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दिल्ली आ रही IC 814 फ्लाइट को हाइजैक करके कंधार ही क्यों ले जाया गया था?

21 साल पहले 155 यात्रियों की जान बचाने के लिए 3 कट्टर आतंकियों को छोड़ा गया था

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IC 814 फ्लाइट का अपहरण काठमांडू से उड़ान भरने के बाद किया गया था.
24 दिसंबर 2020 (Updated: 24 दिसंबर 2020, 16:14 IST)
Updated: 24 दिसंबर 2020 16:14 IST
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तारीख थी 24 दिसंबर 1999. क्रिसमस की पूर्व संध्या. इस दिन नेपाल की राजधानी काठमांडू के त्रिभुवन हवाई अड्डे से दिल्ली आने के लिए इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट IC 814 तैयार थी. विमान में 180 यात्री सवार थे. तकरीबन साढ़े चार बजे शाम को इस विमान ने काठमांडू से टेक-ऑफ किया. लेकिन जैसे ही यह विमान लखनऊ शहर के ऊपर पहुंचा, विमान में सवार कुछ हथियारबंद लोग सामने आ गए. विमान को दुबई ले चलने का दबाव बनाने लगे. अचानक हुई इस हरकत से घबराए पायलटों के सामने इन हथियारबंद लोगों की बात मानने के अलावा कोई चारा नही था. कहा जाता है कि विमान के चालक दल के सदस्यों ने विमान हाइजैक होने की सूचना ओपन फ्रीक्वेंसी पर दे दी थी.

*ओपन फ्रीक्वेंसी पर सूचना देने का मतलब होता है कि ऐसी सूचना आसपास उड़ान भर रहे सभी विमानों तक भी पहुंच जाती है. लेकिन इससे एक नई कंट्रोवर्सी क्रिएट होती है. यदि वास्तव में ओपन फ्रीक्वेंसी पर सूचना दी गई थी तो उस वक्त पटना से तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को लेकर दिल्ली आ रहा विशेष विमान भी आसपास से ही गुजर रहा था. जाहिर है कि सूचना उस विमान तक भी पहुंची होगी. और यदि हाइजैकर्स को ये पता चल जाता कि प्रधानमंत्री का विमान भी पास से गुजर रहा है तो वे कोई भी अप्रिय हालात पैदा कर सकते थे.

बहरहाल इस कंट्रोवर्सी को पीछे छोड़ते हैं कि IC 814 के पायलट ने ओपन फ्रीक्वेंसी पर सूचना दी थी या नही, और हाइजैक की स्टोरी पर आगे बढ़ते हैं. इतना तो तय है कि एयर ट्रैफिक कंट्रोल को विमान हाईजैक होने की सूचना मिल चुकी थी.

चालक दल के सदस्यों ने हाइजैकर्स को बताया कि विमान में फ्यूल कम है. तत्काल कहीं लैंड कराना होगा, वरना क्रैश भी हो सकता है. ये खबर सुनकर हाइजैकर घबरा गए. विमान को लाहौर ले जाने की बात करने लगे. लेकिन पायलट देवी शरण ने हाइजैकर्स को बताया कि इतना फ्यूल भी नही है कि प्लेन लाहौर तक जा सके. इसके बाद अमृतसर में प्लेन लैंड करवा दिया गया. हाइजैकर्स ने प्लेन के काॅकपिट से अमृतसर एयरपोर्ट के अधिकारियों से बात की. तत्काल फ्यूल टैंकर भेजने को कहा. लेकिन टैंकर जब रनवे की तरफ बढ़ने लगा, तब हाइजैकर्स को कुछ शक हुआ. उन्होंने पायलट देवी शरण को टैंकर रोकने का संदेश भेजने को कहा, और फ्लाइट को टेक-ऑफ करवा दिया.
इसके बाद पायलट देवी शरण ने फ्यूल की स्थिति को देखते हुए बगल के शहर लाहौर में फ्लाइट लैंड करवाने की कोशिश शुरू की.

