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जंग की ख़बरों से डर लगता है, घबराहट होती है? War Anxiety को कम करेगा '1-2-3-4-5'

आम इंसान इस वक़्त जंग की ख़बरों से घिरा हुआ है. इनमें से कई बेबुनियाद हैं. भ्रामक हैं. पर लगातार इस तरह की खबरों की बाढ़ के चलते लोग तनाव में हैं.

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Amid India-pakistan war and operation sindoor people are suffering from war anxiety, doctor explains how to deal with it
जंग की आशंका के चलते लोगों में स्ट्रेस और डर बढ़ता है. फ़ोटो कर्टसी: इंडिया टुडे
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सरवत
10 मई 2025 (Published: 06:03 PM IST) कॉमेंट्स
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मई 7, 2025. भारतीय सेना ने ऑपरेशन सिंदूर को सफलतापूर्वक अंजाम दिया. ये पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले का पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब था. इसके बाद पाकिस्तान लगातार ड्रोन और मिसाइल से भारत पर हमले कर रहा है. भारतीय सेना लगातार इन हमलों को नाकाम कर रही है, साथ ही पलटवार भी किया जा रहा है. दोनों देशों के बीच तनाव अपने चर्म पर है. आम लोगों का बड़ा सवाल है, 'क्या जंग होने वाली है'?

आम इंसान इस वक़्त ख़बरों से घिरा हुआ है. इनमें से कई बेबुनियाद हैं. भ्रामक हैं. पर लगातार इस तरह की खबरों की बाढ़ के चलते लोग तनाव में हैं. इसका असर उनकी मेंटल हेल्थ पर पड़ रहा है. इस मानसिक तनाव और घबराहट को 'वॉर एंग्जायटी' कहा जाता है. इसके बारे में हमें और जानकारी दी डॉक्टर पवित्रा शंकर ने. हमने उनसे ये भी जाना कि इससे डील कैसे करें?

Dr. Pavitra
डॉ. पवित्रा शंकर, एसोसिएट कंसल्टेंट - मनोरोग, आकाश हेल्थकेयर, नई दिल्ली
क्या है 'वॉर एंग्जायटी'?

जैसा नाम से पता चलता है, 'वॉर एंग्जायटी' यानी जंग की आशंका के बीच लोगों को होने वाला तनाव, घबराहट और डर. ये एक नेचुरल रिएक्शन है.

क्यों होती है 'वॉर एंग्जायटी'?

'वॉर एंग्जायटी' महसूस होने के पीछे कई कारण हैं:

-मीडिया और सोशल मीडिया पर लगातार जंग से जुड़ी ख़बरें देखना और पढ़ना. ऐसे कॉन्टेंट से घिरे रहने के कारण लोगों में तनाव बढ़ता है. बढ़ता ख़तरा लोगों को अनसेफ़ महसूस करवाता है, जिसकी वजह से उनमें घबराहट पैदा होती है. जंग, मौत और ख़तरे की ख़बरें पढ़ने, ऐसी तस्वीरें देखने से शरीर में स्ट्रेस हॉर्मोन कोर्टिसोल बढ़ता है. इस हॉर्मोन के बढ़ने से न सिर्फ़ मानसिक स्थिति पर असर पड़ता है, बल्कि कुछ शारीरक लक्षण भी देखने को मिलते हैं.

-जो लोग ऐसे दौर से गुज़र चुके हैं, पर्सनल एक्सपीरियंस के चलते उनका पुराना ट्रॉमा दोबारा ट्रिगर होता है. पुरानी दुखद यादें विचलित करती हैं. ये समस्या उन लोगों में ज़्यादा देखी जाती है जो डिप्रेशन, एंग्जायटी और अन्य मेंटल डिसऑर्डर से जूझते आए हैं.

-जंग की आशंका के चलते लोगों में स्ट्रेस और डर बढ़ता है. आगे क्या होने वाला है, किसी को पता नहीं. इस अनिश्चितता की वजह से घबराहट बढ़ती है. क्योंकि ये स्थिति उनके कंट्रोल में नहीं है, इसलिए लोग बेबस महसूस करते हैं.

-ऐसे माहौल में तेज़ आवाज़ें, सायरन की आवाज़ घबराहट पैदा करती है. ख़ासतौर पर उन लोगों में, जिन्होनें पहले ऐसा वक़्त देखा है.

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जैसा नाम से पता चलता है, 'वॉर एंग्जायटी' यानी जंग की आशंका के बीच लोगों को होने वाला तनाव, घबराहट और डर. ये एक नेचुरल रिएक्शन है
'वॉर एंग्जायटी' के लक्षण

'वॉर एंग्जायटी' के कई लक्षण हैं, जैसे:

-हर वक़्त महसूस होना जैसे 'कुछ बुरा होने वाला है'. ये सोच-सोचकर घबराहट होना.

-नींद न आना. नींद आ भी जाए तो हर थोड़ी देर में नींद टूटना.

-दिल की धड़कनें बढ़ जाना.

-पेट ख़राब हो जाना या उल्टी जैसा महसूस करना.

-बेबस और दुखी महसूस करना. छोटी-छोटी बातों पर रोना आना.

-लोगों से दूरी बना लेना.

-न चाहते हुए भी जंग और जंग से जुड़ी ख़बरें खोज-खोजकर देखना और पढ़ना.

-कंपन होना और पसीना आना.

-अपने काम पर फोकस न कर पाना.

इन सब लक्षणों का असर इंसान की दिनचर्या पर पड़ता है.

