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ठाकुर और कुर्मी के बाद लोध समाज के नेताओं ने भी दिखाई ताकत, यूपी की सियासत में ये चल क्या रहा है?

यह बात भी किसी से छिपी नहीं है कि समय-समय पर अलग-अलग समाज की नाराजगी का नुकसान पार्टी को झेलना ही पड़ा है. ऐसे में आने वाले वक्त में प्रदेश के नेतृत्व बदलाव को लेकर होने वाले फैसले से कई अहम सवालों के जवाब मिल सकते हैं.

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UP Politics: After Thakur and Kurmi, Leaders of Lodhi Community Showed Strength
बीजेपी के सामने है बड़ी चुनौती. (फाइल फोटो)
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रिदम कुमार
18 अगस्त 2025 (Updated: 18 अगस्त 2025, 03:04 PM IST)
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यूपी के विधानसभा चुनाव में अब बस दो साल बचे हैं. प्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार की भी सुगबुगाहट है. सूबे की सत्ता पर काबिज बीजेपी के लिए यह आने वाला विधानसभा चुनाव चुनौती भरा हो सकता है. दरअसल बीते दिनों अलग-अलग समाजों ने अंदरखाने बैठक करना शुरू कर दिया है. इन बैठकों को बीजेपी के प्रदेश संगठन और केंद्रीय नेतृत्व को अपनी ताकत दिखाने की जुगत के तौर पर देखा जा रहा है. बीते 7 दिनों में ठाकुर, कुर्मी और लोध समाज ने अलग-अलग बहानों से बैठक की हैं.

ठाकुर समाज की बैठक

ठाकुर समाज से जुड़े नेताओं ने बीते 11 अगस्त को लखनऊ में बैठक की. इस बैठक को कुटुंब परिवार का नाम दिया गया था. इसी के अगले दिन क्षत्रिय समाज से आने वाले कैबिनेट मंत्री जयवीर सिंह ने भी गोमती होटल में समाज के विधायकों और पूर्व मंत्री के साथ बैठक की. इस बैठक में परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह, जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के अध्यक्ष रघुराज प्रताप सिंह राजा भैया, समाजवादी पार्टी से निष्कासित विधायक अभय सिंह, राकेश प्रताप सिंह समेत 40 से ज्यादा विधायक और MLC शामिल हुए थे.

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इन बैठकों के जरिए नेताओं ने पार्टी को अपने समाज की अहमियत और मजबूती का संदेश दिया है. अटकलें लगाई जा रही हैं कि आगामी मंत्रिमंडल विस्तार में रघुराज प्रताप सिंह या राकेश प्रताप सिंह को सरकार में जगह दिलाने की तैयारी है.

कुर्मी समाज की बैठक

ठाकुर समाज की बैठक के अगले ही दिन यानी 12 अगस्त को कुर्मी समाज से आने वाले विधायकों और मंत्रियों की बैठक हुई. यह बैठक भी लखनऊ में हुई थी. बैठक को सरदार पटेल वैचारिक मंच के बैनर तले आयोजित किया गया है. इसमें कुर्मी समाज से आने वाले मंत्री, विधायक, सांसद और पदाधिकारी शामिल हुए. बैठक में नेताओं ने समाज की एकजुटता और विकास की बात मजबूती से दोहराई.

इससे पहले भी कुर्मी समाज की कई बैठकें हो चुकी हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कुर्मी समाज की बैठक का मकसद स्वतंत्र देव सिंह की ताजपोशी के लिए दबाव बनाना था. इसके साथ ही ब्यूरोक्रेसी में भी कुर्मी समाज के लोगों को बड़े पद दिलाने के लिए सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश है.

लोध समाज भी पीछे नहीं

स्वतंत्रता दिवस के अगले ही दिन 16 अगस्त को वीरांगना अवंतीबाई लोधी की जयंती पर लोध समाज की बैठक आयोजित की गई. यह बैठक पशुधन मंत्री धर्मपाल सिंह ने अपने निर्वाचन क्षेत्र आंवला में बुलाई थी. बैठक में लोध समाज से आने वाले नेताओं को बड़ी संख्या में आमंत्रित किया गया.

लोध समाज की भी राज्य सरकार और संगठन में बड़ी हिस्सेदारी की चाह है. यह पहली बार नहीं है जब वीरांगना अवंतीबाई लोधी की जयंती पर लोध समाज का कोई कार्यक्रम या बैठक हो. लेकिन इस बार की बैठक को खास माना जा रहा था क्योंकि आने वाले दिनों में यूपी के प्रदेश अध्यक्ष का फैसला भी होना है और लोध समाज से आने वाले धर्मपाल सिंह खुद इस पद के दावेदार हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बैठक धर्मपाल सिंह ने पार्टी पर दबाव बनाने के लिए बैठक आयोजित की.  

बीजेपी को फायदा या नुकसान

बीते चुनाव में बीजेपी का जाति का गुणा-गणित जो कुछ भी रहा हो. लेकिन इस बात में कोई दो राय नहीं है कि प्रदेश के सभी समाजों की एकजुटता ने बीजेपी को दूसरी बार भी सत्ता थमाई. इस बार बीजेपी के सामने सिर्फ विधानसभा चुनाव ही चुनौती नहीं है बल्कि प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव, 2026 में पंचायत चुनाव, राज्यसभा चुनाव और विधान परिषद चुनाव भी होने हैं. उसके बाद 2027 में विधानसभा चुनाव तो हैं ही. ऐसे में अलग-अलग समाजों की ये बैठक बंटवारे की ओर इशारा करती है. अगर अगले चुनाव में बीजेपी के वोट बंटे तो पार्टी को तगड़ा झटका लग सकता है.

यह बात भी किसी से छिपी नहीं है कि समय-समय पर अलग-अलग समाज की नाराजगी का नुकसान पार्टी को झेलना ही पड़ा है. ऐसे में आने वाले वक्त में प्रदेश के नेतृत्व बदलाव को लेकर होने वाले फैसले से कई अहम सवालों के जवाब मिल सकते हैं.

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