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यूपी सरकार ने नोटिस के 24 घंटे के भीतर मकान गिराए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- अंतरात्मा को ठेस पहुंची

Supreme Court Raps UP Govt: कोर्ट ने कहा- राज्य ये नहीं कह सकता कि इन लोगों के पास पहले से ही एक और घर है. इसलिए हम क़ानून की उचित प्रक्रिया का ‘पालन नहीं करेंगे’ और उन्हें कार्रवाई के ख़िलाफ़ अपील दायर करने के लिए उचित समय भी नहीं देंगे.

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SC says UP razed houses in Prayagraj without
जस्टिस एएस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की दो जजों की बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी. (प्रतीकात्मक तस्वीर - PTI)
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हरीश
25 मार्च 2025 (Published: 08:32 AM IST) कॉमेंट्स
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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने उत्तर प्रदेश प्रशासन के ‘बुलडोज़र कार्रवाई’ पर फिर नाराज़गी जताई है. कोर्ट ने कहा है कि नोटिस देने के 24 घंटे के भीतर मकान गिरा दिये गए. उन मकान में रहने वालों को अपील करने का समय नहीं मिला. ऐसे में कोर्ट उन निवासियों को फिर से मकान बनाने की मंजूरी देगी. हालांकि, इसमें कुछ शर्तें भी होंगी.

जस्टिस एएस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां मामले की सुनवाई कर रहे थे. इस दौरान जस्टिस एएस ओका ने कहा,

नोटिस के 24 घंटे के भीतर जिस तरह से ये किया गया, उससे अदालत की अंतरात्मा को ठेस पहुंची है.

मामला क्या है?

याचिकाकर्ताओं में पांच लोग शामिल हैं- वकील जुल्फिकार हैदर, प्रोफ़ेसर अली अहमद, दो विधवा महिलाएं और एक अन्य व्यक्ति. इन्होंने इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक फ़ैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि वो अतिक्रमणकारी नहीं थे, बल्कि पट्टेदार थे. उन्होंने अपने पट्टे के अधिकार को फ्रीहोल्ड में बदलने के लिए आवेदन दिया था.

याचिकाकर्ताओं ने बताया कि 6 मार्च, 2021 को उन्हें नोटिस मिला और 7 मार्च, 2021 को ही उनके घर ध्वस्त कर दिए गए. जबकि उन्हें ‘यूपी शहरी नियोजन और विकास एक्ट’ की धारा 27(2) के तहत नोटिस की चुनौती देने का अधिकार है, जो उन्हें नहीं मिला.

लाइव लॉ की ख़बर के मुताबिक़, याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि तब राज्य ने ग़लत तरीक़े से उनकी ज़मीन को ‘गैंगस्टर-नेता अतीक अहमद से जोड़ दिया’ था.

इससे पहले, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा था कि मकान ऑथोराइज़्ड नहीं थे. मामला नजूल ज़मीन से जुड़ा हुआ है. इस ज़मीन को पट्टे पर दिया गया था. 1996 में पट्टा ख़त्म हो गया. इसके बाद, 2015 और 2019 में फ्रीहोल्ड रूपांतरण वाले आवेदन ख़ारिज कर दिए गए थे.

यूपी सरकार ने कहा कि ज़मीन सार्वजनिक इस्तेमाल के लिए अलग रखी गई थी और याचिकाकर्ताओं के पास कोई क़ानूनी अधिकार नहीं था. क्योंकि उनके ‘लेन-देन’ को ज़िला कलेक्टर की मंजूरी नहीं मिली थी.

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Supreme Court में क्या हुआ?

अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कोर्ट में बताया कि याचिकाकर्ताओं को पहला नोटिस 8 दिसंबर, 2020 को दिया गया था. जनवरी और मार्च 2021 में भी नोटिस दिया गया था. इसलिए ये कहा नहीं जा सकता कि सही प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया.

इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक़, इस पर कोर्ट ने कहा कि पहले दो नोटिस परिसर पर चिपका दिए गए थे. सिर्फ़ तीसरा नोटिस रजिस्टर्ड डाक से भेजा गया. इसलिए इन तथ्यों को ध्यान में रखकर ही आदेश दिया जाएगा. क्योंकि कोर्ट ऐसी प्रक्रिया को बर्दाश्त नहीं कर सकता. अगर हम एक मामले में बर्दाश्त करते हैं, तो ये जारी रहेगा. कोर्ट ने आगे कहा,

राज्य को बहुत निष्पक्षता से काम करना चाहिए. संरचनाओं को ध्वस्त करने से पहले उन्हें अपील दायर करने के लिए उचित समय देना चाहिए. इस मामले में जो किया गया, उसका समर्थन नहीं करना चाहिए.

अटॉर्नी जनरल ने कहा कि ये मामला बेघर लोगों का नहीं है और उनके पास वैकल्पिक आवास हैं. इस पर जस्टिस ओका ने कहा,

राज्य ये नहीं कह सकता कि इन लोगों के पास पहले से ही एक और घर है. इसलिए हम क़ानून की उचित प्रक्रिया का ‘पालन नहीं करेंगे’ और उन्हें कार्रवाई के ख़िलाफ़ अपील दायर करने के लिए उचित समय भी नहीं देंगे.

कोर्ट ने कहा कि वो याचिकाकर्ताओं को उनके ख़ुद के पैसों से ध्वस्त मकानों को फिर मनाने की मंजूरी देगा. हालांकि, इसके लिए कुछ शर्तें भी होंगी. मसलन, वे स्पेसिफिक समय के भीतर अपील दायर करेंगे, ज़मीन पर किसी भी तरह का अधिकार नहीं लेंगे और किसी तीसरे पक्ष को पार्टी नहीं बनाएंगे. साथ ही, अगर उनकी अपील ख़ारिज हो जाती है, तो याचिकाकर्ताओं को अपने ख़ुद के खर्च पर मकानों को ध्वस्त करना होगा.

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