'वॉर एंग्जायटी' से कैसे निपटें?

देखिए, जब तक हालात ठीक नहीं हो जाती, तब तक 'वॉर एंग्जायटी' से निपटने के लिए आपको थोड़ी मेहनत करनी पड़ेगी. कुछ टिप्स आपके काम आ सकती हैं:

-अव्वल तो अगर आप 'वॉर एंग्जायटी' से जूझ रहे हैं तो जंग से जुड़ी ख़बरों से थोड़ी दूरी बना लें. अगर ऐसा मुमकिन नहीं है तो केवल भरोसेमंद और ज़िम्मेदार मीडिया प्लेटफ़ॉर्म की ख़बरें ही देखें और पढ़ें. सोशल मीडिया से दूरी बना लें, क्योंकि ऐसे प्लेटफ़ॉर्म पर भ्रामक ख़बरों की बाढ़ है. इन्हें देख और पढ़कर आपकी घबराहट बढ़ेगी. सोशल मीडिया पर समय कम से कम बिताएं.

-परिवारवालों और दोस्तों से मिलें और उनसे बातें करें. ऐसे लोगों के बीच रहें, जिनके साथ आपको समय बिताना पसंद है. ऐसा करने पर आपका दिमाग ऑक्सीटोसिन नाम का हॉर्मोन बनाता है. इस हॉर्मोन की वजह से आपको पॉजिटिव महसूस होता है, मूड सुधरता है और आप सेफ़ फील करते हैं.

-अपने खाने-पीने का ध्यान रखें. लोग अक्सर तनाव में स्ट्रेस-ईटिंग करते हैं. ऐसी चीज़ें खाने लगता है, जो अनहेल्दी होती हैं. जैसे जंक फ़ूड. इनको खाने से ब्लड शुगर लेवल तेज़ी से बढ़ता है, जिसका सीधा असर आपके मूड पर पड़ता है. इसलिए सिंपल और पौष्टिक खाना खाएं. जैसे फल, सब्ज़ियां, दाल, अनाज और नट्स. इनसे आपका ब्लड शुगर लेवल तेज़ी से नहीं बढ़ेगा. मूड स्थिर रहेगा और थकान भी नहीं महसूस होगी. इन सबके अलावा, अपने खाने का टाइम बांध लें और शरीर में पानी की कमी न होने दें.

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आप प्रोफेशनल मदद भी ले सकते हैं 

-अगर आप बहुत ज़्यादा तनाव में हैं या घबराहट महसूस कर रहे हैं तो 5-4-3-2-1 टेक्नीक का इस्तेमाल करें. ये एक सेंसरी एक्सरसाइज़ है. यानी इसमें आप अपने 5 सेंसेज़ का इस्तेमाल करते हैं. जैसे देखने, सूंघने, सुननें, टेस्ट और छूने की क्षमता. 5-4-3-2-1 टेक्नीक में आपको अपने आसपास 5 चीज़ें देखनी हैं. 4 को छूना है. 3 आवाजों पर ध्यान देना है. 2 चीज़ों की स्मेल पहचाननी हैं. और, किसी एक चीज़ का स्वाद लेना है. इस टेक्नीक को करने से एंग्ज़ायटी और स्ट्रेस दूर करने में मदद मिलती है.

-रोज़ थोड़ी एक्सरसाइज करें. एक्सरसाइज करने से शरीर में स्ट्रेस हॉर्मोन कोर्टिसोल कम होता है. एक्सरसाइज करने के लिए आपको जिम जाने की ज़रूरत नहीं है. आप घर पर ही हल्की-फुल्की एक्सरसाइज कर सकते हैं. कुछ नहीं तो आधा घंटा बाहर टहलने जाएं.

-दिमाग को शांत करने के लिए ध्यान लगाएं. आप चाहें तो योग भी कर सकते हैं. इससे आप बेहतर महसूस करेंगे.

-कोई हॉबी चुनें. यानी कुछ ऐसा काम करें, जिससे आपको सुकून मिलता है. अच्छा लगता है. जैसे किताबें पढ़ना. खाना बनाना. पेंटिंग करना. वगैरह.

-अगर सब कुछ करने के बावजूद भी आपकी घबराहट नहीं जाती है तो प्रोफेशनल मदद ज़रूर लें. एक्सपर्ट कुछ थेरेपीज़ की मदद से आपको बेहतर महसूस करवाते हैं. जैसे कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (CBT). इसमें बातचीत के ज़रिए पेशेंट का डर समझा जाता है और उससे डील करने का तरीका समझाया जाता है. माइंडफुलनेस-बेस्ड थेरेपी का भी इस्तेमाल किया जाता है. इसमें पेशेंट से बात की जाती है. उसे वर्तमान में हो रही चीज़ों पर फोकस करना सिखाया जाता है, ताकि उसका दिमाग क्या होने वाला है सोच-सोचकर परेशान न हो. इन सबके अलावा, कुछ केसेज में दवा की भी ज़रूरत पड़ती है. ये दवा SSRIs के नाम से जानी जाती हैं और केवल डॉक्टर की सलाह पर ही दी जाती हैं.

इन टिप्स का ध्यान रखें. अपना और अपनों का ख्याल रखें. अपनी सेना पर भरोसा रखें. आप सुरक्षित हैं. 

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

वीडियो: सेहत: पैनिक अटैक और एंग्जायटी में क्या अंतर होता है और इनका इलाज क्या है, डॉ. से जानिए

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