वेब सीरीज़ रिव्यू: स्पेशल ऑप्स 1.5
धांसू सीरीज़ का सीक्वल क्या उतना धांसू बन पाया है?
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वेब सीरीज़ रिव्यू: स्पेशल ऑप्स 1.5.
आज है फिल्मी शुक्रवार. यानी आई है सिने बहार. आज हमने डिज़्नी+हॉटस्टार पर रिलीज़ हुई नई सीरीज़ 'स्पेशल ऑप्स 1.5' देखी है. ये सीरीज़ 2020 में रिलीज़ हुई 'स्पेशल ऑप्स' की अगली कड़ी है. 'स्पेशल ऑप्स 1.5'में 50 से 55 मिनट के सिर्फ़ चार एपिसोड्स हैं. कैसे हैं ये चारों एपिसोड्स? पिछले सीज़न की तरह दमदार हैं, या ज़्यादातर सीक्वल्स की तरह बेज़ार है? ये सब आपको आगे बतलाएंगे.
# स्टोरी 1.5
जिन लोगों ने पहला सीज़न नहीं देखा है, उनके लिए पिछले सीज़न की छोटी-छोटी मगर मोटी बातें बता देते हैं. हिम्मत सिंह नाम का रॉ एजेंट है. रॉ का बेस्ट अफ़सर है हिम्मत. इनके खासमखास हैं दिल्ली पुलिस के अब्बास शेख. हिम्मत के खिलाफ़ पिछले सीज़न में इंक्वायरी बैठ जाती है, जिसमे वो अपने बड़े मिशन के बारे में दो इंवेस्टिगेटिंग अफसरों को बताता है.बस इतना काफ़ी है. अब इस सीज़न की कहानी.
'स्पेशल ऑप्स' के पिछले सीज़न की तरह इस बार भी कहानी नैरेशन स्टाइल में चलती है. लास्ट सीज़न में हिम्मत सिंह 'पार्लियामेंट ऑपेरशन' के बारे में डी के बैनर्जी और नरेश चड्ढा को बता रहा था. इस बार अब्बास शेख हिम्मत सिंह की कहानी उन दोनों को बता रहा है. फ्लैशबैक में कहानी शुरू होती है हिम्मत सिंह के पहले केस से. इंटेलिजेंस और डिफेंस के अहम पदों पर तैनात ऑफिसर्स एक के बाद एक मरे मिल रहे हैं. शुरुआती जांच में तो इनकी मौत का कारण नेचुरल डेथ आता है लेकिन बाद में मालूम चलता है कि ये सभी हनी ट्रैप के शिकार हुए हैं. शातिर लड़कियों ने इन्हें प्रेमजाल में फंसाकर देश के कुछ बहुत ही अहम दस्तावेज़ कब्ज़ा लिए हैं. इन सब के पीछे फॉर्मर रॉ एजेंट मनिंदर है, जिसने अपने ही डिपार्टमेंट के ख़िलाफ़ बगावत छेड़ दी है. रॉ की ओर से ये केस हिम्मत और उसके साथी अफ़सर कम दोस्त विजय को सौंपा जाता है. क्या हिम्मत सिंह इन हनी ट्रेपर्स को पकड़ने में कामयाब होता है, या हिम्मत सिंह की शुरुआत असल में एक फेलियर से हुई थी ये जानने के लिए डिज्नी+हॉटस्टार पर स्ट्रीम करें 'स्पेशल ऑप्स 1.5'.

Kk Menon एज़ हिम्मत सिंह.
# कहानी बड़ी प्रिडिक्टेबल है मुझे 'स्पेशल ऑप्स' का पहला सीज़न काफ़ी पसंद आया था. तभी से इसके सीज़न 2 के इंतज़ार में था. आज इंतज़ार खत्म हुआ फाइनली. इस शो की जो सबसे अच्छी बात है, वो है के के मेनन जिन्हें परफॉर्म करते हुए देखना ही एक सुखद अनुभव रहता है. इस बार पहले एपिसोड में विनय पाठक अपने चिरपरिचित अंदाज़ में आते हैं, तभी से मूड सेट हो जाता है. लगा कि अगले चार घंटे बड़े रोमांच में गुज़रेंगे. पहले एपीसोड में जो विनय पाठक के सीन्स हैं बड़े मज़ेदार लगे. साथ ही सीन का 'अनपुश्ड' ह्यूमर भी खूब रहा. जिसके बाद हिम्मत सिंह की फ्लैशबैक स्टोरी शुरू हो जाती है. बस यहां मिलता है शो का पहला माइनस पॉइंट.
शो में केके मेनन को प्रोस्थेटिक मेकअप के ज़रिए या VFX के ज़रिए यंग दिखाया गया है. लेकिन बात नहीं बनी. कतई नहीं बनी. 'फैन' में जिस तरीके से शाहरुख़ को यंग दिखाया गया था, वो बहुत स्मूथ था. लेकिन जहां तक समझ आता है, यहां मेकअप से ये काम किया गया है. लेकिन वो मेकअप एकदम साफ़ झलकता है. पूरे शो में केके ऐसे लगे हैं जैसे 950 ग्राम फाउंडेशन चेहरे पर लगा कर घूम रहे हों. शो का दूसरा माइनस पॉइंट है जम्प कट्स. बार-बार फ़्लैशबैक से प्रेजेंट टाइम के बीच जो सीन्स आते हैं, वो बड़े पिंच करते हैं. जैसे-जैसे हिम्मत की कहानी आगे बढ़ती है, बहुत ही प्रेडिक्टेबल होती जाती है. पहला ट्विस्ट आते ही आपको समझ आ जाता है कि अगले एपिसोड में क्या होने वाला है. एक तरफ़ हिम्मत की पर्सनल लाइफ प्रेडिक्टेबल, ऊपर से हीरो-विलन की राइवलरी उससे भी ज़्यादा प्रेडिक्टेबल. जिसके चक्कर में पूरे शो के दौरान रोमांच रफूचक्कर रहता है. हां शो बोर की श्रेणी में नहीं जाता लेकिन फिर भी जो पहले सीज़न देख कर उम्मीदें जगी थीं, वो यहां सबरी स्वाहा हो गईं.

