अपनी किताब 'राग दरबारी' के लिए पहचाने जानेवाले शुक्ल जी ने कुल 25 किताबें लिखीं. उनकी पहली किताब ‘अंगद का पांव’ भी चर्चित हुई थी. मगर 'राग दरबारी' के साथ जो मुकाम शुक्ल जी ने पाया वो साहित्य में कम ही लोगों को मिला है.
व्यंग्य प्रधान उपन्यास में ग्रामीण भारत और सरकारी तंत्र का जो खाका शुक्ल जी ने खींचा है, उसकी बराबरी नहीं हो सकती. मगर खुद श्रीलाल शुक्ल इस किताब से खुश नहीं रहते थे. उनका कहना था कि राग दरबारी ने उनकी दूसरी रचनाओं को दबा दिया. ‘मकान’, ‘विश्रामपुर का संत’ और ‘राग विराग’ जैसी किताबों की चर्चा उतनी नहीं हुई, जितनी 'राग दरबारी' की हुई.
'राग दरबारी' के व्यंग्य आज के समय में भी उतने ही खरे और चोट करने वाले हैं.
पेश हैं 31 दिसंबर को पैदा हुए श्रीलाल शुक्ल की सबसे चर्चित किताब से कुछ व्यंग्य.
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