चुनाव आयोग के फैसले पर इंडिया ब्लॉक की आपत्ति, NDA के नेता भी अंदरखाने नाराज़
Bihar में Electoral Roll Revision को लेकर India Block की 11 पार्टियों ने चुनाव आयोग के सामने अपनी आपत्ति जताई है. दूसरी तरफ एनडीए के घटक दलों ने तो इस प्रक्रिया का समर्थन किया है. लेकिन अंदरखाने कुछ नेताओं ने आपत्ति भी दर्ज है.

बिहार में वोटर लिस्ट अपडेट करने को लेकर हंगामा बरपा है. विपक्षी पार्टियां लगातार इस पर सवाल उठा रही हैं. 2 जून को इंडिया ब्लॉक के 11 दलों ने चुनाव आयोग के सामने अपनी आपत्ति दर्ज कराई है. वहीं खबर है कि अंदरखाने एनडीए के कुछ नेता भी इसको लेकर सहज नहीं हैं.
इंडिया ब्लॉक के प्रतिनिधिमंडल ने नई दिल्ली में मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार, चुनाव आयुक्त सुखबीर सिंह संधू और विवेक जोशी से मुलाकात की. और आयोग से कहा कि वोटर्स को डॉक्यूमेंट जमा करने के लिए बेहद कम समय दिया गया है.और इस प्रक्रिया के चलते राज्य के 2 से 3 करोड़ वोटर्स वोट के अधिकार से वंचित हो जाएंगे.
बैठक के बाद मीडिया से बात करते हुए अभिषेक मनु सिंघवी ने वोटर लिस्ट के रिवीजन की टाइमिंग पर सवाल उठाए. उन्होंने कहा,
आखिरी बार 2003 में वोटर लिस्ट रिवीजन हुआ था. उसके बाद के 22 सालों में बिहार में चार या पांच चुनाव हुए हैं. क्या इन चुनावों की निष्पक्षता पर कोई सवाल है? 2003 में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) लोकसभा चुनाव से एक साल पहले और बिहार विधानसभा चुनाव से दो साल पहले आयोजित की गई थी.
उन्होंने आगे कहा,
अभी आप इसे जुलाई में कर रहे हैं. वो भी भारत के दूसरे सबसे बड़े आबादी वाले राज्य में, जहां लगभग 8 करोड़ वोटर्स हैं. आपके पास अधिकतम एक से दो महीने का समय है. इससे बड़ी आबादी वोट देने से वंचित रह जाएगी. और वोट देने से वंचित करना संविधान के मूल ढांचे पर सबसे बड़ा हमला है.
राजद सांसद मनोज झा ने पत्रकारों से बात करते हुए बताया कि इस बैठक को सार्थक नहीं बताया जा सकता. उन्होंने कहा,
हमने बिहार, गरीब, पिछड़ों, दलितों और मुसलमानों के बारे में चिंता जाहिर की है. चुनाव आयोग के निशाने पर बिहार से पलायन करने वाले 20 प्रतिशत लोग हैं. आयोग के पास कोई तर्क नहीं है कि वो ऐसा कदम क्यों उठा रहे हैं जो पिछले 22 सालों से नहीं किया गया था.
बैठक में शामिल भाकपा (माले) लिबरेशन के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि बैठक के बाद पार्टियों की चिंता और आशंकाएं बढ़ गई हैं. उन्होंने कहा,
एनडीए में भी चिंता की लकीरेंचुनाव आयोग ने यह आंकड़ा दिया है कि बिहार के 20 फीसदी लोग राज्य से पलायन कर जाते हैं. आयोग ने कहा है कि वोट देने के लिए आपको सामान्य निवासी होना चाहिए. इसका मतलब है कि जो बिहार से बाहर रहते हैं चुनाव आयोग उनको वोटर नहीं मानेगा.
एक तरफ विपक्ष जहां वोटर लिस्ट में संशोधन को लेकर हमलावर है. वहीं एनडीए के घटक दलों ने आधिकारिक तौर पर इस कवायद का समर्थन किया है. लेकिन खबर है कि अंदरखाने एनडीए के कई नेता भी इसको लेकर असहज हैं.
बीजेपी, जदयू और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के कई नेताओं ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में इसको लेकर संदेह जताया है. उनकी चिंता है कि इतने कम समय में इस प्रक्रिया में कई वास्तविक वोटर्स का नाम छूटने का डर है. वोटर लिस्ट रिवीजन का काम 25 जून से लेकर 25 जुलाई तक चलने वाला है.
इन नेताओं ने राज्य की साक्षरता और गरीबी के स्तर का हवाला देते हुए कहा कि हाशिए पर पड़े कई समूह के लोगों के पास जन्म तिथि और स्थान के प्रमाण के तौर पर मांगे गए 11 डॉक्यूमेंट्स में से एक भी नहीं हो सकता है.
लोजपा (रामविलास) के एक नेता ने कहा,
वोटर इतना उत्साहित भी नहीं होगा कि वो जरूरी डॉक्यूमेंट बनवाने के लिए मेहनत करे या पैसे खर्च करे. आखिरकार पार्टी कार्यकर्ताओं पर ही ये भार आएगा कि वो उनके वोट देने के अधिकार को बरकरार रखे. सभी पार्टियां पहले से ही इस पर काम भी कर रही हैं.
जदयू के एक नेता ने कहा कि लोगों के पास सरकारी लाभ उठाने वाले डॉक्यूमेंट्स तो होते हैं, लेकिन एक बड़ी आबादी के पास जन्म प्रमाण पत्र या जाति प्रमाण पत्र जैसे डॉक्यूमेंट्स नहीं होते हैं. उन्होंने चिंता जताई कि इस अभियान से अत्यंत पिछड़ी जातियां सबसे ज्यादा प्रभावित होंगी क्योंकि ये गरीब और अशिक्षित हैं, लेकिन दलितों की तरह सुरक्षित नहीं है या फिर यादव जैसी पिछड़ी जातियों की तरह राजनीतिक तौर पर ताकतवर नहीं हैं.
वोटर लिस्ट रिवीजन को लेकर बीजेपी में भी कुछ चिंताएं हैं. पार्टी के एक नेता ने कहा कि राजनीतिक दलों के तमाम प्रयासों के बावजूद वास्तविक वोटर्स के नाम छूट जाने का डर है. उन्होंने कहा कि इसमें उच्च जातियों के गरीबों को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है.
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