नकली हथियार दिखा प्लेन हाइजैक किया और बिना किसी मांग के सरेंडर क्यों किया?
माल्टा प्लेन हाईजैक मामले में एक आरोपी को 25 साल की जेल हुई है. पूरी कहानी जानिए.
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अफ़्रीकिया एयरवेज की फ़्लाइट संख्या-209 23 दिसंबर 2016 को हाईजैक हुई थी. (फोटो: एएफपी)
क़िस्सा शुरू करने से थोड़ा सा माल्टा के बारे में जान लेते हैं. माल्टा भूमध्यसागर में बसा एक द्वीप है. इटली इसके उत्तर में है. दक्षिण में लीबिया है. पश्चिम में ट्यूनीशिया है और पूरब में ग्रीस. माल्टा को याद रखने के लिए एक फ़ैक्ट जान लीजिए.

भूमध्यसागर में बसा एक द्वीपीय देश है माल्टा. (गूगल मैप्स)
दिसंबर, 1989 में यहीं पर अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश सीनियर और सोवियत संघ के सुप्रीम लीडर मिखाइल गोर्बाचोव की मीटिंग हुई थी. बर्लिन वॉल गिराए जाने के 22 दिनों के बाद. दोनों नेता सोवियत क्रूज शिप ‘मैक्सिम गोर्की’ पर मिले. दो दिनों तक बातचीत चली. इसको ‘माल्टा समिट’ का नाम दिया गया था. 3 दिसंबर को प्रेस कॉन्फ़्रेंस हुई. जिसमें कोल्ड वॉर को खत्म करने का ऐलान किया गया. माल्टा याद हो गया!

जॉर्ज बुश सीनियर और मिखाइल गोर्बाचोव ने माल्टा में कोल्ड वॉर को खत्म करने का फैसला लिया था. (फोटो: एएफपी)
माल्टा इस समय ख़बरों में क्यों हैं?
वजह है अदालत का एक फ़ैसला. जिसके तहत प्लेन हाईजैकिंग के दो आरोपियों में से एक ‘सूको मूसा शाह अली’ ने अपना दोष स्वीकार कर लिया है.. उसको 25 साल क़ैद की सज़ा मिली है. जबकि दूसरा आरोपी ‘अली अहमद’ फिलहाल सुनवाई का इंतज़ार कर रहा है.
ये हाईजैकिंग कब हुई थी? ये हुई थी दिसंबर, 2016 में. 23 दिसंबर की सुबह, 08 बजकर 10 मिनट पर अफ़्रीकिया एयरवेज के फ़्लाइट संख्या-209 ने सबहा एयरपोर्ट से उड़ान भरी. विमान में कुल 118 लोग सवार थे. 111 पैसेंजर और 07 क्रू मेंबर्स. अगर सब ठीक रहता तो इसे 70 मिनट बाद राजधानी त्रिपोली में उतरना था.
लेकिन उस दिन ऐसा नहीं हुआ. उड़ने के कुछ ही समय बाद दो लोग उठ खड़े हुए. उनके हाथों में हैंड ग्रेनेड और बंदूकें थीं. उन्होंने बात न मानने पर प्लेन को उड़ाने की धमकी दी. पायलट ने विमान को लीबिया में ही उतारने की कोशिश की. लेकिन हाईजैकर्स ने ऐसा करने से रोक दिया.

इस प्लेन में कुल 118 लोग सवार थे. (फोटो: एएफपी)
माल्टा का रिकॉर्ड बहुत ख़राब था!
फिर प्लेन को माल्टा ले चलने के लिए कहा गया. साढ़े 11 बजे प्लेन माल्टा इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर लैंड हुआ. थोड़ी ही देर बाद हाईजैकिंग की ख़बरें दुनियाभर में फ्लैश होने लगी. तब तक आर्मी की एक टुकड़ी एयरपोर्ट पर पहुंच चुकी थी. उन्होंने प्लेन को घेर लिया था. लेकिन खतरे की आशंका बढ़ती जा रही थी.
प्लेन को हाईजैकर्स से छुड़ाने में इस एयरपोर्ट का रिकॉर्ड बेहद खराब था. 1985 में ‘ईजिप्ट एयर फ्लाइट 648’ को हाईजैक कर माल्टा लाया गया था. ये प्लेन एथेंस से काहिरा जा रहा था. माल्टा सरकार ने ईजिप्ट की स्पेशल फ़ोर्स को रेस्क्यू ऑपरेशन चलाने की इजाज़त दी थी. लेकिन उन्होंने इस ऑपरेशन अपने ही लोगों की जान ले ली थी. 89 में से 58 यात्री रेस्क्यू के दौरान मारे गए थे. दो में से एक आतंकी मारा गया था, जबकि दूसरे को अरेस्ट कर लिया गया.

