फराह खान पर केस करने वाले हिंदुस्तानी भाऊ से HC ने कहा- ' आपको क्या दिक्कत है, आप छपरी थोड़े न हैं'
Bombay High Court ने Hindustani Bhau को फटकार लगाते हुए पूछा कि अगर Farah Khan के बयान से इतनी आपत्ति थी तो खुद जाकर FIR क्यों नहीं दर्ज करवाई? कोर्ट ने सवाल किया कि पहले वकील के जरिए शिकायत क्यों भेजी?
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बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने मंगलवार, 15 जुलाई को सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर विकास फाटक उर्फ हिंदुस्तानी भाऊ (Hindustani Bhau) की याचिका पर सुनवाई की. बिग बॉस 13 के कंटेस्टेंट भाऊ ने बॉलीवुड फिल्ममेकर फराह खान के खिलाफ FIR दर्ज करने की मांग की थी. आरोप था कि फराह ने 'होली छपरी लोगों का त्योहार है' कहा था, जिससे हिंदुओं की भावना ‘आहत’ हुई.
जस्टिस रविंद्र घुगे और जस्टिस गौतम अंखड़ की बेंच ने हिंदुस्तानी भाऊ की याचिका पर सुनवाई की. कोर्ट ने भाऊ से पूछा कि उन्हें फराह खान के बयान से इतनी ठेस क्यों पहुंची. लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, सुनवाई के दौरान जस्टिस रविंद्र घुगे ने कहा,
"आप इतने आहत क्यों हैं? इतना संवेदनशील होना बंद कीजिए... हमारे पास 200 से ज्यादा मामले सूचीबद्ध हैं और आप ऐसे मामलों को अदालत में लाते हैं... किसलिए? पब्लिसिटी के लिए, अपना नाम हेडलाइन्स में लाने के लिए? ऐसे मामलों को अदालत में क्यों लाते हैं? उन्होंने 'छपरी' को कहा, लेकिन 'आप' छपरी नहीं, बल्कि एक जेंटलमैन हैं, तो आपको इतनी तकलीफ क्यों है?"
कोर्ट ने यह भी पूछा कि अगर इतनी आपत्ति थी तो खुद जाकर FIR क्यों नहीं दर्ज करवाई? पहले वकील के जरिए शिकायत क्यों भेजी? भाऊ के वकील अली काशिफ खान देशमुख ने बताया कि जिस चैनल पर यह शो आया था, उसने हमारी शिकायत दर्ज करने के बाद विवादित हिस्सा हटा दिया था.
इस पर कोर्ट ने कहा कि जब चैनल ने विवादित हिस्सा हटा दिया, लोग भी भूल चुके हैं, तो फिर इस मामले को क्यों खींचा जा रहा है. इस बीच जब कोर्ट याचिका खारिज करने की सोच रहा था, तब भाऊ के वकील ने खुद ही याचिका वापस लेने की इजाजत मांगी, जिसे कोर्ट ने मान लिया.
इसके बाद कोर्ट ने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा,
"आपके मुवक्किल को नेशनल ज्योग्राफी, ट्रैवल एंड लिविंग आदि जैसे चैनल जरूर देखने चाहिए... मैं कह सकता हूं कि ऐसे चैनल देखने के बाद आपके मुवक्किल बहुत खुश होंगे."
बॉम्बे हाई कोर्ट ने हिंदुस्तानी भाऊ के वकील से 'अदालत में बेहतर मामले लाने' के लिए भी कहा. कोर्ट ने लंबित मामलों को देखते हुए गंभीर मामलों को तरजीह देने की जरूरत पर भी जोर दिया.
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