क्या प्लेन को अमृतसर में रोका जा सकता था?

इस मामले पर तकरीबन 20 साल बाद रिटायर्ड मेजर कुलदीप सिंह ने मेल टुडे में एक लेख लिखकर कुछ बातें बताई थीं. कुलदीप सिंह तब अमृतसर में तैनात सेना की एक टुकड़ी की कमान संभाल रहे थे. बकौल कुलदीप सिंह,


"उस दिन शाम 7 बजे हमारे एक सीनियर ऑफिसर ने हमे फोन करके एयरपोर्ट की तरफ कुछ विशेष तैयारी करने को कहा, और पूरा माजरा समझाया. हम तब कारगिल युद्ध के बाद अलर्ट पर ही रहते थे. 3 टैंक भी हमारे पास थे, जो एयरपोर्ट ऑपरेशन के लिए काफी थे. हमने तत्काल उनको एयरपोर्ट के दक्षिणी तरफ के नाले की ओर से एक क्रॉसिंग प्वाइंट पर तैनात भी करवा दिया. तकरीबन 7 बजकर 5 मिनट पर IC 814 अमृतसर में उतरा. और 7 बजकर 51 मिनट तक एयरपोर्ट पर रुका रहा. 7 बजकर 40 मिनट से ये खबरें आने लगीं कि अपहरणकर्ताओं ने यात्रियों को मारना शुरू कर दिया है. हम आगे की कार्रवाई के लिए आदेश का इंतजार करते रहे, लेकिन हमें सरकार या सेना- किसी भी तरफ से कोई आदेश नहीं मिला. 7 बजकर 51 मिनट पर फ्लाइट टेक-ऑफ होते ही हमारा ऑपरेशन बंद हो गया."

लाहौर में क्या हुआ?

अमृतसर से उड़ान भरने के बाद अपहृत विमान लाहौर के ऊपर चक्कर काटने लगा. लेकिन लाहौर एयरपोर्ट की बत्तियां बुझा दी गई थीं, ताकि वहां प्लेन लैंड न कर सके. दरअसल पाकिस्तान सरकार यह नही चाहती थी कि इस मामले में किसी भी तरह पाकिस्तान की ओर उंगली उठे. लेकिन डिप्लोमैटिक प्रेशर और यात्रियों के जान-माल की सुरक्षा को देखते हुए पाकिस्तान को लाहौर हवाई अड्डे पर विमान उतारने की परमीशन देनी पड़ी. वहां उसमें फ्यूल भरा गया. उसके बाद विमान ने दुबई के लिए उड़ान भरी. इस दौरान भारत सरकार की तरफ से पाकिस्तान के साथ डिप्लोमैटिक प्रयास जारी रहे, लेकिन इसका कोई विशेष फायदा नही हुआ. अपहरण के बाद जब ये हाई वोल्टेज ड्रामा चल रहा था, उसी दरम्यान अपहरणकर्ताओं ने एक यात्री रुपिन कात्याल को मार दिया. गुड़गांव के रहने वाले रुपिन कात्याल शादी के बाद पत्नी रचना के साथ हनीमून मनाने नेपाल गए थे, और वहां से लौट रहे थे. उन पर चाकुओं से इतने वार किए गए कि उनकी मौत हो गई.

दुबई में क्या हुआ?

