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पहली बार ओलंपिक में शामिल इन एथलीट्स का कोई देश नहीं है

रेफ्यूजी एथलीट्स पहली बार ओलंपिक का हिस्सा होंगे.

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फोटो - thelallantop
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जागृतिक जग्गू
5 अगस्त 2016 (Updated: 5 अगस्त 2016, 02:40 PM IST) कॉमेंट्स
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आज है 5 अगस्त 2016. माने ओलंपिक का फीता कटने का दिन. रियो के मैराकाना स्टेडियम में नाच-गाने और धमाके के साथ रियो ओलंपिक 2016 स्टार्ट होगा. सारे एथलीट अपना-अपना बोरिया-बिस्तर ले कर ब्राजील पहुंच गए हैं. 206 देश के 11 हजार से भी ज्यादा एथलीट इस इवेंट में हिस्सा लेंगे. ये स्पोर्ट्स इवेंट बहुत दिलचस्प होने वाला है. क्योंकि रेफ्यूजी एथलीट्स पहली बार इसका हिस्सा होंगे. रेफ्यूजी एथलीट्स माने वो खिलाड़ी जिनका किसी देश से कोई कनेक्शन नहीं है. कहने का मतलब उन पर फलाने-चिलाने देश का ठप्पा नहीं लगा है. इनको किसी कारण से अपना देश छोड़कर दूसरे देश जाना पड़ा. वो जिंदगी से लड़-झगड़ कर एथलीट बने. इंटरनेशनल ओलंपिक कमिटी ने 10 ऐसे प्लेयर्स को रियो ओलंपिक में हिस्सा लेने का मौका दिया है. इसमें 5 साउथ सूडान, दो सीरिया, दो कांगो डेमोक्रेटिक रिपब्लिक और एक इथियोपिया से है. लल्लन आपको इन सारे एथलीट्स के बारे में बता रहा है.

1. यूसरा मर्दीनी- 100 मीटर बटरफ्लाई और फ्री स्टाइल

यूसरा सीरिया में पैदा हुई. लेकिन अब जर्मनी में रहती है. दमिश्क में पली-बड़ी यूसरा ने स्वीमिंग, सीरियन ओलंपिक कमिटी के सपोर्ट से सीखा. साल 2012 में सीरिया को फीना वर्ल्ड स्वीमिंग चैंपियनशिप में रिप्रेजेंट भी किया. यूसरा का घर सीरियन सिविल वॉर में बर्बाद हो गया. वो और उसकी छोटी बहन ने सीरिया को गुड बाय कहने का मन बना लिया और निकल गई. बर्फ से भरे महासागर में रेफ्यूजी से भरे नाव को धक्का देते हुए दोनों बहनें ग्रीस पहुंचीं. फिर वहां से वो जर्मनी आईं और बर्लिन में बस गईं. वहां तैराकी की ट्रेनिंग ली और चुनी गईं रेफ्यूजी ओलंपिक एथलीट्स टीम में.

2. पोपोले मिसेंगा- 90 किलोग्राम जूडो

पोपोले का होम टाउन कांगो डेमोक्रेटिक रिपब्लिक था. पर अब ब्राजील में शादी कर सेटल हो गए हैं. पोपोले 6 साल का थे जब उसकी मम्मी का मर्डर हुआ. उस टाइम कांगो डेमोक्रेटिक रिपब्लिक में दूसरा कांगो वॉर चल रहा था. डर के मारे पापोले पास के जंगल में भाग गए. एक हफ्ते तक उधर ही बौराने के बाद उन्हें बचाया गया. और कांगो की राजधानी किन्शासा ले जाया गया. वो अनाथ बच्चों के साथ बड़े हुए और जूडो सीखा. इसके बाद वो वहां के एक अनाथालय में रहने लगे. और फिर वहीं का हो के रह गए. जूडो की ट्रेनिंग स्कूल से की. साथ में ट्रक में सामान रखने-उतारने का काम करते थे. साल 2013 में वर्ल्ड जूडो चैंपियनशिप हुआ. ब्राजील में. पहले राउंड में ही पोपोले का पत्ता साफ हो गया. खराब खेलने के चलते पोपोले और इसके साथी योलांदे को कोच ने पिंजरे में बंद कर दिया. पैसे, पासपोर्ट सब ले लिए. योलांदे ने पोपोले को भाग चलने के लिए कहा पर वो नहीं भागे. मैच वाले दिन दोनों वहां से भाग निकले. सितंबर 2014 में उन पर रेफ्यूजी का स्टाम्प लग गया.

3. योलांदे बुकासा माबिका- 70 किलोग्राम जूडो

पोपोले और योलांदे की कहानी लगभग सेम ही है. दोनों एक ही जगह से हैं. वॉर के टाइम ही योलांदे ने भी अपने पेरेंट्स को खो दिया था. अनाथालय में पली-बढ़ी और जूडो सीखा. अपने दुष्ट कोच से खुद को बचाया और अपने साथी पोपोले को भी. पेट पालने के लिए योलांदे ने ब्राजील की एक टेक्सटाइल मील में झाड़ू लगाया है. वो ब्राजील की सड़कों पर सोई हैं. इसके बाद इंटरनेशनल ओलंपिक कमिटी ने योलांदे को सपोर्ट किया. और अब वो रेफ्यूजी टीम में हैं.

