आप विश्वास नहीं करेंगे मगर सऊदी में औरतें ये 4 बेहद नॉर्मल चीज़ें नहीं कर सकतीं
ऐसे बेसिर-पैर के नियम जो कि इंसानियत के ही ख़िलाफ़ लगते हैं.
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सऊदी अरब में औरतों कोपर जितनी पाबंदियां हैं उतनी आपके शरीर में हड्डियां नहीं है.
सऊदी अरब का नाम आते ही दिमाग में एक ख़याल तो ज़रूर आता है - हाय! बेचारी वहां रहने वाली औरतें. कितनी मुश्किल होती है उनकी ज़िंदगी. न खुलकर रह सकती हैं. न खुलकर जी सकती हैं. जितनी पाबंदियां उनपर हैं, उतनी तो आपके शरीर में हड्डियां भी नहीं हैं. पर फ़िलहाल सऊदी की औरतें बहुत ख़ुश हैं. वजह भी जायज़ है.सऊदी में औरतें अब बिना अपने अभिभावक की परमिशन के सफ़र कर पाएंगी. पासपोर्ट के लिए अप्लाई कर पाएंगी. हां, सुनने में अजीब लगता है. 18 साल से ऊपर के किसी भी इंसान को अभिभावक की क्या ज़रुरत है? पर सऊदी में चीज़ें थोड़ी अलग हैं. वहां हर औरत का एक अभिभावक होता है. शादी से पहले पिता या भाई. शादी के बाद पति या बेटा. पहले औरतों को देश के बाहर जाने पर या पासपोर्ट के लिए अप्लाई करने पर अपने अभिभावक की परमिशन लेनी पड़ती थी. कई सालों से दुनियाभर में इस रुल की आलोचना हो रही थी. आख़िरकार वहां के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने इस नियम को रद्द कर दिया है. यही नहीं. कुछ समय पहले ही औरतों को गाड़ी चलाने की आज़ादी भी दी गई है.

ये चीज़ें हमारे लिए बहुत ही नॉर्मल है. रोज़ की ज़िंदगी का एक हिस्सा है. पर सऊदी की औरतों के हालात काफ़ी अलग है. भले ही साल 2019 चल रहा है, पर अभी भी ऐसी कई ‘नॉर्मल’ चीज़ें हैं जो सऊदी की औरतें नहीं कर सकतीं.
क्या हैं वो?
1. शॉपिंग करते समय कपड़े ट्राय करना
सोचिए आप शॉपिंग पर जाएं, वहां आपको कुछ पसंद आए, पर आप वो कपड़ा ट्रायल रूम में पहनकर नहीं देख सकते. दुकान में ख़रीदने से पहले आपको ये नहीं पता चलेगा कि वो आप पर पहनकर कैसा लगता है. ये पाबंदी सऊदी में औरतों पर है.
एक मैगज़ीन है. ‘वैनिटी फ़ेयर’ नाम की. उसकी राइटर हैं मॉरीन दोवड. उन्होंने ‘अ गर्ल्स गाइड टू सऊदी अरेबिया’ (A girl's guide to Saudi Arabia) में लिखा-
‘सऊदी में आदमियों के लिए ये हज़म कर पाना बहुत मुश्किल है कि ट्रायल रूम के दरवाज़े के पीछे किसी औरत ने अपने कपड़े उतारे हैं.’
2. खेलों में खुलकर हिस्सा लेना
‘द वीक’ में छपी ख़बर के मुताबिक 2015 में सऊदी अरब ने ओलिंपिक गेम्स होस्ट करने की बात कही थी. बस शर्त ये थी कि उसमें औरतें न शरीक होंगी न हिस्सा लेंगी. 2012 में सऊदी अरब ने पहली बार औरतों को ओलिंपिक्स में भेजा. उस साल ओलिंपिक्स लंदन में हो रहे थे. कट्टरपंथियों ने उन दो औरतों को ‘वेश्या’ बुलाया. उस समय इन दोनों एथलीट्स को एक-एक अभिभावक के साथ भेजा गया था. साथ ही उनके लिए सर ढकना भी ज़रूरी था.
2017 में पहली बार औरतों को स्टेडियम के अंदर बैठने की अनुमति दी गई थी. हाल-फ़िलहाल में ऐसी छोटी-मोटी पेशकश भले ही की जा रही हैं, पर आज भी औरतें स्पोर्ट्स में खुलकर शामिल नहीं हो सकतीं.

3. पुरषों से खुलकर मिलना या बात करना
सऊदी की सड़कों पर आप आदमी और औरतों को खुलकर मिलते या बात करते हुए नहीं देखेंगे. इस चीज़ पर वहां पाबंदी है. ‘द डेली टेलीग्राफ़’ के मुताबिक सऊदी की ज़्यादातर बिल्डिंग्स में पुरषों और महिलाओं के लिए अलग-आग एंट्री पॉइंट्स हैं. इसके अलावा पब्लिक ट्रांसपोर्ट, पार्क, बीच वगैरह में भी पर्दा सिस्टम है. यानी पुरुष अलग, महिलाएं अलग. किसी गैर महरम से खुलेआम मिलना-जुलना एक अपराध माना जाता है. औरतों को इसके लिए ज़्यादा सख्त सज़ा दी जाती है.

4. पब्लिक में बिना अबाया के घूमना
अब अबाया क्या होता है? इसे आप काले रंग का ओवरकोट समझें. सर से लेकर पैर तक ये शरीर को ढक कर रखता है. सऊदी में औरतों के लिए बहुत ही सख्त ड्रेस कोड है. वो बिना इस अबाया के पब्लिक में नहीं निकल सकतीं. औरतों को इसे अपने कपड़ों के ऊपर पहनने की हिदायत है. साथ ही वहां सर ढकना भी ज़रूरी है. इसके बिना औरतें पब्लिक में नहीं निकल सकतीं.
2017 में एक नामी-गिरामी मौलाना ने सऊदी की औरतों को हिदायत दी कि वो कोई भी ऐसा अबाया न पहनें जिसपर किसी भी तरह की सजावट हो. वो काले रंग के अलावा और किसी रंग का नहीं हो सकता.

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