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फिल्म रिव्यू- उलझ

कैसी है Janhvi Kapoor की नई फिल्म Ulajh, जानने के लिए पढ़िए रिव्यू.

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'उलझ' में जाह्नवी कपूर ने एक डिप्लोमैट का रोल किया है.
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श्वेतांक
2 अगस्त 2024 (Published: 06:39 PM IST) कॉमेंट्स
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फिल्म- उलझ 
डायरेक्टर- सुधांशु सरिया 
एक्टर्स- जाह्नवी कपूर, गुलशन देवैया, रौशन मैथ्यू, राजेश तैलंग, आदिल हुसैन
रेटिंग- ** (2 स्टार)

***

जाह्नवी कपूर की नई फिल्म आई है 'उलझ'. इस फिल्म के लिए इससे बेहतर टाइटल नहीं हो सकता था. क्योंकि फिल्म को देखते वक्त पब्लिक उलझन में थी कि हो क्या रहा है. फिल्म को घटता देख ये भी समझ आ रहा था कि मेकर्स भी बड़ी उलझन में हैं. क्योंकि विचारों में क्लैरिटी नहीं है. हिंदी सिनेमा की सबसे बड़ी समस्या है- फॉरमूला. अगर किसी विषय या एक किस्म की फिल्म चल गई, तो उसको अलग-अलग तरीके से बनाया जाता है. अगर 'उलझ' के उदाहरण से समझें, तो इस फिल्म में आपको 'राज़ी' वाले कई ट्रोप्स मिलेंगे. एक कड़ी 'एनिमल' से भी जुड़ी लगती है. मगर वो जानबूझकर किया गया हो, इसकी उम्मीद कम है. 'उलझ' को लगता है कि वो बड़ी स्मार्ट फिल्म है. मगर उसे सिर्फ ऐसा लगता भर है.

'उलझ' की कहानी सुहाना भाटिया नाम की एक लड़की के बारे में है. सुहाना डिप्लोमैट्स के खानदान से आती है. पिता से लेकर दादा तक इसी पेशे में थे. उसे लंदन में इंडिया का डिप्टी हाई-कमिश्नर बना दिया जाता है. वो इतनी कम उम्र में इस पोस्ट पर पहुंचने वाली पहली महिला है. इसलिए वहां लोग उसे कुछ ज़्यादा पसंद नहीं करते. सबको लगता है कि वो 'नेपोटिज़्म' की वजह से यहां तक पहुंची है. इसी बीच सुहाना को नकुल नाम के एक शेफ से प्यार हो जाता है. शेफ उसे ब्लैकमेल करना शुरू कर देता है. सुहाना से भारत के ज़रूरी काग़ज़ात और अन्य राज़ हासिल करने के मक़सद से. सुहाना उसके चंगुल में फंस जाती है. कुछ ही समय में ये खबर फैल जाती है कि लंदन दूतावास में कोई भेदी है. सबका शक जाता है सुहाना पर. क्योंकि वो वहां पर सबसे नई है. अब सुहाना के सामने दो चुनौतियां हैं. उसे खुद के ऊपर लगे गद्दार का दाग धोना है. साथ ही ये भी साबित करना है कि उसे ये नौकरी बाप-दादा की बदौलत नहीं मिली. बल्कि इसलिए मिली क्योंकि वो उस नौकरी के काबिल है.  

मेकर्स यहां बड़ी चालाकी से नेपोटिज़्म वाले मसले को डील करने की कोशिश करते हैं. वो सुहाना और जाह्नवी को एक ही जगह लाकर खड़ा करते हैं. क्योंकि दोनों को ही ये साबित करना है कि उन्हें जो जॉब मिली है, वो उनकी फैमिली की वजह से नहीं मिली. इसलिए मिली क्योंकि उन्होंने उसके लिए मेहनत की है. वो उसकी हक़दार हैं. ये बड़ी सतही, छिछली और नाकाम कोशिश साबित होती है. क्योंकि मेकर्स सुहाना और जाह्नवी, दोनों ही केस में ये बात कायदे से स्थापित नहीं कर पाते.

