दीपक डोबरियाल की एक शब्दशः स्पीचलेस कर देने वाली फिल्म: 'बाबा'
दीपक ने इस फिल्म में अपनी एक्टिंग का एवरेस्ट छू लिया है.
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दीपक ने फिर साबित कर दिया कि वो कद्दावर अभिनेता हैं.
मराठी सिनेमा को समर्पित इस सीरीज़ 'चला चित्रपट बघूया' (चलो फ़िल्में देखें) में हम आपका परिचय कुछ बेहतरीन मराठी फिल्मों से कराएंगे. वर्ल्ड सिनेमा के प्रशंसकों को अंग्रेज़ी से थोड़ा ध्यान हटाकर इस सीरीज में आने वाली मराठी फ़िल्में खोज-खोजकर देखनी चाहिए.

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मराठी सिनेमा ने पिछले डेढ़-दो दशक में कुछेक बेहतरीन फ़िल्में दी हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह ये रही कि वहां के दर्शकों ने स्टार्स की अंधभक्ति को परे रखकर अच्छी कहानियों पर अकीदा रखा. अलग-अलग विषयों पर फ़िल्में बनाने वाले फिल्मकारों का हौसला बढ़ाया. इसी से प्रेरित होकर हिंदी सिनेमा के कुछ बड़े नामों ने भी मराठी फिल्मों में इन्वेस्ट किया. और अच्छी फ़िल्में दीं. इस लिस्ट में कई बड़े नाम हैं. जैसे अमिताभ बच्चन, अक्षय कुमार, अजय देवगन, प्रियंका चोपड़ा. अब एक नाम और जुड़ गया है. संजय दत्त का. उन्होंने अपनी पहली मराठी फिल्म प्रड्यूस की है और ये कहना कतई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि सही जगह पैसा लगाया है.
संजय दत्त-मान्यता दत्त ने मराठी फिल्म 'बाबा' की स्क्रिप्ट में अपना विश्वास जताया और इस विश्वास का नतीजा एक खूबसूरत फिल्म के रूप में सामने आया. 'बाबा' मराठी में पिता को कहते हैं. ये एक एक्सीडेंटल माता-पिता और उनके बच्चे के बीच की स्पीचलेस प्रेम कहानी है. सेंटेंस अजीब लग रहा होगा लेकिन ये एक्सीडेंटल भी है, प्रेम कहानी भी है और स्पीचलेस भी. क्योंकि इसमें स्पीच का, बोलचाल का कोई दखल नहीं है. आइए मुख़्तसर में कहानी सुनाते हैं.

माधव और आनंद की दुनिया है शंकर.
महाराष्ट्र के कोंकण के एक गांव में एक कपल रहता है. माधव और आनंदी. गरीब हैं लेकिन गरीबी से बड़ी समस्या ये कि मूक-बधिर हैं. बोल-सुन नहीं सकते. उनका एक बेटा है. शंकर. सात-आठ साल का. वैसे तो शंकर एक स्वस्थ बालक है लेकिन बोलने-सुनने में असमर्थ माता-पिता की परवरिश में वो खुद भी बोलना नहीं सीख पाया है. अच्छा कहानी में एक पेंच भी है. शंकर जो है, वो माधव और आनंदी की अपनी औलाद नहीं है. वो किसी अमीर घर की बेटी की संतान है, जिसे किसी वजह से त्याग दिया गया था. तीन दिन का दुधमुंहा बच्चा माधव और आनंदी की गोद में आया था जिसे उन्होंने अपनी दुनिया ही मान लिया. अपने सीमित संसाधनों के साथ उन्होंने बच्चे की दुनिया गुलज़ार रखने की पूरी-पूरी कोशिश की. फिर एक दिन उनकी हंसती-खेलती दुनिया को नज़र लग गई.
शंकर की असली मां लौट आई. वो चाहती है कि उसे बच्चा वापस कर दिया जाए. माधव और आनंदी के राज़ी होने का तो सवाल ही नहीं. ज़ाहिर है मामला कोर्ट में पहुंचता है. ये भी ज़ाहिर है कि कोर्ट बच्चे के उज्ज्वल भविष्य को ही देखेगा. जो कि अमीर मां की पनाह में ही मुमकिन है. कैसे पार पाएंगे माधव और आनंदी इस सिचुएशन से? क्या उन्हें अपना बच्चा खोना पड़ेगा? या कोई करिश्मा होगा? ये सब फिल्म देखकर जानिएगा. हम तो सिर्फ इतना बता देते हैं कि आपके पैसे ज़ाया नहीं जाएंगे.

