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चाय सिर्फ PM नहीं बनाती, इसका इत्ता रौला है कि इसने अमेरिका को आज़ादी दिलवा दी थी

आज की 'तारीख़' में क़िस्सा एक 'टी पार्टी' का.

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चाय के सवाल पर हुई बगावत और अमेरिका आज़ाद हो गया.
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अभिषेक
16 दिसंबर 2020 (Updated: 16 दिसंबर 2020, 11:27 AM IST) कॉमेंट्स
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तारीख़- 16 दिसंबर.

आज की तारीख़ जुड़ी है एक चाय पार्टी से. जो असल में पार्टी थी नहीं. सोचिए, एक अदद चाय से क्या-क्या हो सकता है? तरोताज़ा सुबह हो सकती है. एक पार्टी का चुनावी कैंपेन हो सकता है. लेकिन बात इससे कहीं ऊपर की है. इसी चाय के सवाल पर एक देश में क्रांति हो गई. जनता ने विदेशी हुकूमत के ख़िलाफ़ जंग छेड़ दी. और, उन्हें बाहर निकालकर ही दम लिया. इतिहास में ऐसा हुआ है. वो भी आज से 247 बरस पहले. ये कहानी ‘बॉस्टन टी पार्टी’ की है. 
ये सब शुरू हुआ सन 1650 से. जब पहली बार चाय का स्वाद अमेरिका पहुंचा. पीटर स्टायवेसांत के जरिए. पीटर न्यू एमस्टर्डम (अब न्यू यॉर्क) के अंतिम डच डायरेक्टर थे. वो चाय को यूरोप से लेकर आए थे. जितनी चाय न्यू एम्सटर्डम के लोग पी जाते थे, पूरे इंग्लैंड में उतनी खपत नहीं होती थी. इसलिए पीटर को बढ़िया मुनाफे का स्कोप दिखा था. लोगों को चाय खूब रास आ रही थी.
न्यू एम्सटर्डम (अब न्यू यॉर्क) के अंतिम डच डायरेक्टर-जनरल थे पीटर. (साभार: Wikimedia commons)
न्यू एम्सटर्डम (अब न्यू यॉर्क) के अंतिम डच डायरेक्टर-जनरल थे पीटर. (साभार: Wikimedia commons)


जब डच कॉलोनी खत्म हुई तो ये इलाका अंग्रेज़ों के हाथ लगा. अमेरिका में पहली ब्रिटिश कॉलोनी स्थापित हुई 1607 के साल में. नाम जेम्सटाउन. 1770 आते-आते ये संख्या 13 कॉलोनियों तक पहुंच चुकी थी. लगभग 20 लाख लोग ब्रिटेन के अधीन रह रहे थे. जैसे-जैसे ब्रिटिश राज बढ़ा, उसी अनुपात में चाय की खपत भी. मुनाफ़ा तो अंग्रेज़ों को भी कमाना था. ऐसे में एंट्री हुई ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की. कंपनी दक्षिण एशिया से चाय लेकर आती थी. इस चाय की लंदन में बिक्री होती थी. अमेरिक् एजेंट चाय खरीदकर अमेरिका लाते थे. ये अमेरिका तक चाय के पहुंचने का नया रूट था.
प्रतिनिधित्व नहीं तो कर नहीं
1750 के दशक में ये स्थिति बदलने लगी. फ़्रांस के साथ लड़ाई का खर्चा अंग्रेज़ों पर भारी पड़ने लगा था. अंग्रेज़ों ने इस कर्ज़ की उगाही के लिए नॉर्थ अमेरिकन कॉलोनीज पर नज़र दौड़ाई. 1765 में ब्रिटिश संसद ने ‘स्टाम्प ऐक्ट’ पास किया. इसके तहत लगभग हर तरह के काग़ज़ पर टैक्स लगा दिया गया. इसमें मैगज़ीन, अख़बार, लीगल डॉक्यूमेंट्स, ताश की पत्ती जैसी बुनियादी इस्तेमाल के काग़ज़ भी शामिल थे. इस पूरे प्रोसेस में कॉलोनी में रह रहे लोगों का कोई प्रतिनिधि शामिल नहीं हुआ था.
अमेरिकी कॉलोनियों ने इसका विरोध किया. उन्होंने टैक्स देने से मना कर दिया. उनका नारा था- ‘नो टैक्सेशन विदाउट रिप्रजेंटेशन’. प्रतिनिधित्व नहीं तो कर नहीं. अंग्रेज़ों ने जोर दिया तो जनता हिंसा पर उतर आई. ब्रिटिश अधिकारियों को जान के लाले पड़ गए. 1766 में ब्रिटेन ने स्टाम्प ऐक्ट वापस ले लिया. लेकिन अगले ही साल एक नया कानून ले आए. टाउनशेंड रेवेन्यू ऐक्ट. इसके तहत ग्लास, पेपर, पेंट और चाय पर टैक्स लगा दिया गया. एक बार फिर विरोध हुआ. हिंसा हुई. और ये कानून भी वापस हो गया. बाकी सारी चीज़ों पर तो टैक्स वापस हो गया. लेकिन चाय पर लगा टैक्स बरकरार रखा गया.
अमेरिका में चाय 1650 में पहुंची थी. और, फिर दिनोंदिन उसकी खपत बढ़ती चली गई. (सांकेतिक तस्वीर)
अमेरिका में चाय 1650 में पहुंची थी. और, फिर दिनोंदिन उसकी खपत बढ़ती चली गई. (सांकेतिक तस्वीर)


