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इलाहाबाद HC ने कहा था- 'रेप के लिए पीड़िता भी जिम्मेदार', अब सुप्रीम कोर्ट ने नसीहत दी है

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ए.जी. मसीह की बेंच ने हाई कोर्ट की अनुचित टिप्पणी को गलत ठहराया. बेंच ने कहा कि ज़मानत के बारे में फैसला केस से जुड़े तथ्यों के आधार पर होना चाहिए. पीड़ित लड़की के खिलाफ गैरज़रूरी टिप्पणी करने से बचना चाहिए.

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supreme court criticizes allahabad hc for blaming rape survivor in bail order
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक टिप्पणी पर नाराज़गी जताई. (तस्वीर-इंडिया टुडे)
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सचेंद्र प्रताप सिंह
15 अप्रैल 2025 (Published: 05:55 PM IST)
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सुप्रीम कोर्ट ने 15 अप्रैल को इलाहाबाद हाई कोर्ट की एक विवादित टिप्पणी पर नाराज़गी जताई है. हाल में हाई कोर्ट ने रेप के एक आरोपी को ज़मानत देते वक्त कहा था, ‘इसके लिए पीड़िता भी जिम्मेदार है. उसने खुद ही आफ़त को न्योता दिया.’ अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हाई कोर्ट को किसी भी केस पर विवादित टिप्पणी करने से बचना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ए.जी. मसीह की बेंच ने हाई कोर्ट की अनुचित टिप्पणी को गलत ठहराया. बेंच ने कहा कि ज़मानत के बारे में फैसला केस से जुड़े तथ्यों के आधार पर होना चाहिए. पीड़ित लड़की के खिलाफ गैरज़रूरी टिप्पणी करने से बचना चाहिए. लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक दौरान शीर्ष अदालत ने कहा,

“जज ने ज़मानत देने का फैसला सुनाया. ठीक है, ज़मानत दी जा सकती है, लेकिन यह क्या चर्चा हुई कि पीड़ित ने खुद ही मुसीबत बुलाई." 

विवादित टिप्पणी करने वाले हाई कोर्ट के जज का नाम लिए बिना सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

"जज ने इससे (विवादित टिप्पणी) इस बात को रेखांकित कर दिया है कि जजों को अपने शब्दों को लेकर सचेत रहना चाहिए और अपनी अप्रोच के प्रति संवेदनशील होना चाहिए.”

वहीं सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आग्रह किया कि न्याय न केवल किया जाना चाहिए. बल्कि न्याय होते हुए दिखना भी चाहिए. उन्होंने आगे कहा कि एक आम आदमी, जो कानूनी बारीकियों से अच्छी तरह वाक़िफ़ नहीं है, ऐसी टिप्पणियों को कैसे समझेगा? उन्होंने आगे कहा कि इस तरह की टिप्पणी सोच-समझकर की जानी चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी इलाहाबाद हाई कोर्ट की एक अन्य टिप्पणी के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेने के दौरान आई है. बीती 17 मार्च को हाई कोर्ट ने कहा था कि नाबालिग पीड़िता के 'स्तनों को पकड़ना' बलात्कार नहीं माना जा सकता. कोर्ट ने कहा था कि ये यौन हमला है, ना कि रेप. इसके बाद 10 अप्रैल को हाई कोर्ट के जस्टिस संजय कुमार ने एक अन्य मामले में आरोपी को ज़मानत देते हुए कह दिया कि ‘इसके लिए पीड़िता भी जिम्मेदार है और उसने खुद ही आफ़त को न्योता दिया'.

इस दौरान कोर्ट ने साफ किया था कि ज़मानत आदेश की टिप्पणियां ज़मानत के मुद्दे से जुड़ी हैं, इनका ट्रायल पर कोई असर नहीं होगा.

बता दें कि यह मामला नोएडा की एक प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली छात्रा से जुड़ा था. बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल पीड़िता दिल्ली के हौज खास स्थित एक बार में एक शख्स से मिली थी. उसने आरोप लगाया कि वह नशे की हालत में थी. जिसका फायदा उठाकर आरोपी ने उसके साथ ‘दो बार रेप’ किया. इस मामले में आरोपी को दिसंबर 2024 में गिरफ्तार किया गया था.

वीडियो: कोर्ट में आज: तमिलनाडु के गवर्नर पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला दिया है?

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