'बाबा' फिल्म दो तरह के डिपार्टमेंट में एवरेस्ट सी उंचाइयां छूती है. एक तो बेहद सरल, साधारण लेकिन सुपर्ब कहानी में. और दूसरी कलाकारों के अप्रतिम अभिनय में. 'ओमकारा', 'तनु वेड्स मनु' जैसी फिल्मों में अपनी एक्टिंग का जलवा बिखेर चुके दीपक डोबरियाल पहली बार मराठी फिल्म में नज़र आए हैं. बोलने में असमर्थ शख्स का रोल होने के कारण भाषा की समस्या तो नहीं थी. बाकी बचा अभिनय तो वो उन्होंने, दिल, जान, जिगर, प्राण सब झोंक कर किया है. आप उनसे नज़रें नहीं हटा सकते. एक प्रतिभाशाली एक्टर की देहबोली कैसी होनी चाहिए ये उन्हें देखकर सीखा जा सकता है. एक सीन है जिसमें वो शंकर भगवान की एक छोटी सी मूर्ति के आगे खड़े हैं. उनकी नज़रों में तड़प है, शिकायत है, बेचैनी है. उस सीन को देखकर अमिताभ का दीवार वाला वो सीन सहज ही याद आ जाता है, जिसमें वो शंकर भगवान की ही मूर्ति के आगे कहते हैं, "आज खुश तो बहुत होंगे तुम"! दीपक एक शब्द नहीं कहते लेकिन उतना ही या शायद उससे थोड़ा सा ज़्यादा ही इम्पैक्ट पैदा कर पाते हैं. ये उनकी अदाकारी का लिटरली निशब्द कर देने वाला नमूना है.
उनके साथ-साथ कदम मिलाकर चलती हैं नंदिता धुरी पाटकर. एक मां की ममता के जितने भी रंग हो सकते हैं वो आप उनके निभाए किरदार में से हाथ बढ़ाकर चुन सकते हैं. चाहे अपने बच्चे की छोटी-छोटी खुशियों में खिला हुआ उनका चेहरा हो या उससे बिछड़ने की आशंका से लरज़ती, बरसती उनकी आंखें. नंदिता ने दीपक जितने ही ऊंचे मेयार की एक्टिंग की है. शंकर के रोल में आर्यन मेघजी ने कमाल किया है. अभी कुछ दिन पहले ही हम उन्हें एक वाचाल बच्चे के रोल में देख चुके हैं. नेटफ्लिक्स ओरिजिनल फिल्म '15 ऑगस्ट' में. इस फिल्म में उन्हें एकदम उलट रोल करना था. सिर्फ हावभाव और आंखों से अभिनय करना था. इस छोटे से बच्चे ने क्या खूबी से कर दिखाया है ये. दाद तो बनती है बॉस!

शंकर की असली मां पल्लवी.
बाकी के कलाकारों में चित्तरंजन गिरी प्रभावित करते हैं. माधव का दोस्त जो खुद हकलेपन से जूझ रहा है लेकिन बच्चे को बुलवाने की जी तोड़ कोशिश कर रहा है. स्पृहा जोशी और अभिजीत खांडकेकर अपने सीमित प्रेजेंस में बढ़िया काम कर जाते हैं.
डायरेक्टर राज आर गुप्ता को एक बात के लिए शाबाशी ज़रूर देनी होगी. उनकी फिल्म लंबे-चौड़े, इमोशनल डायलॉग्स पर निर्भर नहीं रहती. वो घटनाओं को सहजता से पेश भर करती जाती है. कई बार तो परदे पर एक शब्द नहीं बोला जाता लेकिन सीन आपके ज़हन से चिपक सा जाता है. अपनी पहली ही फिल्म में उन्होंने दिखा दिया है कि उनकी रेंज कितनी ज़बरदस्त है. अर्जुन सोरटे की सिनेमेटोग्राफी बेहद खूबसूरती से कोंकण का सौन्दर्य परदे पर पेंट करती है.
तो इन शॉर्ट हम तो बस इतना ही कहेंगे कि जब-जब भी पिता-पुत्र के रिश्ते पर बनी बेहतरीन फिल्मों की लिस्ट बनेगी तो 'बाबा' उसमें ज़रूर-ज़रूर जगह पाएगी. रूह को खुश कर देने वाला सिनेमा है ये. ज़रूर देखिएगा.
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