4. जेम्स न्यांग चेंगजिक- 400 मीटर रेस

जेम्स का घर साउथ सूडान में था. पर अब केन्या में रहते हैं. 1999 में सूडान में दूसरा सिविल वॉर चल रहा था. जेम्स के पापा आर्मी में थे. लड़ाई में मारे गए. उस वक्त वो 13 साल के थे. पापा के मरने के बाद लोग इन्हें सेना में जबरदस्ती भर्ती करना चाहते थे. इससे बचने के लिए वो भाग गए. और केन्या चले आए. वहां काकुमा रेफ्यूजी कैंप में रहे. और बिना जूतों के दौड़ते थे. जिसके चलते उनके पैरों में अक्सर चोट लग जाती थी. कैंप के लोगों ने जेम्स को टेगला लोरूप पीस फाउंडेशन ज्वाइन करने को कहा. वो वहां गए और प्रॉपर ट्रेनिंग की. और आज टीम के मेंबर हैं.

5. येइच पुर बील- 800 मीटर रेस

बील की कहानी भी जेम्स की तरह ही है. ये भी साउथ सूडान में रहते थे. वॉर के चलते वहां से केन्या चले आए. जेम्स के साथ ही ट्रेनिंग की. बिना जूतों और जिम के. मौसम भी सपोर्ट नहीं करता था. क्योंकि वहां सुबह से लेकर शाम तक धूप होती थी. बील को भी टेगला लोरूप वाले ले गए. उनके साथ ट्रेनिंग की. और चुने गए रियो ओलंपिक के लिए.

6. पाउलो अमोटुन लोकोरो- 1500 मीटर रेस

लोकोरो भी साउथ सूडान से हैं. 2006 में केन्या आए. वजह सेम थी. वॉर से बचने के लिए. केन्या आने से पहले लोकोरो गाय-भैंस चराते थे. टेगला लोरूप को ये एक स्काउटिंग सेशन में मिले. वो इसे ले गए और प्रॉपर ट्रेनिंग दी. इंटरनेशनल ओलंपिक कमिटी की मदद से आज वो रेफ्यूजी टीम में हैं.

7. एंजेलिना नाडा लोहालिथ- 1500 मीटर रेस

साल 1994 में पैदा हुईं. साउथ सूडान एंजेलिना का सब कुछ था. 2001 मे उन्हें अपना घर छोड़ना पड़ा. क्योंकि सूडान में लड़ाई चल रही थी. 2002 में वो केन्या आईं. 6 साल की थीं एंजेलिना जब वो काकुमा रेफ्यूजी कैंप आईं. स्कूल जाना शुरू किया. और दौड़ना भी. स्कूल में उन्होंने बहुत सारे रेस जीते. एक बार कैंप में प्रोफेशनल कोच ट्रायल लेने आए. उनको एंजेलिना का पर्फॉरमेंस बहुत पसंद आया. वो उनको ले गए. ट्रेनिंग दी. उसके बाद टेगला लोरूप फाउंडेशन गईं. वहां ट्रेनिंग की. लोहालिथ को लगता है कि एथलेटिक्स में उनकी जीत उसके परिवार को एक अच्छी लाइफ दे सकती है.

8. रोज नाथिके लोकोन्येन- 800 मीटर रेस

अपने चार दोस्तों की तरह रोज ने भी सूडान में वही दर्द झेला. रोज 10 साल की थी जब वो सूडान से केन्या आईं. रेफ्यूजी कैंप के स्कूल में एक रेस होनी थी. टीचर ने उसे 10 किलोमीटर रेस में भागने को कहा. उन्होंने ये कहते हुए मना कर दिया कि मेरी ट्रेनिंग तो हुई नहीं है. टीचर के समझाने पर रेस में पार्ट लिया और नंबर 2 आईं. इसके बाद उन्होंने प्रैक्टिस शुरू की. नंगे पैर दौड़ती थीं. वो भी अपने चोटों की परवाह किए बगैर. कुछ टाइम बाद रोज के पैरेंट्स सूडान चले गए. पर रोज ने जाने से मना कर दिया. खूब मेहनत किया और ओलंपिक के लिए चुनी गईं.

9. योनास किन्डे- मैराथन

किन्डे इथियोपिया में पैदा हुए. राजनीतिक दिक्कतों के चलते उन्हेंअपना देश छोड़कर लक्समबर्ग में बसना पड़ा. चार साल हो चुके हैं किन्डे को लक्समबर्ग में रहते हुए. शुरूआत में पेट पालने के लिए टैक्सी चलाया करते थे. पहले हाफ मैराथन दौड़ते थे. पर बाद में फुल मैराथन दौड़ने लगा. बहुत से मेडल जीते. साल 2015 में फ्रैंकफर्ट के मैराथन में उन्होंने 2 घंटे 17 मिनट में रेस खत्म कर ली. इतना टैलेंट होने के बाद भी केन्डी इंटरनेशनल मैराथन में हिस्सा नहीं ले पा रहे थे. क्योंकि वो रेफ्यूजी थे. 3 जुलाई को इंटरनेशनल ओलंपिक कमिटी ने किन्डे को रियो का टिकट दे दिया.

10. रामी अनीस- 100 मीटर बटरफ्लाई

अनीस स्वीमर है. सीरिया के एलेप्पो शहर इनका होम टाउन था. वहां सिविल वॉर चल रही थी. जिसके कारण अनीस टर्की चले आए. पेड़ की टहनियों से खुली नाव बनाई और उसी के सहारे ग्रीस पहुंचे. किस्मत अच्छी थी, जो बेल्जियम में रेफ्यूजी कैंप मिल गया. अनीस के अंकल भी स्वीमर थे. इन्हीं से अनीस को स्वीमर बनने की प्रेरणा मिली है.

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