफेर के प्रमाण अभी तक हमारे सामने नहीं आए हैं. यहां हमारा कहना ये कतई नहीं है कि चुनाव प्रकिया या EVM  में सुधार नहीं हो सकता. हर सिस्टम में बेहतर होने की गुंजाइश होती है. और हम कामना करते हैं भविष्य में EVM को लेकर सभी स्टेकहोल्डर्स का भरोसा और बढ़ेगा.

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