फिल्म रिव्यू- रॉकी और रानी की प्रेम कहानी
'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' महान या महानतम फिल्मों में से एक नहीं है. मगर ये एक ऐसी फिल्म है, जो उम्मीद से ज़्यादा डिलीवर करती है.
Rocky Aur Rani Kii Prem Kahaani बड़ी इंट्रेस्टिंग फिल्म है. इसे Karan Johar ने डायेरक्ट किया है. करण की एक छवि है हम सबके जहन में. हम उन्हें नॉन-सीरियस फिल्म पर्सनैलिटी के तौर पर देखते हैं. जिन्होंने कुछ ब्लॉकबस्टर मगर प्रॉब्लमैटिक फिल्में बनाई हैं. जिन्होंने शाहरुख खान के साथ मिलकर पूरी एक जेनरेशन के लिए प्यार के मायने खराब कर दिए. फिल्म इंडस्ट्री में भाई-भतीजावाद को खाद-पानी देने वाला शख्स.
हालांकि बीते कुछ सालों में उन्होंने अपनी बनाई फिल्मों की खुद आलोचना की. मगर उसे हमने पीआर गेम मानकर खारिज कर दिया. फिर वो 'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' जैसी फिल्म बनाते हैं. ट्रेलर देखने के बाद इसे करण जौहर मार्का फिल्म माने बिना नहीं रहा जा सकता. आप फिल्म से कुछ उम्मीद करने की भी उम्मीद छोड़ देते हैं. मगर 'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' इस बात की बानगी है कि करण जौहर वो पुराने फिल्ममेकर नहीं हैं. वो फिल्मकार जिसकी यूएसपी सिर्फ भव्य सेट, धुआंधार स्टारकास्ट, महंगे-फैंसी कपड़े और अच्छे गाने हुआ करते थे. इस बार उन्होंने एक ऐसी फिल्म बनाई है, जो बनाई जानी चाहिए थी. हालांकि 'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' के बारे में ये नहीं कहा जा सकता कि ये परफेक्ट फिल्म है. क्योंकि परफेक्शन मिथ है.
'रॉकी और रानी...' की कहानी दिल्ली में रहने वाले दो ऐसे लोगों की है, जो एक-दूसरे से बिल्कुल उलट हैं. रॉकी रंधावा. एक पैसेवाले घर से आने वाला लड़का. जिसने अपने जीवन में कभी गैस स्टोव भी नहीं जलाया. उसकी लाइफ का एक ही मक़सद है मज़े करना. वो इसी लिए बॉडी बनाता है. अतरंगी कपड़े पहनता है. पार्टियां करता है. अंग्रेज़ी बोलनी नहीं आती. मगर बोलता है. फिर उसके दादा जी की बैकस्टोरी की वजह से उसकी मुलाकात होती है रानी चैटर्जी नाम की लड़की से. रानी एक न्यूज़ चैनल में एंकर है. उसे रॉकी किसी क्रीचर समान लगता है. उसे पहली बार मिलने के बाद वो कुछ सेकंड तक हंसती रह जाती है. एक दम खरा. बातें-मुलाकातें बढ़ने लगती हैं. मगर रानी इस चीज़ को लेकर गंभीर नहीं है. क्योंकि उसे लगता है कि दोनों की फैमिलीज़ एक-दूसरे से बिल्कुल अलहदा हैं. उनका कोई मेल ही नहीं है. ऐसे में वो लोग एक-दूसरे के परिवारों को समझने के लिए तीन-तीन महीने का एक्सचेंज प्रोग्राम लॉन्च करते हैं. यानी रॉकी, तीन महीने रानी के घर रहेगा. और रानी, रॉकी के घर.
इन तीन महीनों में अधिकतर मौकों पर तो कॉमेडी ही होती रहती है. दोनों के परिवार उन्हें स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं. मगर धीरे-धीरे चीज़ें बिगड़ने लगती हैं. जो कि सुधार की दिशा में पहले कदम सा लगता है. फर्स्ट हाफ खत्म होता है. उसके बाद असली पिक्चर शुरू होती है. आज कल जजमेंट मैगी की तरह हो गया है. दो मिनट में बन जाता है. नया कॉन्सेप्ट आया है कैंसिल कल्चर का. बाहरी आवरण और अवधारणा के आधार पर किसी को खारिज कर देने की निंजा टेक्निक. आपको यकीन नहीं होगा कि करण जौहर की 'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' इन मसलों पर बात करती है.
