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एक्सपायर दवाओं को डस्टबिन में डालने की गलती न करें, बड़े नुकसान का खतरा

CDSCO यानी Central Drugs Standard Control Organisation के मुताबिक, एक्सपायर हो चुकी दवाओं को कभी भी डस्टबिन में नहीं फेंकना चाहिए. उन्हें हमेशा सिंक या टॉयलेट में डालकर बहा देना चाहिए.

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cdsco guideline on why you should never throw expired or unused medicines in the dustbin
इस्तेमाल न हुई दवाएं डस्टबिन में तो नहीं फेंकते आप? (फोटो: Freepik)
15 जुलाई 2025 (Published: 05:23 PM IST) कॉमेंट्स
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CDSCO यानी Central Drugs Standard Control Organisation. ये भारत में दवाओं को जांचने और मंज़ूरी देने वाली संस्था है. 26 मई को इस संस्था ने एक एडवाइज़री जारी की. इसमें बताया गया कि जो दवाएं एक्सपायर हो चुकी हैं या जिनका इस्तेमाल नहीं हुआ है, उन्हें सही और सुरक्षित तरीके से डिस्पोज़ कैसे करना है. यानी उन दवाओं को नष्ट कैसे करना है.

CDSCO का कहना है कि अगर एक्सपायर या इस्तेमाल न की गई दवाओं को सही तरीके से न फेंका जाए तो इससे लोगों की सेहत, जानवरों और पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है. ऐसी दवाएं एंटी-माइक्रोबियल रज़िस्टेंस यानी AMR बढ़ने का भी बड़ा कारण हैं.

अब ये एंटी-माइक्रोबियल रज़िस्टेंस क्या होता है? देखिए, जब हम बार-बार एंटीबायोटिक या एंटीवायरल जैसी दवाएं खाते हैं. तो बैक्टीरिया या वायरस धीरे-धीरे इन दवाओं के खिलाफ अपनी इम्यूनिटी पैदा कर लेते हैं. इससे ये दवाएं शरीर पर असर नहीं करतीं और इंफेक्शन ठीक नहीं होता. इसे ही एंटीमाइक्रोबियल रज़िस्टेंस कहते हैं.

दि लैंसेट जर्नल में छपी एक रिसर्च के मुताबिक, हर साल करीब 50 लाख लोग इसी एंटीमाइक्रोबियल रज़िस्टेंस की वजह से मारे जाते हैं. प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में सीनियर रिसर्च स्कॉलर और AMR पर लैंसेट की सीरीज़ के को-ऑथर हैं प्रोफेसर Ramanan Laxminarayan. उनके मुताबिक, साल 2019 में भारत में 10 लाख 43 हज़ार से ज़्यादा मौतें एंटीमाइक्रोबियल रज़िस्टेंस की वजह से ही हुई थीं. 

यानी AMR हमारे लिए एक बड़ा ख़तरा है. और दवाओं को सही तरीके से नष्ट न करना इस ख़तरे को और बढ़ा देता है.

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अगर दवाएं डस्टबिन में डाली जाएं, तो ये गलत हाथों में पहुंच सकती हैं (फोटो: Freepik)

CDSCO का कहना है कि जिन दवाओं को इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है उन्हें डस्टबिन में न डालें. बल्कि उन्हें सिंक या टॉयलेट में डालकर बहा दें. जिससे ये दवाएं गलत हाथों में न पहुंचें. इंसानों और पर्यावरण को इससे कोई नुकसान न हो.

असल में, कई बार ये दवाएं पानी को दूषित कर देती हैं. ऐसे में जो लोग या जानवर वो पानी पीते हैं वे बीमार पड़ जाते हैं. अगर ये दवाएं लैंडफिल यानी कूड़े के ढेर में पहुंच जाएं. तो ये बच्चों या कबाड़ बीनने वालों के हाथ लग सकती हैं. कई बार कचरे से दवाएं चुरा ली जाती हैं या कूड़ा छांटते समय निकालकर दोबारा बाजार में बेच दी जाती हैं. इससे दवा का गलत इस्तेमाल होता है. ज़्यादातर दवाएं एक्सपायर होने पर कम असरदार हो जाती हैं. यहां तक कि नुकसान भी कर सकती हैं. ऐसे में अगर कोई इन्हें खा ले, तो ये सेहत के लिए ख़तरा है.

CDSCO ने कुछ खास दवाओं के नाम भी बताए हैं. जिन्हें आपको हर हालत में सिंक या टॉयलेट में डालकर ही फेंकना चाहिए. अगर इन्हें कोई ऐसा इंसान ले ले, जिसके लिए ये दवा नहीं लिखी गई है. तो जान पर भी आ सकती है. कुछ मामलों में तो सिर्फ एक डोज़ लेने भर से जान जा सकती है.

इन दवाओं के नाम हैं- फेंटानिल, फेंटेनाइल साइट्रेट, मॉर्फिन सल्फेट, ब्यूप्रेनॉरफिन, ब्यूप्रेनॉरफिन हाइड्रोक्लोराइड, मेथिलफेनिडेट, मेपेरिडीन हाइड्रोक्लोराइड, डायज़ेपाम, हाइड्रोमॉर्फोन हाइड्रोक्लोराइड, मेथाडोन हाइड्रोक्लोराइड, हाइड्रोकोडोन बिटार्ट्रेट, टापेन्टाडोल, ऑक्सिमॉर्फोन हाइड्रोक्लोराइड, ऑक्सीकोडोन, ऑक्सीकोडोन हाइड्रोक्लोराइड, सोडियम ऑक्सिबेट और ट्रामाडोल.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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