क्या गूगल को खा रहा है ये चीन का गूगल?
चीन में गूगल नहीं है पॉपुलर. उनका अपना गूगल है. 90% से ऊपर यूज़ होता है. इंडिया में घुसपैठ करने की सोच रहा है.
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फोटो - thelallantop
गूगल किसी साधन से बढ़कर एक ज़रूरत बन गया है. आज के टाइम में पढ़ाई, खेल, पिच्चर, साइंस, जो बोलो वो, गूगल पर अवेलेबल है. ऐसे में चीन में क्या होता होगा? माने वहां जब वहां किसी को मालूम करना होगा कि हौज़ खास विलेज मेट्रो स्टेशन से कितनी दूर है तो वो क्या करता होगा? गूगल नहीं तो फिर क्या?
चीन में 2009 में सर्च इन्जंस के इस्तेमाल के मामले में गूगल 36.2% था और 2013 में मात्र 1.7%. चीन में गूगल के हत्थे एक और मुसीबत चढ़ी रहती है. सेंसरशिप. चीन की सरकार गूगल पर हंटर लेके सवार रहती है. लोगों को वही देखने को मिलता है जो सरकार चाहती है. जैसे 2012 में चीनी गूगल पर 'Jiang' सर्च करना बैन था. इस कीवर्ड को सर्च करने पर कोई भी रिज़ल्ट नहीं दिखता था. चीनी भाषा में जिआंग का मतलब नदी होता है. लेकिन साथ ही ये एक कॉमन सरनेम भी होता है. और उसी वक़्त जिआंग जेमिन की मौत की खबरें भी आ रही थीं जो सरकार देश की जनता को नहीं बताना चाहती थी. जिआंग जेमिन चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के फॉर्मर जनरल थे. चीनी सरकार ऐसे ही तमाम तरीकों से गूगल पर पूरी तरह कंट्रोल रखती है.

चीनी गूगल
सवाल अब भी वही है - गूगल नहीं तो फिर क्या? वहां लोग कुछ भी ढूंढ़ने के लिए इन्टरनेट का इस्तेमाल ही नहीं करते क्या? अगर करते है तो किसका? कोई तो सर्च इंजन होगा न?
गूगल नहीं तो फिर क्या? जवाब है बाईडू. चीन का अपना गूगल. चीनी गूगल. बाईडू. आज के वक़्त में जब गूगल सर्च इंजन का पर्याय बन चुका है तब चीन बाईडू से दुनिया खंगाल रहा है. इसीलिए बाईडू हुआ चीन का गूगल.

बाईडू की वो बात जो सबसे पहले नोटिस की जाती है वो है उसका लोगो. एक भालू का पंजा. बड़ा सा. नीले रंग का. ये उस शिकारी को दर्शाता है जो अपने शिकारी को उसके पैरों के निशानों से ढूंढ़ता है और उसका शिकार कर लेता है. बाईडू वही शिकारी है. चीज़ों को ढूंढ-ढूंढ कर लाता है. उसे ट्रैक करके. चीनी इन्टरनेट यूज़र्स तक. बड़ी बात ये है कि 2000 में शुरू हुआ बाईडू आज NASDAQ में लिस्टेड है. जैसे इंडिया में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज यानी BSE है वैसे ही अमरीका का अपना NASDAQ है. NASDAQ में किसी कंपनी का शामिल होना ये बताता है कि रुपये-पैसे के मामले में उस कंपनी की कुछ औकात है. बाईडू NASDAQ में 2007 में शामिल हुआ था. मात्र 7 साल में ये कारनामा कर दिखाना कोई हल्का काम नहीं है. इससे ये साफ़ मलूम चलता है कि बाईडू ने काफ़ी तेज़ तरक्की की है.
बाईडू के ऐडमिनिस्ट्रेशन की मानें तो उनका अगला स्टेप है इंडिया की मार्केट में घुसना. बीते वर्ष सितम्बर में बाईडू ने गुड़गांव में अपना ऑफिस खोला है. यहां इंडिया की डोमेस्टिक मार्केट के हिसाब से सोच-समझकर ऐप्स तैयार की जा रही हैं. बाईडू की तीन ऐप्स इंडियन मार्केट में काफी हिट भी हुई हैं. डीयू बैट्री सेवर और स्पीडबूस्टर के 80 लाख मंथली यूज़र हैं. जबकि फाइल एक्स्प्लोरर के 1 करोड़.

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इन सभी और कई और वजहों से चीन में बाईडू भले ही टॉप पर चल रहा हो लेकिन दुनिया में तो गूगल ही नम्बर एक है. और इसमें कोई शक ही नहीं है. विदेशी इन्वेस्टर्स इसमें इन्वेस्ट करने से कतराते हैं क्यूंकि ये सिर्फ चीन तक ही लिमिटेड है. साथ ही चीन में डोमेस्टिक कम्पटीशन भी बढ़ता जा रहा है. अगर गूगल चीन की मार्केट में अपना शेयर बढ़ा सके, तो गूगल का चीन में बिज़नेस बढ़ सकेगा. और साथ ही शायद बाईडू को किनारे किया जा सके. फिलहाल ये काफी टेढ़ी खीर मानी जा रही है.