स्टेशन की खुदाई में मिले 'कंकाल' से एडोल्फ़ हिटलर का क्या वास्ता था?
ये कंकाल हिटलर की मौत के 26 साल बाद मिला था.

तारीख़- 28 दिसंबर
आज का क़िस्सा एक कंकाल से जुड़ा है. जो एक स्टेशन के नीचे मिला था. इसकी जांच से जो नतीजे आए, उसने सबके होश गुम कर दिए. उस व्यक्ति की तलाश दुनिया भर की खुफिया एजेंसी कर रहीं थी. ये कंकाल उस शख़्स का था, जिसे 27 बरस पहले मौत की सज़ा सुनाई जा चुकी थी, पर दी नहीं जा सकी. क्यों? कौन था वो? उसे इतनी बेताबी से क्यों तलाशा जा रहा था? जानते हैं विस्तार से.
उस शख़्स का नाम था मार्टिन बॉरमन. सन 1900 की पैदाइश. पिता पोस्ट ऑफ़िस में काम करते थे. बॉरमन पहले विश्व युद्ध में शामिल हुआ था. हालांकि, उसे कभी लड़ाई के मैदान में जाने का मौका नहीं मिला. जब लड़ाई खत्म हुई, बॉरमन ने आर्मी छोड़ दी. पर अपना काम नहीं.
पहले विश्व युद्ध में जर्मनी की करारी हार हुई थी. सबसे ज़्यादा भार भी जर्मनी पर ही था. पूरा इंफ़्रास्ट्रक्चर ध्वस्त हो चुका था. ऐसे में आया हाइपर-इंफ़्लेशन. पैसे बस काग़ज़ का टुकड़ा भर रह गए. जिनके पास खाने-पीने की चीज़ों का स्टॉक था. उनसे ज़्यादा अमीर कोई नहीं था. फूड स्टॉक सबसे बड़ी संपत्ति थे. इनकी सुरक्षा के लिए ज़मींदार प्राइवेट आर्मी रखते थे.
मार्टिन बॉरमन भी ऐसी ही एक प्राइवेट आर्मी का हिस्सा बना. यहां उसकी दोस्ती हुई रुडोल्फ़ हेस से. ऐसी दोस्ती कि दोनों ने मिलकर एक टीचर की हत्या की. साथ में जेल गए और साल भर बाद छूट भी गए. रुडोल्फ़ हेस कौन था? वो हिटलर का डिप्टी था. डिप्टी फ़्यूहरर. यानी नाज़ी पार्टी में नंबर दो.

रुडोल्फ़ हेस ने बाद में जेल में आत्महत्या कर ली.
रुडोल्फ़ हेस 1941 तक इस पद पर रहा. तब दूसरा विश्व युद्ध अपने चरम पर था. हिटलर गुपचुप तरीके से सोवियत संघ पर अटैक की तैयारी में जुटा था. मई के महीने में रुडोल्फ हेस चुपचाप स्कॉटलैंड पहुंचा. उसने बस एक चिट्ठी रख छोड़ी थी. हिटलर के लिए. उसने लिका कि कि वो ब्रिटेन के साथ शांति समझौता करने जा रहा है.
जब हिटलर को ये बात पता चली. वो गुस्से से पागल हो गया. उसने रुडोल्फ़ हेस को मानसिक दीवालिया घोषित करवा दिया. उसके लिए ‘शूट एट साइट’ का ऑर्डर जारी कर दिया. साथ ही, रुडोल्फ़ हेस को पार्टी और पद से बर्ख़ास्त कर दिया गया. हिटलर ने डिप्टी फ़्यूहरर का पद भी हमेशा के लिए खत्म कर दिया. उस समय मार्टिन बॉरमन, रुडोल्फ़ हेस का प्राइवेट सेक्रेटरी हुआ करता था. बॉरमन को प्रमोशन मिला. उसके लिए एक नया पोस्ट बनाया गया. चीफ़ ऑफ़ द नाज़ी पार्टी चांसलरी.
उधर स्कॉटलैंड में हेस की बात नहीं बनी. वहां उसे अरेस्ट कर लिया गया. वर्ल्ड वॉर खत्म होने के बाद उसके ऊपर मुक़दमा चला. उसे आजीवन क़ैद की सज़ा सुनाई गई. बहुत सालों के बाद हेस ने जेल में ही आत्महत्या कर ली.
इधर मार्टिन बॉरमन की लगातार तरक्की होती गई. 1943 में वो हिटलर का प्राइवेट सेक्रेटरी बन गया. कहां किसे अपॉइंट किया जाए, किसे हटाया जाए, इसपर बॉरमन की मुहर अंतिम होती थी. उसके बाद कोई किन्तु-परन्तु की गुंज़ाइश नहीं बचती थी.