लाहौर से उड़ान भरने के बाद विमान को रात के करीब पौने 2 बजे दुबई में उतारा गया. वहां भी फ्यूल भरने की बातें होने लगीं. लेकिन तब वहां की सरकार ने फ्यूल के बदले यात्रियों को रिहा करने का दबाव बनाना शुरू किया. लेकिन अपहरणकर्ता अड़े रहे. आखिरकार ये सहमति बनी कि बीमार लोगों, बच्चों और कुछ महिलाओं को रिहा कर दिया जाएगा. तब जाकर दुबई एयरपोर्ट पर इस विमान को फ्यूल दिया गया. अगले दिन यानी 25 दिसंबर 1999 को 27 यात्रियों को रिहा करके और रुपिन कात्याल की लाश को छोड़कर बाकी 155 लोगों के साथ अपहरणकर्ता इस विमान को लेकर अफगानिस्तान के कंधार शहर के लिए उड़ चले. अपहरणकर्ता जैसे-जैसे आदेश दे रहे थे, मजबूरीवश पायलटों को उसे फाॅलो करना पड़ रहा था.

शरद यादव दुबई क्यों पहुंचे?

अपहृत विमान को दुबई ले जाए जाने की खबर मिलने ही तत्कालीन नागरिक उड्डयन मंत्री शरद यादव कुछ अधिकारियों के साथ दुबई पहुंचे. लेकिन उनके पहुंचने से पहले ही अपहरणकर्ता विमान को लेकर कंधार के लिए उड़ चुके थे. उसके बाद शरद यादव ने रिहा किए गए 27 यात्रियों और रुपिन कात्याल के शव को लेकर वापस दिल्ली की उड़ान पकड़ ली.


IC 814 अपहरण कांड के समय शरद यादव नागरिक उड्डयन मंत्री थे.
IC 814 अपहरण कांड के समय शरद यादव नागरिक उड्डयन मंत्री थे.

क्या था कंधार ले जाने का मकसद?

अफगानिस्तान का अधिकांश इलाका उन दिनों पाकिस्तान समर्थित कट्टरपंथी संगठन तालिबान के कब्जे में था. उस दौर में यह आतंकवादियों और कट्टरपंथियों का स्वर्ग बना हुआ था. तालिबान का मुखिया मुल्ला मुहम्मद उमर अफगानिस्तान का स्वयंभू शासक बन बैठा था. उसने शागिर्द वकील अहमद मुत्तवकील को अपना विदेश मंत्री नियुक्त कर रखा था. कुल मिलाकर तालिबान शासित अफगानिस्तान का इलाका एक ऐसी जगह था, जहां से अपहरणकर्ता अपनी डिमांड आसानी से पूरी करवाने की कुव्वत रखते थे.


मुल्ला मुहम्मद उमर तालिबान का मुखिया और अफगानिस्तान का स्वयंभू शासक था.
मुल्ला मुहम्मद उमर तालिबान का मुखिया और अफगानिस्तान का स्वयंभू शासक था.

क्या थी अपहरणकर्ताओं की डिमांड?

शुरू में अपहरणकर्ताओं ने 36 चरमपंथियों की रिहाई और 20 करोड़ अमरीकी डॉलर की फिरौती मांगी. इसके अलावा वे एक कश्मीरी अलगाववादी के शव को सौंपे जाने की मांग पर भी अड़े थे. लेकिन तालिबान की गुजारिश के बाद उन्होंने पैसे और शव की मांग छोड़ दी. लेकिन भारतीय जेलों में बंद चरमपंथियों की रिहाई की मांग मनवाने के लिए अड़े हुए थे.

उस दौर में तालिबान की हरकतों को देखकर लगता था कि वह डबल गेम खेल रहा है. एक तरफ तो वह कहता था कि विमान यात्रियों को कोई तंग करेगा तो हम अपहरणकर्ताओं पर हमला कर देंगे, वहीं दूसरी तरफ उन्हें कंधार में पनाह देकर भारत सरकार से बार्गेनिंग का अवसर भी उन्हें मुहैया करा रहा था.

दिल्ली में क्या हो रहा था?