ईजिप्ट एयर फ्लाइट 648 हाईजैक के रेस्क्यू के दौरान 89 में से 58 यात्री मारे गए थे. (एएफपी)
इस वजह से माल्टा सरकार की चिंताएं बढ़ी हुई थीं. सरकार ने संदेश भिजवाया. सभी पैसेंजर्स को छोड़ो, फिर आगे की बात करेंगे. लेकिन हाईजैकर्स कोई डिमांड नहीं रख रहे थे. ये पूरा वाकया स्टेट टीवी पर लाइव चल रहा था.
थोड़ी देर के बाद एक हाईजैकर बाहर निकला. उसने प्लेन के दरवाजे से हरे रंग का एक झंडा लहराया. और, वापस अंदर चला गया. इसके कुछ ही समय बाद माहौल अचानक बदल गया. इस बार दोनों हाईजैकर्स बाहर निकले. उन्होंने अपने दोनों हाथ ऊपर कर रखे थे. मतलब साफ़ था कि वो सरेंडर कर रहे थे. दोनों को फौरन हिरासत में ले लिया गया.
आर्मी अंदर गई. वहां कुछ भी नुकसान नज़र नहीं हुआ था. सारे पैसेंजर्स और क्रू मेंबर्स सुरक्षित थे. जब हथियारों की जांच हुई तो पता चला कि वो नकली थे. लेकिन उनमें फर्क़ करना आसान नहीं था.
क्या ये हाईजैकिंग सिर्फ़ परेशान करने के इरादे से की गई थी?
इस सवाल का जवाब उस हरे झंडे में था, जिसे एक हाईजैकर ने प्लेन के दरवाज़े से लहराया था. ये झंडा लीबिया के तानाशाह मुअम्मार गद्दाफ़ी के समय का था. वे दोनों गद्दाफ़ी के सपोर्टर थे. और, माल्टा में शरण लेना चाहते थे. उनका इरादा प्रो-गद्दाफ़ी पार्टी बनाने का भी था. इस हाईजैकिंग के जरिए वे दुनिया को इसके बारे में बताना चाहते थे.

लीबिया के तानाशाह मुअम्मार गद्दाफ़ी (एएफपी)
मुअम्मार गद्दाफ़ी ने 1969 में सैन्य विद्रोह करके सत्ता हथियाई थी. दमन और शोषण, उसके दो सबसे बड़े हथियार थे. अपने देश में निरंकुश शासन चलाने के अलावा वो दुनियाभर के आतंकियों को सपोर्ट भी करता था. उन्हें हथियार और पैसे मुहैया कराता था. दिसंबर, 2010 में अरब के देशों में क्रांति शुरू हुई. इसके लपेटे में गद्दाफ़ी भी आया. अक्टूबर, 2011 में भीड़ ने पीट-पीटकर उसकी जान ले ली. तब जाकर 42 सालों की तानाशाही का अंत हुआ.
गद्दाफ़ी की मौत के बाद भी लीबिया के हालात नहीं सुधरे. देश सिविल वॉर में फंस गया. अलग-अलग धड़े अपने फायदे के लिए अपने ही लोगों का ख़ून बहाने लगे. देश में सब अस्त-व्यस्त हो गया. आम लोगों की सुरक्षा की चिंता किसी को नहीं थी. ऐसे में प्लेन हाईजैकिंग करना बेहद आसान था. गद्दाफ़ी सपोर्टर्स ने ऐसा ही किया. लेकिन वो अपने प्लान को अमलीजामा पहननाने में नाकाम रहे.

अक्टूबर, 2011 में भीड़ ने पीट-पीटकर मुअम्मार गद्दाफ़ी की जान ले ली. (एएफपी)
अब इस मामले पर अदालत की मुहर लग गई है. इस घटना में न तो कोई हताहत हुआ और न ही कोई बड़ा नुकसान पहुंचा, फिर इतनी कड़ी सज़ा क्यों? अदालत ने कहा कि ये सच है कि इस घटना में किसी को खरोंच तक नहीं आई. लेकिन ऐसे वारदात करने की सोच रखने वालों को चेतावनी देना बेहद ज़रूरी था. हाईजैकिंग और सज़ा का मामला आपकी समझ में आ गया होगा.
हमने बताया था कि एक फ़िल्म डायरेक्टर को इस घटना से खूब फायदा हुआ. वो कैसे?
दरअसल, हाईजैकिंग वाले दिन माल्टा एयरपोर्ट पर एक फ़िल्म की शूटिंग चल रही थी. नाम ‘एंतेबे’. ये फ़िल्म 1976 के ऑपरेशन एंतेबे पर बेस्ड थी. इस ऑपरेशन की कहानी क्या है? 27 जून, 1976 को एयर फ़्रांस का एक विमान तेल अवीव के बेन गुरियन एयरपोर्ट से उड़ा. इसे एथेंस होते हुए पेरिस पहुंचना था.
लेकिन एथेंस एयरपोर्ट पर कुछ आतंकी भी प्लेन में सवार हो गए थे. वो इसे हाईजैक कर युगांडा के एंतेबे एयरपोर्ट ले आए. उस वक़्त युगांडा में ईदी अमीन का शासन चल रहा था. अमीन ने अपनी आर्मी और रिसोर्सेज आतंकियों के हवाले कर दिए. पैसेंजर्स को छुड़ाने के लिए इजरायली आर्मी ने एक हैरतअंगेज ऑपरेशन को अंज़ाम दिया था.

एंतेबे फ़िल्म का एक दृश्य.
उन्होंने रात के अंधरे में ऑपरेशन चलाकर एंतेबे एयरपोर्ट पर तबाही मचा दी थी. सारे हाईजैकर्स मारे गए थे. साथ ही युगांडा के 45 सैनिकों की भी जान गई थी. एयरपोर्ट पर खड़े दूसरे विमानों को बम लगाकर उड़ा दिया गया था. इजरायल को इसमें मामूली नुकसान पहुंचा था. इसी को ‘ऑपरेशन एंतेबे’ या ‘ऑपरेशन थंडरबोल्ट’ के नाम से जाना जाता है.
इसी पर फ़िल्म बन रही थी. माल्टा एयरपोर्ट पर फ़ेक हाईजैकिंग का शूट चल रहा था. इसी बीच असली वाली हाईजैकिंग की घटना शुरू हो गई. शूटिंग को रोकना पड़ा. लेकिन कैमरे ऑन रखे गए. रियल हाईजैकिंग की फुटेज़ बाद में फ़िल्म में इस्तेमाल की गई. जबकि कुछ पैसेंजर्स को भी फ़िल्म में काम करने का मौका मिला था. ये फ़िल्म साल 2018 में पर्दे पर रिलीज़ हुई.