KK Menon विथ बहुत सारा फाउंडेशन.
# एक्टिंग-राइटिंग और डायरेक्शन कैसे रहे केके मेनन एज़ हिम्मत सिंह तो ज़बरदस्त रहे ही लेकिन सीज़न 1 वाला हिम्मत ज़्यादा कंविंसिंग था. शो में केके ने पिछले सीज़न से तकरीबन 20 साल कम उम्र का करैक्टर किया है. लेकिन केके अपनी परफॉरमेंस से और प्रोस्थेटिक टीम अपने मेकअप से ये गैप भर नहीं पाए. बाकी केके सीन्स में कोई कसर छोड़ें, ऐसा तो होता नहीं है. अब्बास शेख का रोल विनय पाठक के लिए रूटीन वर्क ही रहा होगा. ऐसे किरदारों से उनकी फिल्मोग्राफी भरी पड़ी है. विनय भी कहीं निराश नहीं करते. मेन विलन मनिंदर की भूमिका में आदिल खान डीसेंट रहे. उन्होंने कहीं इम्प्रेस नहीं किया, तो निराश भी नहीं किया. लेकिन कुछ सीन्स में वो स्क्रीन के आगे स्मूथ नहीं लगे. उन्हें देख ये साफ़ पता चलता था कि उनके आखों के सामने बड़े से कैमरे लिए कई लोग खड़े हैं. विजय के रोल में आफताब शिवदासानी बड़े दिनों बाद किसी करैक्टर रोल में नज़र आए हैं. हालांकि इस शो में उनके किरदार का कोई खास ग्राफ नहीं था लेकिन अपने करियर की दूसरी पारी की उनकी ये अच्छी शुरुआत मानी जाएगी. अफ़सरों को हनी ट्रैप कर रही करिश्मा के रोल में ऐश्वर्या सुष्मिता ने भी उचित काम किया.
'स्पेशल ऑप्स 1.5' को लिखा है नीरज पांडे, दीपक किंगरानी और बेनज़ीर अली फिदा ने. लेखन के मामले में पिछले सीज़न के मुकाबले ये सीज़न कमज़ोर रहा. नीरज पांडे स्टाइल ऑफ राइटिंग इस बार मिसमैच लगी. अपनी बाकी फ़िल्मों के तरीके से असल में हुई घटनाओं को नीरज ने इस कहानी में भी बैकड्रॉप के रूप में इस्तेमाल किया है. वो थोड़ा अच्छा लगता है. शो में कुछ संवाद अच्छे रहे लेकिन कोई भी ऐसा नहीं था जो मन में रह जाए. इस शो को डायरेक्ट नीरज और शिवम नायर ने किया है.

Vinay Pathak अपने चिर परिचित अंदाज़ में.
#देखें या नहीं? अगर आपने पिछला सीज़न देखा है, तो उसके मुकाबले आपको 'स्पेशल ऑप्स 1.5' उतना एंटरटेन नहीं कर सकेगा. पहले सीज़न से ही इस शो की तुलना 'द फैमिली मैन' से की जा रही है. ये सीज़न देख कई जगहों पर ऐसा लगता भी है कि मेकर्स यहां कुछ-कुछ 'फैमिलीमैन' वाले सारे एलिमेंट डालकर कंपीट करने की कोशिश में हैं, लेकिन अफ़सोस ये कोशिश काफ़ी कमज़ोर रही. 'स्पेशल ऑप्स 1.5' में ना तो केके के काम को बेस्ट वर्क माना जाएगा, ना ही इस शो को इस जॉनर में अव्वल रखा जाएगा. ये शो एवरेज श्रेणी में गिरता है. जिसे आप चाहें तो एक बार देख सकते हैं. चाहें तो.