उस दौर में दिल्ली में सड़कों से लेकर साउथ ब्लाॅक और प्रधानमंत्री आवास तक हलचलें बहुत तेज थीं. अपहृत विमान के यात्रियों के परिजन और आम लोग यात्रियों की सकुशल रिहाई के लिए लगातार प्रदर्शन कर रहे थे. कुछ प्रदर्शन तो प्रधानमंत्री आवास के सामने भी हो रहे थे. साउथ ब्लाॅक और प्रधानमंत्री आवास पर दिन-रात बैठकों का दौर चल रहा था. विदेश मंत्री जसवंत सिंह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्र अमेरिका के सहायक विदेश मंत्री स्ट्रोब टाॅलबोट पर लगातार दबाव बना रहे थे कि वाशिंगटन डीसी इस घटना की कड़ी निंदा करे ताकि अपहरणकर्ताओं पर विमान को छोड़ने का दबाव बन सके. वहीं सत्ता में पावर पोजीशन में बैठे अन्य लोग डिप्लोमैटिक से लेकर सैन्य कार्रवाई- सबके सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं पर गंभीर मंथन कर रहे थे. रोज एक-एक दिन बीतता जा रहा था. 24 दिसंबर से शुरू हुआ यह ड्रामा 30 दिसंबर तक पहुंच गया. समझौते की कोशिशें लगातार नाकाम हो रही थीं. अपहरणकर्ता अपनी मांग से पीछे हटने को तैयार नही थे. भारत सरकार जेल में बंद चरमपंथियों को रिहा कर सेना का मनोबल गिराना नही चाहती थी, जिसने इन चरमपंथियों को बड़ी मशक्कत से पकड़ा था.


IC 814 अपहरण कांड के समय शरद यादव नागरिक उड्डयन मंत्री थे.
IC 814 अपहरण कांड के समय वाजपेयी पीएम और ब्रजेश मिश्र एनएसए थे.

 अंततः 30 दिसंबर की देर रात समझौता हो गया. यात्रियों को छोड़ने के बदले 3 आतंकवादी- मौलाना मसूद अज़हर, मुश्ताक अहमद जरगर और शेख अहमद उमर सईद को छोड़ने पर भारत सरकार राजी हो गई. 31 दिसंबर को विदेश मंत्री जसवंत सिंह के साथ इन तीनों चरमपंथियों को एक विशेष विमान से कंधार भेजा गया. वहां से देर रात सभी यात्रियों को वापस लेकर जसवंत सिंह दिल्ली पहुंचे. यात्रियों की सकुशल रिहाई के बाद सबने राहत की सांस ली. लेकिन रुपिन कात्याल की हत्या और 3 आतंकवादियों को रिहा किए जाने के कारण सबके मन में एक कसक भी थी. अगला दिन यानी 1 जनवरी 2000 था. नई सहस्त्राब्दी (new millennium) की शुरुआत का दिन.


जसवंत सिंह रिहा किए गए चरमपंथियों के साथ कंधार भेजे गए थे.
जसवंत सिंह रिहा किए गए चरमपंथियों को लेकर कंधार गए थे.

वाजपेयी सरकार द्वारा चरमपंथियों को छोड़े जाने की आज तक आलोचना होती है. लेकिन उस वक्त की परिस्थितियों को ध्यान में रखकर ही सरकार ने ये फैसला किया था.

इस मामले पर जब हमने वाजपेयी सरकार के दौर में कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्योरिटी के सदस्य रहे तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा से बात की तो उन्होंने बताया,
"उस समय हम लोगों की प्राथमिकता विमान में सवार यात्रियों की सकुशल वापसी थी. इसलिए उस घटना को इस परिप्रेक्ष्य से देखना चाहिए कि यात्रियों को बचाने का सबसे बेहतर रास्ता क्या था. अचानक पैदा हुई परिस्थितियों में कई बार सरकार को हालात के मद्देनज़र फैसले लेने पड़ते हैं. यह उनमें से एक था. रही बात सरकार के वरिष्ठ मंत्री को कंधार भेजने की, तो ये फैसला इसलिए लिया गया था ताकि आपात स्थिति में वहां निर्णय लेने वाला कोई व्यक्ति तो मौजूद हो."

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