ये पुलिस अफसर हमेशा अपने मुजरिम को चारों तरफ से ही घेरता था
लेकिन तब भी कई बार वो भाग जाया करते थे.
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इफ्तिख़ार अहमद, 'डॉन' में
इफ्तिख़ार का जन्म 22 फरवरी 1920 को जालंधर में हुआ था, लेकिन परवरिश कानपुर में हुई. 5 भाई बहनों में सबसे बड़े इफ्तिख़ार का पूरा नाम सैयादाना इफ्तिख़ार अहमद शरीफ था. अपने करियर के दौरान 400 से ज़्यादा फिल्मों में बतौर चरित्र अभिनेता काम किया. लेकिन उस लेबल में कहीं गुम नहीं हुए. 11 मुल्कों में जब 'डॉन' को पुलिस ढूंढ रही थी, तब हिंदुस्तान में उसे पकड़ने की ज़िम्मेदारी इन्हें ही मिली. इन्होंने ही 'दीवार' में एक बच्चे पर पैसे फेंकने वाले सेक्रेटरी को टोका, पहचाना कि वो एक लंबी रेस का घोड़ा बनेगा. ऐसी कई और यादगार भूमिकाएं निभाने वाले इफ्तिख़ार 4 मार्च, 1995 को इस दुनिया से रुखसत हुए थे. हम लाए हैं उनकी ज़िंदगी से जुड़ी छह बातें जो अाप पढ़ना चाहेंगेः

'दीवार' में फेंके पैसे उठाकर देते डावर साहब (इफ्तिख़ार)
#1. इफ्तिख़ार ने पेंटिंग में डिप्लोमा लिया था. लेकिन के.एल सहगल की आवाज़ इनके सर चढ़ी हुई थी. तो बीस साल की उम्र में सहगल की ही तरह का सिंगर बनने के लिए कलकत्ता पहुंचे. कलकत्ता तब की म्यूज़िक इंडस्ट्री का घर था. एच.एम.वी के कमल दासगुप्ता से मिले और ऑडिशन के बाद 2 गानों का एल्बम रिलीज़ हुआ. कमल उनके व्यक्तित्व पर इतने मंत्रमुग्ध थे कि उनको अपनी जान-पहचान वाले एम.पी प्रोडक्शन में बतौर एक्टर नौकरी दिलवा दी. यहां से इफ्तिख़ार के लिए अभिनय की राह खुली. यहां रहकर इन्होंने 'तकरार', 'घर' और 'राजलक्ष्मी' में काम किया. तकरार में उस दौर की मशहूर अदाकारा जमुना लीड रोल में थीं.
#2. बंटवारे के वक्त हुए दंगों की वजह से इफ्तिख़ार को कलकत्ता छोड़ना पड़ा. बंबई उन्हीं दिनों फिल्मों के केंद्र के तौर पर उभरा. तो इफ्तिख़ार बंबई आ गए. कलकत्ते की पहचान के चलते अशोक कुमार से मिलकर काम मांगा. अशोक कुमार ने फौरन बॉम्बे टॉकीज में उन्हें नौकरी दे दी. उन दिनों बन रही 'दूर गगन की छांव में' के अभिनय भी किया और क्रेडिट रोल में बतौर बैकग्राउंड इस्तेमाल के लिए पेंटिंग भी बनाईं. अशोक कुमार उनकी कला से इतने प्रभावित थे कि उनसे पेंटिंग सिखाने की गुजारिश की. उम्र और अनुभव दोनों में बड़े होने के बावजूद अशोक कुमार उनको अपना पेंटिंग गुरु बुलाते थे.
#3. बंटवारे के वक्त इफ्तिख़ार का परिवार कानपुर में रहता था. कानपुर में हालात बिगड़े तो परिवार मजबूरी में पाकिस्तान चला गया. वहां रहकर इफ्तिख़ार के छोटे भाई इम्तियाज़ अहमद ने भी खूब नाम कमाया. पाकिस्तानी टीवी के जाने माने सितारे रहे और उन्हें पाकिस्तान में राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला.
#4. जिस तरह एक इत्तेफाक से इफ्तिख़ार एक अभिनेता बने, वैसे ही एक 'इत्तेफाक' ने उन्हें फिल्मों का पुलिस अफसर भी बनाया. 1969 में बी.आर.प्रोडक्शन के बैनर तले बनी राजेश खन्ना अभिनीत फिल्म 'इत्तेफाक' में इफ्तिख़ार ने एक पुलिस ऑफिसर का किरदार निभाया था. इसमें उनके काम की बहुत तारीफ हुई और काम मिलने लागा. वैसे बतौर पुलिस अफसर इनकी पहली फिल्म राज कपूर की 'श्री 420' थी. ये फिल्म 1955 में आई थी. उन्होंने 'बंदिनी', 'खेल-खेल में', 'एजेंट विनोद' और 'सावन भादो' जैसी फिल्मों में नेगेटिव किरदार भी अदा किए.

#5. बंबई ने इफ्तिख़ार के करियर के साथ उनकी ज़ाती ज़िंदगी को भी बदला. यहां उन्हें अपनी ही बिल्डिंग में रहने वाली हना जोसेफ़ नाम की यहूदी लड़की से प्यार हो गया. इफ्तिख़ार ने हना के लिए अपनी मंगेतर सईदा से सगाई तोड़ दी. सईदा बंटवारे के बाद रावलपिंडी जाकर बस गईं और उन्होंने कभी शादी नहीं की. इफ्तिख़ार की दो बेटियों में से छोटी का नाम भी सईदा ही था.
#6. 70 और 80 का दशक इफ्तिख़ार के लिए सबसे बढ़िया रहा. उस दौरान उन्होंने 100 से भी ज्यादा फ़िल्में कीं जिनमें 'शोले', 'जॉनी मेरा नाम', 'त्रिशूल', 'जंजीर', 'कभी-कभी', 'शर्मीली', 'दीवार' और 'डॉन'खास हैं. बॉलीवुड फिल्मों के अलावा इन्होंने हॉलीवुड फिल्म 'बॉम्बे टॉकी' और 'सिटी ऑफ़ जॉय' और हॉलीवुड टीवी सीरीज 'माया' में भी काम किया.

अपने करियर के दौरान तमाम बुलंदियों को छूने वाले इफ्तिख़ार की ज़िंदगी में दुख भी कम नहीं आए. छोटी बेटी सईदा ने उनकी आंखों के सामने कैंसर से दम तोड़ा. और इसी चीज़ ने संभवतः उन्हें तोड़ा. अपनी बेटी के जाने के बमुश्किल एक महीने बाद 4 मार्च 1995 में इफ्तिख़ार ने दम तोड़ दिया. 'बेखुदी' (1992) और 'काला कोट' (1993) जैसी फिल्मों में उन्हें आखिरी बार देखा गया.
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