ऐसे में अमेरिकन लोगों ने नया रास्ता निकाला. बहुतों ने चाय पीना छोड़ दिया. जबकि बाकी लोग तस्करी के जरिए लाई गई चाय पीने लगे. इससे ईस्ट इंडिया कंपनी का धंधा ठप पड़ गया. उनकी चाय लंदन के गोदामों में रखी-रखी सड़ने लगी. कंपनी को घाटा मतलब ब्रिटिश सरकार को घाटा. क्योंकि विदेशों में ब्रिटिश सेना के अभियानों का खर्च ईस्ट इंडिया कंपनी ही उठाती थी.
इसका तोड़ निकाला गया. फिर से नया कानून. 11 मई, 1773 को ब्रिटेन की संसद में ‘टी ऐक्ट’ पास हुआ. इस बार कंपनी को खुल्ला छूट दी गई. कंपनी को सीधे अमेरिका में चाय बेचने का अधिकार मिला. अब उन्हें इंग्लैंड में टैक्स देने की ज़रूरत नहीं थी. जो एजेंट पहले लंदन से चाय लेकर अमेरिका आते थे, वो बेकाम हो चुके थे. अब चाय सीधे अमेरिका पहुंचने लगी तो इसका रेट भी कम हो गया. जनता को सस्ती चाय मिल रही थी. ब्रिटिश सरकार को लगा कि इस बार सब सही चलेगा. लेकिन ये भूल थी. जो एजेंट बेकाम हुए थे, उनका पूरा व्यापार इसी रूट पर टिका था. वे इसके विरोध में उतर आए. उन्होंने ऐलान किया कि कंपनी की चाय न तो इस्तेमाल करेंगे और न ही अमेरिका में पहुंचने देंगे.
चाय का सवाल है!
फिर आया 16 दिसंबर, 1773 का दिन. नेटिव अमेरिकन्स के भेष में क्रांतिकारियों का एक दल बॉस्टन के बंदरगाह में दाखिल हुआ. वे लोग कंपनी के जहाज में चढ़े. वे चाय की पेटियों को एक-एक कर समंदर में फेंकने लगे. उस दिन कुल 342 चाय की पेटियां समंदर में बहाई गई थी. तकरीबन 45 हज़ार किलो चाय. आज की तारीख़ में क़ीमत, 10 लाख डॉलर्स यानी करीब सात करोड़, 35 लाख रुपये. इस घटना को नाम मिला, ‘बॉस्टन टी पार्टी’.
क्रांतिकारियों ने बॉस्टन के तट पर खड़े जहाजों को कब्ज़े में लिया और उनमें लदी सारी चाय समंदर में बहा दी.
क्रांतिकारियों ने बॉस्टन के तट पर खड़े जहाजों को कब्ज़े में लिया और उनमें लदी सारी चाय समंदर में बहा दी.


ये कंपनी और ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ बगावत का बिगुल था. इस गुस्से पर काबू पाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने अंतिम चाल चली. मार्च, 1774 में कई कड़े कानून एक साथ पास किए गए. इनके प्रावधान क्या-क्या थे?
बरबाद हुई चाय का हर्ज़ाना देने तक बॉस्टन बंदरगाह को बंद कर दिया गया. मैसाचुसेट्स में चुनाव पर पाबंदी लगा दी गई. ब्रिटिश अधिकारियों को अदालत के दायरे से मुक्त कर दिया गया. इसके अलावा, ब्रिटिश सरकार जब जहां चाहे वहां सेना भेज सकती थी. किसी के घर में भी.
इनको अमेरिका में ‘असहनीय कानून’ का नाम मिला.
ब्रिटिश सरकार को भरोसा था कि इन कानूनों से अमेरिकी जनता की आवाज़ दबा दी जाएगी. लेकिन पासा उल्टा पड़ गया. बाकी कॉलोनियों को लगा कि अगला नंबर उनका हो सकता है. अंग्रेज़ों की तानाशाही उन तक भी पहुंच सकती है. वे मैसाचुसेट्स के साथ खड़े हो गए. अप्रैल, 1775 में अमेरिकन कॉलोनियों और ब्रिटेन के बीच सीधी लड़ाई शुरू हो गई. 4 जुलाई, 1776 को 13 कॉलोनियों ने मिलकर आज़ादी का ऐलान कर दिया. लड़ाई तेज़ हो गई. फ्रांस और स्पेन की मदद से इन कॉलोनियों ने ब्रिटेन को घुटने टेकने पर मज़बूर कर दिया.
सितंबर, 1783 में पेरिस की संधि हुई. अमेरिका और ब्रिटेन के बीच. इसमें युद्ध खत्म करने की आधिकारिक घोषणा की गई. साथ ही, अमेरिका को संप्रभु और आज़ाद मुल्क का दर्ज़ा भी मिला.  ये पूरी परिस्थिति चाय पर लगे टैक्स से उपजी थी. एक अदद चाय ने ब्रिटिश हुकूमत की नींव को उखाड़ कर फेंक दिया था.

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