दूसरी चीज़ जो इस फिल्म का बेड़ा गर्क करती है, वो है इंडिया और पाकिस्तान का मसला. आज कल हिंदी सिनेमा में स्पाय थ्रिलर्स की कमी नहीं है. बाकायदा एक पूरा यूनिवर्स चल रहा है. जो पाकिस्तान को हराने में लगा हुआ है. मगर फिर मेकर्स इस विषय का निरंतर इस्तेमाल कर रहे हैं. हिंदी फिल्मों में इससे घिसा हुआ सब्जेक्ट फिलहाल तो कुछ नहीं है. ये फिल्ममेकर्स की मौकापरस्ती और आलस का भी परिचय देता है. वो पाकिस्तान को नीचा दिखाकर देश में फैले 'हाइपर नेशनलिज़्म' वाले माहौल को कैश करना चाहते हैं. मगर इस बारे में लिखते हुए वो कुछ भी नया नहीं करना चाहते. खराब लेखन इस फिल्म का सबसे बड़ा दुश्मन साबित होता है.  

तीसरी चीज़, जिसके बारे में हमने शुरुआत में बात की थी, वो है फॉरमूला. ट्राइड एंड टेस्टेड फॉरमूला. आलिया भट्ट की 'राज़ी' और 'उलझ' में कई समानताएं. इस फिल्म की नायिका भी विदेशी धरती पर देशहित में काम कर रही है. ये फिल्म भी इंटेलीज़ेंस के मसले से जुड़ी हुई है. एक ही प्रोडक्शन कंपनी (जंगली पिक्चर्स) ने दोनों फिल्मों को प्रोड्यूस किया है. 'राज़ी' में एक गाना था, जिसका टाइटल था- 'ऐ वतन'. 'उलझ' में एक गाना है, जिसका नाम है- 'मैं हूं तेरा ऐ वतन'. अब चूंकी 'राज़ी' टिकट खिड़की पर हिट रही थी. इसलिए मेकर्स को लगा कि इसी फिल्म का एक रीहैश वर्ज़न तैयार कर दिया जाए. पब्लिको को क्या ही पता चलेगा.

'उलझ' में जाह्नवी कपूर ने सुहाना भाटिया का रोल किया है. स्टार किड्स की जो नई खेप है, उसमें जाह्नवी संभवत: सबसे प्रॉमिसिंग एक्टर के तौर पर उभर रही हैं. मगर इस फिल्म में वो बड़ी मार्जिन से चूक जाती है. वो इस रोल शायद उतनी कंफर्टेबल नज़र नहीं आतीं. शायद दर्शकों की तरह जाह्नवी भी फिल्म को लेकर पूरी तरह कन्विंस्ड नहीं थीं. मेकर्स को थाह लग गया था कि फिल्म वैसी बनी नहीं है, जैसी वो बनाना चाहते थे. इसलिए बड़े गुपचुप तरीके से उन्होंने अपनी फिल्म अजय देवगन की 'औरों में कहां दम' के साथ रिलीज़ कर दिया.

गुलशन देवैया फिल्म में नकुल नाम के शेफ के रोल में दिखते हैं. जो कि आगे चलकर कुछ और ही निकलता है. गुलशन इस पीढ़ी के वो एक्टर हैं, जिन्हें आप कोई भी रोल दे दीजिए, वो आदमी आपको मार्केट का सबसे बेस्ट काम करने के आपको देगा. इस फिल्म की भी सेविंग ग्रेस वही हैं. रौशन मैथ्यू ने सेबिन नाम का कैरेक्टर प्ले किया है. उन्हें कुछ सीन्स में मलयाली बोलने का मौका मिला है. उसमें एक आउटबर्स्ट सीन भी है. वो बहुत नैचुरल लगे हैं. मीयांग चैन्ग खुद को एक से ज़्यादा मौकों पर साबित कर चुके हैं. उन्हें और बेहतर रोल्स में कास्ट किया जाना चाहिए. इसके अलावा राजेश तैलंग और आदिल हुसैन भी इस फिल्म का हिस्सा हैं. इतनी जोरदार कास्ट को कितने क्रिएटिव तरीके से वेस्ट किया जा सकता है, ये जानने के लिए 'उलझ' देखी जा सकती है.

'उलझ' कभी भी एक कहानी के तौर पर आपका भरोसा नहीं जीत पाती. क्योंकि यहां सबकुछ बहुत बनावटी लगता है. कई मौकों पर बचकाना और डंब भी. 'उलझ' न अपने जॉनर में कुछ नया जोड़ती है, न सिनेमा नाम की विधा में. 'उलझ' बस याद न रह पाने वाली फिल्मों की फेहरिस्त में एक और नाम बनकर रह जाती है.

वीडियो: मूवी रिव्यू: सरफिरा

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