हिटलर के साथ मार्टिन बॉरमन.
हिटलर भी उसका मुरीद था. उसने कहा था,
जो काम बाकी लोग घंटों में करते हैं, बॉरमन उसी काम को मिनटों में कर देता है. उसकी रिपोर्ट्स इतनी सटीक होती हैं कि मुझे अपना सिर नहीं खपाना पड़ता. सबसे बड़ी बात, उसे छोटी-से-छोटी बात मुंहजबानी याद रहती है.
जनवरी, 1945 तक वर्ल्ड वॉर के हालात बदल चुके थे. रेड आर्मी बर्लिन को घेरकर बैठ गई थी. हिटलर अपने बंकर में छिपा बैठा था. साथ में बॉरमन भी था. 30 अप्रैल को हिटलर ने अपनी पत्नी इवा ब्राउन के साथ आत्महत्या कर ली. इसी के साथ नाज़ी साम्राज्य ढह गया.
अब मित्र सेनाओं ने हिटलर के साथियों की तलाश शुरू की. मार्टिन बॉरमन इस लिस्ट में सबसे ऊपर था. पर उसका कहीं अता-पता नहीं चल रहा था. 02 मई, 1945 के बाद उसे किसी ने देखा नहीं था. जब न्यूरेम्बर्ग में नाज़ी अफ़सरों पर मुकदमा चला, उनमें एक नाम बॉरमन का भी था. पर वो वहां मौजूद नहीं था. पहले ट्रायल में 12 को फांसी की सज़ा दी गई. दो कभी फांसी के तख़्ते तक नहीं लाए जा सके. पहला था हर्मन गोयरिंग. उसने फांसी से एक रात पहले जेल में आत्महत्या कर ली. जबकि मार्टिन बॉरमन के होने या न होने की सिर्फ थ्योरियां चल रहीं थी. तुक्के मारे जा रहे थे. अंधेरे में.
मसलन, बॉरमन सोवियत संघ का जासूस बन गया. कोई कहता, वो साउथ अमेरिका भाग गया. पर थ्योरी के एवज में सबूत नदारद थे. CIA और मोसाद ने दुनिया के कई देशों में सालों तक पड़ताल की. आखिरकार, 1971 में बॉरमन की तलाश बंद कर दी गई.

CIA और मोसाद ने पूरे साउथ अमेरिका में बॉरमन की तलाश की, पर कभी पता नहीं लगा पाए.
फिर आया 1972 का साल. दिसंबर का महीना. वेस्ट बर्लिन के एक रेलवे स्टेशन पर कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा था. मज़दूर खुदाई कर रहे थे. अचानक उनका फावड़ा रुक गया. वहां दो कंकाल दबे थे. उन्हें निकाला गया. जांच हुई.
कुछ श्रुतियां. कुछ गवाह. कुछ संस्मरण. और, फिर डॉक्टरी जांच. आखिरकार, ये बात कंफ़र्म हो गया कि एक कंकाल मार्टिन बॉरमन की ही है. 1973 में सरकार ने मार्टिन बॉरमन को मृत घोषित किया. उसकी फ़ाइल क्लोज कर दी गई.
पर इस ऐलान के बाद भी कंकाल को बचाकर रखा गया. अगले 25 सालों तक. 1998 में इसकी DNA टेस्टिंग करवाई गई. पहले दावे की पुष्टि हो गई. इस बार सब संशय खत्म हुआ. मार्टिन बॉरमन के कंकाल को जला दिया गया. 16 अगस्त, 1999 को उसकी राख को बाल्टिक सागर में फेंककर इतिश्री कर दी गई.