परिवारों में कैसे डर के मारे सालों से चीज़ें चली आ रही हैं, जिसे सम्मान के नाम से बेचा जाता है. रॉकी के परिवार की मुखिया एक महिला है. मगर पितृसत्तात्मकता इस कदर हमारे सिस्टम में रचा-बसा हुआ है कि पावर में होने के बावजूद वो महिला भी उसी चीज़ को प्रमोट करती है. बॉडी शेमिंग किस तरह से किसी की मानसिक अवस्था को प्रभावित कर सकती है. अंग्रेज़ी भाषा कैसे आपको सामाजिक रूप से सुपीरियर बना देती है. 'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' इन सब विषयों पर विमर्ष करती है. और सिर्फ छूकर आगे नहीं बढ़ जाती, बल्कि अपने किरदारों की मदद से उसे चरितार्थ करती है.
फिल्म में रॉकी का रोल किया है रणवीर सिंह ने. इस फिल्म में उन्हें देखकर लगता है कि रणवीर ने खुद का ही थोड़ा ड्रमैटाइज़्ड वर्ज़न प्ले किया है. अच्छी बात ये है कि वो फिल्म के हीरो नहीं हैं. फिल्मकार जो कहना चाहता है, उसे दर्शकों तक पहुंचाने का ज़रिया हैं. रणवीर के साथ सिर्फ एक प्रॉब्लम है. वो कब, कहां, क्या कर रहे हैं, पल पल की खबर जनता के पास है. उन्हें आप असल ज़िंदगी में इतना ज़्यादा देख लेते हैं कि उनकी फिल्मों को देखने की एक्साइटमेंट नहीं बचती. ख़ैर, 'रॉकी और रानी...', रणवीर सिंह की 'तू झूठी मैं मक्कार है'. जो थोड़ी समझदार है. एक ऐसी फैमिली फिल्म, जो हर फैमिली को देखनी चाहिए. जिससे उन्हें थोड़ा रियलिटी चेक मिलेगा.
आलिया भट्ट ने रानी चैटर्जी का रोल किया है. आलिया ने पूरी फिल्म में शानदार काम किया है. मगर 'झुमका' गाने में उनके कुछ सेकंड्स हैं, जो मेरे लिए पर्सनली पूरी फिल्म पर भारी हैं (45वें सेकंड से लेकर 1:02 मिनट तक). इस 17 सेकंड में वो कुछ अलग ही कर रही हैं. वो असल मायनों में 'रॉकी और रानी...' फिल्म की नायिका हैं. उनका किरदार फिल्म के तकरीबन सभी कॉनफ्लिक्ट का हिस्सा है. तो बेसिकली वो पूरी फिल्म को जोड़े रखती हैं. बिखरने से बचाकर. शबाना आज़मी ने रानी की मां का रोल किया है. शबाना के किरदार का फिल्म से कथानक से सीधा संबंध हैं. क्योंकि उनकी अपनी एक कहानी है, जो रॉकी-रानी के साथ पैरलल चलती रहती है. जया बच्चन ने फिल्म में रॉकी की दादी का रोल किया है, जो उस परिवार की मुखिया हैं. उनका ये धनलक्ष्मी का किरदार 'कल हो न हो' और 'कभी खुशी कभी ग़म' का मिक्सचर लगता है. बस उसमें आप थोड़ी और कुंठा मिला दीजिए. धर्मेंद्र एक छोटे मगर अहम किरदार में नज़र आते हैं. वो रॉकी के दादा बने हैं. धर्मेंद्र की उम्र काफी हो चली है. बावजूद इसके उनकी स्क्रीन प्रेज़ेंस कमाल की है. फिल्म के आखिर में वो एक लाइन बोलते हैं, जो ट्रेलर में भी सुनाई आता है. ये काफी मेटा मोमेंट है. ऐसा लगता है कि वो बात धर्मेंद्र फिल्म में अपने बेटे से नहीं, बल्कि खुद को याद दिला रहे हैं.
'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' के बैकग्राउंड और प्लेबैक में ढेर सारे पुराने और यादगार गानों का इस्तेमाल हुआ है. मगर उन्हें रीमिक्स करके फिल्म के साउंडट्रैक का हिस्सा नहीं बनाया गया है. फिल्म की लंबाई पौने तीन घंटे है. उसे थोड़ा और टाइट किया जा सकता है. सेकंड हाफ में काटने लायक कुछ नहीं है. मगर फर्स्ट हाफ में बहुत सारी ऐसी चीज़ें हैं, जिन्हें कट शॉर्ट किया जा सकता था.
कुल जमा बात ये है कि 'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' एक पारिवारिक फिल्म है. मगर प्रॉब्लमैटिक फिल्म नहीं है. लव स्टोरी है, मगर मिसोजिनिस्टिक नहीं है. हम ये बिल्कुल नहीं कह रहे कि 'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' महान या महानतम फिल्मों में से एक है. मगर ये एक ऐसी फिल्म है, जो उम्मीद से ज़्यादा डिलीवर करती है. ये सूरज बड़जात्या की फेयरी टेल वाली फैमिली फिल्म नहीं है. ये करण जौहर की थोड़ी कम रियलिस्टिक मगर प्रभावशाली फैमिली फिल्म है.
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